Thursday 22 July 2010

दक्षिण: कुक्षौ पुत्रम् जीजनत् वाम कुक्षौ पुत्रीम् जीजनत् का वैज्ञानिक सत्‍यापन

garbh me ladka hai ya ladki
दक्षिण: कुक्षौ पुत्रम् जीजनत् वाम कुक्षौ पुत्रीम् जीजनत्

कल दिब्‍या श्रीवास्‍तव जी के लेख मनचाही संतान कैसे प्राप्‍त करें के पोस्‍ट होने के बाद से ही ब्‍लॉग जगत में हमारे देश के परंपरागत तकनीकों के विरोध के स्‍वर मुखरित हो रहे हैं। पोस्‍ट के विवादास्‍पद होने का कारण यह विषय नहीं , वरन् इसके लिए आयुर्वेद के महत्‍व को माना जाना है। टिप्‍पणियों में अच्‍छी खासी चर्चा के बाद कई आलेख भी प्रकाशित किए गए हैं और उनमें भी पक्ष और विपक्ष में टिप्‍पणियां आ रही हैं। जिन महत्‍वपूर्ण आधारों पर हमारी परंपरागत जीवनशैली आधारित थी , जिसके कारण सदियों से एक अच्‍छी परंपरा चली आ रही है , उसे इतनी आसानी से अनदेखा नहीं किया जा सकता। आखिर बिना किन्‍हीं सिद्धांतों को परखे जांचे बिना हम किसी बात को सही गलत कैसे कह सकते हैं ??

garbh me ladka hai ya ladki

आज डॉ अजीत गुप्‍ताजी ने गलत नहीं लिखा है। इस देश को 250 वर्षों तक अंग्रेजों ने बेदर्दी से लूटा और लूटा ही नहीं हमारे सारे उद्योग धंधों को चौपट किया, हमारी शिक्षा पद्धति, चिकित्‍सा पद्धति, न्‍याय व्‍यवस्‍था, पंचायती राज व्‍यस्‍था आदि को आमूल-चूल नष्‍ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्‍होने अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए हमें आपस में ही खूब लडाया , हमारी परंपरा को गलत ठहराया और हममें एक गुलामों वाली मानसिकता विकसित की और इसी का कारण है कि हमें आज परंपरागत चीजें नहीं , सिर्फ आज का चकाचौंध ही अच्‍छा लगता है। लेकिन दिव्‍या जी का प्रश्‍न भी जायज है कि यदि आयुर्वेद का महत्‍व नहीं , तो हल्दी और नीम , सर्पगंधा, शंखपुष्पी, शतावरी, मुस्ली तथा जिस पर भी थोडा सा शोध होता है उसे विज्ञानं पटेंट कर क्‍यूं Allopath के साथ जोड़ देता है ?? आयुर्वेद में शोध से क्या फायदा ? शोध के नतीजे तो पटेंट होने के बाद Allopath का अंग बन जायेंगे। CDRI , Lucknow has patented 'bramhi' and 'Shankhpushpi' in year 2002.America has parented 'Haldi' and ' Neem ' recently.

मुझे याद है 2004 में विज्ञान भवन में एक विज्ञान सम्‍मेलन हुआ था , जिसमें परंपरागत ज्ञान विज्ञान के शोधों को भी शामिल किया गया था। दरअसल अमेरिका द्वारा किए गए कुछ पेटेंटो से आहत होकर माशेलकर जी ने इस दिशा में प्रयास किया था , पर आगे उसपर कोई कार्रवाई होते नहीं देखा। मुझे एक बात याद भी है , जर्नल में भी प्रकाशित किया गया है। उसमें जबलपुर के रानी दुर्गावती विश्‍वविद्यालय के एम जी महिला महाविद्यालय के प्राणी विज्ञान विभाग से अंकिता बोहरे का शोधपत्र भी शामिल किया गया था। उन्‍होने अपने शोधपत्र में लिखा था कि आज के आधुनिक विज्ञान के युग में प्राचीन विचारकों तथा वैज्ञानिकों के द्वारा दिए गए तथ्‍यों व विचारों को सत्‍यापित कर स्‍थापित करने की रेणी में मानव प्रजनन कार्यकि में स्‍त्री और पुरूष के परस्‍पर समान भागिदारिता सिद्ध करने का एक प्रयास किया गया था। लिंग निर्धारण के लिए मात्र पुरूष ही नहीं , महिला भी उतनी ही उत्‍तरदायी है , इस बात का सत्‍यापन आयुर्वेद में वर्णित एक उक्ति दक्षिण: कुक्षौ पुत्रम् जीजनत् वाम कुक्षौ पुत्रीम् जीजनत्, के आधार पर किया गया। इस उक्ति का अर्थ है कि दायीं ओर से निक्षेपित अंड से पुत्र तथा बायीं ओर के अंड से पुत्री का निर्माण होता है।

इस उक्ति के सत्‍यापन के लिए यू जी सी के अंतर्गत एक रिसर्च प्रोजेक्‍ट शासकीय मेडिकल कॉलेज में संपन्‍न किया गया, जिसमें 84 प्रतिशत सफलता मिली। इस शोध कार्य में गाइनोकोलोजिस्‍ट तथा रेडियोलोजिस्‍ट की टीम ने मिलकर कार्य किया तथा सभी महिलाओं का सोनोग्राफिक परीक्षण किया गया। इस प्रोजेक्‍ट की सफलता से यह सत्‍यापित हुआ कि महिला की दायें अंडाशय से उत्‍पन्‍न होनेवाला अंड काफी सीमा तक पुरूष लिंग निर्मित करने के लिए सूचनाबद्ध होते हैं। इस धारणा को जैव रसायनिक आधार देने की भी कोशिश की जा रही थी। यह सत्‍यापन मानव प्रजनन की तथा आनुवंशिकी में नए सोपान निर्घारित कर सकता था। इस सफलता के बाद इस दिशा में अधिक रिसर्च होने हेतु सरकार की ओर से क्‍या प्रयास हुआ , नहीं कह सकती , पर इतना तो अवश्‍य है कि परंपरागत तकनीकों के विकास में सरकार का व्‍यवहार सौतेला है। जहां तक महत्‍व की बात है हर युग में हर पद्धति का महत्‍व होता है ...... 

जहां काम आवै सूई , क्‍या करे तलवारि !!



8 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

परम्परागत ज्ञान के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय ज्ञान आयोग का गठन किया है और उसके चेयरमेन सैम पित्रोदा हैं।

मैं उनसे मिल भी चुका हूँ। परम्परागत ज्ञान के संरक्षण के विषय में उनसे चर्चा भी हूई थी। लेकिन आज तक यह पता नहीं चल रहा है कि इस दिशा में ज्ञान आयोग कितना सफ़ल हुआ है और क्या कार्य कर रहा है?

हमारी प्राचीन विद्या कहीं से अधुरी नहीं है वह पूर्ण रुप से अनुभूत ज्ञान के आधार पर है। लेकिन अब उसे फ़िर से सिद्ध करने का समय आ गया है।
अधुरे ज्ञान के आधार पर इसका प्रयोग करने वालों ने बहुत नुकसान किया है। आप चरक संहिता देखें तो उसमें लगभग सभी बिमारियों के निदान की व्यवस्था है। लेकिन उसके तत्वों को समझना भी जरुरी है।
जैसे कोई सैंधव(नमक)के बदले मे सैंधव(घोड़ा)ले आए। अज(अजन्मा=ईश्वर)समझने के बदले अज(बकरा) ले आए।आवश्यक्ता इन गूढार्थों को समझने की है।

अच्छी पोस्ट आभार

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

शास्त्रों की बात को गलत कैसे कह दें?

ZEAL said...

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संगीता जी,

ख़ुशी हुई जानकार की आप मेरे विचारों से सहमत हैं। तथा मेरी बात को सम्मान देते हुए आपने यह पोस्ट लिखी।

@-लेकिन दिव्‍या जी का प्रश्‍न भी जायज है कि यदि आयुर्वेद का महत्‍व नहीं , तो हल्दी और नीम , सर्पगंधा, शंखपुष्पी, शतावरी, मुस्ली तथा जिस पर भी थोडा सा शोध होता है उसे विज्ञानं पटेंट कर क्‍यूं Allopath के साथ जोड़ देता है ?? आयुर्वेद में शोध से क्या फायदा ? शोध के नतीजे तो पटेंट होने के बाद Allopath का अंग बन जायेंगे। CDRI , Lucknow has patented 'bramhi' and 'Shankhpushpi' in year 2002.America has parented 'Haldi' and ' Neem ' recently.

इस बात को यहाँ उल्लिखित करके आपने अच्छा किया।

फिर भी अनुरोध है मेरी पोस्ट पर चर्चा में शामिल होवें । जो मुझसे सहमत हैं तथा अपनी परंपरा था सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान करते हैं, वोह चर्चा से दूर क्यूँ हैं।.
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संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सार्थक पोस्ट...अच्छी जानकारी मिली

Vinashaay sharma said...

बिलकुल हमारे यहाँ ज्ञान का भन्डार है,और जिसका लाभ विदेशी उठा रहे हैं,यही सन्देश दिव्या जी को भी देना चाहता हूँ,और अपने लोग इस ज्ञान के बारे में जानकारी लेना ही नहीं चाहते ।

अजित गुप्ता का कोना said...

मैंने अपनी पोस्‍ट में लिखा था कि पता नहीं हम अपने देश से नफरत क्‍यों करते हैं? इस प्रश्‍न का किसी ने उत्तर नहीं दिया बस अपनी नफरत बता दी कि हम मानना ही नहीं चाह‍ते कि हम मात्र 150 वर्ष पूर्व तक समृद्ध थे। हमें तो भूखा नंगा भारत ही दिखायी देता है और इसे ही बनाए रखना चाहते हैं। मेरी एक अन्‍य पोस्‍ट थी जिसमें मैंने लिखा था कि अमेरिका में आजकल सर्वाधिक रिसर्च आयुर्वेद पर हो रही है और वहाँ के चिकित्‍सक आयुर्वेद को प्राथमिकता से महत्‍व दे रहे हैं। दिव्‍या ने भी ऐसी ही पोस्‍ट लिखी लेकिन लोग आयुर्वेद को ही नाकारा बताने पर तुल गए। यहाँ तक की रामदेव जी के प्रयासों का भी मजाक उडाना। इससे यही सिद्ध होता है कि लोग भारत की उन्‍नति नहीं चाहते केवल भारत को नष्‍ट कर किसी अन्‍य देश का उपनिवेश बना देखना चाहते हैं। यदि आपको आयुर्वेद के बारे में कुछ कहना है तो वो कहें कि हमें फला-फला औषधि घटिया लगी लेकिन भारत की प्रत्‍येक परम्‍परा को ही यह कहकर नकार देना कि भारत में तो भ्रष्‍टाचार है। जब कोई दूर करने का पहल करता है तो आप उसका विरोध करते हैं। लेकिन ब्‍लोगिंग सभी विचारों का स्‍वागत करती है इसलिए हम उनका भी मान रखते हैं। आपने भी इस विषय को उठाया इसके लिए आभार।

Dr.Anil Damodar said...

शास्त्रों में लेखक के विचारों का ही प्रतिरूप होता है। शास्तों में उल्लेखित बातों और सिद्धान्तों को वैग्यानिक विश्लेषण अत्यावश्यक है।सत्य की खोज के लिये किसी भी घटना,सिद्धान्त को कम से कम सात दृष्टिकोण से परखा जाना अपेक्छित है। इसलिये शास्तों की बातों को पूर्ण सत्य मान लेना सत्य की खोज को बाधित करना होगा।हमारे शास्त्रों में वैग्यानिक खोज की अपार संभावनाएं हो सकती हैं लेकिन इस तथ्य को कैसे झुठलाया जा सकता है कि संसार में जितने भी आविष्कार हुए हैं लगभग सभी आविष्कारों का श्रेय क्रिश्चन धर्मावलंबियों को जाता है। क्या यह आश्चर्य करने का विषय नहीं है कि हिन्दु और इस्लाम धर्म के करोडों धर्मावलंबियों ने आज तक कोई वैग्यानिक आविष्कार नहीं किया है? शास्त्रों में छिपे आविष्कारों को कौन उजागर कर मूर्तरूप देगा? हमारी गतिविधियां आविष्कार प्रणयन की ओर न होकर धार्मिक पाखण्डपूर्ण ,आडंबरयुक्त कार्यों में लगे रहने की रही हैं। हम पिछड गये हैं। गंभीर विश्लेषण की जरूरत है। टिप्पणी मोडरेशन की तलवार लटक रही है,क्या होगा भगवान जाने!