वास्तविक जीवन में हम कई प्रकार की घटनाओं को देखते हैं, हरेक लोगों के जीवन की नैया एक ही रूप में आगे नहीं बढती है , प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सुख और दुख की चरम सीमा को दिखाने के बाद कई मोड आते हैं , जो उनके जीवन को पुन: एक नयी दिशा में मोडने को बाध्य करते हैं। लोगों के जीवन के इन्हीं उतार चढाव से हम प्रभावित होते हैं और इन्हीं घटनाओं से हमारी सूझ बूझ, कार्यक्षमता तथ अनुभव की वृद्धि होती है। पर दुनियाभर में घटित होने वाली इन घटनाओं से हम अपने दृष्टिकोण के अनुसार प्रभावित होते हैं। यदि हमारी सोंच सकारात्मक होगी तो लाख बाधाओं के बावजूद किसी व्यक्ति की सफलता हमें आकर्षित करेगी और वो हमारा आदर्श बनेगा। पर यदि हमारी सोंच ऋणात्मक हो तो लाख सफलताओं के बावजूद किसी के जीवन में आयी निराशा से हम प्रभावित होंगे और किसी काम को करने से पहले ही भयभीत हो जाया करेंगे।
चूंकि साहित्य समाज का दर्पण होता है , वास्तविक जीवन में घटनेवाली घटनाओं को ही हम पुस्तकों में , पत्र और पत्रिकाओं में विभिन्न लेखकों द्वारा लिखी गयी कई प्रकार की कहानियो के रूप में पढते हैं। किसी भी काल और परिस्थिति में सबका जीवन सुख और दुख का मिश्रण होता है और लेखक अपनी कहानियों और रचनाओं में समाज की वास्तविक स्थिति का ही चित्रण करता है , पर वो अपने दृष्टिकोण के अनुसार ही कहानी का सुखात्मक या दुखात्मक अंत किया करता है। यदि किसी के जीवन के सुख भरे जगह पर कहानी का अंत कर दिया जाए , तो कहानी सुखात्मक हो जाती है , और इसके विपरीत किसी के जीवन के दुखभरे जगह पर कहानी का अंत कर दिया जाए , तो कहानी दुखात्मक हो जाती है। वास्तविक जीवन की तरह ही कहानियों का सुखात्मक अंत ही हमें पसंद आता है, चाहे मध्य में कितनी भी निराशाजनक परिस्थितियां क्यूं न हो। अंत दुखात्मक हो , तो कहानी पढने के बाद मन काफी समय के लिए दुखी हो जाता है। पर कहानियों में तो हमारा वश नहीं होता , लेखक के निर्णय को स्वीकारने को हमें बाध्य होना पडता हैऔर हम न चाहते हुए भी परेशान होते हैं।
4 comments:
जी हाँ ...आज ही रश्मि रविजा जी की कहानी का दुखांत दुखी कर गया है ....!!
सार्थक एवं विचारणीय आलेख. आभार!
बहुत-बहुत धन्यवाद
बिल्कुल सही है जी!
साहित्य समाज का दर्पण होता है!
Post a Comment