Friday 13 August 2010

बोकारो में दूध की व्‍यवस्‍था भी खुश कर देनेवाली है !!

अभी तक आपने पढा .. जब बच्‍चे छोटे थे , तो जिस कॉलोनी में उनका पालन पोषण हुआ , वहां दूध की व्‍यवस्‍था बिल्‍कुल अच्‍छी नहीं थी। दूधवालों की संख्‍या की कमी के कारण उनका एकाधिकार होता था और दूध खरीदने वाले मजबूरी में सबकुछ झेलने को तैयार थे , और उनके मुनाफे की तो पूछिए मत। हमारे पडोस में ही एक व्‍यक्ति मोतीलाल और उसका पुत्र जवाहरलाल मिलकर सालों से सरकारी जमीन पर खटाल चला रहे थे। जमीन छीने जाने पर दूसरे स्‍थान में वे लोग दूसरी जगह खटाल की व्‍यवस्‍था न कर सके और सभी गाय भैंसों की बिक्री कर देनी पडी। जमीन की व्‍यवस्‍था में ही उन्‍हें कई वर्ष लग गए , हमलोगों को शक था कि इतने दिनों से आपलोगों का व्‍यवसाय बंद है , महीने के खर्च में तो पूंजी कम हो गयी होगी। पर हमें यह जानकर ताज्‍जुब हुआ कि कि उन्‍होने पूंजी को हाथ भी नहीं लगाया है, अभी तक जहां तहां पडे उधार से अपना काम चला रहे हैं। 

दूध का व्‍यवसाय करने वाले घर घर पानी मिला दूध पहुंचाना पसंद करते थे , पर कुछ जागरूक लोगो ने सामने दुहवाकर दूध लेने की व्‍यवस्‍था की। इसके लिए वह दूध की दर अधिक रखते थे , फिर भी उन्‍हें संतोष नहीं होता था। कभी नाप के लिए रखे बरतन को वे अंदर से चिपका देते , तो कभी दूध निकालते वक्‍त बरतन को टेढा कर फेनों से उस बरतन को भर देते। चूंकि हमलोग संयुक्‍त परिवार में थे और दूध की अच्‍छी खासी खपत थी , सो हमने रोज रोज की परेशानी से तंग आकर हारकर एक गाय ही पाल लिया था और शुद्ध दूध की व्‍यवस्‍था कर ली थी। यहां आने पर दूध को लेकर चिंता बनी हुई थी।



पर बोकारो में दूधविक्रेताओं की व्‍यवस्‍था को देखकर काफी खुशी हुई , अन्‍य जगहों की तुलना में साफ सुथरे खटाल , मानक दर पर मानक माप और दूध की शुद्धता भी। भले ही चारे में अंतर के कारण दूध के स्‍वाद में कुछ कमी होती हो, साथ ही बछडे के न होने से दूध दूहने के लिए इंजेक्‍शन दिया करते हों। पर जमाने के अनुसार इसे अनदेखा किया जाए , तो बाकी और कोई शिकायत नहीं थी। पूरी सफाई के साथ ग्राहक के सामने बरतन को धोकर पूरा खाली कर गाय या भैंस के दूध दूहते। बहुत से नौकरी पेशा भी अलग से दूध का व्‍यवसाय करते थे , उनके यहां सफाई कुछ अधिक रहती थी।

अपनी जरूरत के हिसाब से ग्राहक आधे , एक या दो किलो के हॉर्लिक्‍स के बोतल लेकर आते , जिसमें दूधवाले निशान तक दूध अच्‍छी तरह भर देते। सही नाप के लिए यदि दूध में फेन होता , तो वह निशान के ऊपर आता।  इतना ही नहीं , कॉपरेटिव कॉलोनी में तो वे गायें लेकर सबके दरवाजे पर जाते और आवश्‍यकता के अनुसार दूध दूहकर आपको दे दिया करते और फिर गायें लेकर आगे बढ जाते। यहां के दूधवाले हर महीने हिसाब भी नहीं करते , वे कई कई महीनों के पैसे एक साथ ही लेते। हां , हमारा दूधवाला एडवांस में जरूर पैसे लेता था।

12 comments:

M VERMA said...

दूध की बढती कीमत इसे मिलावट का शिकार बना दिया है ..

माधव( Madhav) said...

वैसे भी सूना है की बोकारो बहुत अच्छा सहर है

shikha varshney said...

वाह जी वाह बोकारो के खाते में एक और प्रशंसा ..बढ़िया है.

चिट्ठाप्रहरी टीम said...

अच्छी प्रस्तुती के लिये आपका आभार ।

खुशखबरी

हिन्दी ब्लाँग जगत मे ब्लाँग संकलक चिट्ठाप्रहरी की शुरुआत कि गई है । आप सबसे अनुरोध है कि चिट्ठाप्रहरी मे अपना ब्लाँग जोङकर एक सच्चे प्रहरी बनेँ , यहाँ चटका लगाकर देख सकते हैँ

दिनेशराय द्विवेदी said...

ये घर आ कर सामने दुह कर दूध देने की व्यवस्था अच्छी है। लेकिन इंजेक्शन तो हार्मोन्स के होते हैं और उन के प्रभाव से प्राप्त दूध हानिकारक भी।

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut sundar,

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

अन्तर सोहिल said...

हॉर्लिक्स की बोतल वाला आयडिया बढिया है। वर्ना सामने दूध दुह कर देने वाले दूध नापने के माप (डिब्बे) को नीचे से पिचका देते हैं या ऊपर किनारों से काट देते हैं।

प्रणाम

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

कभी मौका लगा तो देखा जाएगा, आपका बोकारो।

………….
सपनों का भी मतलब होता है?
साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा.....

Anonymous said...

ये घर आ कर सामने दुह कर दूध देने की व्यवस्था अच्छी है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गाय को घर घर ले जाकर दूध देने की बात पहली बार जानी ....हर घर के आगे गाय दोड़ दुहने भी देती थी ? ताज्जुब है ...बढ़िया प्रस्तुति

Vinashaay sharma said...

गाय को घर के सामने ले जा कर दूध दुहने की व्यवस्था को पड़ कर बहुत सुखद आश्चर्य हुआ ।

Vinashaay sharma said...

गाय को घर के सामने ले जा कर दूध दुहने की व्यवस्था को पड़ कर बहुत सुखद आश्चर्य हुआ ।