कल की नीरज नाम के उक्त व्यक्ति की टिप्पणी से बनी मेरी परेशानी को दूर करने में और हौसला बढाने में आप सब पाठकों का जो सहयोग मिला , उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आइए , आज ज्योतिष की चर्चा न कर एक खास मुद्दे पर चर्चा करें। इतनी बडी जनसंख्या का बोझ उठाती , भोजन , वस्त्र , आवास जैसी मूल आवश्यकताओं के साथ ही साथ अन्य हर प्रकार की जरूरत को पूरा करती धरती माता के अहसान को याद करें। आजतक धरती माता हमारी सारी जरूरत इसलिए पूरी कर पा रही है , क्योंकि वह समर्थ है। पर सोंचकर देखें , उस दिन के बारे में , जब यह असमर्थ हो जाए , जिस दिशा में जाने की सिर्फ शुरूआत ही नहीं हुई , बहुत दूर तक का सफर तय किया जा चुका है। अपनी आंचल और गर्भ में हमारे लिए हर सुख सुविधा को समेटे हरी भरी धरती माता खूबसूरत रूप ही आज खोता जा रहा है।
बीसवीं सदी के अंधाधुंध जनसंख्या वृद्धि की आवश्यकताओं को पूरी करने के क्रम में हो या विकास की अंधी दौड के लालच में , कल कारखानों की संख्या के बढने से पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पडना स्वाभाविक है। पृथ्वी के बढते हुए तापमान से हिम पिघलते जा रहे हें , जलस्तर नीचे आता जा रहा है , समुद्र तल बढता जा रहा है। साधनों के अंधाधुंध दोहन से धरती माता की सुंदरता तो समाप्त हुई ही है , उसके सामर्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड रहा है और माता ही जब सामर्थ्यहीन हो जाए तो उसे मजबूरीवश ही सही , उसे बच्चों को रोता बिलखता छोडना ही होगा। हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि वह दिन कितना भयावह होगा।
आजतक हमने अपनी पृथ्वी मां को कुछ दिया नहीं है , देना भी नहीं था , सिर्फ इसे नष्ट भ्रष्ट होने से बचाए रखना था , वो भी नहीं कर पाए हमलोग। कल से ही रचना जी और अरविंद मिश्रा जी ने कई ब्लोगों के माध्यम से ‘धरती प्रहर’ में अपना वोट धरती के पक्ष में देने की अपील की है। वैसे अभी तक इस दिशा में किया जानेवाला प्रयास काफी कम है और हमें मालूम है कि इससे पूरी सदी में बिगाडे गए पर्यावरण को बनाने में सफलता नहीं मिलेगी। फिर भी आइए , थोडा ही सही , मातृऋण को चुकता करने की दिशा में कम से कम प्रयास तो किया जाए। आज धरती माता के पक्ष में मतदान करने के लिए साढे आठ बजे से साढे नौ बजे तक अपने घर के बिजली के मेन स्विच को ही आफ कर दें और एक घंटे बिना बिजली के बिताकर धरती माता के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करें।
8 comments:
आजतक हमने अपनी पृथ्वी मां को कुछ दिया नहीं है और न ही हम कुछ देने के काबिल है पर जो हमें मिला कम से कम वो तो हम अपने आने वाले पीढी के लिए बचा के रख पाए .
रचना जी द्वारा चलाये गए अभियान में मैं पूर्ण सहयोग देते हुए आज शाम ७-३० से १० बजे तक विधुत का प्रयोग नहीं करूँगा .
बिना बिजली के वैसे हमलोग घंटों रहने के आदि हो चले हैं. कोई ऐसा रोज नहीं छूटता जब पॉवर कट न होता हो. फिरभी पूरे विश्व में एक साथ किया जाने वाले इस सांकेतिक अभियान में हम शामिल होंगे. आभार.
हम सब तैयार हैं .
शुक्रिया संगीता जी ,आपने इसे प्रमुखता दी !
कोशिश करेंगे ...
अजी आप बन्द करे या न करे कट ही लगा रहेगा, वेसे एक घंटा बिजली बन्द करने से कुछ नही होगा? अगर धरती मां से प्यार है तो नदियो को गंदा करने से बचो, उन मै पुजा के नाम से लाशो को, जानवरो को, मूर्तियो को, फ़ुलो को, शहर की गन्दगी को, फ़ेकट्रियो के गन्दे पानी को, गंदे नाले के पानी को मत डालो, हमे अपने वाहन ऎसी जगह साफ़ करने चाहिये जहा से पानी साफ़ हो कर नदियो मै जाये, एक घंटा बिजली बन्द कर के कितना नुकसान होगा.... शायद यह भारत मै किसी को भी पता नही, फ़्रिज मै, डिफ़िर्ज मै रखा समान, कोल्ड स्टोर मै रखा कितना समान खराव होगा, अगर धरती मां को बचाना है तो हमे ओर बहुत से कामो से हाथ वापिस खीचना पढेगा, यह परमाणू शक्ति जिसे हमारे मनमोहन जी फ़क्र से अमेरिका से ले कर आये है, सब से बडी यह दुशमन है, ओर युरोप मै , अमेरिका मै कोई भी नया सयंत्र नही लग रहा, पुराना हमे दे दिया... टिपण्णी बहुत लम्बी हो जाये गी इस लिये बस इतना ही कहूगा, कि आप ने बहुत ही सुंदर ढंग से यह बात कही है.
धन्यवाद
राज भाटिया जी की टिप्पणी के जवाब में अरविंद जी के ये शब्द मेरे ईमेल तक पहुंचे हैं ....
बहुत मार्के की बात कही है भाटिया जी ने ! और जिन मुद्दों की ओर उन्होंने ध्यान दिलाया है उसी की ओर सारी दुनिया का ध्यान आकर्षित करने का वोट टू अर्थ का प्रतीकात्मक अभियान चलाया गया ! यहाँ घंटों बिजली गायब रहती एक घने में यहाँ कुछ बिगड़ने वाला है -चिंता तो वहा -पश्चिमी देशों में होनी चाहिए जहां एक घंटे तक बिजली गुल होने से कुहराम मच गया होगा ! पर फिर भी वे इस महा अभियान में शामिल हुए ! यह हमारी प्लेनेट गृह पर आसन्न आपदा के लिए एकजुटता का भी परिचायक रहा !
वाहवा अच्छी पोस्ट आपको बधाई
Post a Comment