Saturday 28 August 2010

आज जनकपुर में डंका बजाया जाएगा ........!!

अभी तक आपने पढा .... बच्‍चे अपनी पढाई में व्‍यस्‍त हो गए थे और धीरे धीरे बोकारो में हमारा मन लगता जा रहा था , पर स्‍कूल के कारण सुबह जल्‍दी उठना पडता , इसलिए दस बजे तक प्रतिदिन के सारे कामों से निवृत्‍त हो जाती तथा उसके बाद दो बजे बच्‍चों के आने तक यूं ही अकेले बैठी रहती। आरंभ से ही टी वी देखने की मेरी आदत नहीं , इसलिए मेरे सामने एक बडी समस्‍या उपस्थित हो गयी थी , प्रतिदिन दिन के दस बजे से लेकर दो बजे तक का समय काटने को दौडता। ये तो सप्‍ताहांत में एक दो दिन ही यहां आ पाते , और यहां हमारे पर‍िचित अधिक नहीं। जिस मुहल्‍ले में मैं रह रही थी , वहां की महिलाओं की बातचीत भी टेलीवीजन के सीरियलों या दूसरों के घरों की झांक ताक तक ही सीमित थी , जिसमें बचपन से आज तक मेरा मन बिल्‍कुल ही नहीं लगा।

वैसे तो ज्‍योतिषीय पत्र पत्रिकाओं में मेरे लेख काफी दिनों से प्रकाशित हो रहे थे और 1996 के अंत में मेरी पुस्‍तक भी प्रकाशित होकर बाजार में  आ गयी थी। पर मुझे यही महसूस होता रहा कि ज्‍योतिष में विषय वस्‍तु की अधिकता के कारण ही मैं भले ही लिख लेती हूं , पर बाकी मामलों में मुझमें लेखन क्षमता नहीं है। कुछ पत्र पत्रिकाएं मंगवाया करती थी मैं , उन्‍हें पढने के बाद प्रतिक्रियास्‍वरूप कुछ न कुछ मन में आता , जिसे पन्‍नों पर उतारने की कोशिश करती। कभी कादंबिनी की किसी समस्‍या को हल करते हुए कुछ पंक्तियां लिख लेती .....

सख्‍ती कठोरता , वरदान प्रकृति का ,
हर्षित हो अंगीकार कर।
दृढ अचल चरित्र देगी तुम्‍हें,
क्रमबद्ध ढंग से वो सजकर।।
जैसे बनती है भव्‍य अट्टालिकाएं,
जुडकर पत्‍थरों में पत्‍थर ।। 


तो कभी किसी बहस में भी भाग लेते हुए क्‍या भारतीय नेता अंधविश्‍वासी हैं ?? जैसे एक आलेख तैयार कर लेती। कभी कभी जीवन के कुछ अनुभवों को चंद पंक्तियों में सहेजने की कोशिश भी करती । बच्‍चों के स्‍कूल के कार्यक्रम के लिए लिखने के क्रम मे उत्‍पादकता से प्रकृति महत्‍वपूर्ण  जैसी कविताएं लिखती तो कभी चिंतन में आकर कैसा हो कलियुग का धर्म ?? पर भी दो चार पंक्तियां लिख लेती। इसके अतिरिक्‍त न चाहते हुए भी स्‍वयमेव कुछ गीत कुछ भजन , अक्‍सर मेरे द्वारा लिखे जाते। यहां तक कि इसी दौरान मैने कई कहानियां भी लिख ली थी , जो साहित्‍य शिल्‍पी में प्रकाशित हो चुकी हैं। एक दिन यूं ही बैठे बिठाए सीता जी के स्‍वयंवर की घोषणा के बाद राजा जनक , रानी और सीताजी के शंकाग्रस्‍त मनस्थिति  का चित्रण करने बैठी तो एक कविता बन पडी थी , कल डायरी में मिली , आज प्रस्‍तुत है ......

आज जनकपुर में डंका बजाया जाएगा।
जनकजी के वचन को दुहराया जाएगा।।

राजा , राजकुमार या हो प्रधान।
बूढा , बुजुर्ग या हो जवान।।
देशी , परदेशी या हो भगवान।
दैत्‍य , दानव या हो शैतान।

शिव के धनुष को जो तोडेगा उसी से ,
सीता का ब्‍याह रचाया जाएगा।।

आज जनकपुर में डंका बजाया जाएगा  ........

आज राजा का मन बडा घबडाएगा।
अपने वचन पे पछतावा आएगा।।

राजा , राजुकमार या होगा प्रधान ?
बूढा बुजुर्ग या होगा जवान ??
देशी , परदेशी या भगवान ?
दैत्‍य , दानव या फिर शैतान ??

शिव के धनुष को कौन तोडेगा किससे ,
सीता का ब्‍याह रचाया जाएगा ??

आज जनकपुर में डंका बजाया जाएगा  ......

आज रानी का मन बडा घबडाएगा।
आज देवता पितृ मनाया जाएगा।।

चाहे हों राजा, राजकुमार या प्रधान।
ना हो वो बूढा, बुजुर्ग , हो जवान।।
चाहे हो देशी , परदेशी या भगवान।
ना हो वो दैत्‍य , दानव ना शैतान !!

शिव के धनुष को जो तोडे , जिससे,
सीता का ब्‍याह रचाया जाएगा।।

आज जनकपुर में डंका बजाया जाएगा ........

आज सीता को मंदिर ले जाया जाएगा।
वहां राम जी के दर्शन पाया जाएगा।।

ना होंगे राजा , राजकुमार ना प्रधान।
ना होंगे बूढे , बुजुर्ग  ना जवान।।
ना होंगे दैत्‍य , दानव ना शैतान।
ना देशी , परदेशी , होंगे भगवान।।

शिव के धनुष को वही तोडेंगे उन्‍हीं से ,
मेरा  ब्‍याह रचाया जाएगा।।

फिर तो राम जी को वरमाला पहनाया जाएगा।
फिर तो सखियों द्वारा मंगलगान गाया जाएगा।।
फिर तो जनकपुर में उत्‍सव मनाया जाएगा।
फिर तो  'राम संग सीता ब्‍याह' रचाया जाएगा।।

6 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वाह बहुत अच्छी कविता रची है आपने।
बहुत बहुत बधाई।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

राजा , राजकुमार या हो प्रधान।
बूढा , बुजुर्ग या हो जवान।।
देशी , परदेशी या हो भगवान।
दैत्‍य , दानव या हो शैतान।

शिव के धनुष को जो तोडेगा उसी से ,
सीता का ब्‍याह रचाया जाएगा।।

आज जनकपुर में डंका बजाया जाएगा ........

Bahut hee behtareen kavitaa Sangeetaa ji !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रचना ओर पोस्ट दोनों ही उपयोगी है!

Vinashaay sharma said...

संगीता जी,आपने तो खाली समय में,बहुत अच्छा सृजनातम्क कार्य कर डाला,मुझे तो लगता है,आपके अन्दर कहीं कवियत्री है,ज्योतिष के साथ इस आयाम को उजागर करें ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया ...अच्छा हुआ आपने डंका लिखा है ...वैसे कहते हैं कि सीता का स्वयंवर रचाया गया था ....लेकिन जब उनको स्वयं वर चुनने की आज़ादी नहीं थी तो कैसा स्वयंवर ?

शोभना चौरे said...

samy ka sdupyog kar bahut sundar rachna