मानव जीवन में अपने और अपने परिवार के मामलों की ही इतनी जिम्मेदारी होती है कि उसी के पालन पोषण में हमारा सारा जीवन कट जाता है। किसी परिवार में तीन पीढी तक की जबाबदेही प्रत्येक मनुष्य का कर्तब्य है और उसे कभी भी अपनी नेकी नहीं माननी चाहिए। कभी अपने सुख के लिए, कभी अपनों के सुख के लिए और कभी समाज में स्थान पाने के लिए हम उस कर्तब्य का पालन करते हैं। इस दुनिया में हम बहुतों को गरीब , असहाय और कमजोर पाते हैं, पर किसी की मदद करने या उसे ऊंचाई पर ले जाने का हमें कभी भी ख्याल नहीं आता है। कभी कभी ख्याल आए भी तो हम वैसा कर पाने में असमर्थ ही होते हैं और सबकुछ उनके भरोसे छोड देते हैं। पर अपने पूरे जीवन में कभी कभार हमारे समक्ष ऐसा मौका जरूर आ जाया करता है , जहां हम खुद और अपने परिवार के अतिरिक्त किसी और के लिए भी कुछ न कुछ व्यवस्था कर पाते हैं। ऐसा नहीं है कि हम उसकी मदद करते वक्त जीजान लगा देते हैं, वास्तव मे हमारे छोटे से त्याग या छोटी सी मदद से उस बेचारे या लाचार का बहुत बडा काम बन जाता है , यहां तक कि वहीं से उसके जीवन में सुधार आता है। यहां हमारा कोई स्वार्थ नहीं होता और मात्र सामाजिक मामलों में रूचि रखने के कारण हम अपना काम कर लेते हैं।
पर अक्सर ऐसा होता है कि सामने वाला हमारी उस मदद के बाद गायब ही हो जाता है या कभी कभी समय के साथ हमारे किए को भूल जाता है। ऐसी स्थिति में हमें बडा बुरा लगता है , आखिर उसकी मजबूती का एक बडा कारण हमारा उसके साथ खडा होना था। पर हम यह नहीं समझ पाते हैं कि यदि हमारे करने से किसी का जीवन सुधरना होता , तो हजारों लाखों लोगों का जीवन हम सुधार पाते , पर इस जीवन में ऐसा नहीं होता है , यहां तक कि हम अपने बच्चों तक का जीवन सुधारने में कभी कभी लाचार होते हैं। दरअसल प्रकृति में जो व्यवस्था है , उसी के अनुरूप हमें काम करना होता है। किसी व्यक्ति का काम करवाना प्रकृति की व्यवस्था है , वह कभी कभी हमें माध्यम बनाकर वह अवसर देना चाहती है , जहां हम किसी की मदद कर सकें। उस कर्तब्य को पूरा करने के बाद अपने पूरे जीवन में कहीं कोई संयोग या अवसर प्राप्त करने के हम लायक बन जाते हैं। पर प्रकृति के इस संकेत को न समझकर किसी की मदद न कर हम अक्सर अपने जीवन के अमूल्य अवसरों को खो देते हैं।
सामाजिक तौर पर इस प्रकार के कार्य नहीं होते तो आज मानव का इस दुनिया में टिक पाना भी मुश्किल होता। पर हम कहीं किसी की छोटी मदद कर देते हैं , तो इस संदेह में ही होते हैं कि हमने ही उसे बनाया । पर ऐसा नहीं है , उसका काम होना था , हम माध्यम बने तो इससे हमारे हिस्से भी वह बहुत सुख आया , जो आज हमें नहीं दिखाई दे रहा , पर उसके आगे हर सांसारिक सफलता छोटी होगी। यदि हम न बनते , कोई और बनता और उसकी तरक्की तो निश्चित थी , पर जो सुख हमारे हिस्से में आया , वह किसी और के हिस्से में जाता। इस दुनिया में यह आवश्यक नहीं कि हमने जिसकी की , वही हमारा भी करेगा , पर हमारी जरूरत पर भी कोई और खडा होकर हमें मुसीबत से निकाल लाएगा। समाज में इस प्रकार का लेन देन चलता रहता है , इसलिए हमें दूसरों की ऐसी मदद करनी ही चाहिए , और इसका परिणाम सार्थक होगा , यह सोंचकर निश्चिंत रहना चाहिए। इसलिए तो कहा गया है नेकी कर दरिया में डाल !
10 comments:
बहुत खूब कहा आपने. इसी तरह अच्छी अच्छी बाते लिखती रहिये.
इसे ही समाज का ॠण कहते हैं। हम समाज के सुरक्षा चक्र से हमेशा सुरक्षित रहते हैं। इसलिए जो लोग कहते हैं कि समाज क्या होता है, वे नहीं जानते कि उन पर प्रतिपल समाज कितना कर्तव्य कर रहा है? नेकी करने से हम सब सुरक्षित रहते हैं अत: यह कर्म दरिया में डालने जैसा नहीं है वरन इसका परिणाम हमें कर्म-फल के रूप में प्राप्त होता है।
एक सार्थक लेख संगीता जी, और ऐसी बात जो हम इंसान माने- न माने मगर देर सबेर फल जरूर मिलता है ! लेकिन मुझे लगता है आपने शीर्षक एकदम १००% फिट नहीं दिया लेख को ! क्योंकि नेकी कर और दरिया में डाल। यानी अच्छा काम करो लेकिन बदले में कुछ मत चाहो ! जबकि आपके लेख का निष्कर्ष यह है कि नेक काम का नेक फल अवश्य मिलता है !
बहुत अच्छा प्रेरणा प्रद लेख,बिलकुअल सत्य बात कही आपने ।
गोदियाल जी .. मैने शीर्षक परिवर्तित कर दिया है !!
डा़ अजित गुपता जी से सहमत हूँ । अच्छा आलेख है धन्यवाद्
बहुत प्रेरित करने वाला आलेख।
प्रेरणादायक और सार्थक लेख!
नेकी करने पर कभी कभी अपयश और अपमान भी मिलता है..मगर यह दौर कुछ देर ही रहता है ..आखिरकार नेकी का फल मिलता ही है ..तब तक के लिए नेकी कर दरिया मेंडाल ..!!
प्रेरणा प्रद लेख,बिलकुल सही कहा है नेकी कर दरिया में डाल।
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