प्राचीन काल से ही अपने धन-संपत्ति , गुण-ज्ञान और बुद्धि-विवेक के बेहतर उपयोग के कारण कुछ चुने हुए लोगों के पास ही संसाधनों की उपस्थिति को स्वीकार करना हमारी विवशता रही है। लेकिन सामाजिक तौर पर बेहतर व्यवस्था उसे कही जा सकती है , जो कई प्रकार के बहानों से इन साधन संपन्न लोगों के पास से साधनों को साधनहीनों के पास पहुंचा दे। इससे जहां एक ओर निर्बलों को सहारा मिलता है , तो दूसरी ओर मानसिक श्रम करनेवाले या कला के लिए समर्पित लोगों को भी रोजी रोटी की समस्या से निजात मिलती है , जो भविष्य में उनके विकास के लिए आवश्यक है।
समाज में विभिन्न प्रकार के रीति रिवाज या कर्मकांड इसी प्रकार का प्रयास माना जा सकता है। विभिन्न प्रकार के त्यौहारों को मनाने के क्रम में हमें समाज के हर स्तर और हर प्रकार के काम करनेवाले लोगों के सहयोग की जरूरत पड जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी उनका ऐसा महत्व है कि उनके बिना हमारा कोई यज्ञ संपन्न हो ही नहीं सकता। प्राचीन काल में बडे बडे गृहस्थों के घरों में जमा अनाज का समाज के हर वर्ग के लोगों का हिस्सा होता था , जो बिना किसी हिसाब किताब के उनके द्वारा किए गए सलाना मेहनत के एवज में उन्हें दिए जाने निश्चित थे।
दीपावली तो लक्ष्मी जी जैसी समृद्ध देवी के पूजन का त्यौहार है। भला उनकी पूजा में कैसी कंजूसी ? हमारे समाज में दीपावली के दिन नाना प्रकार के पकवान बनाने , फलों मिठाइयों के भोग लगाने , खाने पीने और खुशियां मनाने की परंपरा रही है। समृद्धों के लिए यह जितनी ही खुशी लानेवाला त्यौहार है , असमर्थों के लिए उतना ही कष्टकर। दीए तो किसी प्रकार जला ही लें , अपने सामर्थ्यानुसार सामग्री जुटाकर पूजा पाठ कर वह प्रसाद भले ही ग्रहण कर लें , पर नाना भोग जुटा पाना उनके लिए संभव नहीं। दूसरी ओर समर्थों के घर इतना पकवान बचा है कि बासी होने के बाद उसे बंटवाना पडेगा।
बासी होने के बाद क्यूं , दीपावली के त्यौहार के दिन ही इस अंतर को पाटने के लिए हम आप शायद कुछ व्यवस्था नहीं कर सकते हैं , पर हमारे दार्शनिक चिंतक पूर्वजों ने व्यवस्था कर ली थी। हमारे क्षेत्र में यह मिथक है कि दीपावली की रात्रि 12 बजे के बाद दरिद्दर घूमा करता है और जिसके यहां पकवान बचे हों , उसके यहां वास कर जाता है। इस डर से लोग जल्दी जल्दी खुद रात्रि का भोजन निपटाकर बचा सारा खाना और मिष्टान्न गरीबों के महल्ले में भेज देते हैं। भले ही यह मिथक एक अंधविश्वास है , पर इसके सकारात्मक प्रभाव को देखकर इसे गलत तो नहीं माना जा सकता। हमारे अधकचरे ज्ञान से , जो सामाजिक व्यवस्था और पर्यावरण का नुकसान कर रहा है , ऐसा अंधविश्वास लाखगुणा अच्छा है। सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !!
25 comments:
ab kahan jaataa hai khana gareeb ke ghar, ab to dariddar ko hee bhagaane kee taiyaari me juti rahti hai sarkaaren..
संगीता जी ऐसी बात पहली बार सुनी है। मगर आपका तर्क भी सही लगा। आपको दीपावली की शुभकामनायें
आपको तथा आपके परिवार को दीवाली की शुभकामनाएं।
ये तो हमें पता ही न था..दीवाली के पकवान तो कई दिनों तक खाते हैं. अगले दिन मेहमानों का क्या खिलायेंगे?
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल ’समीर’
दिवाली की हार्दिक ढेरो शुभकामनाओ के साथ, आपका भविष्य उज्जवल और प्रकाशमान हो .
रौशनियों के इस मायाजाल में
अनजान ड़रों के
खौ़फ़नाक इस जंजाल में
यह कौन अंधेरा छान रहा है
नीरवता के इस महाकाल में
कौन सुरों को तान रहा है
.....
........
आओ अंधेरा छाने
आओ सुरों को तानें
आओ जुगनू बीनें
आओ कुछ तो जीलें
दो कश आंच के ले लें....
०००००
रवि कुमार
बहुत सुंदर बात कही, इस से गरीबो का भी भला हो जाता है, लेकिन हम तो ऎसा नही कर सकते, यहां हम तो मिठाई को कई दिन बाद तक खाते है, दोस्तो मै बांट भी देते है. लेकिन यह चाहे अंधविश्वाश ही क्यो ना हो अच्छा है.
धन्यवाद
दीपावली के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिवार को शुभकामनाएं
दीपो के इस त्यौहार में आप भी दीपक की तरह रोशनी फैलाए इस संसार में
दीपावली की शुभकामनाये
पंकज मिश्र
सौ. संगीता जी
अरे आज तो आपने सब को डरा दीया :)
बहुत पते की बात बतायी जी
- स स्नेह दीपावली की शुभकामनाएं
आपके परिवार के सभी के लिए
- लावण्या
इस मिथक के दरिद्दर के भय को एक हप्ते का समय देना चाहिये । वैसे भी आम भारतीय परिवारो मे यह परम्परा है कि दिवाली के अगले दिन से दीन हीन लोगों मे प्रसाद व मिष्टान्न का वितरण किया जाता है । यह सिलसिला एक सप्ताह तक चलता है । मित्र परिवार व जान पहचान के लोग भी आते-जाते हैं । यदि एक दो दिन मे पकवान समाप्त हो जाये तो नये भी बनाये जाते है । बहरहाल इस अन्ध्विश्वास का पहले कभी अस्तित्व रहा होगा लेकिन अब यह व्याव्हारिकता की बलि चढ़ गया है ।
वाह ऐसी ही हमारी बहुतसी रूढियाँ हैं जो समाज के लिये बहुत अच्छी हैं । जैसे तुलसी का पौदा घरमें लगाकर रोज जल चढाना..इस जानकारी के लिये आपका आभार ।
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ ।
upyogi jaankari ke liye aabhaar..........sangeetaji, shubh deepawali par aapko aur aapke pariwaar ko meri mangalkaamnayen.
इस दीपावली में प्यार के ऐसे दीए जलाए
जिसमें सारे बैर-पूर्वाग्रह मिट जाए
हिन्दी ब्लाग जगत इतना ऊपर जाए
सारी दुनिया उसके लिए छोटी पड़ जाए
चलो आज प्यार से जीने की कसम खाए
और सारे गिले-शिकवे भूल जाए
सभी को दीप पर्व की मीठी-मीठी बधाई
दीपोत्सव का यह पावन पर्व आपके जीवन को धन-धान्य-सुख-समृद्धि से परिपूर्ण करे!!!
बहुत ख़ूब कहाजी.........
वाह !
आपको और आपके परिवार को दीपोत्सव की
हार्दिक बधाइयां
बहुत अच्छा लगा आप का लेख,और जानकरी मिली हमारे दार्शनिक चिंतक,द्वारा की हुई,व्यवस्था के बारे में,मेरे विचार से उन लोगों ने प्रत्येक जीवन के पहुलओ के बारे में सोचा था,और यह तो जानकर बहुत अच्छा लगा,कि उन लोगों का, समाज के गरीब लोगों के बारे में,सोचना अगर उस के कारण जो मिथक बन गया,वोह गरीब और असाहय लोगों के हित में ही तो है ।
आपका और आपके परिवार का जीवन,सदा दिवाली के दिओं के भान्ति जगमगाता रहे ।
आपको और आपके परिवार, मित्रों को दीवाली की ढेर सारी शुभकामनायें.
दीपावली पर्व की कोटि कोटि बधाईयाँ और सुभ कामनाएं ।
दीपावली मन्गलमय हो। आपकी सलाह पर अभी भकोसते हैं बची मिठाई!
वाह! यदि ऐसी व्यवस्था की गई थी तो ज़रूर ये कोई समझदार व्यक्ति रहा होगा जो अभावों के बाद बडा आदमी , जो नियम भी बना सके के पद तक पहुंचा होगा. वर्ना गरीबों की कौन सोचता है.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.
संगीता जी आपकी दीपावली मन्गलमय हो।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
अगर यह बात सही होती तो दुनिया में सारे लोग दरिद्र ही होते क्योंकि ज्यादातर रात को बारा बजे कोई नहीं खाना बांटता .
संगीता जी ! काफी रोचक और तर्कपूर्ण हैं आपके लेख..बहुत अच्छा लगा पढना ..वो असल में मुझे भी हर चीज़ तो तर्क की दृष्टि से देखना का कीड़ा है जरा :)....मेरे ब्लॉग पर आकर आशीर्वचन देने का बहुत धन्यवाद आपका.
Post a Comment