Sunday, 20 December 2009

एक ही दिन विज्ञान और ज्‍योतिष में दिलचस्‍पी रखने वाले दो लोग कैसे जन्‍म ले सकते हैं ??

भिन्‍न भिन्‍न वर्षों में भी किसी खास तिथि को जन्‍मलेने वालों की कुंडली में सूर्य की स्थिति बिल्‍कुल उसी स्‍थान पर होती है। इस एकमात्र सूर्य की स्थिति को ध्‍यान में रखते हुए ग्रंथों में जातक के फलाफल के बारे में बहुत कुछ लिखा मिलता है , जिसकी चर्चा ज्‍योतिषी बहुत दावे से किया करते हैं। इस आधार पर , चाहे वो ज्‍योतिषी हो या न्‍यूमरोलोजिस्‍ट और वे जिस भी विधा से भविष्‍यवाणी किया करते हों , यह पोस्‍ट उनकी विधा को विवादास्‍पद अवश्‍य बना रही है , जिसमें अलग अलग वर्षों में ही सही ,अरविंद मिश्रा जी के और मेरे एक ही दिन जन्‍म लेने की सूचना सारे ब्‍लॉग जगत को दी गयी है। पाठकों की जिज्ञासा स्‍वाभाविक है कि एक ही दिन विज्ञान और ज्‍योतिष जैसे विरोधाभासी विषय में जुनून से हद तक की दिलचस्‍पी रखने वाले यानि भिन्‍न भिन्‍न स्‍वभाव के दो लोग कैसे जन्‍म ले सकते हैं ?

मनुष्‍य मूलत: बहुत ही स्‍वार्थी होता है और किसी ऐसी व्‍यवस्‍था को पसंद नहीं करता , जिससे उसे अधिक समझौता करना पडे। इस कारण वह अपने जैसे स्‍वभाव के लोगों से मित्रता , संबंध और रिश्‍ते रखना चाहता है। कभी कभी वह इतना समर्थ होता है या उसके संयोग इतना काम करते हैं कि वह ऐसा करने में सफल हो जाता है , पर यदि शत प्रतिशत मामलों में यही प्रवृत्ति रहे , तो कुछ ही दिनों में विचारों के आधार पर ही तरह तरह के गुट बनेंगे , पारस्‍परिक मित्रता से लेकर , विवाह शादी तक अपने ही गुटों में होंगी और उसमें आनेवाली अगली पीढी भी उन्‍हीं विचारों को पसंद करेगी। इस हालत में विचारों से विरोध रखनेवाले बिल्‍कुल गैर हो जाएंगे और   अधिक शक्तिमान की मनमानी चलेगी। पर प्रकृति हमेशा एक औसत व्‍यवस्‍था में सबों को ले जाने की प्रवृत्ति रखती है , ताकि हर प्रकार के लोगों का एक दूसरों के विचारों से जोर शोर से टकराव हो और परिणामत: एक समन्‍वयवादी विचारधारा का जन्‍म हो, जिसके बल पर आगे का युग और प्रगतिशील बन सके। एक ही दिन में दो भिन्‍न विचारों वाले व्‍यक्ति का जन्‍म प्रकृति की ऐसी ही व्‍यवस्‍था में से एक हो सकती है।

यदि एक ज्‍योति‍षी की हैसियत से इस प्रश्‍न का जबाब दिया जाए तो यह बात कही जा सकती है कि विभिन्‍न कुंडलियों में सूर्य अलग अलग भाव का स्‍वामी होता है , इस कारण अलग अलग लग्‍न के अनुसार जातक पर सूर्य के प्रभाव का संदर्भ बदल जाता है , इस कारण आवश्‍यक नहीं कि दोनो का सूर्य एक हो तो दोनो के अध्‍ययन का विषय भी एक ही हो। सूर्य किसी के अध्‍ययन को प्रभावित कर सकता है , तो किसी के पद प्रतिष्‍ठा के माहौल को और किसी के घर गृहस्‍थी को। इसलिए इसके एक जैसे फल नहीं दिखाई पड सकते हैं। यदि ऐसा भी मान लिया जाए कि एक ही तिथि को जन्‍म लेनेवाले दो व्‍यक्ति एक ही लग्‍न के हों और सूर्य का प्रभाव दोनो के अध्‍ययन के विषय पर ही पडता हो , तो यह आवश्‍यक है कि दोनो में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ऐसी रूचियां रहेंगी। ऐसी स्थिति में एक के विज्ञान के विषयों और एक के ज्‍योतिष पढने की संभावना तभी बन सकती है , जब ज्‍योतिष को भी विज्ञान का ही एक विषय मान लिया जाए।

पर अभी ज्‍योतिष को विज्ञान मानने में बडी बडी बाधाएं हैं । और इस कारण पाठकों के मन में यह भ्रांति है कि ज्‍योतिष को पढनेवाले अंधविश्‍वासी ही हैं , तभी मन में ऐसे प्रश्‍न जन्‍म लेते हैं। भले ही ज्‍योतिष इस स्थिति में नहीं पहुंच सका है कि इसे पूर्ण विज्ञान मान लिया जाए , पर वैज्ञानिक रूचि रखनेवाले जातक भी इसमें हमेशा से रहे हैं। इसमें से अंधविश्‍वासों को ढूंढ ढूंढकर अलग करने और इसके वैज्ञानिक पक्ष को इकट्ठे करने का काम करते जाया जाए , तो ज्‍योतिष को विज्ञान में बदलते देर नहीं लगेगी। पापा जी के 40 वर्षों के नियमित रिसर्च के बाद मैं भी इसी दिशा में प्रयासरत हूं और बहुत जल्‍द समाज के समक्ष ज्‍योतिष को विज्ञान के रूप में मान्‍यता दिलवाना मेरा लक्ष्‍य हैं। अरविंद मिश्रा जी ने नियंता के इस संकेत को स्‍वीकार कर लिया है कि विज्ञान और ज्योतिष का सहिष्णु साहचर्य रहे , आप सभी भी स्‍वीकार करेंगे , ऐसा मुझे विश्‍वास है।




13 comments:

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...

ज्योतिष में से फलित को हटा लें तो शेष विज्ञान ही है। लेकिन फलित एक ऐसी चीज है जिसे सब, जिनमें मैं भी सम्मिलित हूँ, चाहते तो हैं कि वह विज्ञान हो जाए। लेकिन सैंकड़ों वर्षों में लाखों लोगों की गवेषणाओं के बाद भी वह विज्ञान नहीं हो सका है। वस्तुतः उस में अभी शोध की विज्ञान जैसी परंपरा नहीं है जो कि पीढ़ियों तक निरंतर चली हो कोई ऐसी पद्धति विकसित नहीं हो सकी है जो एकदम सही भविष्यवाणी करने में समर्थ हो।

महफूज़ अली said...

ज्योतिष और विज्ञानं एक दूसरे के पूरक हैं.... बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट....

योगेन्द्र मौदगिल said...

aap dono ko badhai evm shubhkamnaen....

वन्दना said...

hamein to nayi nayi jankariyan milti hain aapse.

Arvind Mishra said...

"विज्ञान और ज्योतिष का सहिष्णु साहचर्य रहे'
ऐसा हो जाय ....

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

दर की माफी पर जन्मदिन की बधाई.

Vivek Rastogi said...

हम तो पहले से ही मानते हैं कि ज्योतिष एक विज्ञान है बहुत अच्छी पोस्ट...

राज भाटिय़ा said...

ज्योतिष एक विज्ञान ही है यह मै मानता हुं, लेकिन जब झोला छाप आ कर हाथ देखते है तो यह विशवास डग मगा जाता है, हमारी धार्मिक पुस्तको मै जितनी भी लडईयो का उल्लेख है उन मै जो अग्नि बाण, ओर अलग अलग बाण चलते है वो असल मै राकेट ही तो थे, तो ज्योतिष एक विज्ञान यही से सिद्ध होता है, ओर फ़िर गर्हो की सही सही सिथित यह सब क्या है जो हजारो साल पहले हमारे गरंथो मै मोजूद है, संगीता जी आप के इस ज्योतिष को विज्ञान कहने मै कोई हिचकिचाहट नही, अप ने लेख बहुत सुंदर लिखा.
धन्यवाद

मनोज कुमार said...

आलेख बहुत अच्छा लगा।

Mrs.Bhawna K Pandey said...

BILKOOL MAINE JUDVA BAHNO ME EK KO MBBS AUR DUSARI KO HOMEOPATHIC DOCTOR BANTE DEKHA HAI. AUR SHAT PRATISHAT KYONKI VIGYAN ME BHI SAMBHVNAON SE HI HAL UPAJATE HAI IS ADHAR PAR JYOTISH EK VIGYAN HI HAI BASHARTE GYANI YOGYA HO!

अन्तर सोहिल said...

शुभकामनायें
आप अपने लक्ष्य को जल्द से जल्द पायें

प्रणाम

डॉ टी एस दराल said...

संगीता जी , ज्योतिष विज्ञान के रूप में सामने आये , ये तो बड़ी अच्छी बात है। इंतज़ार रहेगा।
लेकिन अभी तो झोला छाप डॉक्टरों की तरह ढोंगी ज्योतिषी भी भरे पड़े हैं। दिल्ली जैसे शहर में भी ।
उनसे निजात पाना ज़रूरी है।

Pandit Kishore Ji said...

sangeeta ji ko namaskar
aapke is lekh ke vishay me main yah kehna chahunga ki yah koi zaruri nahi hain ki ek hi din paida huye do vyakti kisi ek hi vishay par adhikaar rakhe jyotish me bhi samay kaal va gati se sambandhit bahut kuchh kaha gaya hain janm ke baad parivesh va parvarish dono tatva bhi bahut visheshtaye rakhte hain jisse jaatak ki ruchi prabhavit hoti hain va wah usi disha me safal hona chahta hain or hota bhi hain