Sunday 18 October 2009

भूतों के भय से ही जुडा एक किस्‍सा और भी सुनिए !!

संभवत: यह घटना 1981 के आस पास की है। कलकत्‍ते में रहनेवाले हमारे एक दूर के रिश्‍तेदार पहली बार हमारे गांव के अपने एक नजदीकी रिश्‍तेदार के घर पर आए। पर वहां उनका मन नहीं लगता था , रिश्‍तेदार अपने व्‍यवसाय में व्‍यस्‍त रहते और उनकी पत्‍नी अपने छोटे छोटे बच्‍चों में।  वे वहां किससे और कितनी देर बातें करतें , उनके यहां जाने में जानबूझकर देर करते थे और हमारे यहां बैठकर बातें करते रहते थे । बडे गप्‍पी थे वो , अक्‍सर वे हमारे घर पहुंच जाते थे और घंटे दो घंटे गपशप करने के बाद खाना खाकर ही लौटते थे।

एक दिन शाम को पहुंचे , तो इधर उधर की बात होते होते भूत प्रेत पर जाकर रूक गयी , भूत प्रेत का नाम सुनते ही उन्‍होने अपनी शौर्यगाथाएं सुनानी शुरू की। फलाने जगह में भूत के भय से जाने से लोग डरते हैं , मैं वहां रातभर रहा , फलाने जगह पर ये किया , वो किया और हम सभी उनके हिम्‍मत के आगे नतमस्‍तक थे। मेरी मम्‍मी ने एक दो बार रात्रि के समय इस तरह की बातें न करने की याद भी दिलायी , पर वो नहीं माने ‘नहीं , चाचीजी , भूत प्रेत कुछ होता ही नहीं है , वैसे ही मन का वहम् है ये’ और न जाने कहां कहां के ऐसे वैसे किस्‍से सुनाते ही रहे।

उस दिन खाते पीते कुछ अधिक ही देर हो गयी थी , रात के ग्‍यारह बज गए थे , गांव में काफी सन्‍नाटा हो जाता है। उस घर के छत से आवाज दे देकर बच्‍चे बार बार बुला रहे थे । सामने के रास्‍ते से जाने से कई मोड पड जाने से उनका घर हमारे घर से कुछ दूर पड जाता था , पर खेत से होकर एक शार्टकट रास्‍ता था । हमलोग अक्‍सर उसी रास्‍ते से जाते आते थे , उन्‍होने भी उस दिन उसी रास्‍ते से जाने का निश्‍चय किया। पीछे के दरवाजे से उन्‍हें भेजकर हमलोग दरवाजा बंद करके अंदर अपने अपने कामों में लग गए। अचानक मेरी छोटी बहन के दिमाग में क्‍या आया , छत पर जाकर देखने लगी कि वे उनके घर पहुंचे या नहीं ? अंधेरा काफी था , मेरी बहन को कुछ भी दिखाई नहीं दिया , वह छत से लौटने वाली ही थी कि उसे महसूस हुआ कि कोई दौडकर हमारे बगान में आया और सामने नीम के पेड के नीचे छुप गया।

मेरी बहन ने पूछा ‘कौन है ?‘

उनकी आवाज आयी ‘मैं हूं’

‘आप चाचाजी के यहां गए नहीं ?’

‘खेत में कुएं के पास कोई बैठा हुआ है’

गांव में रात के अंधेरे में चोरों का ही आतंक रहता है , उनकी इस बात को सुनकर हमलोगों को चोर के होने का ही अंदेशा हुआ , जल्‍दी जल्‍दी पिछवाडे का दरवाजा खोला गया। पूछने पर उन्‍होने हमारे अंदेशे को गलत बताते हुए कहा कि वह आदमी नहीं , भूत प्रेत जैसा कुछ है , क्‍यूंकि कुएं के पास उसकी दो लाल लाल आंखे चमक रही हैं। तब जाकर हमलोगों को ध्‍यान आया कि कुएं के पास खेत में पानी पटानेवाला डीजल पंप रखा है और उसमें ही दो लाल बत्तियां जलती हैं। जब उन्‍हें यह बात बताया गया तो उन्‍होने एकदम से झेंपकर कहा ‘ओह ! हम तो उससे डर खा गए’ । बेचारे कर भी क्‍या सकते थे , इस डर खाने की कहानी ने तुरंत बखानी गई उनकी निडरता की कहानियों के पोल को खोल दिया था। फिर थोडी ही देर बाद वे चले गए , और हमारे घर के माहौल की तो पूछिए मत , हमलोगों को तो बस हंसने का एक बहाना मिल गया था।




23 comments:

mehek said...

rochak kissa,diwali ki bahut badhai

Mishra Pankaj said...

हा हा हा होता है ऐसा ही एक बार मेरे साथ हुआ था

M VERMA said...

ऐसा ही होता है आमतौर पर भ्रमवश हम भूत-प्रेत की धारणाओ को सशक्त कर देते है.

शिवम् मिश्रा said...

बहुत बढ़िया किस्‍सा !!

आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !

राज भाटिय़ा said...

बहुत मजे दार जी...
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

हा हा!! पम्प भूत!!

ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey said...

जहां भय है, वहां भूत का निवास है।

महेन्द्र मिश्र said...

ज्ञान जी के विचारो से सहमत . भय का भूत ख़राब होता है ....

योगेश स्वप्न said...

bahut rochak vratant.

महफूज़ अली said...

hahahahahahahahahahahaha.................

maza aa gaya padh kar..........

pait mein dard ho gaya hanste hanste........... ha ha ha ha ha ha ha ha haha ha ha ha ha

परमजीत सिँह बाली said...

बहुत रोचक।

विनोद कुमार पांडेय said...

भूत प्रेत का सोच ही भूत प्रेतों को उत्पन्न कर देता है...बढ़िया मजेदार संस्मरण....

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सच है जैसा सोचेंगे वैसा ही महसूस करेंगे.

अल्पना वर्मा said...

waah! mazedaar kissa..

laal aankhon wala डीजल पंप bhoot!!!:D

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

;-) Mazedaar kahanee sunayee aapne

खुशदीप सहगल said...

संगीता जी,

इंसानों के होते हुए भूतों की ज़रूरत ही क्या है...इंसान का बस चले तो भूत को भी टोपी पहनाने में कसर नहीं छोड़़ें...

जय हिंद...

vinay said...

वाह मजा़ आ गया ।

Anil Pusadkar said...

ऐसे बहादुर हर जगह मिल जायेंगे।बाकि किस्सा बड़ा मज़ेदार है।

श्रीश पाठक 'प्रखर' said...

अच्छा किस्सा सुनाया आपने, इस जैसा किस्सा तो सबके पास होगा .....

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

:)

डॉ महेश सिन्हा said...

रोचक

निर्मला कपिला said...

कई बार ऐसा होता है ।शुभकामनायें

वन्दना said...

hahahaha......mazaa aa gaya padhkar.........shekhi bagharne wale hi dabboo kism ke hote hain.