Sunday, 7 February 2010

नाना मुनि के नाना मत ... हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत के आलेखों को पढकर कमेंट किया जाए या नहीं ??


मैंने हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत से जुडने के सालभर बाद इंटरनेट का अनलिमिटेड डाउनलोड का पैकेज लिया तो इसके आलेखों को अधिक से अधिक पढने और उनमें टिप्‍पणी करने का लोभ संवरण नहीं कर पायी , पर इससे मुझे कितनी फजीहत उठानी पडी , यह तो सबों को मालूम होगा , जिसके कारण मैंने आलेखों को पढना तो नहीं छोडा , पर टिप्‍पणियां करनी बंद कर दी थी। आज गिरिश बिल्‍लौरे जी के द्वारा समीर लाल जी की इंटरव्‍यू सुनने पर मुझे फिर से आलेखों पर टिप्‍पणी करने की इच्‍छा हो गयी है , क्‍या है टिप्‍पणियों पर हमारे ब्‍लॉगर बंधुओं के विचार , आप भी जानिए.....
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अदा जी ने तो कमाल की कविता लिखी है .........

आभासी दुनिया की बस आधार है टिप्पणी
मृतक भावों में संजीवनी संचार है टिप्पणी
छोटों का हठीलापन, तकरार है टिप्पणी
कभी आदेश भईया का कभी फटकार है टिप्पणी
बहन बन रूठ जाए कभी, दुलार है टिप्पणी
कभी सुरसा सरि गटक जाए, तैयार है टिप्पणी


कल जो मैंने लिखा उसके पीछे कोई कारण नहीं था ना ही में किसी छद्म ब्लोगर से परेशान था . मैंने एक प्रयोग किया की विवादास्पद लिखो तो क्या स्थिति होगी . और मुझे उम्मीद से कई गुना मिला . बहुतो ने पढ़ा और टिप्पणी की तो पुछीये मत . आप खुद ही महसूस कर सकते है पढ़ कर .


हम भी हमेशा सोचते हैं कि अच्छे लेखन के लिए प्रोत्साहन देने टिप्पणी करनी चाहिए। लेकिन इस कम्बख्त वक्त का क्या किया जाए जो मिलता ही नहीं है। वो तो अच्छा हो निंद्रा रानी का जिन्होंने अपने आगोश से हमें कल रात बाहर कर दिया जिसके कारण हम टिप्पणी करने में सफल हो गए। ऐसा रोज-रोज तो नहीं हो सकता है। लेकिन हमने सोच लिया है कि रोज कम से कम पांच ब्लागों को पढऩे के बाद टिप्पणी करने का प्रयास करेंगे। हम सिर्फ प्रयास की ही बात कर सकते हैं वादा नहीं कर सकते हैं। 



देखिये मानव मन  ही ऐसा है कि वह अपनी प्रशंसा सुनना चाहता है .ऐसा न होता तो चमचे चाटुकारों का बिलियन डालर का व्यवसाय न होता .जिनके चलते देशों के सरकारे हिल डुल जाती हैं .उनके पद्म चुम्बन से पद्म पुरस्कारों तक में भी धांधली हो जाती है .तो वही मानव मन  यहाँ ब्लागजगत में अपनी पोस्टों पर टिप्पणियाँ भी चाहता है .कौन नहीं चाहता ? मैं नहीं चाहता या समीर भाई नहीं चाहते . मगर हम उतनी उत्फुल्लता से दूसरों के पोस्ट पर टिप्पणियाँ नहीं  करते .

रामपुरिया का हरियाणवी ताऊ जी ने तो ब्‍लॉग हिट कराऊ और टिप्‍पणी खींचू तेल भी बना ली है .....


बडे दिनों की रिसर्च के बाद ताऊ और रामप्यारी इस नतीजे पर पहुंचे कि आजकल बाल लंबे और घने करने के तेल, लंबाई बढाने के तेल, भाग्यवर्धक तेल-ताबीज और ब्लाग जगत मे ब्लाग हिट कराऊ और टिप्पणी खींचू तेल की अच्छी खपत हो रही है. सो दिन रात रिसर्च करके आखिर इन के लिये उन्होने दवाई इजाद कर ही ली. दवाई का फ़ार्मुला गुप्त है. उन्होने बढिया पैकिंग करवा ली.


टिप्‍प्‍णी के बारे में ज्ञानदत्‍त पांडेय जी का आलेख पढें ....



मैने पढ़ा था - Good is the enemy of excellent. अच्छा, उत्कृष्ट का शत्रु है। फर्ज करो; मेरी भाषा बहुत अच्छी नहीं है, सम्प्रेषण अच्छा है (और यह सम्भव है)। सामाजिकता मुझे आती है। मैं पोस्ट लिखता हूं - ठीक ठाक। मुझे कमेण्ट मिलते हैं। मैं फूल जाता हूं। और जोश में लिखता हूं। जोश और अधिक लिखने, और टिप्पणी बटोरने में है। लिहाजा जो सामने आता है, वह होता है लेखन का उत्तरोत्तर गोबरीकरण! एक और गोबरीकरण बिना विषय वस्तु समझे टिप्पणी ठेलन में भी होता है - प्रतिटिप्पणी की आशा में। टिप्पणियों के स्तर पर; आचार्य रामचन्द्र शुक्ल होते; तो न जाने क्या सोचते।


जी के अवधिया जी बता रहे हैं कि वे टिप्‍पणी क्‍यूं करते हैं ....


मैं उन्हीं पोस्टों में टिप्पणी करता हूँ जिन्हें पढ़कर प्रतिक्रयास्वरूप मेरे मन में भी कुछ विचार उठते हैं। जिन पोस्टों को पढ़कर मेरे भीतर यदि कुछ भी प्रतिक्रिया न हो तो मैं उन पोस्टों में जबरन टिप्पणी करना व्यर्थ समझता हूँ। यदि मेरे किसी पोस्ट को पढ़कर किसी पाठक के मन में कुछ विचार न उठे तो मैं उस पाठक से किसी भी प्रकार की टिप्पणी की अपेक्षा नहीं रखता।


प्रवीण शाह जी लिखते हैं कि टिप्‍पणी को लंबे समय तक प्रकाशित करने से रोके रखना उचित नहीं .....


अब जो बात मैं कहने जा रहा हूँ वह उन ब्लॉगरों के लिये है जिनके ब्लॉग पर मॉडरेशन लागू है... कई बार यह होता है कि वे एक ज्वलंत और विचारोत्तेजक विषय पर बहुत अच्छी पोस्ट लगाते हैं...परंतु दुर्भाग्यवश मॉडरेशन करने के बाद टिप्पणियों को Real Time में क्लियर करने के लिये समय नहीं निकाल पाते हैं... नतीजा... एक संभावनापूर्ण पोस्ट, जिसे काफी पाठक मिलते और वह एक वृहत चर्चा को जन्म देती, असमय ही दम तोड़ देती है...


कुमारेन्‍द्र सिंह सेंगर जी ने तो टिप्‍पणी द्वार ही बंद कर दिया है ....


इसके अलावा उन महानुभावों के प्रति हम वाकई शर्मिन्दा हैं जो निस्वार्थ रूप से हमारी पोस्ट पर टिप्पणी देते रहे। हमारा यह फर्ज बनता है कि हम उनकी पोस्ट को भी अपनी टिप्पणी देते। उनको हम विश्वास दिलाना चाहते हैं कि हमने उनकी सभी पोस्ट को पढ़ा है और शायद स्वयं को इस लायक नहीं समझा कि उनके लिखे का मूल्यांकन कर सकें, बस इस कारण कुछ नहीं लिखा जा सका। 


हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत में टिप्‍पण्णियों की  गुणात्‍मक पहलूओं को दिखाने के लिए अजय कुमार झा जी ने टिप्‍पणियों की चर्चा भी शुरू कर दी है .....











जब हमने ये टिप्पी पे टिप्पा धरने वाला ब्लोग शुरू किया था तब मन में बस एक ही विचार था कि लोग जब यहां अपनी टीपों को टीप कर चल देते हैं तो फ़िर वो उस पोस्ट के साथ ही सिमट जाती हैं । सो सोचा कि पोस्टों की चर्चा,पोस्टों की बातें तो खूब होती हैं ,मगर टिप्पणि्यों का क्या, और फ़िर ऐसा तो नहीं कि उन टीपों को सजा के कोई गुलदस्ता न बनाया जा सके । तो बस गुलदस्ता सजाने के बाद ऊपर से गुलाब जल छिडक दिया है ॥आप मजा लीजीए



वाणी गीत जी पूछ रही हैं कि क्‍या टिप्‍पणी करना और टिप्‍पणी पाना इतना बडा गुनाह है ??


एक दिन ब्लॉग पर कुछ लाईंस लिख ही डाली ...और लिख कर भूल गयी ...२-३ बाद अचानक देखा तो इतनी सारी टिप्पणीयांऔर स्वागत सन्देश ... और लिखने का हौसला मिला....फिर धीरे धीरे फोलोअर्स बनते गए और टिप्पणीयां भी ....जिनमे अक्सर लेखन और ब्लॉग सम्बन्धी सुझाव मिलते रहे ....और इन टिप्पणी का ही असर है कि एक साधारण गृहिणी की जिंदगी जीते पहली बार किसी अखबार में अपनी लिखी कविता भेजने का साहस कर पायी ...तो मेरे लिए तो ये टिपण्णीयां किसी वरदान से कम नहीं है ..क्या अब भी आप कहेंगे कि टिपण्णी देने के लिए ही टिपण्णी करना सही नहीं है ...कौनजाने ये टिप्पणी कितनी छुपी हुई प्रतिभाओं प्रोत्साहित कर सामने आने का मौका और हौसला प्रदान कर दे ...इसलिए टिप्पणी तो जरुर की जानी चाहिए ...भले बिना पढ़े की जाए ....मुझे इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती ...!!


कुछ दिन पूर्व मिथिलेश दूबे जी ने भी टिप्‍पणी पर एक सुंदर कविता लिखी थी ....


बहुत दिंनो से देख रहा हूँ कि टिप्पणी को लेकर ब्लोगजगत में काफी उधम मचा हुआ है, कोई ब्लोगिंग ही छोड़ कर जा रहा,, कारण बस टिप्पणी ना मिलना । कभी-कभी लगता है कि टिप्पणी हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, लेकिन क्या टिप्पणी मात्र से ही कविता या अन्य विधा का मूल्यांकन हो सकता है, ये शायद बड़ा सवाल हो, बात सही कि टिप्पणी मिलने से उत्साह वर्धन जरुर होता है, लेकिन ध्यान ये भी दिया जाना चाहिए कि टिप्पणी है कैसी, यहाँ है कैसी का मतलब यह है कि वह आपको टिप्पणी मिलीं क्यो, आपके रचना के ऊपर या आग्रह के ऊपर ।


तरकश के एक आलेख में लिखा गया था कि टिप्पणी आपकी लोकप्रियता नहीं दर्शाती:











टिप्पणी आपकी लोकप्रियता नहीं दर्शाती:
यदि आपको 30 टिप्पणी मिलती है और आपके साथी को 5 तो इसका मतलब यह नहीं है कि आपका साथी कमतर लेखक है. टिप्पणियों से लोकप्रियता का अंदाजा नहीं लगता. यह देखिए कि आपके लिखे को कितने लोग पढ़ते हैं, यह मत देखिए कि कितनों के टिप्पणी दी. ऐसा हो सकता है कि आपके लेख पर टिप्पणी देने जैसा कुछ हो भी नहीं, पर आपके लेख को पसंद किया जा रहा हो
२० मिनट में फ्रस्ट फेज (छोटी छोटी पोस्ट, कविता) १५ मिनट में सेकेन्ड फेज (समाचार, फोटो आदि ), १५ मिनट में बाकी स्कैनिंग (बड़े गद्यों में अधिकतर स्कैन मोड़) बाकि का समय अपना पसंदीदा इस स्कैनिंग मोड से उपलब्ध लेखन. अब यदि आप १.३० घंटा दे रहे हैं तो पसंदीदा देखने के लिये आपके पास ४० मिनट बच रहे याने कम से कम १२० लाईन...अधिकतर गद्य २० से ४० लाईन के भीतर ही होते हैं ब्लॉग पर.(अपवाद माननीय फुरसतिया जी, उस दिन अलग से समय देना होता है खुशी खुशी) तो कम से कम ४ से ५ आराम से. चलो, कम भी करो तो ३. बहुत है गहराई से एक दिन में पढने के लिये. (कुछ इस श्रेणी में भी निकल जाते हैं - कुछ पठन की प्रस्तावना, शीर्षक और विषय देखकर भी आप उसे छोड़ सकते हैं कि वो आपके पसंद का नहीं हो सकता.) 
हिमांशु जी ने एक ब्‍लॉग्‍ा टिप्‍पणी की आत्‍मकथा ही लिख डाली थी .....

अपने अस्तित्व के लिए क्या कहूं ? अथवा अपनी प्रकृति के लिए ? जो जैसे चाहता है, वैसे मेरा उपयोग करता है । किसी के लिए मैं व्यवहार हूँ- रिश्तेदारी का सबब, मेलजोल का उपकरण । किसी के लिए व्यापार हूँ- एक हाँथ दो, दूसरे हाँथ लो का हिसाब या पूंजी से पूंजी का जुगाड़ । कभी किसी के लिए अतृप्ति का आत्मज्ञान हूँ तो किसी के लिए उसकी संस्कृति, उसका स्वभाव । मैं सुकृति, विकृति दोनों हूँ । तो इसलिए मैं अपने अस्तित्व के प्रति सजग हूँ- धकियायी जाकर भी, आलोचित होकर भी; क्योंकि ('अज्ञेय' के शब्दों में ) -




"पूर्णता हूँ चाहता मैं ठोकरों से भी मिले
धूल बन कर ही किसी के व्योम भर में छा सकूँ।"



घुघुती बासुती जी का यह आलेख देखिए , जिसमें वो कहती हैं .......


अरे भइया कुछ तो 'वेरी गुड' लायक भी होगा! क्या वेरी गुड के लिए अपने पूरे खानदान को मरवाना होगा या भैंसो के पूरे तबेले को? बात यह है कि बचपन से 'वेरी गुड' पाने की आदत पाली हुई है, जब भी अध्यापक बिना 'वेरी' वाला 'गुड' देते थे तो मन असन्तुष्ट ही रहता था, आज भी यह बीमारी लगी ही हुई है।


डॉ जे सी फिलिप जी को डॉ अरविंद जी की तीन शब्‍दों की टिप्‍पणी इतनी अच्‍छी लगी कि उन्‍होने इसपर एक पोस्‍ट ही लिख डाला .....











तीन शब्द ही सही, लेकिन इस टिप्पणी को पढ कर बढा अच्छा लगा. अच्छा इसलिये कि डॉ अरविंद बहुत ही सुलझे हुए व्यक्ति हैं एवं सुलझे हुए चिट्ठाकार हैं. वे अधिकतर वैज्ञानिक विषयों पर लिखते हैं, और इस कारण कई बार कई चिट्ठाकार उनका विरोध कर चुके हैं.
इजहारे- खुराफात की  ज़हमत ना कीजिये
खो जाये अमन-चैन ऐसी जुर्रत ना कीजिये

जब ठेस लगे दिल पर शिकायत दर्ज कीजिये
बहस कीजिये खुल कर अदावत ना कीजिये

कलम चलाने के लिए यहाँ मुद्दे भरपूर हैं
महज दिखावे के वास्ते खिलाफत ना कीजिये
ग्रीन्बौम के ब्लॉग में किसी ने बेनामी रहते हुए गाली दी . पहली बार तो उसने स्पाम बटन दबा कर छोड़ दिया . दुबारा जब फिर से ऐसा हुआ तो उसने उस बेनामी का IP पता पता लगाया . यह एक स्कूल का निकला . उसने स्कूल को यह बात बताई कि शायद किसी विद्यार्थी ने शरारत की है. स्कूल ने जांच की तो पता चला यह एक नौकर ने की थी . नौकर ने पकडे जाने पर इस्तीफ़ा दिया.





वैसे तो हर पोस्ट की हर टिप्पणी (स्पैम को छोड़ दें) अमूल्य और अनमोल होती है, मगर किसी ब्लॉग पर आपकी एक टिप्पणी के बदले पाँच रुपए का दान दिया जा रहा है तो वहाँ आप एक टिप्पणी तो दे ही सकते हैं?
अनघ देसाई इस दफ़ा दीपावली कुछ खास तरीके से मना रहे हैं. वे अपने ब्लॉग पर 15 अक्तूबर से 19 अक्तूबर 2009 के बीच मिले प्रत्येक टिप्पणी के बदले 5 रुपए का दान देंगे. इसी तरह इस दौरान फेसबुक/ईमेल/ट्विटर पर (स्पैम नहीं) मिले शुभकामना संदेशों पर वे 0.25 रुपए का दान देंगे तथा प्रत्येक एसएमएस पर वे 0.50 रुपए का दान देंगे. उनके इस विचार को लोगों ने हाथों हाथ लिया है और बहुत से लोग अनघ के साथ दान देने के लिए जुड़ गए हैं और मामला इन पंक्तियों के लिखे जाने तक रुपए 17.50 प्रति शुभकामना संदेश तक जा चुका है. ये दान बालिका शिक्षा (एजुकेटिंग गर्ल चाइल्ड) के लिए दिए जाएंगे


हिन्‍दी ब्‍लॉग जगत की टिप्‍पणियों को महत्‍वपूर्ण देखते हुए फुरसतिया जी ने भी एक बार इनकी चर्चा की थी ...
आप देखिये कि हम लोगों (अरे आप भी शामिल हैं हममें) ब्लागिंग से लोगों के साहित्य के कीड़े जाग रहे हैं। मतलब ब्लागिंग को ऐसा-वैसा न समझो ये बड़े काम की चीज है।
शास्त्रीजी की टिप्पणी का कुछ ऐसा होता है कि वह हमेशा स्पैम में पाई जाती है। मामला आचार संहिता का बनता है। ये कुछ ऐसा ही है कि धर्मोपदेशक आचार-सदाचार की बातें करते-सकते अनायास अनाचार करते रहने वालों के मोहल्ले में पाया जाय। आखिर उसको उनका भी उद्धार करना है। वे भी खुदा के बंदे हैं। पहले अतुल की कुछ टिप्पणियां भी स्पैम में मिलीं। ऐसा कैसे होता है? क्या ई-मेल पते में कुछ लफ़ड़ा होता है। 
 हम ज्यादा से ज्यादा चिट्ठा खुलवाते जाए, लेकिन उसमें सिर्फ बकवास और बेजरूरत का माल पड़ा रहे, तो कैसी सेवा होगी, सोचिये? और इसकी समीक्षा करनेवाले हिन्दी चिट्ठाकारों के प्रति कैसा भाव रखेंगे?भगवान करे, एक लाख का आंकड़ा हिन्दी ब्लागों का पार कर जाये, लेकिन इस एक लाख में अगर ९९ हजार बकवास ही हों, तो हो गया सत्यानाश। अब अगर अपील की जाये, तो ये भी अपील की जाये कि सकारात्मक लेखों के सहारे हिन्दी भाषा को आगे बढ़ायें। और कृपा करके बेहतर विषय चुनें। साथ ही टिप्पणी देने के नाम पर भी वैसी ही सख्ती बरतें, जैसे कि अच्छी सब्जी चुनने के नाम पर बाजार में बरतते हैं।
कही से आप ब्लाॅगर से भिन्न दृष्टिकोण रखते है तो उसकी चर्चा करेें। जब उससे ब्लाॅग की विषयवस्तु समृद्ध होती हो, ऐसी बात जरूर कहें ।जिससे छुटी बात पूरी हो ऐसे में टिप्पणी जरूर करनी चाहिए। चिट्ठे में  रहीं कमी का उल्लेख भी किया जा सकता है।आप इस पर क्या सोचते है? अपनी भिन्न सोच हो तो जरूर टिप्पणी करें ।
यद्यपि हिन्दी भाषा में लिखने वाले नये ब्लाॅगरो को प्रोत्साहन देने हेतु  टिप्पणी करना उचित  एवं आवश्यक है। ब्लाॅग जगत में टिप्पणी एक आवश्यक अंग है। मैं टिप्पणी के खिलाफ नहीं हुॅ ।
मैं धुरंधर और लिक्खाड़ चिट्ठेकारों की बात नहीं कर रहा हूँ । नया ब्लोगर कुछ नया लिख देता है, लेकिन वह खुद कन्फ्यूज होता है.'ठीक ठाक है की नहीं यार! एक तो पहले से ही भयानक कन्फ्यूजन, दूसरे छपने के बाद टिप्पणियाँ , सुन्दर! वाह! खूब! लिखते रहिये अब ब्लोगर अपना नया पुराना सारा कचरा पाठकों के सामने परोस देता है।
हाल ही में अंग्रेज़ी की एक अत्यंत लोकप्रिय ब्लॉग साइट एंगजेट ने अपने ब्लॉग से टिप्पणी की सुविधा बंद कर दी. इसका कारण गिनाते हुए बताया गया कि लोग बाग वहाँ भद्दे, अत्यंत निम्न स्तरीय, मुद्देहीन, व्यक्तिगत, छिछोरी टिप्पणियाँ किए जा रहे थे. एंगजेट ने ये भी बताया कि टिप्पणियों में हिस्सेदारी उनके पाठक वर्ग का एक अत्यंत छोटा हिस्सा ही लेता रहा था और गंदी टिप्पणियाँ करने वाले लोगों की संख्या और भी कम थी, मगर उनके कारण मामला सड़ता जा रहा था, और मॉडरेशन जैसा हथियार भी काम नहीं आ पा रहा था.

21 comments:

निर्मला कपिला said...

संगीता जी हम तो टिप्पणी के खिलाफ नहीं अगर
कोई लिखता है तो क्या केवल अपने लिये लिखता है? और जब कोई लिखता है और चाहता है कि कोई उसे पढे और पढने वाला उस रचना के बारे मे क्या सोचता है लेखक को पता चले। तो टिप्पणी गलत कैसे हुयी ? कई बार टिप्पणी से आपको प्रेरणा और पोस्ट मे सुधार करने का अवसर भी मिलता है । असल मे कुछ लोग इस लिये भी क्षुब्ध रहते हैं कि निस्सन्देह उनका लिखा हुया उत्कृ्ष्ट दरजे का होता है मगर ब्लाग जगत मे सभी साहित्यकार नही है कुछ लोग मेरे जैसे टाईम पास हैं कुछ अलग अलग विश्यों मे रुची रखते हैं बहुत सी बातें हैं इस से वि निश्चित ही हत्तोत्साहित होते हैं कई बार ऐसा भी होता है कि भाषा इतनी कठिन होती है, या विश्य इतना गूढ होता है कि हम जैसे साधारण लोगों को कमेन्ट देने के लिये शब्द नही सूझते। अगर टिप्पणी बन्द होती है तो ब्लाग लिखने का क्या फायदा आपको ये पता ही न चले कि आप क्या और कैसा लिख रहे हैं पत्रिकाओं मे भी तो सम्पादक के नाम जो पत्र आते हैं उनमे रचनाओं के बारे मे टिप्पणियाँ ही तो होती हैं। संगीता जी मै तो खूब टिप्पणी देती हूँ कई बार इस से विवाद भी उत्पन हुया है मगर वहाँ से अब बच के आगे निकल जाती हूँ। शुभकामनाये आपकी टिप्पणी के इन्तज़ार मे ----- हा हा हा

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपने बहुत विस्तृत रूप से टिप्पणियों पर चर्चा की है....वैसे सच तो यही है की रचनाकार को टिप्पणियों का इंतज़ार रहता है....टिप्पणियों से लेखन में सुधार भी होता है और कुछ नया लिखने की प्रेरणा भी मिलाती है....हाँ इतना ज़रूर है की कुछ भी पढने के बाद मन में उस रचना के लिए भाव होने चाहियें ....मात्र टिपण्णी करना है ..ये सोच नहीं....और आप बदले की भावना से भी टिपण्णी ना करें की हमने दी है तो हमारी पोस्ट पर भी आनी ही चाहिए...
बाकी सबकी अपनी अपनी सोच है...

Fauziya Reyaz said...

taareef kise pasand nahi, har likhne wala chahta hai ki use padha jaye, achha ya bura bataaya jaye...ab isi tipandi ki shikayat aapse karna chahungi ki aap hamare blog par nahi aati aur na hi tipandi karti hain...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

कुछ भी कहें...जो फ़र्क़ रंगमंच व फ़िल्म है वही, ब्लाग व पत्र-पत्रिका के लेखन में हैं. हाथ के हाथ प्रतिक्रिया...चाहे अच्छा लिखा हो या बुरा और फिर आढ़तियों के वर्चस्व से भी पीछा छूट जाता है...सीधे पाठक से तारतम्यता बनती है...

Anonymous said...

अपनी अपनी सोच

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चर्चा का यह रूप बढ़िया रहा!
शुभकामनाएँ!

Randhir Singh Suman said...

nice

Unknown said...

मेरा तो यही विचार है कि सार्थक टिप्पणियाँ होनी चाहिये।

Arvind Mishra said...

वाह यह हुआ न कोई काम-पूरा टिप्पणी पुराण

अजय कुमार झा said...

सिर्फ़ इतना ही कहना चाहता हूं कि आज की आपकी ये पोस्ट बुकमार्क कर ली है , बहुत पसंद आई ,और सच ही कहा आपने टिप्पणी के लिए ही तो हमने एक अलग स्टाल बना लिया है
अजय कुमार झा

हास्यफुहार said...

बहुत-बहुत धन्यवाद

Sanjeet Tripathi said...

badhiya, pasand aaya

रानीविशाल said...

सत्य कथन टिप्पणी एक रचनाकर को प्रोत्साहन देती है ! और आखिर ऐसा क्यों ना ब्लोगिंग करने के पीछे हर ब्लोगर की मंशा अपने विचार अन्य पाठको से बताने की होती है ! विचारो के आदान -प्रदान का टिप्पणी बहुत ही अच्छा माध्यम भी है ! किन्तु एक रचनाकार के ह्रदय को ठेस तब पहुचती है जब टिप्पणियों को ही मुद्दा बना रचना को दरकिनार कर दिया जाता है !!
सादर
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

राजकुमार ग्वालानी said...

टिप्पणी वाली पोस्टों को एक स्थान पर सहेजने का आपने अभिनव प्रयास किया है। इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। आपने तो एक लंबी चिट्ठा चर्चा ही कर दी है। आपको भी किसी चिट्ठे में एक दिन चिट्ठा चर्चा करनी चाहिए।
एक बात और अब आपका ब्लाग दिखने लगा है, पहले यह पढऩे में नहीं आता था।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत ही सराहनीय पोस्ट है. टिप्पणी पर विभिन्न विचारधाराओं को एक साथ पढना सुखद लगा, शुभकामनाएं.

रामराम.

वाणी गीत said...

टिप्पणी से जुडी सभी प्रविष्टियों का एक जगह संकलन होने se यह प्रविष्टि स्वयं संकलन yogya हो गयी है ...बहुत आभार ...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत ही बढ़िया चर्चा. .......

स्वप्न मञ्जूषा said...

संगीता जी,
आपकी इस टिप्पणी चर्चा के आगे तो सारी चर्चाएं फेल हो गयी...
बहुत ही विस्तरीत, और सही विश्लेषण ..कमाल कर दिया आपने..सभी चर्चाओं के एकत्रित करके..
यह पोस्ट निःसंदेह संग्रह करने योग्य बन गयी है...
वाह ..!!

स्वप्न मञ्जूषा said...

संगीता जी,
आपकी इस टिप्पणी चर्चा के आगे तो सारी चर्चाएं फेल हो गयी...
बहुत ही विस्तरीत, और सही विश्लेषण ..कमाल कर दिया आपने..सभी चर्चाओं के एकत्रित करके..
यह पोस्ट निःसंदेह संग्रह करने योग्य बन गयी है...
वाह ..

vandana gupta said...

वाह संगीता जी आज तो बहुत बढिया पोस्ट पढवा दी……………ये तो मैने पढी ही नही थी।

Maheshwari kaneri said...

बहुत ही सराहनीय पोस्ट है. टिप्पणी पर विभिन्न विचारधाराओं को एक साथ पढना बहुत अच्छा लगा...बहुत ही बढ़िया रही चर्चा. ..आभार..