Thursday 24 December 2009

लोकतंत्र मूर्खों का ही शासन तो है .. चुनाव परिणाम से अचंभा कैसा ??

कुछ दिनों से झारखंड में सारे नेता , उनके भाई बंधु और चुनाव के बहाने कुछ कमाई कर लेने वाले लोग विधान सभा चुनाव की गहमा गहमी में  जितना व्‍यस्‍त थे , बुद्धि जीवी वर्ग उतना ही चिंतन में उलझे थे। झारखंड को समृद्ध समझते हुए बिहार से अलग करने के बाद इतने दिनों की शासन व्‍यवस्‍था में इस प्रदेश में आम जन तो समृद्ध नहीं हो सके थे , इस कारण उनकी चिंता जायज थी। कम से कम चुनाव परिणाम तो उनके पक्ष में आना ही नहीं चाहिए था , जिनकी बदौलत राज्‍य की स्थिति इतनी खराब हुई थी। हालांकि विकल्‍प का खास अभाव सारे देश में मौजूद है , तो झारखंड में कोई सशक्‍त विकल्‍प की संभावना का कोई सवाल ही नहीं , फिर भी चुनाव परिणाम को देखकर कुछ अचंभा हो ही जाता है।

वैसे यदि पूरी कहानी समझ में आए , तो अचंभे वाली कोई बात नहीं है। यूं भी लोकतंत्र को मूर्खों का शासन ही कहा गया है। जिस देश में जनता मूर्ख हो उस देश में तो खासकर लोकतंत्र मूर्खों का ही शासन बन जाता है। अधिकांश अनपढ और राजनीति से बेखबर रहनेवाले लोग भला मतदान का महत्‍व क्‍या समझेंगे ? विभिन्‍न समाजसेवियों का काम राजनीतिक सही ढंग से जनता को आगाह कर जनता के मध्‍य राजनीतिक चेतना को बनाए रखना होता था , पर न तो सच्‍चे समाजसेवी रह गए हैं और न ही प्रचारक । हमलोग भी सामाजिक या राजनीतिक रूप से कोई जबाबदेही न लेकर सिर्फ कलम चलाना जानते हैं । विभिन्‍न एन जी ओ भी अपने मुख्‍य उद्देश्‍य से कोसों दूर है। चुनाव के वक्‍त नेता और उसके प्रचारक घूम घूम कर उन्‍हें गुमराह करते हैं और जिस राजनीतिक पार्टी का मार्केटिंग जितना अच्‍छा होता है , वे उतने वोट प्राप्‍त कर लेते हैं।

अभी भी झारखंड में अधिक आबादी गरीबों और अशिक्षितों की ही है। मैने दो चार मुहल्‍ले में मतदान के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की। कहीं भी कोई मुद्दा नहीं मिला , जिन्‍होने आकर मीठी मीठी बातें की , दुख सुख में साथ निभाने का वादा भर किया , कुछ नोट हाथ में दिए , पूरे मुहल्‍ले के वोट उसी को मिल गए। बिना जाने बूझे कि वो जिसे वोट दे रहे हैं , वो कौन है , किस चरित्र का है , किस पार्टी का है और उनके लिए क्‍या करेगा ? उनके मुहल्‍ले में न तो पढाई लिखाई की कोई व्‍यवस्‍था है और न ही कोई किसी प्रकार का ज्ञान देनेवाला है , बेचारे आराम से पैसों के बदले वोट गिरा आते हैं। जहां दस रूपए प्राप्‍त करने के लिए उन्‍हें एक घंटे की जी तोड मेहनत करनी पडती हो , वहां एक वोट गिराने में मुफ्त के एक समय खाने का प्रबंध भी हो जाए तो कम तो नहीं । इसके साथ मुहल्‍ले के एक दो लागों को कुछ काम के लिए भी पैसे मिल जाते हैं , गरीबों को और क्‍या चाहिए ,
जय लोकतंत्र !!




13 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सही लिखा है.....बढ़िया पोस्ट।

Udan Tashtari said...

जय लोकतंत्र !! के सिवाय और कह भी क्या सकते हैं.

Udan Tashtari said...

जय लोकतंत्र !! और क्या रास्ता है इसके सिवाय!! :)

विनोद कुमार पांडेय said...

लोकतंत्र का यही रूप है बढ़िया प्रस्तुति एक दम सही बात कही आपने.

Mithilesh dubey said...

काहे का लोकतन्त्र , बस नाम का , जिससे कोई फायदा नहीं है ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

तजुर्बेकार लीडर ऐसे ही होते हैं. इसीलिये आजादी के साठ साल बाद तक अधिकांश जनता को शिक्षा से दूर रखा जिसका फायदा वे उठा रहे हैं. जनता तो बेचारी है जिसे बेवकूफ बनाते रहते हैं. ईवीएम हैक हो जाती है जिसे एक चैनल पर इन्जीनियर ने कर के दिखाया था. सरकारें इतनी ईमानदार हैं तो क्यों एक दिन में पूरे देश में चुनाव नहीं कराती और ईवीएम में एक काउन्टर लगा देतीं जिससे कि वोटर के सामने ही मतगणना दिखाई देती रहे और उसे संतोष हो कि उसने जिसे वोट दिया है वह वास्तव में उसके ही खाते में गया है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इस लोकतन्त्र से तो राजतन्त्र ही अच्छा था!

M VERMA said...

लोकतंत्र मूर्खों का ही शासन तो है ..
पता नहीं मूर्ख कौन है
शासक या शासित

वाणी गीत said...

लोकतंत्र बुरे और ज्यादा बुरे विकल्पों में से किसी एक को चुनने का माध्यम मात्र रह गया है ...!!

हास्यफुहार said...

क्रिसमस पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई।

नीरज शर्मा said...

अपने आपको मूर्ख घाषित करने की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें। जब तक आप जैसे देश में रहेंगे देश का शायद ही कभी भला हो पाये।

Unknown said...

aapne bilkul sahi kaha

http://dafaa512.blogspot.com/

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

अभी भी झारखंड में अधिक आबादी गरीबों और अशिक्षितों की ही है।
आपसे सहमत.