Wednesday 17 February 2010

आखिरकार पुलिस ने मुझे ढूंढ ही लिया !!

अपने जीवन की सब सुख सुविधा छोडकर अपने चिंतन के प्रति समर्पित होकर ही कोई लेखक लेखन की निरंतरता बना पाता है। उसका लक्ष्‍य अपने अनुभवों और विचारों का समाज में बेहतर प्रचार प्रसार ही होता है , क्‍यूंकि एक प्रतिशत से भी कम मामलों में ही आर्थिक आवश्‍यकताओं की पूर्ति लेखन के माध्‍यम से हो पाती है। पर जहां कुछ लोग लेखक के विचारो और अनुभवों की कद्र करते हैं , वहीं समाज में विपरीत मानसिकता रखनेवालों के द्वारा लेखकों का विरोध भी देखने को मिल जाता है। ऐसे समय में कभी कभी लेखन से विरक्ति सी भी हो जाती है , पर कोई न कोई सुखद घटना फिर आत्‍मविश्‍वास को जन्‍म देते हुए नए जज्‍बे के साथ चिंतन मनन को बाध्‍य करती है और हर किसी को अपने कर्तब्‍य पथ पर बनाए रहती है। बाजार में किसी लेखक के लेखों , उनके पुस्‍तकों के प्रकाशित होने के साथ ही साथ ऐसे पाठक जन्‍म ले लेते हैं , जो एक नई दृष्टि से हर कार्य को , हर परिणाम को , हर घटना को देख सके। पाठकों की संख्‍या में बढोत्‍तरी के साथ ही साथ लेखक का महत्‍व बढता जाता है।

मैने 1991 से ही विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं के लिए लिखना शुरू किया था  और बहुत जल्‍द ही मेरा लेखन एक प्रकाशक की नजर में आ गया था। इसके कारण 1996 में ही एक पुस्‍तक बाजार में आ गयी थी , दो वर्षों के अंदर ही इसकी सारी प्रतियां बिक चुकी थी और 1999 में ही इसके दूसरे संस्‍करण को प्रकाशित करने के लिए मुझे हस्‍ताक्षर करना पडा था। उस पुस्‍तक में मैने शीघ्र ही बाजार में दूसरी पुस्‍तकों के लाने और पाठकों से संवाद बनाए रखने का वादा किया था , पर कुछ न कुछ समस्‍या के कारण इतने दिनों के उपरांत भी बाजार में मेरी या मेरे पिताजी की कोई पुस्‍तक नहीं आ सकी थी। चार वर्ष पूर्व तक पाठकों ने मेरे पते पर संपर्क भी किया था , पर इधर तीन वर्षों से पता बदलने की वजह से वे संवाद भी नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में मेरी अगली पुस्‍तक के इंतजार कर रहे मेरे एक पाठक महोदय को पिछले दिनों मुझे ढूंढने के लिए पुलिस का सहारा लेना पडा।

मेरी उक्‍त पुस्‍तक में बोकारो , बिहार का पता लिखा था , दरभंगा (बिहार) के डी आई जी साहब उनके परिचित थे , उन्‍होने मेरी खबर लेने के लिए उनसे संवाद किया। बोकारो अब झारखंड में है , उन्‍होने बोकारो के एस पी साहब को खबर भेजा , इतने बडे बोकारो में भी मेरा पता लगाना आसान नहीं था , पर पुस्‍तक में मेरे जन्‍मस्‍थान पेटरवार के बारे में दी गयी जानकारी से पुलिस को एक सूत्र मिला। एस पी साहब ने पेटरवार के थाना इंचार्ज को खबर की , वहां उन्‍हें मेरे पिताजी को फोन नंबर मिला। और इस तरह आखिरकार पुलिस ने मुझे ढूंढ ही लिया । पर इतना सब होने के बाद भी मुझे ये मालूम न हो सका कि मुझे ढूंढा क्‍यूं जा रहा है। पापा जी के पास कई फोन आने के बाद अंत में सारा माजरा खुलकर सामने आया , पापाजी से उनकी मीटिंग भी तय हो गयी है। उनका मुझसे अभी तक संवाद नहीं हो सका है , पर मेरे ब्‍लॉग का पता भी उनके पास चला गया है। हो सकता है , एक दो दिनों में मेरे पास उनका मेल भी आ जाए। एक सीख तो मिल ही गयी है , अच्‍छा करते रहो , अच्‍छा सोंचते रहो , अच्‍छा लिखते रहो , देखने सुनने पढने वाले मिलते रहेंगे।



19 comments:

श्यामल सुमन said...

गत्यात्मक सहित एक सकारात्मक चिन्तन संगीता जी। बस सार्थक लिखने की भूख बनी रहे।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

स्वप्न मञ्जूषा said...

एक सीख तो मिल ही गयी है , अच्‍छा करते रहो , अच्‍छा सोंचते रहो , अच्‍छा लिखते रहो , देखने सुनने पढने वाले मिलते रहेंगे।
ye hai sau baat ki ek baat..bikul sahi baat kahi aapne..
haardik badhaii aapko..aapke pathak aap par itna sneh nyochhawar karte hain..

अविनाश वाचस्पति said...

लेखन का बढ़ता दम
बढ़ता रहे कदम दर कदम।

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्‍छा करते रहो , अच्‍छा सोंचते रहो , अच्‍छा लिखते रहो , देखने सुनने पढने वाले मिलते रहेंगे....
यह सही है.

विवेक रस्तोगी said...

जी बिल्कुल सही, लिखते रहिये, पाठक आज नहीं हैं तो क्या कल तो आयेंगे ही।

Udan Tashtari said...

बिल्कुल सही!

वाणी गीत said...

अच्छा करते रहो ...बिलकुल ...इसका फायदा मिलता तो है ...भले ही देर से मिले ...!!

Kulwant Happy said...

ऐसी ऊर्जा शक्ति फिर न मिलेगी। लोग कहते हैं हैप्पी टिप्पणियाँ कम हैं, मैं कहता हूँ कोई बात नहीं। मेरे पाठक लिखने असमर्थ होंगे, लेकिन जब वो समर्थ हो जाएंगे। तब जिम्मेदारियाँ और बढ़ जाएंगी। इस लिए निस्वार्थ भाव से काम करना मुझे अच्छा लगता है।

निर्मला कपिला said...

बिलकुल लिखने से पहचान तो मिलती है संगीता जी मुझे भी एक दिन एस एस पी रोपद का फोन आया मै तो डर गयी मगर उन्होंने कहा कि मैने आपका ब्लाग देखा और खुशी हुयी कि मेरे जिले मे आप जैसी लेखक महिलायें हैं और मुझे बधाई दी। इन सब से प्रेरणा तो मिलती ही है
धन्यवाद्

अजित गुप्ता का कोना said...

ऐसे ही लिखने की प्रेरणा देती रहे। बधाई।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छा लिखने और अच्छा सोचने की प्रेरणा देता आपका अनुभव.....

Parul kanani said...

happy ji ki baat se sehmat hoon ..
aur aapki pripkvta dekhti hi banti hai.. :)

Parul kanani said...

happy ji ki baat se sehmat hoon ..
aur aapki pripkvta dekhti hi banti hai.. :)

naresh singh said...

गुणों की पूजा होती है | जो लगे रहते है वो एक दिन जरूर कामयाब होते है

Mithilesh dubey said...

बिल्कुल सही है कि अच्छा लिखते रहिए बस , और इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो आप ही हो ।

Vinashaay sharma said...

कद्रदान तो कैसे भी करके खोज ही लेते हैं ।

L.Goswami said...

:-) हथकड़ी लगे आपके दुश्मनों को.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

ओह! शीर्षक से मैं डर गया था....

लेख बहुत अच्छा लगा...

रानीविशाल said...

बिल्कुल सही है...... अच्छा लिखते रहिए बस!
अच्छा लेख..आभार!!