झूठ के पांव होते ही नहीं हैं ,
कभी कहीं भी पहुंच सकता है।
पर बिना पांव के ही भला वह ,
फासला क्या तय कर सकता है ?
भटकते भटकते , भागते भागते ,
उसे अब तक क्या है मिला ?
मंजिल मिलनी तो दूर रही ,
दोनो पांव भी खोना ही पडा !!
सच अपने पैरों पर चलकर ,
बिना आहट के आती है।
निष्पक्षता की झोली लेकर ,
दरवाजा खटखटाती है।
न्याय, उदारता की इस मूरत को ,
इस कर्तब्य का क्या न मिला ?
हर युग में पूजी जाती है ,
हर वर्ग में इसे सम्मान मिला !!
सत्य पर कदम रखने वालों को,
कठिन पथ पे चलना ही पडेगा।
विघ्न बाधाओं पर चल चल कर,
मार्ग प्रशस्त करना ही पडेगा।
राम , कृष्ण , बुद्ध और गांधी को,
बता जीवन में क्या न मिला ?
आत्मिक सुख, शांति नहीं बस,
जीवन को अमरत्व भी मिला !!
16 comments:
जीवन की सच्चाई को सच साबित करती एक बेहतरीन रचना |
sahi kaha...hamesha yahi sawaal kachotta hai ki jo sahi raste pe chalta hai use itni pareekshayein kyun deni padti hai...
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
सत्य कदम चलने वालों को,
कठिन पथ पे चलना ही पडेगा।
विघ्न बाधाओं पर चल चल कर,
मार्ग प्रशस्त करना ही पडेगा।
सच्चाई दर्शाती हुई...बहुत ही प्रेरणादायी रचना..
सत्य कदम चलने वालों को,
कठिन पथ पे चलना ही पडेगा।
विघ्न बाधाओं पर चल चल कर,
मार्ग प्रशस्त करना ही पडेगा।
राम , कृष्ण , बुद्ध और गांधी को,
बता जीवन में क्या न मिला ?
आत्मिक सुख, शांति नहीं बस,
जीवन को अमरत्व भी मिला !!
sacchai ka darshan karti hui bahut hi anmol rachana per aapko dhero badhai "
------ eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
इसीलिए कहा है कि झूठ के पैर नहीं होते।
ध्रुव सत्य है।
beautiful post !
Thanks.
वाह्…………………बहुत सुन्दरता से सच और झूठ की हकीकत बयाँ की है।
झूठ के पांव होते ही नहीं हैं ,
कभी कहीं भी पहुंच सकता है।
पर बिना पांव के ही भला वह ,
फासला क्या तय कर सकता है ?
....प्यारी लगी आपकी कविता ..मजा भी आया व सीख भी मिली.
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'पाखी की दुनिया में' पुरानी पुस्तकें रद्दी में नहीं बेचें, उनकी जरुरत है किसी को !
सच अपने पैरों पर चलकर ,
बिना आहट के आती है।
निष्पक्षता की झोली लेकर ,
दरवाजा खटखटाती है।
बहुत सटीक चिंतन....ऐसी रचनाओं को पढ़ अत्म्चिन्त्तन करने का मन बरबस हो जाता है....बधाई
बहुत सही कहा सच के महत्व को बताती सुन्दर रचना शुक्रिया
झूठ के पांव होते ही नहीं हैं ,
कभी कहीं भी पहुंच सकता है।
पर बिना पांव के ही भला वह ,
फासला क्या तय कर सकता है ?
बहुत ही प्रेरणादायी रचना..
सच अपने पैरों पर चलकर ,
बिना आहट के आती है।
निष्पक्षता की झोली लेकर ,
दरवाजा खटखटाती है।
..................
हर युग में पूजी जाती है
-वाह!
...बेहद प्रभावशाली रचना,बधाई !!!
behad sundar.....sachchayi ko abhivyakt karne wali aur mn ko abhi bhut kar dene wali rachna..
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संगीता जी,
आज पुनः इसको पढ़ा । आपकी पंक्तियाँ में सच कूट-कूट कर भरा है । आजकल अपने ब्लॉग पर सच लिखने की इतनी सजा पा रही हूँ। की मन हत्तोसाहित सा है। लेकिन आपकी पंक्तियों ने मुझमें नयी ऊर्जा का संचार किया है ।
सत्य पर कदम रखने वालों को,
कठिन पथ पे चलना ही पडेगा।
विघ्न बाधाओं पर चल चल कर,
मार्ग प्रशस्त करना ही पडेगा।
इतनी प्रेरक कविता के लिए आपका पुनः अभिनन्दन।
दिव्या [zeal]
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