आज आप किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार में पहुंच जाएं , उसके युवा पुत्र या पुत्री मल्टीनेशनल कंपनी में लाखों के पैकेज वाली नौकरी कर रहे हैं , कितने की तो विदेशों से ऐसी आवाजाही है मानों भारत घर है और विदेश आंगन। उच्च वर्गीय लोगों के लिए ही विदेशों की यात्रा होती है ,यह संशय मध्यम वर्गीय परिवारों में मिट चुका है और अनेक माता-पिता भी अपने बच्चों के कारण विदेश यात्रा का आनंद ले चुके हैं। इसी प्रकार प्रत्येक परिवार का किशोर वर्ग , चाहे वो बेटा हो या बिटिया , बडे या छोटे किसी न किसी संस्था से इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढाई कर रहे है और आनेवाले समय में उसके लिए भी नौकरी की पूरी संभावना दिख रही है। जो विद्यार्थी जीवन में बिल्कुल सामान्य स्तर के थे , उनके कैरियर की मजबूती भी देखकर आश्चर्य होता है। महंगे पढाई करवा पाना किसी अभिभावक के लिए कठिन हो , तो बैंक भी कर्ज देने को तैयार होती है और किशोरों की पढाई में कोई बाधा नहीं आने देती। प्राइवेटाइजेशन के इस युग में तकनीकी ज्ञान रखनेवालों लाखों विद्यार्थियों के रोजगार की व्यवस्था से आज के युवा वर्ग की स्थिति स्वर्णिम दिख रही है। वे पूरी मेहनत करना पसंद करते हैं , पर अपने जीवन में थोडा भी समझौता करना नहीं चाहते , उनकी पसंद सिर्फ ब्रांडेड सामान हैं, रईसी का जीवन है। इसका भविष्य पर क्या प्रभाव पडेगा , यह तो देखने वाली बात होगी , पर यदि 20 वी सदी के अंत से इसकी तुलना की जाए तो 21 सदी के आरंभ में आया यह परिवर्तन सामान्य नहीं माना जा सकता।
यदि हम पीछे मुडकर देखें , तो1990 तक यत्र तत्र सरकारी नौकरियों में जगह खाली हुआ करती थी , भ्रष्टाचार भी एक सीमा के अंदर था , प्रतिभासंपन्न युवाओं को कहीं न कहीं नौकरी मिल जाया करती थी। अपने स्तर के अनुरूप सरकारी सेवा में सीमित तनख्वाह में रहते हुए भी जहां युवा वर्ग निराश नहीं था, वहीं अभिभावक भी प्रतिभा के अनुरूप अपने संतान की स्थिति को देखकर संतुष्ट रहा करते थे। पर 1990 के बाद सरकारी संस्थाओं में भी छंटनी का दौर शुरू हुआ , जब पुराने कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा रहा हो , तो नए लोगों को रखने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता ? 2000 के दशक में कहीं कोई रिक्त पद नहीं , यदि कहीं से दो चार पदों पर नियुक्ति की कोई संभावना भी दिखी तो पद या पैसे वालों को उसपर कब्जा करने में देर नहीं होती थी। एक से एक मेधावी बच्चे , जिन्होने 1990 से 2000 के मध्य अपनी पढाई समाप्त की , एक ऐसे अंधकार युग में अपने कैरियर चुनने को विवश हुए , जहां विकल्प के नाम पर अपने परंपरागत व्यवसाय या फिर समय काटने के लिए कोई प्राइवेट नौकरी करनी थी। कोई अमीर अभिभावक पैसे खर्च कर अपने बेटों को इंजीनियरिंग या मेडिकल की प्राइवेट डिग्री दिलवा भी देता था , तो नौकरी के बाजार में उसकी कोई इज्जत नहीं थी। वह नाम के लिए ही डॉक्टर या इंजीनियर हो जाता था और पूरे जीवन कोई व्यसाय के सहारे ही चलाने को बाध्य होते थे। बिना तकनीकी ज्ञान के अपने काम और अनुभव के सहारे कोई अपना कैरियर बनाने में सक्षम हुए , तो कोई अपनी रूचि न होने के बावजूद किसी व्यवसाय में लगकर अपनी जीवन नैया को खींचने को समझौता करने को तैयार हुए। संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि उस दशक में सभी युवा भाग्य भरोसे जीने को बाध्य हुए । मात्र दस वर्ष में हुए इस परिवर्तन को देखते हुए ही मैं अक्सर कहा करती हूं कि युवा वर्ग ने अंधकार युग से निकलकर स्वर्णिम युग में प्रवेश किया है !!
9 comments:
छोटा परन्तु सार्थक व सालिड पोस्ट ।
आपके विचारो से सहमत हूँ ... आभार
AAPKI VIVECHNA SE POORNTAH SAHMAT HUN MAIN....BILKUL SAHI KAHA AAPNE...
काशः स्वर्णयुग की बात सही साबित हो।
आप ब्लाग बैकग्राउंड का रंग हलका करें। गहरा होने से पढ़ने में परेशानी होती है।
INFORMATUION tECHNOLOGY KE KHETR ME BHEE YAH YUVAA SHAKTI HEE THEE JISNE DESH KO AGRANI BANAAYAA. BADHIYAA AALEKH !
अच्छा लगता है,युवा वर्ग का स्वरणिम युग में प्रवेश।
आने वाला साल आपको मंगलमय हो!
अति सार्थक आलेख!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
बहुत अच्छी रचना।
आने वाला साल मंगलमय हो।
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