एक गांव में दो गरीब पति पत्नी रहा करते थे , किसी तरह दो जून का रूखा सूखा खाना जुटा पाते। पर्व त्यौहारों में भी पकवान बना पाना मुश्किल होता। अगल बगल के घरों से कभी कुछ मिल जाता तो खाकर संतोष कर लेते थे। पर एक दिन किसी के घर से मिले पुए को खाकर उनका लालच काफी बढ गया, इसलिए उन्होने घर पर ही पुए बनाने की सोंची। सामग्री की व्यवस्था में कई दिनों तक दोनो ने पूरी ताकत झोंकी , तब जाकर पुए के लिए चावल , दूध और घी जुटा पाए। पत्नी पुए बनाने की तैयारी में जुट गयी।
तभी पति को कोई काम याद आ गया और वह उस सिलसिले में घर से निकल पडा। पर थोडी दूर जाने के बाद ही उसे अपनी गल्ती का अहसास हुआ , अभी घर से निकलने की क्या जरूरत थी ? घर पर होता तो चखने के बहाने ही एक दो पुए अधिक मिल जाते। यह सोंचते ही वह काम छोडकर वापस घर लौटा, घर पहुंचा तो दूर से ही पत्नी पुए बनाती मिली। उसके मन में पत्नी के लालच की परीक्षा लेने की बात आ गयी , इसलिए वह दूर से ही छुपकर अपनी पत्नी की गतिविधियों पर नजर डालने लगा।
उतनी सामग्री से पत्नी ने बडे बडे पांच पुए बनाए , बनाते वक्त एक भी पुए नहीं खाया , देखकर उसे ताज्जुब हुआ। फिर धीरे से वहां से निकलकर वह पत्नी के सामने आया। पत्नी ने खाना निकाला , सामने चार ही पुए थे , दो उसे दिया और दो खुद खाने बैठ गयी। उसे शंका होनी ही थी , कमरे में चारों ओर देखते हुए उसने कुछ अनुमान लगाया।
फिर उठकर छुपाए हुए पांचवे पुए को निकालकर पूछा 'यह क्या है ?'
पत्नी ने कहा 'वह आखिरी पुआ है , इसमें कंकड वगैरह होते हैं और इसलिए घर के मर्द इसे नहीं खाते'
पति ने कहा 'ठीक है तुम ही इसे खाओ , पर अपनी थाली में से एक पुआ मुझे दे दो'
'यह कैसे हो सकता है , उस कंकड वाले पुए के बदले तुम्हे अच्छा पुआ दे दूं'
कोई मानने को तैयार नहीं , बढते बढते बात बहुत बढ गयी , कौन तीन खाए और कौन दो । अंत में पति ने फैसला किया कि दोनो में से जो पहले बोलगा , पहले खाएगा , पहले उठेगा या पहले सोने जाएगा , उसकी हार होगी और उसे दो पुए खाने को मिलेंगे , जबकि जीतनेवाले को तीन। इस फैसले पर दोनो राजी हो गए। इसके बाद मिनट बीतते गए , फिर घंटे और फिर पूरी रात बीत गयी , दोनो में से हारने को कोई तैयार नहीं। सुबह काफी देर तक उनका दरवाजा नहीं खुला , तो पडोसियों को संदेह हुआ। उनलोगों ने दरवाजे को जोर जोर से पीटा , पर दरवाजा नहीं खुला । किसी अनहोनी की आशंका से पडोसी भयभीत हुए , छप्पर फाडकर घर के अंदर घुसे। देखा कि दोनो पति पत्नी दीवार के सहारे बैठे मु्द्रा में थाली में रखे पुए पर टकटकी लगाए हुए हैं।
सबने समझ लिया कि ये पुआ जहरीला था , जिसे खाने से दोनो पति पत्नी की मौत हो गयी है। पूरे गांव में कोहराम मच गया , सब इनकी अंतिम विदाई की तैयारी करने लगे। औरत को सती मानते हुए सारे गांववाले दर्शन को पहुंचने लगे। एक ही साथ दोनो की चिता बनायी गयी , दोनो को उसपर रखकर श्मशान पहुंचा दिया गया। पांच रिश्तेदार आगे बढे , अब आग लगाने की बारी भी आ गयी थी। पति ने सोंचा कि एक पुए के लालच में मौत को गले लगाना बेवकूफी ही होगी। वह बोल उठा 'चलो , अब उठो भी , तुम तीन खाओ , मैं ही दो खाउंगा' उन्हें उठते देखकर सबने सोंचा कि इनके दाह संस्कार में देर हो गयी है , इसलिए ये भूत बन गए। यह सुनते ही जिसके हाथ में आग थी और उसके चार साथी सिर पर पैर रखकर भागे। उन्होने सोंचा कि भूत उन पांचों को खाने के बारे में ही बात कर रहे थे , जो उनके क्रिया कर्म में आगे आगे हैं। गांववाले भी पीछे पीछे भागे।
उनके पीछे पीछे पति पत्नी गांव में जाकर सब बातें समझाना चाहते थे , पर गांववाले दूर से ही भूत समझकर उन्हें ढेला पत्थर मारकर भगा देते। उनके भूत बनने की कहानी पूरे राज्य में फैल गयी। धीरे धीरे राजा के कानों तक भी पहुंची। राजा को भूत प्रेत की कहानियों पर विश्वास नहीं था, इसलिए उसे अपनी आंखों से सत्य देखने की इच्छा हुई। उसने अपना घोडा निकाला और श्मशान की ओर दौडा दी। श्मशान से कुछ पहले ही उन्होने एक खूंटी गाडकर अपने घोडे को बांध दिया और पैदल ही आगे बढे। अभी श्मशान पहुंचे भी नहीं थे कि सचमुच पति पत्नी को अपनी ओर आते पाया। राजा को आते देख वे उनसे गांव में रहने देने की प्रार्थना के लिए आगे बढे जा रहे थे।
पर उन्हें देखकर राजा उल्टा भागा। वो अपने कदम जितने तेज करता , दोनो उतनी ही तेजी से उसकी ओर आते । उनकी गति देखकर राजा की सारी शक्ति जबाब दे रही थी। घबडाकर उन्होने घोडे को खोला भी नहीं और उसपर बैठकर घोडे को दौडा दिया। घोडा भागा जा रहा था और साथ ही साथ उखडा हुआ खूंटा राजा के पैरों से टकरा टकराकर उसे चोटिल करता जा रहा था , जिसे वे भूत की चोट समझ रहे थे। वे घोडे को जितना ही तेज दौडाते , खूंटा उतनी ही तेजी से उनके पैरों पर वार करता। अब ऐसी हालत में राजा को भला कैसे विश्वास न हो कि भूत नहीं होते।
13 comments:
आपकी अन्तिंम की लाईनों में सच्चाई जरुर है , और यही कारण है कि बाहुत बार हम भूत को मानने लगते है। कई बार हम जिससे डर रहे होते है वही हमारे साथ होता है । इसलिए हमें लगता है कि शायद भूत है। कहनी बहुत अच्छी लगी ।
एक और गलत पह्मी का शिकार हुआ ! ज्ञानवर्धक कहानी !!
सुन्दर कहानी. हमारा अवचेतन ही तो भूत है.
मजेदार कहानी,आखिर भूत के भ्रम ने राजा तक को ना छोडा़ ।
बहुत बहुत बहुत बधाई इस सुंदर प्रस्तुती पर
sundar kahaani hai !!!
bahut badhiya kahani rahi.
वाह संगीता जी बहुत अच्छी कहानी है शुभकामनायें
भूत की कहानी अच्छी है।
मेरा मानना है कि भय का ही भूत होता है!
वास्तव में भूत का जन्म वहीं से होता है जब हम अपने मन में यह स्वीकार कर लेते है की फलाँ जगह पर भूत है..बढ़िया कहानी..धन्यवाद
बहुत मजेदार, बहुत मजेदार, वेसे भूत का जन्म यही से होता है, यानि हमारे मन से
बढ़िया कहानी रही जिसमे डर के भूत को जीतने का सबक भी मिला...
जय हिंद...
बहुत दिनो बाद यह लोककथा फिर मज़ा दे गई और एक को खाऊँ दो को खाऊँ वाला प्रसंग तो ..बस..हँस हँस कर लोटपोट हो गया । इसे यहाँ छत्तीसगढ मे लोकनाट्य के पात्र मंच पर भी अभिनीत करते है ।
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