हम सभी जानते हैं कि भारत की राष्ट्रीय पहचान के 12 प्रतीक भारतीय पहचान और विरासत का मूलभूत हिस्सा हैं। विश्व भर में बसे विविध पृष्ठभूमियों के भारतीय इन राष्ट्रीय प्रतीकों पर गर्व करते हैं क्योंकि वे प्रत्येक भारतीय के हृदय में गौरव और देश भक्ति की भावना का संचार करते हैं, जो निम्न हैं ......
राष्ट्रीय ध्वज ... तिरंगा
राष्ट्रीय पक्षी ... मोर
राष्ट्रीय पुष्प ... कमल
राष्ट्र–गान ... जन गन मन
राष्ट्रीय नदी ... गंगा
राष्ट्रीय फल ... आम
राजकीय प्रतीक ... अशोक चक्र
राष्ट्रीय पंचांग .... शक संवत
राष्ट्रीय पशु ... बाघ
राष्ट्रीय गीत ... वंदे मातरम
राष्ट्रीय खेल ... हॉकी
राष्ट्रीय पेड़ ... अंजीर
कल पंकज सुबीर जी ने अपनी पोस्टमें लिखा है कि सीहोर के शिक्षा विभाग के द्वारा 55 वीं राष्ट्रीय शालेय क्रीड़ा प्रतियोगिता 2009 के समापन पर प्रकाशित स्मारिका में , जिसकी अध्यक्ष सीहोर की अपर कलेक्टर हैं तथा जिसके कोर ग्रुप में जिला शिक्षा अधिकारी, तीन प्राचार्य, डीपीसी, तथा दो संयुक्त संचालक शिक्षा के अलावे संपादक के एक प्राचार्य तथा मार्गदर्शक संयुक्त कलेक्टर के होने के बावजूद इसके 13 वें पृष्ठ पर 23 राष्ट्रीय प्रतीकों के नाम दिए गए हैं ......
राष्ट्रीय खेल – हाकी
राष्ट्रीय भाषा- हिन्दी
राष्ट्रीय वाक्य- सत्यमेव जयते
राष्ट्रीय ग्रंथ- गीता ( ये भी आज ही पता चला )
राष्ट्रीय मंत्र- ओम ( ये कब बना )
राष्ट्र पिता - महात्मा गांधी
राष्ट्रीय धर्म - धर्म निरपेक्ष ( अच्छा तो फिर गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ क्यों बनाया )
राष्ट्रीय मुद्रा – रुपया
राष्ट्रीय पुरुस्कार - भारत रत्न ( ऐसा क्या )
राष्ट्रीय फल –आम
राष्ट्रीय वृक्ष- बरगद
राष्ट्रीय मिठाई- जलेबी( वाह क्या ढूंढ के निकाला है )
राष्ट्रीय पर्व - 15 अगस्त, 26 जनवरी, 2 अक्टूबर
राष्ट्रीय नदी- गंगा
राष्ट्रीय लिपि- देवनागरी ( ये भी आज ही पता चला )
राष्ट्रीय चक्र ध्वज – तिरंगा
राष्ट्रीय गान – जन गण मन
राष्ट्रीय गीत - वंदे मातरम
राष्ट्रीय पशु- बाघ
राष्ट्रीय पक्षी – मोर
राष्ट्रीय पुष्प- कमल का फूल
राष्ट्रीय केलेण्डर -शक संवत
राष्ट्रीय जलचर - गंगा की डालफिन
इनमें असली राजकीय प्रतीक अशोक चक्र और राष्ट्रीय पेड अंजीर ही गायब हैं , इन्हें जोड दिया जाए तो कुल प्रतीक 25 हो जाते हैं । इसके अलावे मेरे पास एक पत्रिका है , जिसमें 32 प्रतीकों की चर्चा है ........
राष्ट्रीय गीत ... जन गण मन अधिनायक जय हे !
राष्ट्रीय ध्वज ... विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ,
राष्ट्रीय ध्येय ... हर व्यक्ति का स्वराज ,
राष्ट्रीय निष्ठा ... 'सत्यमेव जयते' ,
राष्ट्रीय साधना ... अहिंसा परमो धर्म ,
राष्ट्रीय धर्म ... सर्व धर्म समभाव ,
राष्ट्रीय वनचर ... प्रियदर्शी वनराज सिंह ,
राष्ट्रीय पक्षी ... सुमनोहर प्यारा मयूर ,
राष्ट्रीय फल ... सुमधुर सुरभित आम ,
राष्ट्रीय चिन्ह ... नवयुग प्रवर्तक अशोक चक्र ,
राष्ट्रीय पुष्प ... कमल ,
राष्ट्रीय नदी ... गंगा ,
राष्ट्रीय पंचांग .... शक संवत ,
राष्ट्रीय गीत ... वंदे मातरम ,
राष्ट्रीय खेल ... हॉकी ,
राष्ट्रीय पेड़ ... अंजीर ,
राष्ट्रीयता .. वसुधैव कुटुम्बकम्,
हमारे राष्ट्र देवता ... योगेश्वर विवश्वान सूर्यदेव ,
हमारा राष्ट्रीय संकल्प ... जनसेवार्थ 'जीवेत शरद: शतम्' ,
हमारी राष्ट्रीय अभिलाषा ... सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: ,
हमारा राष्ट्रीय मंत्र ... मानव संरक्षण मानव मात्र का स्वयं सिद्ध अधिकार हो।
हमारी राष्ट्रीय भूमिका ... सर्वभौम प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य ,
हमारी राष्ट्रीय नीति ... जीवन के शाश्वत मूल्यों पर अधारित पंचशील ,
हमारी राष्ट्रीय भावना ... मन मन मंदिर , घर घर गुरूकुल , गांव गांव गोकुल ,
हमारा राष्ट्रीय भजन ... वैष्णव जन तो तेने कहिए , पीर परायी जाणे रे ,
हमारी राष्ट्रीय सेवा ... स्वदेशी , स्वावलंबी , स्वयंसेवी ,
हमारी राष्ट्रीय भाषा ... हिन्दी
हमारी राष्ट्रीय लिपि ... देवनागरी ,
हमारा राष्ट्रीय गणवेश ... खादी ,
हमारा राष्ट्रीय जीवनाधार ... कृषि , गोसंवर्धन , उन्नत उद्योग और बुनियादी शिक्षा ,
हमारी राष्ट्रमाता ... स्वर्गादपि गरीयसी जन्मभूमि भारत माता ,
हमारे राष्ट्रीय पिता ... सत्य अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी ,
हमारे राष्ट्र का उज्जवल भविष्य ... हमारे होनहार प्यारे बालक ,
हमारे राष्ट्र निर्माता ... नवयुवक
हमारा राष्ट्रीय नारा ... जय जवान ! जय किसान ! जय विज्ञान ! जय हिन्द ! जय जगत !
राष्ट्रीय जयनाद ... स्वतंत्र भारत की जय ! प्रजाजनों की जय !
हमारी राष्ट्रीय धारणा ... जनतंत्रम् विजयते ,
हमारी राष्ट्रीय वंदना ... वंदे मातरम् ! वंदे मातरम् ! वंदे मातरम् !
इस पत्रिका के संपादकों पर दोषारोपण इसलिए नहीं किया जा सकता , क्यूंकि उन्होने इन्हें प्रतीक न कहकर 'अपने राष्ट्र को जानिए' शीर्षक के अंतर्गत इसे रखा है। अब इसमें यदि राष्ट्रीय शालेय क्रीड़ा प्रतियोगिता 2009 के समापन पर प्रकाशित की गई अपनी स्मारिका में प्रकाशित इन अतिरिक्त प्रतीकों को भी जोड दिया जाए ......
राष्ट्रीय वृक्ष .. बरगद ,
राष्ट्रीय ग्रंथ- गीता ,
राष्ट्रीय मंत्र- ओउम् ,
राष्ट्रीय धर्म - धर्म निरपेक्ष ,
राष्ट्रीय मुद्रा – रुपया ,
राष्ट्रीय पुरस्कार - भारत रत्न ,
राष्ट्रीय वृक्ष- बरगद ,
राष्ट्रीय मिठाई- जलेबी ,
राष्ट्रीय पर्व - 15 अगस्त, 26 जनवरी, 2 अक्टूबर ,
राष्ट्रीय जलचर - गंगा की डालफिन ,
तो कुल मिलाकर 42 ऐसे राष्ट्रीय प्रतीक हो जाएंगे , जिनपर हम गर्व कर सकते है , गर्व करने में हर्ज ही क्या है ??
सकारात्मक का मतलब क्या होता है, सकारात्मक और नकारात्मक सोच क्या है, सकारात्मक सोच कैसे बनाये, सकारात्मक सोच के फायदे क्या हैं, सकारात्मक सोच के उपाय क्या कर सकते हैं, खुद को, दिमाग को पॉजिटिव कैसे रखें - कुल मिलाकर इस ब्लॉग में पॉजिटिव थिंकिंग टिप्स यानि सकारात्मक सोच पर निबंध और सकारात्मक दृष्टिकोण मिलेगा आपको !
Saturday 21 November 2009
Tuesday 17 November 2009
....... और इस तरह राजा को भी विश्वास हो गया कि भूत होते हैं !!
एक गांव में दो गरीब पति पत्नी रहा करते थे , किसी तरह दो जून का रूखा सूखा खाना जुटा पाते। पर्व त्यौहारों में भी पकवान बना पाना मुश्किल होता। अगल बगल के घरों से कभी कुछ मिल जाता तो खाकर संतोष कर लेते थे। पर एक दिन किसी के घर से मिले पुए को खाकर उनका लालच काफी बढ गया, इसलिए उन्होने घर पर ही पुए बनाने की सोंची। सामग्री की व्यवस्था में कई दिनों तक दोनो ने पूरी ताकत झोंकी , तब जाकर पुए के लिए चावल , दूध और घी जुटा पाए। पत्नी पुए बनाने की तैयारी में जुट गयी।
तभी पति को कोई काम याद आ गया और वह उस सिलसिले में घर से निकल पडा। पर थोडी दूर जाने के बाद ही उसे अपनी गल्ती का अहसास हुआ , अभी घर से निकलने की क्या जरूरत थी ? घर पर होता तो चखने के बहाने ही एक दो पुए अधिक मिल जाते। यह सोंचते ही वह काम छोडकर वापस घर लौटा, घर पहुंचा तो दूर से ही पत्नी पुए बनाती मिली। उसके मन में पत्नी के लालच की परीक्षा लेने की बात आ गयी , इसलिए वह दूर से ही छुपकर अपनी पत्नी की गतिविधियों पर नजर डालने लगा।
उतनी सामग्री से पत्नी ने बडे बडे पांच पुए बनाए , बनाते वक्त एक भी पुए नहीं खाया , देखकर उसे ताज्जुब हुआ। फिर धीरे से वहां से निकलकर वह पत्नी के सामने आया। पत्नी ने खाना निकाला , सामने चार ही पुए थे , दो उसे दिया और दो खुद खाने बैठ गयी। उसे शंका होनी ही थी , कमरे में चारों ओर देखते हुए उसने कुछ अनुमान लगाया।
फिर उठकर छुपाए हुए पांचवे पुए को निकालकर पूछा 'यह क्या है ?'
पत्नी ने कहा 'वह आखिरी पुआ है , इसमें कंकड वगैरह होते हैं और इसलिए घर के मर्द इसे नहीं खाते'
पति ने कहा 'ठीक है तुम ही इसे खाओ , पर अपनी थाली में से एक पुआ मुझे दे दो'
'यह कैसे हो सकता है , उस कंकड वाले पुए के बदले तुम्हे अच्छा पुआ दे दूं'
कोई मानने को तैयार नहीं , बढते बढते बात बहुत बढ गयी , कौन तीन खाए और कौन दो । अंत में पति ने फैसला किया कि दोनो में से जो पहले बोलगा , पहले खाएगा , पहले उठेगा या पहले सोने जाएगा , उसकी हार होगी और उसे दो पुए खाने को मिलेंगे , जबकि जीतनेवाले को तीन। इस फैसले पर दोनो राजी हो गए। इसके बाद मिनट बीतते गए , फिर घंटे और फिर पूरी रात बीत गयी , दोनो में से हारने को कोई तैयार नहीं। सुबह काफी देर तक उनका दरवाजा नहीं खुला , तो पडोसियों को संदेह हुआ। उनलोगों ने दरवाजे को जोर जोर से पीटा , पर दरवाजा नहीं खुला । किसी अनहोनी की आशंका से पडोसी भयभीत हुए , छप्पर फाडकर घर के अंदर घुसे। देखा कि दोनो पति पत्नी दीवार के सहारे बैठे मु्द्रा में थाली में रखे पुए पर टकटकी लगाए हुए हैं।
सबने समझ लिया कि ये पुआ जहरीला था , जिसे खाने से दोनो पति पत्नी की मौत हो गयी है। पूरे गांव में कोहराम मच गया , सब इनकी अंतिम विदाई की तैयारी करने लगे। औरत को सती मानते हुए सारे गांववाले दर्शन को पहुंचने लगे। एक ही साथ दोनो की चिता बनायी गयी , दोनो को उसपर रखकर श्मशान पहुंचा दिया गया। पांच रिश्तेदार आगे बढे , अब आग लगाने की बारी भी आ गयी थी। पति ने सोंचा कि एक पुए के लालच में मौत को गले लगाना बेवकूफी ही होगी। वह बोल उठा 'चलो , अब उठो भी , तुम तीन खाओ , मैं ही दो खाउंगा' उन्हें उठते देखकर सबने सोंचा कि इनके दाह संस्कार में देर हो गयी है , इसलिए ये भूत बन गए। यह सुनते ही जिसके हाथ में आग थी और उसके चार साथी सिर पर पैर रखकर भागे। उन्होने सोंचा कि भूत उन पांचों को खाने के बारे में ही बात कर रहे थे , जो उनके क्रिया कर्म में आगे आगे हैं। गांववाले भी पीछे पीछे भागे।
उनके पीछे पीछे पति पत्नी गांव में जाकर सब बातें समझाना चाहते थे , पर गांववाले दूर से ही भूत समझकर उन्हें ढेला पत्थर मारकर भगा देते। उनके भूत बनने की कहानी पूरे राज्य में फैल गयी। धीरे धीरे राजा के कानों तक भी पहुंची। राजा को भूत प्रेत की कहानियों पर विश्वास नहीं था, इसलिए उसे अपनी आंखों से सत्य देखने की इच्छा हुई। उसने अपना घोडा निकाला और श्मशान की ओर दौडा दी। श्मशान से कुछ पहले ही उन्होने एक खूंटी गाडकर अपने घोडे को बांध दिया और पैदल ही आगे बढे। अभी श्मशान पहुंचे भी नहीं थे कि सचमुच पति पत्नी को अपनी ओर आते पाया। राजा को आते देख वे उनसे गांव में रहने देने की प्रार्थना के लिए आगे बढे जा रहे थे।
पर उन्हें देखकर राजा उल्टा भागा। वो अपने कदम जितने तेज करता , दोनो उतनी ही तेजी से उसकी ओर आते । उनकी गति देखकर राजा की सारी शक्ति जबाब दे रही थी। घबडाकर उन्होने घोडे को खोला भी नहीं और उसपर बैठकर घोडे को दौडा दिया। घोडा भागा जा रहा था और साथ ही साथ उखडा हुआ खूंटा राजा के पैरों से टकरा टकराकर उसे चोटिल करता जा रहा था , जिसे वे भूत की चोट समझ रहे थे। वे घोडे को जितना ही तेज दौडाते , खूंटा उतनी ही तेजी से उनके पैरों पर वार करता। अब ऐसी हालत में राजा को भला कैसे विश्वास न हो कि भूत नहीं होते।
तभी पति को कोई काम याद आ गया और वह उस सिलसिले में घर से निकल पडा। पर थोडी दूर जाने के बाद ही उसे अपनी गल्ती का अहसास हुआ , अभी घर से निकलने की क्या जरूरत थी ? घर पर होता तो चखने के बहाने ही एक दो पुए अधिक मिल जाते। यह सोंचते ही वह काम छोडकर वापस घर लौटा, घर पहुंचा तो दूर से ही पत्नी पुए बनाती मिली। उसके मन में पत्नी के लालच की परीक्षा लेने की बात आ गयी , इसलिए वह दूर से ही छुपकर अपनी पत्नी की गतिविधियों पर नजर डालने लगा।
उतनी सामग्री से पत्नी ने बडे बडे पांच पुए बनाए , बनाते वक्त एक भी पुए नहीं खाया , देखकर उसे ताज्जुब हुआ। फिर धीरे से वहां से निकलकर वह पत्नी के सामने आया। पत्नी ने खाना निकाला , सामने चार ही पुए थे , दो उसे दिया और दो खुद खाने बैठ गयी। उसे शंका होनी ही थी , कमरे में चारों ओर देखते हुए उसने कुछ अनुमान लगाया।
फिर उठकर छुपाए हुए पांचवे पुए को निकालकर पूछा 'यह क्या है ?'
पत्नी ने कहा 'वह आखिरी पुआ है , इसमें कंकड वगैरह होते हैं और इसलिए घर के मर्द इसे नहीं खाते'
पति ने कहा 'ठीक है तुम ही इसे खाओ , पर अपनी थाली में से एक पुआ मुझे दे दो'
'यह कैसे हो सकता है , उस कंकड वाले पुए के बदले तुम्हे अच्छा पुआ दे दूं'
कोई मानने को तैयार नहीं , बढते बढते बात बहुत बढ गयी , कौन तीन खाए और कौन दो । अंत में पति ने फैसला किया कि दोनो में से जो पहले बोलगा , पहले खाएगा , पहले उठेगा या पहले सोने जाएगा , उसकी हार होगी और उसे दो पुए खाने को मिलेंगे , जबकि जीतनेवाले को तीन। इस फैसले पर दोनो राजी हो गए। इसके बाद मिनट बीतते गए , फिर घंटे और फिर पूरी रात बीत गयी , दोनो में से हारने को कोई तैयार नहीं। सुबह काफी देर तक उनका दरवाजा नहीं खुला , तो पडोसियों को संदेह हुआ। उनलोगों ने दरवाजे को जोर जोर से पीटा , पर दरवाजा नहीं खुला । किसी अनहोनी की आशंका से पडोसी भयभीत हुए , छप्पर फाडकर घर के अंदर घुसे। देखा कि दोनो पति पत्नी दीवार के सहारे बैठे मु्द्रा में थाली में रखे पुए पर टकटकी लगाए हुए हैं।
सबने समझ लिया कि ये पुआ जहरीला था , जिसे खाने से दोनो पति पत्नी की मौत हो गयी है। पूरे गांव में कोहराम मच गया , सब इनकी अंतिम विदाई की तैयारी करने लगे। औरत को सती मानते हुए सारे गांववाले दर्शन को पहुंचने लगे। एक ही साथ दोनो की चिता बनायी गयी , दोनो को उसपर रखकर श्मशान पहुंचा दिया गया। पांच रिश्तेदार आगे बढे , अब आग लगाने की बारी भी आ गयी थी। पति ने सोंचा कि एक पुए के लालच में मौत को गले लगाना बेवकूफी ही होगी। वह बोल उठा 'चलो , अब उठो भी , तुम तीन खाओ , मैं ही दो खाउंगा' उन्हें उठते देखकर सबने सोंचा कि इनके दाह संस्कार में देर हो गयी है , इसलिए ये भूत बन गए। यह सुनते ही जिसके हाथ में आग थी और उसके चार साथी सिर पर पैर रखकर भागे। उन्होने सोंचा कि भूत उन पांचों को खाने के बारे में ही बात कर रहे थे , जो उनके क्रिया कर्म में आगे आगे हैं। गांववाले भी पीछे पीछे भागे।
उनके पीछे पीछे पति पत्नी गांव में जाकर सब बातें समझाना चाहते थे , पर गांववाले दूर से ही भूत समझकर उन्हें ढेला पत्थर मारकर भगा देते। उनके भूत बनने की कहानी पूरे राज्य में फैल गयी। धीरे धीरे राजा के कानों तक भी पहुंची। राजा को भूत प्रेत की कहानियों पर विश्वास नहीं था, इसलिए उसे अपनी आंखों से सत्य देखने की इच्छा हुई। उसने अपना घोडा निकाला और श्मशान की ओर दौडा दी। श्मशान से कुछ पहले ही उन्होने एक खूंटी गाडकर अपने घोडे को बांध दिया और पैदल ही आगे बढे। अभी श्मशान पहुंचे भी नहीं थे कि सचमुच पति पत्नी को अपनी ओर आते पाया। राजा को आते देख वे उनसे गांव में रहने देने की प्रार्थना के लिए आगे बढे जा रहे थे।
पर उन्हें देखकर राजा उल्टा भागा। वो अपने कदम जितने तेज करता , दोनो उतनी ही तेजी से उसकी ओर आते । उनकी गति देखकर राजा की सारी शक्ति जबाब दे रही थी। घबडाकर उन्होने घोडे को खोला भी नहीं और उसपर बैठकर घोडे को दौडा दिया। घोडा भागा जा रहा था और साथ ही साथ उखडा हुआ खूंटा राजा के पैरों से टकरा टकराकर उसे चोटिल करता जा रहा था , जिसे वे भूत की चोट समझ रहे थे। वे घोडे को जितना ही तेज दौडाते , खूंटा उतनी ही तेजी से उनके पैरों पर वार करता। अब ऐसी हालत में राजा को भला कैसे विश्वास न हो कि भूत नहीं होते।
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