डायरी के एक पन्ने में मुझे यह कविता दिखाई पडी। पढने पर मुझे याद आया कि पर्यावरण दिवस पर आयोजित किसी कार्यक्रम में बोलने के लिए बेटे को कविता लिखना सिखलाते हुए मैने यह तुकबंदी की थी । यह पन्ना इधर उधर खो न जाए , इस ख्याल से इस यादगार कविता को यहां प्रेषित कर रही हूं, उम्मीद है आपको अच्छा लगेगा......
विकास की अंधी दौड में हमने ,
ओजोन परत को नष्ट किया है।
सिर्फ 'उत्पादकता' पर ध्यान देकर ,
वायु को प्रदूषित कर दिया है।
कारखानो से निकले सारे कचरे,
नदी में जाकर मिल जाते हैं।
खेतों से बहकर गए रसायन,
जलजीवों को कष्ट बढाते हैं।
रसायनों का प्रयोग करके हमने,
भू की उर्वरता को कम किया है।
स्वार्थों की पूर्ति हेतु हमने,
सारे जंगलों को काट दिया है।
अपनी गलतियों का परिणाम,
हमें तो भुगतना ही होगा।
नाना बीमारियों से जल थल के ,
जीवों को तो मरना ही होगा।
तापमान बढने के कारण,
बर्फ तो पिघलते ही जाएंगे।
समस्याएं बाढ अकाल की आएंगी,
समुद्र सतह बढते ही जाएंगे।
वायु जल भू की रक्षा करो,
ताकि जलप्रलय न हो कभी।
'उत्पादकता' से 'प्रकृति' महत्वपूर्ण,
ये बात गांठ बांध लो सभी।
7 comments:
आदमी जिसे विकास की दौड़ समझ रहा है, वो दरअसल विनाश की ओर तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है...विकास का लाभ तो तभी होगा न जब ये दुनिया बचेगी...प्रकृति से लालच के चलते यूहीं खिलवाड़ जारी रहा तो वो दिन दूर नहीं शुद्ध हवा, पानी की एक-एक बूंद को हम तरसेंगे...
जय हिंद...
बहुत ही उम्दा कविता ।
उम्दा संदेश है इस रचना में.
इसे कहते हैं
विकास की दौड
बहुत अच्छा संदेश इस कविता मेM |
अच्छा लेख है
वायु जल भू की रक्षा करो,
ताकि जलप्रलय न हो कभी।
'उत्पादकता' से 'प्रकृति' महत्वपूर्ण,
ये बात गांठ बांध लो सभी।
main aaj purani post par gayi to aapki tippani dekhi mujhe to khabar hi nahi rahi ki aapse judi hoon ,aapki rachna me aadesh w sandesh hai jo hum sabhi ke liye aham hai .
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