Thursday 10 March 2022

अटल जी की कविता

 अटल जी की कविता 

1)

गीत नहीं गाता हूँ

बेनक़ाब चेहरे हैं,
दाग़ बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ

पीठ मे छुरी सा चांद
राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ
2)
गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा,
रार नई ठानूँगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ 
3)

क़दम मिला कर चलना होगा 

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा। 

Friday 23 July 2021

दहेज प्रथा पर निबंध

Dahej pratha in hindi

दहेज और कन्‍या देकर भी लडकी वाले जीतते थे 

सबकुछ लेकर भी लडकेवाले हार जाया करते थे !!


एक कथा  में कहा गया है कि पूरी धरती को जीतने वाला एक महत्‍वाकांक्षी राजा अधिक दिन तक खुश न रह सका , क्‍यूंकि वह चिंति‍त था कि आपनी बेटी की शादी कहां करे , क्‍यूंकि इस दुनिया का प्रत्‍येक व्‍यक्ति न सिर्फ अपनी बेटियों का विवाह अपने से योग्‍य लडका ढूंढकर किया करता है , वरन् अपने बेटों को खुद से बेहतर स्थिति में भी देखना चाहता है। यही कारण है कि समय के साथ बेटे बेटियों को अधिक गुणवान बनाने के लिए हर कार्य को करने और सीखने की जबाबदेही दी जाती थी , वहीं बेटियों के विवाह के लिए गुणवान लडके के लिए अधिक से अधिक खर्च करने , यहां तक कि दहेज देने की प्रथा भी चली। इस हिसाब से दहेज एक बेटी के पिता के लिए भार नही , वरन् खुशी देने वाली राशि मानी जा सकती थी। यह क्रम आज भी बदस्‍तूर जारी है।

इस सिलसिले में अपने गांव की उस समय की घटना का उल्‍लेख कर रही हूं , जब व्‍यवहारिक तौर पर मेरा ज्ञान न के बराबर था और पुस्‍तकों में पढे गए लेख या मुद्दे ही मस्तिष्‍क में भरे होते थे। तब मैं दहेज प्रथा को समाज के लिए एक कलंक के रूप में देखा करती थी। पर विवाह तय किए जाने के वक्‍त कन्‍या पक्ष को कभी परेशान नहीं देखा। अपने सब सुखों को छोडकर पाई पाई जोडकर जमा किए गए पैसों से कन्‍या के विवाह करने के बाद माता पिता को अधिकांशत: संतुष्‍ट ही देखा करती थी , जिसे मैं उनकी मजबूरी भी समझती थी। 

पर एक प्रसंग याद है , जब एक चालीस हजार रूपए में अपनी लडकी का विवाह तय करने के बाद मैने उसके माता पिता को बहुत ही खुश पाया। उनके खुश होने की वजह तो मुझे बाद में उनकी पापाजी से हुई बात चीत से मालूम हुई। उन्‍होने पापाजी को बताया कि जिस लडके से उन्‍होने विवाह तय किया है , उसके हिस्‍से आनेवाली जमीन का मूल्‍य चार लाख होगा। वे चालीस हजार खर्च करके चार लाख का फायदा ले रहे हैं , क्‍यूंकि समय के साथ तो सारी संपत्ति उसकी बेटी की ही होगी न। शायद इसी हिसाब के अनुसार लडके की जीवनभर की कमाई को देखते हुए आज भी दहेज की रकम तय की जाती है।

और लडके की मम्‍मी की बात सुनकर तो मैं चौंक ही गयी। जैसा कि हमारे समाज में किसी भी शुभ कार्य को करने के पहले और बाद में ईश्‍वर के साथ गुरूजन और बुजुर्गों के पैर छूने की प्रथा है , लडके की मां अपने बेटे के विवाह तय करने के बाद मेरे दादाजी और दादीजी के पैर छूने आयी। पैर छूने के क्रम में उन्‍होने बताया ... ' आज मैं लडके को हार गयी हूं।' यह सुनकर मैं तो घबडा गयी , परेशान थी कि ये हार गयी हैं तो इतनी खुश होकर लडकी की प्रशंसा क्‍यूं कर रही हैं , आधे घंटे तक मैं उनकी बात गौर से सुनती गयी कि इन्‍हे किस बात की हार मिली है , पर मेरे पल्‍ले कुछ भी न पडा। 

उनके जाने के बाद भी मैं अपनी भावनाओं को रोक न सकी और उनके हार की वजह पूछा , दादीजी ने जो बताया , वह और भी रोचक था , 'लडके का विवाह तय करने को इस क्षेत्र में हारना कहा जाता है' मेरे पूछने पर उन्‍होने स्‍पष्‍ट किया कि कन्‍या की सुंदरता , गुण , परिवार और साथ में दहेज की रकम मिलकर इन्‍हें हारने को मजबूर कर दिया। इस तरह दहेज और कन्‍या देकर भी लडकी वाले जीत और सबकुछ लेकर भी लडकेवाले हार जाया करते थे ।
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Monday 12 April 2021

झूठ नहीं बोलना सच कहना

झूठ नहीं बोलना सच कहना 

Jhoot nahi bolna sach kahna



झूठ के पांव होते ही नहीं हैं ,

कभी कहीं भी पहुंच सकता है।
पर बिना पांव के ही भला वह ,
फासला क्‍या तय कर सकता है ?


भटकते भटकते , भागते भागते ,
उसे अब तक क्‍या है मिला ?
मंजिल मिलनी तो दूर रही ,
दोनो पांव भी खोना ही पडा !!

सच अपने पैरों पर चलकर ,
बिना आहट के आती है।
निष्‍पक्षता की झोली लेकर ,
दरवाजा खटखटाती है।

न्‍याय, उदारता की इस मूरत को ,
इस कर्तब्‍य का क्‍या न मिला ?
हर युग में पूजी जाती है ,
हर वर्ग में इसे सम्‍मान मिला !!

सत्‍य पर कदम रखने वालों को,
कठिन पथ पे चलना ही पडेगा।
विघ्‍न बाधाओं पर चल चल कर,
मार्ग प्रशस्‍त करना ही पडेगा।

राम , कृष्‍ण , बुद्ध और गांधी को,
बता जीवन में क्‍या न मिला ?
आत्मिक सुख, शांति नहीं बस,
जीवन को अमरत्‍व भी मिला !!