Saturday 16 January 2010

अपनी प्रकृति के अनुसार काम न कर पाने से आत्‍मविश्‍वास पर बुरा प्रभाव पडता है !!

काफी हद तक जीन का प्रभाव और कुछ हद तक परिस्थितियों का प्रभाव , पर इतने विशाल दुनिया में कोई भी दो बीज एक जैसे नहीं होते । रंग रूप , और बनावट में भिन्‍नता तो हमें स्‍पष्‍टत: दिखाई पडती है , पर वो एक होने पर भी कभी कभी स्‍वभाव तक में अच्‍छी खासी भिन्‍नता देखी जाती है। वास्‍तव मे विचित्रता से भरी इसी दुनिया में सुंदरता , स्‍वाद और व्‍यवहार का भिन्‍न भिन्‍न रूप हमारे सोंचने और समझने की शक्ति को बढाने में सहायक है। इनके वर्णन करने के क्रम में इतने साहित्‍य लिखे गए , पर लेखकों के लिए अभी भी न तो भाव की कमी हुई है और न ही शब्‍दों की और न ही आगे कभी होगी।

जीन की विभिन्‍नता के कारण ही नहीं , परिस्थितियों की विभिन्‍नता के कारण भी हम मनुष्‍य भी एक दूसरे से बिल्‍कुल भिन्‍न हैं। इतिहास की किताबों में हमने जितने महापुरूषों के बारे में पढा है , सबका व्‍यक्त्त्वि बिल्‍कुल भिन्‍न दिखाई पडा होगा , यहां तक कि किसी की किसी से तुलना भी नहीं की जा सकती है। अपने ही परिवार में हमें महसूस होगा कि हर व्‍यक्ति की रूचि , आई क्‍यू बात चीत करने का तरीका सब भिन्‍न है, पर इसे स्‍वीकारने में हमें कठिनाई आती रहती है।क्‍यूंकि हम अपने सामने वाले को एक ढांचे में फिट देखना चाहते हैं , जो कदापि संभव नहीं। इसके बावूजद हम एक दूसरे के दोष निकालते हैं , उसे भला बुरा कहते हैं , अपनी बातें मनवाने को मजबूर करते हैं।

बहुत से परिवार में अनुशासन के आड में बच्‍चों और बहू पर बहुत अंकुश रखा जाता है , यहां तक कि कई जगहों पर पति और पत्‍नी के द्वारा भी  एक दूसरे के साथ बहुत अधिक समायोजन की अपेक्षा रखी जाती है। बच्‍चे अभिभावक के मनमुताबिक कैरियर चुने , यह कहां का इंसाफ है ? पति पत्‍नी शादी विवाह के बंधन में अवश्‍य ही बंध गए हों , पर अपने अपने स्‍वभाव के अनुरूप जीने के लिए वो स्‍वतंत्र हैं , क्‍यूंकि किसी को अधिक खर्च करने की आदत होती है तो किसी को कम , किसी को घमने फिरने , मिलने जुलनेकी आदत होती है तो किसी की महत्‍वाकांक्षा उसके जीवन को व्‍यस्‍त बनाती है। पर कहीं पति इसे स्‍वीकार न करे तो उसे भला बुरा कहा कहा जाता है तो कहीं पत्‍नी को। घर कलह का केन्‍द्र बन जाता है , जिसका प्रभाव बच्‍चों पर बुरा पडता है।

यदि अधिक दिनों तक किसी व्‍यक्ति पर ऐसा दबाब बनाया जाए तो अपनी प्रकृति के अनुसार काम न कर पाने से उसके आत्‍मविश्‍वास पर बुरा प्रभाव पडता है। इसलिए चाहे वो आपका संतान हो , माता पिता हों या पति या फिर पत्‍नी जबतक किसी की जीवनशैली से  उसका या किसी और का बडा नुकसान न हो रहा हो , कोई खास समस्‍या न उपस्थित हो रही हो , उसे अपने मन मुताबिक काम करने से नहीं रोका जाना चाहिए। अपने मनमुताबिक काम करने से व्‍यक्ति सफलता के चरम तक पहुंच सकता है , दूसरों के दिखाए रास्‍ते पर कोई तभी चल सकता है , जब उसकी क्षमता कोई और काम कर पाने की न हो।





10 comments:

विनोद कुमार पांडेय said...

कहा गया है की जहाँ चाह वही राह अगर हम अपनी प्रकृति के अनुसार राह चुनते है तो हमें एक आंतरिक बाल मिलेगा जिससे हमारा मार्ग प्रशस्त होता है..और उल्टा चलने का परिणाम तो बुरा है ही...शायद उतनी सफलता ना मिले जितना प्रकृति के अनुसार मिलती है..बढ़िया प्रसंग..धन्यवाद संगीता जी

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छा आलेख। आपसे सहमत हूं।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अनुभवी कलम से निकला एक सार्थक लेख!
लेख में आपका श्रम झलक रहा है।

डॉ. मनोज मिश्र said...

सही कहा आपनें ,मनोभावों को नजरंदाज़ नही करना चाहिए.

Anonymous said...

खास कर नारी को अगर ये स्वेच्छा राज़ी ख़ुशी से दी जाती है और उसे परिवार का पूरा सहयोग मिलता है तो घर परिवार मे कलह कि गुंजाईश नहीं रहेगी, अगर परिवार खुश तो समाज भी तनाव रहित बनेगा पर ऐसा हों सकता है क्या????????

Anonymous said...

??????????

हास्यफुहार said...

आपके आलेख से सहमत हूं।

अजित गुप्ता का कोना said...

हमारे जमाने में यह सुविधा नहीं थी, जैसा पिताजी चाहते थे, वैसा ही संतानों को करना होता था। यह सुविधा तो आज की पीढ़ी को है कि वह जो चाहे बने। अच्‍छे विचार के‍ लिए बधाई।

sandhyagupta said...

Aapki baat se sahmat hoon.

Vinashaay sharma said...

इसी विषय से मिलती,जुलती एक कहानी लिख रहा हूँ,परिवर्तन हाँ,पड़ तो कोई नहीं रहा,बस उड़नतशतरी जी के उस कहानी को ध्यान से पड़ने के कारण लिखता जा रहा हूँ,और वोह कारण उनकी एक टिप्प्णी से झलकता है,विषय तो आपके इस लेख से मिलता,जुलता है,और उसमें यह भी समावेश किया गया है एक युवक को,उसकी मनोवेग्यनिक कमियों के कारण क्या,क्या सहन करना पड़ता है,वैसे तो में किसी को अपने लेख पड़ने के लिये बाध्य नहीं करता,मालुम नहीं इस भावना ने जन्म कैसे ले लिया,अभी परिवर्तन के तीन भाग लिख चुका हूँ ।