ज्योतिष जैसे विषय से मेरे संबंधित होने के कारण मेरे समक्ष परेशान लोगों की भीड लगनी ही है। तब मुझे महसूस होता है कि इस दुनिया में समस्याओं की कमी नहीं , सारे लोग किसी न किसी प्रकार के दुख से परेशान हैं। इसमें वैसे अभिभावकों की संख्या भी कम नहीं , जो अपने पुत्र या पुत्रियों के विवाह के लिए कई कई वर्षों से परेशान हैं। प्रतिवर्ष मेरे पास आनेवाले परेशान अभिभावकों को मदद करने के क्रम में एक दो विवाह मेरे द्वारा भी हो जाया करते हैं। पर इधर कुछ वर्षों से मैं महसूस कर रही हूं कि हमारे पास आनेवाले परेशान अभिभावकों में बेटियों के माता पिता कम हैं और बेटों के अधिक। इससे स्पष्ट है कि वर की तुलना में विवाह के लिए वधूओं की संख्या कम है।
कन्या भ्रूण हत्या के फलस्वरूप भविष्य में इस प्रकार की स्थिति के बनने की आशंका तो सबों को है , पर इसके इतनी जल्दी उपस्थित हो जाने से मुझे बडी चिंता हो रही है। आज विवाह के लिए जो भी वर और कन्या तैयार दिख रहे हैं , उनका जन्म 1975 से 1985 के मध्य का माना जा सकता है। उस समय शायद भ्रूण हत्या को तो कानूनी मान्यता मिल गयी थी , पर इतनी जल्दी गर्भ में लिंग परीक्षण होने की विधि विकसित नहीं हुई थी कि परीक्षण करने के बाद उसकी हत्या की जा सके। उस वक्त भ्रूण हत्या के द्वारा अनचाही संतान को ही दुनिया में आने से रोका जाता था। पर इससे भी लिंग असंतुलन हो ही गया , वो इस कारण कि जिस दंपत्ति के दो या तीन बेटे हो गए , उन्होने तीसरे या चौथे संतान को ही आने से रोक दिया , जबकि जिस दंपत्ति की दो या तीन बेटियां थी , उन्होने लडके को जन्म देने के लिए चौथे या पांचवे संतान का भी इंतजार किया। इससे कन्याओं की संख्या मामूली घटी और इसका ही प्रभाव हम आज पा रहे हैं ।
तीसरी संतान न होने देना कोई गुनाह नहीं था , पर जब इसका इतनी छोटी सी बात का इतना भयावह प्रभाव सामने नजर आ रहा है , तो मात्र 15 वर्षों के बाद समाज में लिंग परीक्षण कर कन्या भ्रूण की हत्या की जो गलत परंपरा शुरू हुई है , उसका असर भी मात्र 15 वर्षों में क्या होगा , ये चिंता करने वाली बात है। पर अभी तक समाज को कुछ भी अनुभव नहीं हो रहा , अभी भी निरंतर कन्याओं की भ्रूण हत्या हो रही है और बालिकाओं की संख्या में कमी होती जा रही है। सारे अस्पताल तो सेवा के अपने धर्म को भूलकर पैसे कमाने की एक बडी कंपनी बन चुके हैं। स्वयंसेवी संस्थाएं बेकार रह गयी है। सरकारी कार्यक्रम फाइलों की शोभा बढा रहे हैं। यदि कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में कडे कानून भी बनें तो भी कोई उपाय नहीं दिखता है। आवश्यकता है लोगों में स्वयं की जागरूकता के आने की। तभी आनेवाले दिनों में कन्या की संख्या को बढाया जा सकता है , अन्यथा बहुत ही भयावह स्थिति के उपस्थित होने की आशंका दिख रही है, और जब ये समय आएगा , हमारे सम्मुख कोई उपाय नहीं होगा।
4 comments:
बेहद शानदार... बेटियों के समर्थन में सार्थक पोस्ट.. कम से कम अब तो लोगों को समझना होगा.. कि बेटे और बेटियों में कोई फर्क नहीं होता
सच कहा, स्थितियाँ भयावह हों, उसके पहले चेतना होगा.
सच है। आपके विचारों से सहमत हूं।
सहमत हूँ,उड़न तशतरी जी से शत,प्रतिशत ।
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