Monday 26 October 2009

क्‍या रेमिंगटन कीबोर्ड पर टाइपिंग करने में आपको परेशानी होती है ??

अपने कंप्‍यूटर में Baraha IMEया Hindi Indic IME.को लोड करने और हिन्‍दी सक्रियकरने के बाद मुख्‍य समस्‍या हिन्‍दी में टाइपकरने की आती है। इस समस्‍या का कोई समाधान न दिखने से अधिकांश लोगों को फोनेटिक कीबोर्ड का सहारा लेना पडता है , जिसके द्वारा रोमण में ही लिखने से उसे हिन्‍दी में कन्‍वर्ट किया जा सकता है। लेकिन आप यदि डायरेक्‍ट हिन्‍दी में ही लिखना चाहते हों , तो आपको रेमिंगटन कीबोर्ड पर टाइपिंग कर सकते हैं। अंग्रेजी कैरेक्‍टरों को देखकर हिन्‍दी में टाइपिंग करना बहुत ही आसान है। चाहे जो भी कारण हो , एक महीने के अंदर मैं जितनी आसानी से हिन्‍दी टाइपिंग करने लगी , शायद अंग्रेजी में संभव नहीं थी।

कीबोर्ड की पहली पंक्ति में सामान्‍य तौर पर ये सारे टाइप होते हैं ......
`  1  2  3 4 5  6  7 8  9  0 -  =   (NORMAL)

यदि कीबोर्ड की इस पहली पंक्ति की हिन्‍दी में टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं
़ 1  2  3  4  5 6  7 8  9  0  ; ृ   (NORMAL)

 शिफ्ट के साथ कीबोर्ड की पहली पंक्ति में सामान्‍य तौर पर ये सारे टाइप होते हैं ......
~  !  @  #  $  %  ^  &  *  ( )  _  + (WITH SHIFT)

यदि शिफ्ट के साथ कीबोर्ड की इस पहली पंक्ति की हिन्‍दी में टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं .....
द्य  ।  / :  *   -  ‘  ‘ द्ध  त्र  ऋ  .  ् (WITH SHIFT)

उसके नीचे यानि दूसरी पंक्ति में सामान्‍य तौर पर ये सारे टाइप  किए जाते हैं ......
q  w  e  r  t  y  u I  o p  [ ]  \ (NORMAL)

जबकि दूसरी पंक्ति में हिन्‍दी में टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं .....
ु  ू म  त  ज  ल  न  प  व  च  ख्‍  ,  (NORMAL)

पर यदि  उसी दूसरी लाइन की शिफ्ट के साथ टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं ....
Q  W  E  R  T  Y  U  I  O  P  {  }   (WITH SHIFT)

पर उसी दूसरी लाइन की शिफ्ट के साथ हिन्‍दी में टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं .....
फ   ॅ   म्‍    त्‍   ज्‍   ल्‍   न्‍   प्‍   व्‍   च्‍   क्ष्‍   द्व   )     (WITH SHIFT)

तीसरी पंक्ति में सामान्‍य तौर पर ये सारे टाइप होते हैं ......
a    s    d    f    g    h    j    k    l    ;     ‘           (NORMAL)

जबकि उस तीसरी पंक्ति में हिन्‍दी में टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं .....
ं   े    क    ि‍   ह   ी     र ा     स   य    श्‍                (NORMAL)

अब यदि इसी तीसरी पंक्ति को शिफ्ट के साथ टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं .....
 A    S    D    F    G    H    J    K    L    :    “      (WITH SHIFT)

पर उसी तीसरी पंक्ति को शिफ्ट के साथ हिन्‍दी में टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं .....
 ा  ै  क्‍    थ्‍    ळ    भ्‍    श्र   ज्ञ   स्‍    रू     ष्‍              (WITH SHIFT)

अंतिम पंक्ति में सामान्‍य तौर पर ये सारे टाइप होते हैं .....
z      x     c     v     b     n     m     ,     .     /    (NORMAL)

यदि कीबोर्ड की इस अंतिम पंक्ति की हिन्‍दी में टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं .....
्र  ग    ब    अ     इ    द      उ    ए    ण्‍    ध्‍          (NORMAL)

शिफ्ट के साथ कीबोर्ड की पहली पंक्ति में सामान्‍य तौर पर ये सारे टाइप होते हैं ......
 Z    X    C    V    B    N    M    <    >    ?     (WITH SHIFT)

पर उसी तीसरी पंक्ति को शिफ्ट के साथ हिन्‍दी में टाइपिंग की जाए तो ये सारे टाइप होते हैं .....
 र्    ग्‍     ब्‍     ट     ठ   छ     ड     ढ   झ    घ्‍         (WITH SHIFT)

हिन्‍दी में मुख्‍य शब्‍दों की टाइपिंग के लिए मैने ये कई शब्‍दों को याद रखा ....
मई , तर , जट , लवाई , न्‍यू , पाई , वओ ,चप , फक्‍यू , कडी , हजी ,रजे ,सएल , गक्‍स ,बसी , अटवी , इठबी ,दछन , डउम

इन शब्‍दों को याद कर लेने से शुरूआती दौर में बार बार कागज देखने से बचा जा सकता है। आधा या पूरा जो भी 'म' टाइप करना हो, मई मतलब 'E' बटन, इसी तरह पूरा या आधा 'त' के लिए 'R' बटन पूरा या आधा 'ज' के लिए 'T' बटन। इसी तरह 'अ' या 'ट' टाइप करना हो , तो 'V' तथा 'इ' और 'ठ' टाइप करना हो , तो 'B' बटन का सहारा लिया जा सकता है। ऐसा करने से बहुत आसानी हो जाती है। ा का बटन , ु और ू , ि‍ और ी  तथा े और ै के बटन की स्थिति इतनी अच्‍छी जगह पर है कि इन्‍हें याद रख लेना तो बहुत आसान है ही। अब इतने बटनों को जानने के बाद टाइपिंग के दौरान कभी कभार ही नए शब्‍द आएंगे , जिसके लिए आप उपरोक्‍त कागज की एक प्रिंट बनाकर रखें रहें। दो चार दिनों के प्रैक्टिस से सारे बटन का आइडिया होना ही है। देखा रेमिंगटन में टाइपिंग कितनी आसान हो गयी ।




Sunday 18 October 2009

भूतों के भय से ही जुडा एक किस्‍सा और भी सुनिए !!

संभवत: यह घटना 1981 के आस पास की है। कलकत्‍ते में रहनेवाले हमारे एक दूर के रिश्‍तेदार पहली बार हमारे गांव के अपने एक नजदीकी रिश्‍तेदार के घर पर आए। पर वहां उनका मन नहीं लगता था , रिश्‍तेदार अपने व्‍यवसाय में व्‍यस्‍त रहते और उनकी पत्‍नी अपने छोटे छोटे बच्‍चों में।  वे वहां किससे और कितनी देर बातें करतें , उनके यहां जाने में जानबूझकर देर करते थे और हमारे यहां बैठकर बातें करते रहते थे । बडे गप्‍पी थे वो , अक्‍सर वे हमारे घर पहुंच जाते थे और घंटे दो घंटे गपशप करने के बाद खाना खाकर ही लौटते थे।

एक दिन शाम को पहुंचे , तो इधर उधर की बात होते होते भूत प्रेत पर जाकर रूक गयी , भूत प्रेत का नाम सुनते ही उन्‍होने अपनी शौर्यगाथाएं सुनानी शुरू की। फलाने जगह में भूत के भय से जाने से लोग डरते हैं , मैं वहां रातभर रहा , फलाने जगह पर ये किया , वो किया और हम सभी उनके हिम्‍मत के आगे नतमस्‍तक थे। मेरी मम्‍मी ने एक दो बार रात्रि के समय इस तरह की बातें न करने की याद भी दिलायी , पर वो नहीं माने ‘नहीं , चाचीजी , भूत प्रेत कुछ होता ही नहीं है , वैसे ही मन का वहम् है ये’ और न जाने कहां कहां के ऐसे वैसे किस्‍से सुनाते ही रहे।

उस दिन खाते पीते कुछ अधिक ही देर हो गयी थी , रात के ग्‍यारह बज गए थे , गांव में काफी सन्‍नाटा हो जाता है। उस घर के छत से आवाज दे देकर बच्‍चे बार बार बुला रहे थे । सामने के रास्‍ते से जाने से कई मोड पड जाने से उनका घर हमारे घर से कुछ दूर पड जाता था , पर खेत से होकर एक शार्टकट रास्‍ता था । हमलोग अक्‍सर उसी रास्‍ते से जाते आते थे , उन्‍होने भी उस दिन उसी रास्‍ते से जाने का निश्‍चय किया। पीछे के दरवाजे से उन्‍हें भेजकर हमलोग दरवाजा बंद करके अंदर अपने अपने कामों में लग गए। अचानक मेरी छोटी बहन के दिमाग में क्‍या आया , छत पर जाकर देखने लगी कि वे उनके घर पहुंचे या नहीं ? अंधेरा काफी था , मेरी बहन को कुछ भी दिखाई नहीं दिया , वह छत से लौटने वाली ही थी कि उसे महसूस हुआ कि कोई दौडकर हमारे बगान में आया और सामने नीम के पेड के नीचे छुप गया।

मेरी बहन ने पूछा ‘कौन है ?‘

उनकी आवाज आयी ‘मैं हूं’

‘आप चाचाजी के यहां गए नहीं ?’

‘खेत में कुएं के पास कोई बैठा हुआ है’

गांव में रात के अंधेरे में चोरों का ही आतंक रहता है , उनकी इस बात को सुनकर हमलोगों को चोर के होने का ही अंदेशा हुआ , जल्‍दी जल्‍दी पिछवाडे का दरवाजा खोला गया। पूछने पर उन्‍होने हमारे अंदेशे को गलत बताते हुए कहा कि वह आदमी नहीं , भूत प्रेत जैसा कुछ है , क्‍यूंकि कुएं के पास उसकी दो लाल लाल आंखे चमक रही हैं। तब जाकर हमलोगों को ध्‍यान आया कि कुएं के पास खेत में पानी पटानेवाला डीजल पंप रखा है और उसमें ही दो लाल बत्तियां जलती हैं। जब उन्‍हें यह बात बताया गया तो उन्‍होने एकदम से झेंपकर कहा ‘ओह ! हम तो उससे डर खा गए’ । बेचारे कर भी क्‍या सकते थे , इस डर खाने की कहानी ने तुरंत बखानी गई उनकी निडरता की कहानियों के पोल को खोल दिया था। फिर थोडी ही देर बाद वे चले गए , और हमारे घर के माहौल की तो पूछिए मत , हमलोगों को तो बस हंसने का एक बहाना मिल गया था।




Friday 16 October 2009

दीपावली की रात घर में पकवान और मिष्‍टान्‍न न रखें .... घर में दरिद्दर वास करता है ??

प्राचीन काल से ही अपने धन-संपत्ति , गुण-ज्ञान और बुद्धि-विवेक के बेहतर उपयोग के कारण कुछ चुने हुए लोगों के पास ही संसाधनों की उपस्थिति को स्‍वीकार करना हमारी विवशता रही है। लेकिन सामाजिक तौर पर बेहतर व्‍यवस्‍था उसे कही जा सकती है , जो कई प्रकार के बहानों से इन साधन संपन्‍न लोगों के पास से साधनों को साधनहीनों के पास पहुंचा दे। इससे जहां एक ओर निर्बलों को सहारा मिलता है , तो दूसरी ओर मानसिक श्रम करनेवाले या कला के लिए समर्पित लोगों को भी रोजी रोटी की समस्‍या से निजात मिलती है , जो भविष्‍य में उनके विकास के लिए आवश्‍यक है।

समाज में विभिन्‍न प्रकार के रीति रिवाज या कर्मकांड इसी प्रकार का प्रयास माना जा सकता है। विभिन्‍न प्रकार के त्‍यौहारों को मनाने के क्रम में हमें समाज के हर स्‍तर और हर प्रकार के काम करनेवाले लोगों के सहयोग की जरूरत पड जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी उनका ऐसा महत्‍व है कि उनके बिना हमारा कोई यज्ञ संपन्‍न हो ही नहीं सकता। प्राचीन काल में बडे बडे गृहस्‍थों के घरों में जमा अनाज का समाज के हर वर्ग के लोगों का हिस्‍सा होता था , जो बिना किसी हिसाब किताब के उनके द्वारा किए गए सलाना मेहनत के एवज में उन्‍हें दिए जाने निश्चित थे।

दीपावली तो लक्ष्‍मी जी जैसी समृद्ध देवी के पूजन का त्‍यौहार है। भला उनकी पूजा में कैसी कंजूसी ? हमारे समाज में दीपावली के दिन नाना प्रकार के पकवान बनाने , फलों मिठाइयों के भोग लगाने , खाने पीने और खुशियां मनाने की परंपरा रही है। समृद्धों के लिए यह जितनी ही खुशी लानेवाला त्‍यौहार है , असमर्थों के लिए उतना ही कष्‍टकर। दीए तो किसी प्रकार जला ही लें , अपने सामर्थ्‍यानुसार सामग्री जुटाकर पूजा पाठ कर वह प्रसाद भले ही ग्रहण कर लें , पर नाना भोग जुटा पाना उनके लिए संभव नहीं। दूसरी ओर समर्थों के घर इतना पकवान बचा है कि बासी होने के बाद उसे बंटवाना पडेगा।

बासी होने के बाद क्‍यूं , दीपावली के त्‍यौहार के दिन ही इस अंतर को पाटने के लिए हम आप शायद कुछ व्‍यवस्‍था नहीं कर सकते हैं , पर हमारे दार्शनिक चिंतक पूर्वजों ने व्‍यवस्‍था कर ली थी। हमारे क्षेत्र में यह मिथक है कि दीपावली की रात्रि 12 बजे के बाद दरिद्दर घूमा करता है और जिसके यहां पकवान बचे हों , उसके यहां वास कर जाता है। इस डर से लोग जल्‍दी जल्‍दी खुद रात्रि का भोजन निपटाकर बचा सारा खाना और मिष्‍टान्‍न गरीबों के महल्‍ले में भेज देते हैं। भले ही यह मिथक एक अंधविश्‍वास है , पर इसके सकारात्‍मक प्रभाव को देखकर इसे गलत तो नहीं माना जा सकता। हमारे अधकचरे ज्ञान से , जो सामाजिक व्‍यवस्‍था और पर्यावरण का नुकसान कर रहा है , ऐसा अंधविश्‍वास लाखगुणा अच्‍छा है। सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !!