इस विविधता भरी दुनिया में प्रत्येक जीव जंतु के विकास के लिए प्रकृति की व्यवस्था बहुत सटीक है। प्राकृतिक व्यवस्था के हम जितने ही निकट होते हैं , हर चीज में संतुलन बना होता है। प्रकृति से हमारी दूरी जैसे ही बढने लगती है , सारा संतुलन डगमग होता जाता है। सभी जीव जंतुओं की तुलना में मानव जीवन अधिक जटिल है, एक बच्चे के जन्म से लेकर इसके पूर्ण विकास के देने और इसे सुसंस्कृत करने के क्रम में माता पिता को काफी समय देना होता है। यही कारण है कि मनुष्यों को अपने बच्चों से मोह ममता बनाए रखने की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। बच्चों से मोह ममता के कारण ही हम पारिवारिक , सामाजिक यहां तक की राष्ट्रीय नियमों तक का नियमों तक का पालन करते हैं, ताकि हमारी आनेवाली पीढी को पारिवारिक , सामाजिक और राजनीतिक सहयोग प्राप्त हो सके।
पाषाण युग से आई टी के युग में प्रवेश और गुफाओं और खंडहरों से लेकर विशाल विशाल भवनों में रहने तक हमने एक लंबी यात्रा की है। हर युग में और हर स्तर में माता पिता के द्वारा बच्चों के लालन पालन में बडा अंतर देखा जाता है। मेरे ख्याल से बच्चों का शारीरिक , मानसिक और नैतिक विकास में माता, पिता , समाज या गुरू की बहुत बडी भूमिका होती है। प्रत्येक युग और स्तर में बच्चों को अलग अलग ढंग की शिक्षा भले ही मिलनी चाहिए, पर उसका लक्ष्य एक होना चाहिए। बच्चों को हर उम्र में इतना लायक बना दिया जाना चाहिए कि वे माता पिता की अनुपस्थिति में भी खुद की जिम्मेदारी संभाल सके। जहां एक मजदूर अपने बच्चों को दिनभर धूप में तपाकर उसे अपनी रोजी रोटी के लायक बनाता है , वहीं एक अमीर व्यक्ति अपने बच्चों को स्कूल कॉलेजों की शिक्षा देकर सरकारी नौकरी या व्यवसाय के लायक बनाता है। बच्चों के स्वावलंबी होने तक माता पिता को लंबा इंतजार करना होता है, बच्चों के प्रति मोह और ममता ही उन्हें इतना त्याग करने में समर्थ बनाती है।
पर आज अपने बच्चों के प्रति हमारी अधिक मोह और ममता उन्हें गलत दिशा में ले जा रही है। बच्चों के मानसिक विकास में कोई बाधा न पहुंचे , उनका मन ना टूटे , इसका अधिक ध्यान रखते हुए उनके जायज नाजायज मांगों को भी हम सही ठहरा देते हैं । ऐसे में बच्चे जिद्दी होने लगते हैं और उनके व्यक्तित्व में संतुलन का अभाव होता है। हम गलत ढग से कमाए गए रूपए पैसों की बदौलत अच्छे स्कूलों और कॉलेजों में उनके एडमिशन के लिए रिश्वत देते हैं , अपनी ऊंची पहुंच का फायदा उठाते हैं , इससे बच्चों की आगे बढने की स्वाभाविक प्रवृत्ति खत्म होती है। उनका चरित्र निर्माण सही नहीं हो पाता , वे कभी स्वावलंबी नहीं बन पाते। युग और समाज की स्थिति अच्छी हो , तो माता पिता के सहयोग से उनका काम भले ही बन पाए , जीवन भले ही कट जाए , पर किसी भी विपरीत स्थिति के आने पर वो हताशा और निराशा के शिकार हो जाते हैं। पिता के जमाने में हमेशा सफल रहनेवाले अपने को असफल देख ही नहीं पाते , समाज में झूठी पहचान बनाए रखने के लिए झूठ का सहारा लेना उनकी नियति बन जाती है। इस तरह उनके विकास के लिए बनी मोह ममता ही उन्हें अंधकार में ले जाती है।
10 comments:
सीखभरी बढ़िया जानकारी!
बहुत जरुरी और विचारणीय आलेख है. दुलार और अनुशासन दोनों जरुरी है.
इस प्रकार की पोस्ट मैने अपने ब्लोग www.vinay-mereblog.blogspot.com लिखी थी,अच्छा चिन्तन
आलेख बहुत अच्छा लगा ।सभी बातें सटीक
“अति सर्वत्र वर्जयेत!"
दुलार और अनुशासन दोनों जरुरी है.
सटीक चिन्तन
चिन्तन
really knowledge discussion..
सार्थक लेखन है ! अति मोह-माया आजके बच्चों के विकास में वाधा है ! मन में परिपक्वता न आने के कारण समाज में निराशा जनित मानसिक व्याधि बढ़ रही है ! इसे पागलपन तो नहीं कह सकते पर कहीं न कहीं मानसिक असंतुलन की स्तिथी पैदा होती है जिससे रिश्तों पर भी असर होता है ! इससे और कुंठा का जन्म होता है ... और ये दौर इसी तरह आगे बढ़ता रहता है !
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और उत्साह देने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ! आप जैसे बड़ों की आशीर्वाद से मन को आशा की किरण मिलती है !
मेरे ब्लॉग पर आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद !
आपके लेख अच्छे लगे , parenting एक काम्प्लेक्स issue है और इस पर चर्चा होने ज़रूरी है.....आपका लेख काफी सार्थक लगा !
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