Saturday 3 July 2010

मान गए मम्‍मी की एस्‍ट्रोलोजी को !!

बात मेरे बेटे के बचपन की है , हमने कभी इस बात पर ध्‍यान नहीं दिया था कि अक्‍सर भविष्‍य की घटनाओं के बारे में लोगों और मेरी बातचीत को वह गौर से सुना करता है। उसे समझ में नहीं आता कि मैं होनेवाली घटनाओं की चर्चा किस प्रकार करती हूं। लोगों से सुना करता कि मम्‍मी ने 'एस्‍ट्रोलोजी' पढा है , इसलिए उसे बाद में घटनेवाली घटनाओं का पता चल जाता है। यह सुनकर उसके बाल मस्तिष्‍क में क्‍या प्रतिक्रिया होती थी , वो तो वही जान सकता है , क्‍यूंकि उसने कभी भी इस बारे में हमसे कुछ नहीं कहा। पर एक दिन वह अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सका , जब उसे अहसास हुआ कि मेरी मम्‍मी वास्‍तव में बाद में होने वाली घटनाओं को पहले देख पाती है। जबकि वो बात सामान्‍य से अनुमान के आधार पर कही गयी थी और उसका ज्‍योतिष से दूर दूर तक कोई लेना देना न था।

उसकी उम्र तब छह वर्ष की थी , हमें एक रिश्‍तेदार के यहां विवाह में सम्मिलित होना था। एक्‍सप्रेस ट्रेन का रिजर्वेशन था ,पर वहां तक जाने के लिए लगभग 10 किमी पैसेंजर ट्रेन पर चलना आवश्‍यक था। जुलाई की शुरूआत थी और चारो ओर शादी विवाह की धूम मची हुई थी। मुझे मालूम था कि पैसेंजर ट्रेन में काफी भीड होगी। इस कारण मैं सूटकेस और बैग अरेंज करने के क्रम में सामान कम रखना चाह रही थी , रखे हुए सामान को हटाकर मैं कहती कि लगन का समय है , इसलिए पैसेंजर ट्रेन में काफी भीड होगी। ज्‍योतिष की चर्चा के क्रम में लग्‍न , राशि , ग्रह वगैरह बेटे के कान में अक्‍सर जाते थे , इसलिए उसने समझा कि किसी ज्‍योतिषीय योग की वजह से ट्रेन में भीड होगी। फिर भी उसने कुछ नहीं कहा , और बडों को तो कभी समझ में नहीं आता कि बच्‍चे भी उनकी बात ध्‍यान से सुन रहे हैं।

स्‍टेशन पर गाडी आई तो भीड होनी ही थी , इतनी भीड में अपनी चुस्‍ती फुर्ती के कारण दोनो बच्‍चों और सामान सहित काफी मुश्किल से हम चढ तो गए , पर अंदर जाने की थोडी भी जगह नहीं थी। दोनो बच्‍चों और दो सामान को बडी मुश्किल से संभालते हुए हम दोनो पति पत्‍नी ने ट्रेन के दरवाजे पर खडे होकर 15 किमी का सफर तय किया। जब हमारा यह पहला अनुभव था , तो बेटे का तो पहला होगा ही। खैर दरवाजे पर होने से मंजिल आने पर उतरने में हमें काफी आसानी हुई , स्‍टेशन पर उतरकर जब एक्‍सप्रेस ट्रेन का इंतजार कर रहे थे , तो बेटे के मुंह से निकला पहला वाक्‍य था , 'मान गए मम्‍मी की एस्‍ट्रोलोजी को'  हमलोग तो समझ ही नहीं पाए कि बात क्‍या है , तब पूछने पर उसने बताया कि 'मम्‍मी ने कहा था , लगन का समय है , गाडी में भीड रहेगी।' बेटे के बचपन का यह भ्रम तब दूर हुआ , जब वह यह समझने लायक हुआ कि विवाह के समय को 'लगन का समय ' कहा जाता है और उस दिन मैने कोई भविष्‍यवाणी नहीं की थी। 

16 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

:) :) बढ़िया संस्मरण...बच्चे अपनी बाल बुद्धि से कुछ तो समझते ही हैं...

समयचक्र said...

बच्चे भी काफी जल्दी भांप जाते हैं ....इसमे दो मत नहीं ....बढ़िया संस्मरण

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छा लगा आपका संस्मरण धन्यवाद्

Shah Nawaz said...

बेहतरीन संस्मरण!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

संस्मरण पढ़कर बहुत अच्छा लगा!

शिवम् मिश्रा said...

बेहद उम्दा संस्मरण, आभार !

Udan Tashtari said...

आनन्द आया संस्मरण पढ़कर.

विवेक रस्तोगी said...

बच्चे मन के सच्चे होते हैं, बालसुलभ बातें करते हैं, जो मन को लुभाती हैं।

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अजय कुमार said...

बाल सुलभ बातें अक्सर चेहरे पर मुस्कान ले आती हैं । आपको भी आया होगा ।

Vinashaay sharma said...

बाल सुलभ प्रतिक्रिया पर लिखा हुआ अच्छा संसमरण

Rohit Singh said...

सही है बच्चे भी बड़े की बातों को ध्यान से सुनते हैं। तभी कहा जाता है कि बच्चे के सामने माता-पिता को झगड़ना नहीं चाहिए। बुरा प्रभाव पड़ता है। जिससे बच्चा या तो विद्रोही हो जाता है या कठिनाई के समय हार जाता है। पर कोई माने तब न।

पंकज मिश्रा said...

बहुत बढिय़ा बात बताई है आपने। है तो साधारण पर बहुत गहराई की बात लिख दी आपने। बहुत खूब।

कुमार राधारमण said...

गणना वैज्ञानिक तरीके से की जाए,तो भविष्यकथन सटीक होता ही है।

अन्तर सोहिल said...

हा-हा-हा
रोचक वाक्या है

प्रणाम

Pawan Kumar said...

अच्छा संस्मरण.....!

Aruna Kapoor said...

वाकई बच्चे हमारे हाव-भाव ध्यान से देखते है और बातें भी ध्यान से सुनतें है!... पढ कर बहुत अच्छा लगा!...संगीताजी आपके मतलब की एक रचना मैने 'बैठक' के लिये भेजी है,एक दो दिनों में सामने होगी...आप अपने अमूल्य विचार जरुर प्रदर्शित करें,धन्यवाद!