Friday 29 January 2010

क्‍या 'मितव्‍ययिता' का सही अर्थ यही है ??


मुझे वह समय पूरी तरह याद है , जब मैने मित्‍तव्‍ययिता शब्‍द को पहली बार सुना था। उस वक्‍त जाने पहचाने शब्‍दों पर ही लेख लिखने की आदत के कारण इस अनजाने शब्‍द पर लेख लिख पाना बहुत कठिन लग रहा था। घर आकर निबंध की कई पुस्‍तकों में इस शब्‍द को ढूंढा , जिसमें से बडी मुश्किल से एक पुस्‍तक में इस शब्‍द पर आलेख मिल गया। वह आलेख जॉन मुरे के जीवन की एक कहानी के साथ शुरू की गयी थी।

दो मामबत्‍ती जला कर पढाई कर रहे जॉन मुरे के पास अनाथाश्रम से कुछ लोग चंदा मांगने गए थे। उनलोगों से बात चीत के दौरान जॉन मुरे ने एक मोमबत्‍ती बुझा दी थी। इस कंजूसी को देखकर आनाथाश्रम वालों ने सोंचा कि यहां चंदा मिलने की कोई गुंजाइश नहीं , पर जब जॉन मुरे ने सबसे अधिक चंदा दिया तो आश्रमवालों को अचरज हुआ। उनके पूछने पर जॉन मुरे ने बताया कि यह कंजूसी नहीं, मितव्‍ययिता है और इसी प्रकार छोटे छोटे अनावश्‍यक खर्च की कटौती कर वह बचे पैसों का अच्‍छा उपयोग कर पाता है। उसके बाद आलेख में मितव्‍ययिता को अच्‍छी तरह समझाया गया था। 

हमारे प्राचीन समाज में मितव्‍ययिता के महत्‍व को स्‍वीकार किया जाता था। किसी सामान की बर्वादी नहीं की जाती थी और उसे उपयुक्‍त जगह पहुंचा दिया जाता था। भोग विलास में पैसे नहीं खर्च किए जाते थे, पर दान , पुण्‍य किए जाने का प्रचलन था। पुण्‍य की लालच से ही सही, पर गरीबों को खाना खिला देना , अनाथों को रहने की जगह देना , जरूरतमंदों की सहायता करना जैसे काम लोग किया करते थे। वैसे बहुत स्‍थानों पर गरीबों की शोषण की भी कहानियां अवश्‍य देखी जाती थी , जो धीरे धीरे बढती गयी भोगवादी संस्‍कृति का ही परिणाम थी, पर जिन प्रदेशों में हमारी सभ्‍यता संस्‍कृति पर अधिक प्रहार नहीं हुआ , वैसे स्‍थानों पर अभी हाल हाल के समय तक उदारवादी माहौल बना हुआ था। पूरे गांव के विभिन्‍न जातियों और संप्रदायों के मध्‍य परस्‍पर सौहार्द की भावना बनी होती थी। 

पर आज का युग स्‍वार्थ से भरा है , अपने स्‍वार्थ के वशीभूत होकर सुंदर महंगे कपडे पहनना , फ्लाइट में घूमना , भोग विलास में आपना समय और पैसे जाया करना आज के नवयुवकों की कहानी बन गयी है। दूसरों की मदद के नाम से ही वे आफत में आ जाते हैं , अपने माता पिता तक की जिम्‍मेदारी नहीं लेना चाहते , दाई नौकरों और स्‍टाफों को पैसे देने में कतराते हैं , पर अपने शौक मौज के पीछे न जाने कितने पैसे बर्वाद कर देते हैं। अपने मामलों में उन्‍हें मितव्‍ययिता की कोई आवश्‍यकता नहीं होती , पर कंपनी का खर्च घटाने में और दूसरों के मामले में अवश्‍य की जाती है। क्‍या मितव्‍ययिता का सही अर्थ यही है ??