Friday 12 March 2010

कैसा रहा 22 वर्षों का मेरा वैवाहिक जीवन ??

हमारे विवाह के समय के माहौल के बारे में कल ही आपको काफी जानकारी मिल चुकी , 1988 के 12 मार्च को हमारे विवाह के बाद 13 मार्च से शुरू हुई इस यात्रा के आज 22 वर्ष पूरे होने को हैं। इस अंतराल में हम दोनो पति पत्‍नी या हमारे दोनो बेटों के स्‍वास्‍थ्‍य या अन्‍य मामले में बिल्‍कुल सहज सुखद वातावरण बने होने के बावजूद विवाह के उपरांत के 10 वर्षों तक संयुक्‍त परिवार की कई तरह की समस्‍याओं और 12 वर्षों से बच्‍चों की बेहतर पढाई लिखाई के चक्‍कर में हम दोनो एक दूसरे को बहुत कम समय दे सके। यहां तक कि आरंभ के कई वर्षों तक विवाह की वर्षगांठ तक में भी हमलोग साथ साथ नहीं रह पाएं। पहले वर्ष ससुर जी का कलकत्‍ते में ऑपरेशन हो रहा था तो दूसरे , तीसरे वर्ष में भी ठीक इसी दिन कोई न कोई समस्‍या आती जाती रही। इसलिए आजतक फिर कभी भी इस दिन को सेलीब्रेट करने का कोई प्रोग्राम नहीं बनाया।

पर ईश्‍वर की दया है कि दूरी बने होने के बावजूद अभी तक आपसी समझ में थोडी भी कमी नहीं आयी। दूसरों के प्रति पापाजी का जो व्‍यवहार यानि पापाजी का जो रूप मैने बचपन से देखा , उनके जिन विचारों का मुझपर अधिक प्रभाव पडा , लगभग वही इनके व्‍यक्तित्‍व में भी देखने को मिला , इसलिए कभी भी मुझे सामंजस्‍य करने में कठिनाई नहीं आयी । यही कारण रहा होगा कि मेरे व्‍यवहार से इन्‍हें भी कभी कोई तकलीफ नहीं पहुंची। हम बडों को सम्‍मान देते हुए संयुक्‍त परिवार के सभी सदस्‍यों की जरूरतों का ख्‍याल करते हुए एक दूसरे के विचारों और भावनाओं की कद्र करते आए हैं। पर मेरे सबसे बडे आलोचक भी यही है और इसे सकारात्‍मक तौर पर लने से इसका मुझे बहुत अधिक फायदा मिला है।

विज्ञान के विद्यार्थी होने के कारण इन्‍हें पहले ज्‍योतिष पर बिल्‍कुल विश्‍वास नहीं था , पर तुरंत बाद हमारे वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझने के बाद इसमें रूचि लेने लगे । वैसे तो घर के अंदर की सारी जबाबदेही के साथ बच्‍चों की पढाई लिखाई से संबंधित मामलों को भी मैं खुद संभालती आयी हूं , पर मुझे अध्‍ययन मनन का पूरा समय मिल पाए, इसलिए बाहर की अधिकांश जिम्‍मेदारियां वे खुद ही संभालते आए हैं । परिवार के मामलों में निर्णय लेने में व्‍यावहारिक ज्ञान की इनमें कमी नहीं , पर ज्‍योतिष की जानकारी के कारण मेरी राय अब उनसे कम मायने नहीं रखने लगी है।

और हमारी नोक झोंक , वह बस घर के साफ सफाई के मुद्दे पर हो जाती रही है , पर यदि आप समझ रहे हों कि घर को साफ सुथरा बनाए रखने की मेरी कोशिश में वो बाधा डालते होंगे , तो आप गलतफहमी में हैं , दरअसल घर को साफ सुथरा बनाए रखने में ये महिलाओं से कई कदम आगे हैं। पिछले बारह वर्षों से बच्‍चों की पढाई के लिए हमलोगों को बोकारो स्‍टील सिटी में छोडकर खुद अकेले ही निवास कर रहे हैं , कभी इनके निवास स्‍थान पर जाकर तो देखिए , आपको 'बिन घरनी घर भूत का डेरा' कहावत को एक सिरे से नकारना पडेगा।

पर मेरी रूटीन में घर की सफाई का कुछ काम दिन भर में एक बार , कुछ सप्‍ताह भर में एक बार , कुछ महीने में एक बार और कुछ वर्ष में एक बार का होता है , अब 23वें घंटे , 6ठे दिन या 29वें दिन या 364वें दिन घर को अस्‍त व्‍यस्‍त देखकर ये नाराज हो जाएं या मुझे भला बुरा भी कह जाएं तो इसमें मेरी क्‍या गलती ? इसलिए मैने इनके दस से पंद्रह मिनट की इस नाराजगी या गुस्‍से की न तो कभी परवाह की और न ही आज तक अपने को सुधारा। 'जिसे जितना दिमाग है , वह उतना ही सोंचेगा , करेगा या कहेगा। तुम्‍हारा जितना दिमाग है , तुम उतना सोंचो , करो और कहो। दूसरों से अपेक्षा न रखो , तो कभी तकलीफ नहीं होगी। तबतक तनाव न लो, जबतक तुम्‍हें अपने स्‍वभाव के विपरीत काम करने को मजबूर न कर दिया जाए' मुझे संयुक्‍त परिवार में समायोजन के योग्‍य बनाने में इन्‍हीं का दिया यह उपदेश कारगर था , जिसपर अमल करते हुए गडबड से गडबड परिस्थिति में मैं बिल्‍कुल सामान्‍य रह पाती हूं , जिसका पालन ये खुद नहीं कर पाते।


विवाह के 22 वर्षों बाद बोकारो स्‍टील सिटी में दोनो बेटों की पढाई के समाप्‍त होने के बाद ईश्‍वर ने फिर से मुझे एक नए मोड पर खडा कर दिया है , जहां से आगे की यात्रा करने में हमें एक बार फिर से कोई बडा निर्णय लेना है , हमारे निर्णय से आगे की जीवन यात्रा भी सुखद और सफल हो , इसके लिए आज बोकारो स्‍टील सिटी के भगवान जगन्‍नाथ जी के मंदिर में भगवान के दर्शन और पूजन को गयी , बेटे के मोबाइल कैमरे से खींचे गए वहां के चित्र  देखिए     ....