Tuesday 5 May 2020

हमें अन्धविश्वास क्यों नहीं करना चाहिए ?

Andhvishwas story in hindi

हमें अन्धविश्वास क्यों नहीं करना चाहिए ?

मैं दस बारह वर्ष पूर्व की एक सच्‍ची और महत्‍वपूर्ण घटना का उल्‍लेख करने जा रही हूं। बोकारो रांची मुख्‍य सडक के लगभग मध्‍य में एक छोटा सा गांव है , जिसमें एक गरीब परिवार रहा करता था। उस परिवार में दो बेटे थे , बडे बेटे ने गांव के रोगियों के उपचार में प्रयोग आनेवाली कुछ जडी बूटियों की दुकान खोल ली थी। बचपन से ही छोटे बेटे के आंखों के दोनो पलक सटे होने के कारण वह दुनिया नहीं देख पा रहा था। गरीबी की वजह से इनलोगों ने उसे डाक्‍टर को भी नहीं दिखाया था और उसे अंधा ही मान लिया था। पर वह अंधा नहीं था , इसका प्रमाण उन्‍हें तब मिला , जब 16-17 वर्ष की उम्र में किशोरावस्‍था में शरीर में अचानक होनेवाले परिवर्तन से उसकी दोनो पलकें हट गयी और आंखे खुल जाने से एक दिन में ही वह कुछ कुछ देख पाने में समर्थ हुआ। 

उसके शरीर में अचानक हुए इस परिवर्तन को देखकर परिवार वालों ने इसका फायदा उठाने के लिए रात में एक तरकीब सोंचा। खासकर बडे बेटे ने अपनी जडीबूटियों की दुकान को जमकर चलाने के लिए यह नाटक किया। सुबह होते ही छोटा बेटा पूर्ववत् ही लाठी लिए टटोलते टटोलते गांव के पोखर में पहुंचा और थोडी देर बाद ही हल्‍ला मचाया कि उसकी आंखे वापस आ गयी है । पूरे गांव की भीड वहां जमा हो गया और पाया कि वह वास्‍तव में सबकुछ देख पा रहा है। जब लोगों ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि अभी अभी एक बाबा उधर से गुजर रहे थे , उन्‍होने ही उसपर कृपा की है । उन्‍होने कहा है कि न सिर्फ तुम्‍हारी आंख ठीक हो जाएगी, तुम अब जिनलोगों को आशीर्वाद दे दोगे , वे भी ठीक हो जाएं

पूरा गांव आश्‍चर्य चकित था , इस चमत्‍कार भरे देश में ऐसा चमत्‍कार होते उन्‍होने सुना तो जरूर ही होगा , पर देखने का मौका पहली बार मिला था। पूरे गांव के लंगडे , लूले , अंधे, काने , पागल बच्‍चों को ले लेकर अभिभावक आने लगें, बडे भाई की जडी बूटी जमकर बिकने लगी। परिवार वाले तो इतने में ही खुश थे , पर ईश्‍वर को तो इन्‍हें छप्‍पर फाडकर देना था। यह खबर आग की तरह फैली और दूर दूर से लोग अपने अपने परिवार के लाचारों को लेकर आने लगे। उसके दुकान की जडी बूटी कम पडने लगी , फिर नीम वगैरह की सूखी डालियों का उपयोग किया जाने लगा , पर भीड थी कि बढती जा रही थी । मौके की नजाकत को समझते हुए बडे बडे बरतनों में नीम की पत्तियों उबाली जाने लगी , उस जल को बोतल में भरकर बेचने के लिए गांव भर के बोतलों को जमा किया गया । 

समाचार पत्रों में इस बात की खबर लगातार प्रकाशित होने लगी , शीघ्र ही भीड को नियंत्रित करने के लिए पुलिस तक की व्‍यवस्‍था करनी पडी । एक डेढ महीने के अंदर उस बच्‍चे की महिमा इतनी फैल चुकी थी कि कि पुलिस की मार से बचने के लिए लोग दूर से ही गांव में रूपए पैसे फेक फेककर वापस चले जाते थे। जिस गांव में आजतक एक गाडी नहीं गुजरती थी , उस गांव में बडी बडी गाडियां आकर खडी हो गयी। इधर आसपास की बातों को तो छोड ही दिया जाए , कलकत्‍ता जैसे दूरस्‍थ स्‍थानों से भी बहुत बडे बडे व्‍यवसायी और सरकारी अधिकारी तक इस ‘महात्‍मा’ का दर्शन करने को आ पहुंचे। इतने दिनों तक उस परिवार के अतिरिक्‍त गांव के अन्‍य लोगों ने भी कुछ न कुछ व्‍यवसाय कर पैसे कमाए। लेकिन बाद में रोगियों की स्थिति में कोई सुधार न होने से उसकी पोल खुली और जनता ने उसके नाटक को समझा , तबतक उनलोग लाखों बना चुके थे।

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इसी प्रकार गया में चार हाथोंवाले बच्‍चे को जन्‍म देने के बाद उनके मातापिता दो ही दिनों में भक्‍तों के द्वारा मिलनेवाले चढावे से ही लखपति हो गए। 48 घंटे तक ही जीवित रहे इस बच्‍चे को लोगों ने भगवान विष्‍णु का अवतार माना। भारत में अंधविश्‍वास इस हद तक फैला है कि यहां असामान्‍य बच्‍चों को जन्‍म देनेवाले मांबाप उस बच्‍चे का इलाज भी नहीं करवाना चाहते । एक माता पिता के सामने डाक्‍टर मिन्‍नते करते रह गए और उन्‍होने बच्‍चे को सामान्‍य बनाने के लिए डाक्‍टरों को कोशिश ही नहीं करने दी। जनता के अंधविश्‍वासों का ये लोग पूरा फायदा उठाते हैं। जब आज के पढे लिखे युग में इस प्रकार की घटनाएं भारतवर्ष में आम हैं , तो पुराने युग के बारे में क्‍या कहा जा सकता है। समाज से इस तरह के अंधविश्‍वासों को दूर करने के लिए बहुत सारे लोग और संस्‍थाएं कार्यरत हैं , पर सवाल है कि जनता के अंधविश्‍वास को समाप्‍त किया जा सकता है

यह दुनिया विविधताओं से भरी है। यहां फूल हैं तो कांटे भी , प्रेम है तो घृणा भी , मीठास है तो कडुवाहट भी , गर्मी है तो सर्दी भी , आग है तो पानी भी और किसी का भी खात्‍मा कर पाना असंभव है। कभी कभी कोशिश का और उल्‍टा परिणाम निकलता है। हमने फूलों के सुगंध को भी महसूस की और कांटे को भी बाड लगाने में प्रयुक्‍त किया। फल के मीठास को भी महसूस किया और कडुवाहट को भी बीमारी ठीक करने मं उपयोग में लाने की कोशिश की। मैं हर वक्‍त अपने ऋषि मुनियों के दूरदर्शिता की दाद देती हूं , उन्‍हें ये मालूम था कि आम जनता से यह अंधविश्‍वास दूर नहीं कर सकते ।

 इसलिए जनता के इसी अंधविश्‍वास का सहारा लेकर उन्‍हें जीवन जीने का एक ढंग बनाया। स्‍वर्ग और नरक के बहाने बनाकर जनता को अच्‍छे कामों की ओर प्रवृत्‍त करने की कोशिश की। चेचक के होने पर रोगी के लिए जो आवश्‍यक सावधानी बरतनी थी , उसे धर्म का नाम देकर करवाया। भले ही हम इस कोण से न सोंच पाएं , पर किसी मरीज के मनोवैज्ञानिक चिकित्‍सा के लिए झाड फूंक कीवैज्ञानिक पद्धतिका ही उन्‍होने सहारा लिया था । बरसात के तुरंत बाद साफ सफाई के लिए कई त्‍यौहारकी परंपरा शुरू की गई। उनके द्वारा सभ्‍य जीवन जीने के लिए आवश्‍यक सभी जरूरतों की पूर्ति के लिए सामाजिक नियम बनाए गए। 'बट', 'पीपल' जैसे महत्‍वपूर्ण पेडों को भी सुरक्षित रखने के लिए इन्‍हें धर्म से जोड दिया गया। सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण जैसे सुंदर प्राकृतिक नजारे को दिखाने के लिए उन्‍हें गांव के किनारे नदियों या तालाबों में ले जाया जाता रहा । ग्रहण के तुरंत बाद उतनी एकत्रित भीडों तक के अंधविश्‍वास का उन्‍होने भरपूर उपयोग किया। उनके द्वारा नदियों , तालाबों की गहराइयों में जाकर एक एक मुट्ठी मिटृटी निकलवाकर नदियों तालाबों की गहराई को बढाया जाता रहा ।

 प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर जगहों में एक सुंदर मंदिर का निर्माण कर जनता को तीर्थ के बहाने उन सुंदर नजारों का अवलोकण कराया गया। प्राचीन ज्ञान में क्‍या सही है और क्‍या गलत , इसपर लाख विवाद हो जाए , मैं बहुत बातों को यदि अंधविश्‍वास मान भी लूं । फिर भी यदि धर्म के नाम पर स्‍वार्थ से दूर होकर सर्वजनहिताय जनता के अंधविश्‍वास का कोई उपयोग ही किया गया , तो उसमें मैं कोई बुराई नहीं समझती। पर आज चूंकि हर क्षेत्र स्‍वार्थमय है , लोगों के अंधविश्‍वास का उपयोग स्‍वार्थ के लिए किया जा रहा है , इसलिए यह चिंताजनक तो है ही।



दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौन सा है ?

Duniya ka sabse purana dharm konsa hai

दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौन सा है ?

धर्म क्या है ? आज उसे गलत ढंग से परिभाषित किया जा रहा है। धर्म का अर्थ है धारण करने योग्य व्यवहार , जिससे पूरी मानव जाति का शारीरिक , आर्थिक , मानसिक और पारिवारिक .... और इन सबसे अधिक नैतिक विकास हो सके , भले ही उसके लिए दुनिया को थोड़ा भय , दबाब या लालच दिया जाए। लेकिन यह तो मानना ही होगा कि कोई भी विश्वास कभी ज्यादती के आधार पर नहीं हो सकती। यह सर्वदेशीय या सर्वकालिक भी नही हो सकता। इसलिए दूसरे देश या काल में भले ही किसी धर्म का महत्व कम हो जाए , जिस युग और जिस देश में इनके नियमों की संहिता तैयार होती है , यह काफी लोकप्रिय होता है। 

किसी भी देश में साधन और साध्‍य के मध्‍य तालमेल बनाने में समाज हमेशा दबाब में होता है और इस दबाब से बचाने के लिए किसी तरह का विकल्प तैयार किया जाए , तो वह इसे अपनाने को पूर्ण तैयार होता है , इसे ही धर्म कहकर पुकारा जाता है। कालांतर में इसमें कुछ ढकोसले , कुछ अंधविश्वास , कुछ तुच्छता स्वयमेव उपस्थित होते चले जाते हैं , जिसको समय के साथ शुद्ध किया जाना भी उतना ही आवश्‍यक है। अब आप समझ सकते हैं कि दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौन सा है ?

यदि सनातन धर्म की ओर ध्‍यान दें, तो यहां गुरू सिर्फ आध्‍यात्मिक मामलों के ही गुरू नहीं , हर विषय के अध्‍येता हुआ करते थे। वे वैज्ञानिक भी थे और दार्शनिक भी और उनके द्वारा जो भी नियम बनाए गए , वे समूचे मानव जाति के कल्‍याण के लिए थे। अतिवृष्टि और अनावृष्टि की मार से बर्वाद हुए फसल की क्षतिपूर्ति के लिए यदि समय समय पर फलाहार के बहाने बनाए गए तो गलत क्‍या था ? पर्व त्‍यौहारों पर लाखों की भीड को नदी में स्‍नान कराने और नदी के तल से सबों को एक एक मुट्ठी मिट्टी निकालने के क्रम में नदियों की गहराई को बचाया जाता रहा तो इसमें गलत क्‍या था ? 

तात्‍कालीक फल न प्रदान करने वाले पीपल और बट के पेडों के नष्‍ट होने के भय को देखते हुए और उसके दूरगामी फल को देखते हुए उन्‍हें धर्म से जोडा गया तो गलत क्‍या था ? संबंधों का निर्वाह सही ढंग से हो सके , इसके लिए एक बंधन बनाए गए तो इसमें गलत क्‍या था ? चूहा, उल्लू, गरुड़, हाथी, सिंह , सबको भगवान का वाहन मानने के क्रम में पशुओं से भी प्रेम करने की पवृत्ति बनायी गयी , तो इसमें गलत क्‍या था ? 

 पुराने त्‍यौहारों पर गौर किया जाए तो पाएंगे कि इसके नियमों का पालन करने में एक एक वस्‍तु की जरूरत पडती है , जिन्‍हें मानने के क्रम में समाज के विभिन्‍न वर्गों के मध्‍य परस्‍पर गजब का लेन देन होता है और त्‍यौहार के बहाने ही सही , पर वर्षभर लोगों को जरूरत पडनेवाली हर प्रकार की सामग्री हर घर में पहुंच जाती है । अब आप समझ सकते हैं कि दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौन सा है ?

duniya ka sabse prachin dharm konsa hai

वास्‍तव में, किसी भी बात की सही व्‍याख्‍या तभी की जा सकती है , जब उस विषय विशेष का गंभीर अध्‍ययन किया गया हो। पुराने सभी नियम पुराने युग की जीवनशैली के अनुरूप थे , आज उनका महत्‍व कम दिखाई पड सकता है , पर उसमें सुधार की पूरी गुजाइश है। मैं विचारों से उसे ही धार्मिक मानती हूं , जिसके अंदर वे सभी गुण हों , जो धारण किए जाने चाहिए। मैं परमशक्ति में विश्‍वास रखती हूं , बाह्याडंबरों में नहीं, एक ज्‍योतिषी होने के बावजूद पूजा पाठ में बहुत समय जाया करने पर भी मेरा विश्‍वास नहीं और न ही परंपरागत रीति रिवाजों को ही हूबहू मानती हूं। 

एक भगवान पर या प्रकृति के नियमों पर विश्‍वास रखो तो कितना भी दुख विपत्ति आ जाए , असीम शांति मिलती है। हमेशा लगता है, भगवान या प्रकृति हमारे साथ हैं । वैसे इस बात पर भी विश्‍वास रखना चाहिए कि काम प्रकृति के नियमानुसार ही होते हैं , लाख भगवान की पूजा कर लो, कुछ बदलने वाला नहीं , पर इस बहाने शांति ही मिलती है तो कम बडी बात नहीं। अब आप समझ सकते हैं कि दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौन सा है ?

आज कुछ लोगों और कई संस्थाओ का लक्ष्य धर्म के नाम पर फैले अंधविश्वास , पुरातनपंथ , ढकोसलों को समाप्त करना है , यह तो बहुत ही अच्छी बात है , क्योंकि हमारा लक्ष्य भी यही है। लेकिन हर व्यक्ति या पूरे समाज को किसी भी मामले में एक विकल्प की तलाश रहती है। झाड़.फूंक को तब मान्यता मिलनी बंद हो गयी , जब इलाज के लिए लोगों को एलोपैथी के रूप में एक वैज्ञानिक पद्धति मिली। यदि ये संस्थाएं आज के युग के अनुरूप समाज , प्रकृति और अन्‍य हर प्रकार के विकास के लिए आवश्‍यक कुछ नियमों की संहिता तैयार करें , जो सारे मानव जाति के कल्याण के लिए हो , तो भला जनता उसे क्यो नहीं मानेगी ? 

दो.चार लोगों के नियम विरूद्ध होने या अधार्मिक होने से युग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता , किन्तु यदि उन्हें देख सारी जनता अधर्म के राह पर चल पड़े, नैतिक विकास या मानवीय मूल्‍यों से अधिक महत्व अपने शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक विकास को दे, तो सुख.शांति का अंत होना ही है। इसके कारण आनेवाले समय में मानवजाति चैन से नही जी पाएगी। ऐसे में आज भी जरूरत है धर्म की ही सही परिभाषा रचने की और उसके अनुरूप जनता से क्रियाकलापों को अंजाम दिलवाने की। यदि इसमें ये संस्थाएं कामयाब हुईं , तो मानव जाति का उत्थान निश्चित है। अब आप समझ सकते हैं कि दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौन सा है ?

धर्म का दिखावा करनेवाले पाखंडी, धोखेबाज और कपटी लोगों के प्रभाव में जनता कुछ दिनों के लिए भले ही बेवकूफ बन जाए , किन्तु फिर जल्‍द ही उनकी पोल अवश्य खुल जाती है , जबकि महात्मा गांधी , मदर टेरेसा , ईसा मसीह , स्वामी दयानंद , स्वामी विवेकानंद , गौतम बुद्ध , महावीर , गुरू नानक , चैतन्य महाप्रभु जैसे अनेकानेक व्‍यक्तित्‍व धर्माचरण के द्वारा युगों.युगों तक पूजे जा रहे हैं। फिर धर्म को गलत कैसे और क्यों समझा जाए ? अब आप समझ सकते हैं कि दुनिया का सबसे पुराना धर्म कौन सा है ?




‘सब सारहन एके तेरी देखा हथिन’

Dadi rakhne ka style

‘सब सारहन एके तेरी देखा हथिन’

मेरे पापाजी ने अपने विद्यार्थी जीवन का , जब वे हाई स्‍कूल में पढ रहे थे , एक संस्‍मरण सुनाया था । कक्षा लगने ही वाली थी , सभी विद्यार्थी अपनी अपनी कक्षा में बैठ चुके थे। गेट बंद हो चुका था और कुछ छात्र देर होने के कारण जल्‍दी जल्‍दी गेट के बगल की सीढियों से एक एक कर अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे । चाहे जिस उद्देश्‍य से भी एक बूढा स्‍कूल जा रहा हो , सीढी को जाम कर देने की वजह से कुछ बच्‍चे परेशान थे और उनमे से किसी शैतान बच्‍चे ने उस बूढे को कुछ कहकर चिढा दिया। चिढाकर वह तेजी से अपनी कक्षा की ओर बढ गया। 

बूढे ने गुस्‍से में तमतमाते हुए हेडमास्‍टर साहब के पास जाकर शिकायत की । हेडमास्‍टर साहब भी लडके को उसकी करनी का फल चखाना चाहते थे , पर समस्‍या थी , उस लडके को पहचानने की । बूढे ने कक्षा की ओर इशारा करते हुए बताया कि वह उसी कक्षा में गया है और देखने पर वे पहचान जाएंगे। मास्‍टर साहब ने तुरंत उस कक्षा के सारे बच्‍चों को बाहर निकालकर उन्‍हें एक कतार में खडा करवाया और उस बूढे से बच्‍चे को पहचानने को कहा। 

बूढे ने एक बार नहीं , दो या तीन बार चक्‍कर लगाते हुए कतार में खडे सबके चेहरों को गौर से देखा , पर यूनिफार्म में देखे उस बच्‍चे को इतने सारे यूनिफार्म वाले बच्‍चों के बीच पहचान पाना आसान न था। सफल न होने पर उस बूढे ने यहां बोली जानेवाली भाषा 'खोरठा' में भुनभुनाते हुए कहा ‘सब सारहन एके तेरी देखा हथिन’ यानि ‘सब साले एक ही तरह के दिखते हैं’


dadi rakhne ka style

आज अचानक इस प्रसंग के याद आने का एक महत्‍वपूर्ण कारण है। कल अरविंद मिश्राजी ने अपने ब्‍लाग में इटली के प्रसिद्ध खगोलविज्ञानी Giovanni Virginio Schiaparelli की एक फोटोलगाकर पाठकों को उसे बूझने को दिया। मैने उनके बारे में कब पढा था , यह तो याद नहीं , पर मुझे यह फोटो बिल्‍कुल जानी पहचानी सी लगी। अभी कुछ दिन पहले जार्ज वेस्टिंगहाउस को पढ रही थी। मुझे ऐसा लगा कि ये जार्ज वेस्टिंगहाउस ही हैं , पर मैने अपनी याददाश्‍त के आधार पर इस पहेली का हल नहीं बताया। मैं गूगल के इमेज सर्च में गयी , वहां जार्ज वेस्टिंगहाउस का इमेज सर्च किया , उस इमेज को देखकर मैं आश्‍वस्‍त हुई और निश्चिंति से लिख दिया ‘जार्ज जार्ज वेस्टिंगहाउस हैं ये ...’ ,

 पर बाद में जब अरविंद जी ने अपनी टिप्‍पणियों को प्रकाशित किया तो अधिकांश जगहों पर Giovanni Virginio Schiaparelli का नाम देखकर मैं चौंक गयी। जब गूगल के इमेज सर्च में उनको सर्च किया तो वही फोटो मिल गयी , जो अरविंद जी ने लगा रखी थी। उस बूढे की तरह मुझे भी कहना पड रहा है कि सब दाढी , मूंछ और बाल वाले एक ही तरह के दिखते हें। अब मुझे पता चला कि सिर्फ समयाभाव के कारण नहीं , वरन् अपनी पहचान को छुपाने के लिए भी हमारे ऋषिमुनियों से लेकर अभी हाल तक के दार्शनिकों , विचारकों को दाढी बाल बढाए रखने की आवश्‍यकता थी , ताकि कोई यदि उनके विचारों और दर्शनों से सहमत न भी हो तो उनका नुकसान न कर सकें। जब दाढी मूंछ और बाल से युक्‍त उनके चेहरे को पहचान ही नहीं पाएंगे तो भला नुकसान कैसे करेंगे ?

क्‍या सचमुच हमारे सोने के चेन में उस व्‍यक्ति का हिस्‍सा था ??

Manav adhikar ke prakar

क्‍या सचमुच हमारे सोने के चेन में उस व्‍यक्ति का हिस्‍सा था ??

मानव अधिकारों की परिभाषा में मानव को प्रकृति से प्राप्त कुछ स्वाभाविक शामिल किया गया है, मनुष्य अपने जन्म से ही कुछ अधिकार लेकर आता है। प्रकृति से प्राप्त होने के कारण ये स्वाभाविक रूप से मानव स्वभाव मे निहित होते है। जैसे जीवित रहने का अधिकार, स्वतंत्रतापूर्वक विचरण करने का अधिकार।इसके अलावा  शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आर्थिक कमजोरी या मजबूती जन्म लेते ही या जीवन-भर प्राप्त होती रहती है। इसलिए तो भारतीय परम्परा में भाग्य का बलवान होना, अच्छे कर्मों का फल अच्छा मिलना और पुनर्जन्म आदि की चर्चा होती रहती है। माना जाता है कि अपने हिस्से का सुख-दुःख मनुष्य को अवश्य मिलता है। 

कभी कभी जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं अवश्‍य घट जाती हैं , जिसे संयोग या दुर्योग का पर्याय कहते हुए हम भले ही उपेक्षित छोड दें , पर हमारे मन मस्तिष्‍क को झकझोर ही देती है। आध्‍यात्‍म को मानने वाले इस बात को समझ सकते हैं कि निश्चित परिस्थितियों और निश्चित सीमाओं में ही रहकर व्‍यक्ति अपने जीवन जीने को बाध्‍य हैं और जो भी अधिक या कम प्राप्‍त करता है , उसमें प्रकृति का सहयोग या असहयोग स्‍पष्‍टत: झलकता है। इसी वर्ष 8 फरवरी को मैने क्‍या प्रकृति में लेने और देने का परस्‍पर संबंध होता है ?? नामक एक पोस्‍ट किया था , जिसमें लिखा था कि अनजाने में किस प्रकार मैने एक अपरिचित महिला का आतिथ्‍य करने के दो महीने बाद उसे उसी के घर जाकर वसूल लिया था इसी प्रकार की एक और घटना मेरे जीवन में घट चुकी है , जिससे मेरी समझ में एक बात आ गयी है कि इस प्रकृति में सबों को हिस्‍सा तय है और वह हर व्‍यक्ति प्राप्‍त कर ही लेता है।

manav adhikar ke prakar

बात मेरे बचपन की है , जब गांव गांव में सोने चांदी की सफाई करनेवाले एक व्‍यक्ति ने मेरे घर में दस्‍तक दी। मम्‍मी के द्वारा दरवाजा खोलते ही उसने सोने और चांदी को साफ कर बिल्‍कुल नया कर देने का दावा किया। सोने के गहने तो महिलाएं किसी अनजान को नहीं सौंपती , पर चांदी में ऐसा कोई बडा रिस्‍क नहीं होता। मम्‍मी मेरी दो वर्ष की छोटी बहन के पैरों की गंदी पायल को साफ करवाने का लालच न रोक पायी। 

उसकी मजदूरी देकर मम्‍मी तो उसे वापस लौटाने की कोशिश कर रही थी , पर उसकी नजर तो मम्‍मी के गले में पडी सोने की चेन पर थी। उसने मम्‍मी को कहा कि दो मिनट में आपकी चेन भी बिल्‍कुल नई हो जाएगी। मम्‍मी काफी देर तक 'ना' 'ना' करती रही , पर उसके बहुत जिद करने पर कि चुटकियों में वह उनकी चेन को साफ कर देगा , थोडे लालच में पड गयी। दरअसल एक दो दिनों में उन्‍हें एक विवाह के सिलसिले में बाहर भी जाना था , वह भी एक वजह बन गयी।

पर उस व्‍यक्ति की मंशा तो कुछ और थी, हाथ में चेन मिलते ही उसने सफाई के क्रम में चेन को ऐसी प्रक्रियाओं से गुजारा कि दो मिनट की जगह मम्‍मी को दस मिनट इंतजार करना पडा। उसके बाद चेन का वजन काफी हल्‍का हो गया था , मम्‍मी ने हाथ में लेते ही ऐसा महसूस किया। मम्‍मी के हल्‍ला मचाने पर वह भागनेवाला ही था कि गांव के कुछ लोगों ने उसे घेर लिया। 

अपने को मुसीबत में घिरा पाकर उसने अपनी गल्‍ती स्‍वीकार की और अपने अम्‍ल के घोल में से सोना निकालकर वापस करने का वादा किया। उसने कई ईंट को जोडकर चूल्‍हा बनाया , एक कटोरे में कुछ रखकर उसे काफी देर खौलाता रहा और उसके बाद 8 ग्राम के लगभग सोने का एक चमकता टुकडा निकालकर वापस लौटाया। उसके बाद थाने और पुलिस की धमकी दे रहे सारे गांव के लोगों ने उसपर रहम खाते हुए उसे माफ करते हुए इस शर्त के साथ वापस भेज दिया कि अब वो ऐसा काम नहीं करेगा , क्‍यूंकि इस प्रकार लोगों को धोखा देने से कभी भी वह विपत्ति में पड सकता है।

काफी दिनों बाद हमलोग उस बात को भूल ही गए थे। मेरे विवाह के वक्‍त मेरी मम्‍मी ने उस टुकडे को निकाला और मेरी चेन में उसे मिला दिया। विवाह के बाद मैं उसे हमेशा पहनने लगी। एक दिन हमलोग घर में अकेले थे कि सोने और चांदी की सफाई करने का पाऊडर बेचता हुआ एक लडका आया। सफाई के मामलों में अधिक रूचि रखने वाले , इस प्रकार के हर प्रोडक्‍ट में दिलचस्‍पी रखनेवाले मेरे पति बरामदे में ही बैठे थे। इन्‍होने उसे बिठा लिया और उसके प्रोडक्‍ट को देखने लगे। बातचीत की आवाज सुनकर मैं भी बरामदे में आयी , तो इन्‍होने मेरा पायल मांगा। उसे देखते ही मुझे पुरानी बातें याद आ गयी , मैने इन्‍हें चुपचाप बुलाकर सारी बातें बतायी , पर इन्‍होने मुझसे पायल ले ही लिया।एक मिनट में उसने पायल को चमका दिया , जिसे देखकर ये काफी खुश हुए।

जैसे ही मैं अंदर से बाहर आयी , इन्‍होने मुझसे चेन मांगा ,मै 'ना' 'ना' कहती रही , पर इन्‍होने कहा कि वे खुद अपने हाथों से उसके इंस्‍ट्रक्‍शन के अनुसार सफाई करेंगे। मुझे चिंति‍त होने की कोई आवश्‍यकता नहीं। इनपर विश्‍वास करके मैने अपना चेन उतारकर दे दिया। वह लडका मेरे को अच्‍छी तरह समझ चुका था , इसलिए  मुझे व्‍यस्‍त करने का एक तरीका ढूंढ निकाला था , बार बार मुझसे कुछ न कुछ मांगता , एक छोटा बरतन , थोडा सा पानी या कुछ और चीज। और इसी क्रम में वह इनके हाथ से चेन ले चुका था। फटाफट उसने क्‍या क्‍या करके मेरे चेन को भी हल्‍का कर दिया। 

मैने हाथ में लेकर इस बात का अंदाजा करने की कोशिश की , पर जबतक समझती और इन्‍हें समझाती , वह रफूचक्‍कर हो चुका था। इन्‍होने तुरंत स्‍कूटर स्‍टार्ट कर पूरे शहर को छान मारा , पर वो कहीं भी दिखाई नहीं दिया। न तो इस घटना से पहले या उसके बाद आजतक कभी भी मेरे पति किसी भी ठगी के शिकार हुए हैं। उसी चेन का कुछ हिस्‍सा , जो मेरी मम्‍मी से नहीं छीना जा सका था , वही अंश मेरे द्वारा वसूल कर लिया गया था । सोचने को बहुत कुछ मजबूर कर देती है ये घटना , क्‍या सचमुच हमारे चेन में उसका हिस्‍सा था ?