Friday 23 July 2010

वैदिक साहित्‍य के आख्‍यानों और पौराणिक मिथकों को विज्ञान गल्‍प कथाएं कहा जा सकता है !!

2004 में 19 फरवरी से 21 फरवरी के मध्‍य राष्‍ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला में तृतीय अखिल भारतीय विज्ञान सममेलन हुआ था , जिसमें परंपरागत ज्ञान से संबंधित विषय को भी स्‍वीकार किया गया था। उस सम्‍मेलन के अवसर पर जो स्‍मारिका प्रकाशित हुई थी , उसमें दो तथ्‍यों को मैं आपके सम्‍मुख प्रस्‍तुत कर चुकी हूं। होशंगाबाद के शा गृहविज्ञान महाविद्यालय की छाया शर्मा ने अपने शोधपत्र के माध्‍यम से इस ओर ध्‍यान आकर्षित किया था कि वैदिक साहित्‍य के आख्‍यानों अथवा पौराणिक मिथकों को वस्‍तुत: मात्र चमत्‍कार गाथाएं नहीं मानी जानी चाहिए। वे ऐसी विज्ञानमय परिकल्‍पनाएं हैं , जिसमें अनेकानेक नवीन आविष्‍कारों की अनंत संभावनाएं छिपी हुई है।

इस प्रकार के तथ्‍य के अन्‍वेषण का कारण यह है कि प्राय: देखा जाता है कि विज्ञान का कोई नया आविष्‍कार सामने आते ही उससे मिलती जुलती पौराणिक कथाएं या शास्‍त्राख्‍यानों की तरु सहज ही ध्‍यान आकर्षित होता है और भारतीय मनीषी यह सोंचने लगते हैं कि उदाहरण के लिए डी एन ए के सिद्धांत के विकास के साथ जैसे ही विज्ञान ने इच्छित व्‍यक्ति के क्‍लोन बनाने की ओर कदम बढाए , तारकासुर के वध के लिए शिव के वीर्य से उद्भुत पुत्र की कथा सामने आ गयी। हृदय , किडनी , लीवर जैसे अंगों के प्रत्‍यारोपण की वैज्ञानिक क्षमता की तुलना में अज शिर के प्रत्‍यारोपण , जैी अनेक कथाएं से पौराणिक मिथक भंडार परिपूर्ण है , जहां तक विज्ञान को जाना शेष है। पार्वती द्वारा गणेश का निर्माण और देवताओं द्वारा अत्रि के आंसु से चंद्रमा के निर्माण की कथाएं मानव के लिए चुनौती हैं। वायुशिल्‍प की जिन ऊंचाइयों को रामायण और महाभारत के वर्णन छूते हैं , वहां तक पहुंच पाना हमें दुर्गम लगता है। वायुपुत्र हनुमान की परिकल्‍पना, उसकी समसत गतिविधियों में विज्ञान के बढते चरणों के लक्ष्‍य को नापने लगती है। मानव का पक्षी की तरह आकाश में उड पाने का सपना ही हनुमान का चरित्र है।

यद्यपि अनेक रहस्‍यमयी कथाओं को आध्‍यात्‍मपरक व्‍याख्‍या कर उन्‍हें योग विज्ञान के क्षेत्र में शामिल कर लिया गया है , फिर भी आवश्‍यकता है उन कथानकों के गूढ वैज्ञानिक इंगित को समझा जाए , जो काल के चतुर्थ आयाम को रेखांकित करती है और भविष्‍य से वर्तमान में आए चरित्रों की कथा जान पडती है। विंसेट एच गैडीज ने अपनी विज्ञान गल्‍प की परिभाषा में कहा है कि विज्ञान गल्‍व उन सपनों की अभिव्‍यक्ति है , जो बाद में थोडी संशोधित और संवर्धित होकर वैज्ञानिक उन्‍नति की वास्‍तविकता बन जाती हैं। फेंटेसी या कल्‍पकथा की अपेक्षा विज्ञान गल्‍प अपनी मूल संरचना में ही संभावनाओं को प्रस्‍तुत करता है और कल्‍पनाशील विचारों का वह भंडार तैयार करता है , जो कभी व्‍यवहारिक या प्रायोगिक चिंतन को प्ररित कर सकता है। इस आधार पर वैदिक साहित्‍य के इन आख्‍यानों और पौराणिक मिथकों को विज्ञान गल्‍प कथाएं कहा जा सकता है। रचनात्‍मक अध्‍ययन , अन्‍वेषण और आविष्‍कार के लिए भी इनका अध्‍ययन अत्‍यंत आवश्‍यक है।