23 मई को ही भाइयों को नांगलोई के जाट धर्मशाला में आयोजित एक कार्यक्रम के बारे में चर्चा करते सुना, तो वहां एक ब्लोगर मीट को आयोजित करने की मेरी भी इच्छा हो गयी। मेरे भाई ने इसमें पूर्ण तौर पर सहयोग देने का वादा किया। कार्यक्रम के बारे में जानने के लिए मैने अविनाश वाचस्पति जी को फोन लगाया , तो बातचीत में मालूम हुआ कि एम वर्मा जी के यहां 23 मई को ब्लॉगर मीट होना तय हुआ है , जिसमे कुछ ब्लोगरों का मिलना जुलना होगा। चूंकि राजीव तनेजा जी हमारे इलाके में थे , इसलिए मुझे वहां तक पहुंचाने की जिम्मेदारी राजीव तनेजा जी को दी गयी थी। कार्यक्रम के बारे में जानकर मेरी अनिश्चितता तो दूर हुई , पर जाट धर्मशाला के बडे हाल में अधिक से अधिक ब्लोगरों को बुलाया जाना और उनसे मिलना जुलना हो पाएगा , यह सोचते हुए मैने इस स्थल के बारे में अविनाश जी को जानकारी दे दी। अविनाश जी काफी खुश हुए , दूसरे ही दिन उन्होने इस हॉल में ब्लॉगर सम्मेलन होने की घोषणा अपने ब्लॉग में कर दी।
22 मई की शाम मैं भाई के साथ इस स्थल के निरीक्षण के लिए गयी , तो फोन कर राजीव तनेजा जी को बुलाया, थोडी ही देर में वहां एम वर्माजी भी पहुंचे। हम तीन ब्लॉगरों की मीटिंग 22 मई को ही हो गयी, पर हम तीन तिगाडा ने काम बिल्कुल भी नहीं बिगाडा। हमारे द्वारा तय किए गए ऊपर का हाल छोटा लगा , तो भाई ने नीचे के हाल में ब्लॉगर मीट की व्यवस्था कर दी। वैसे तो इस ब्लॉगर मीट में थोडी जिम्मेदारी लेने की मेरी भी इच्छा थी , पर अविनाश वाचस्पतिजी और राजीव तनेजा जी ने इस ब्लॉग मीट को सफल बनाने की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली और हमें हर प्रकार के इल्जाम से बचा लिया। दिल्ली में हिंदी ब्लोगरों की भारी संख्या और ब्लॉगर मीट पर पोस्ट लिखे जाने के बाद अधिक लोगों के उपस्थित होने की उम्मीद में थी मैं , लेकिन जितने उपस्थित हुए , वो कम भी नहीं थी , क्यूंकि उन्हें समय काफी कम मिला। पर जूनियर हों या सीनियर , महिला हों या पुरूष , हिंदी ब्लॉगिंग के प्रति प्रेम से सराबोर सभी लोगों ने ब्लॉगिंग के विभिन्न पहलुओं पर अपने कुछ न कुछ विचार अवश्य रखा।
मैने भी ब्लॉगिंग के मुद्दे पर अपना विचार रखा , चूंकि प्रत्येक व्यक्ति ऊपर से देखने में एक होते हुए भी अंदर से बिल्कुल अलग होते हैं , इसलिए इस दुनिया में घटने वाली सारी घटनाओं को विभिन्न कोणों से देखते हैं , जाहिर है , हम अलग कोण से लिखेंगे ही। भले ही कोई 'वाद' देश , काल और परिस्थिति के अनुसार सटीक होता हो , पर कालांतर में उसमें सिर्फ अच्छाइयां ही नहीं रह जाती है। इसलिए ही समय समय पर हमारे मध्य विचारों का बडा टकराव होता है , उससे दोनो ही पक्ष में शामिल पाठकों या आनेवाली पीढी के समक्ष एक नया रास्ता खुलता है। ऐसा भी होता ही आया है कि भीड में भी समान विचारों वाले लोग छोटे छोटे गुट बना लेते हैं , कक्षा में भी विद्यार्थियों के कई ग्रुप होते हैं , इसका अर्थ ये नहीं कि वे एक दूसरे पर पत्थर फेके। हमें समझना चाहिए कि जहां हमारे विचारों की विभिन्नता और वाद विवाद हिंदी ब्लॉगजगत को व्यापक बनाने में समर्थ है , वहीं एक दूसरे के प्रति मन की खिन्नता और आपस में गाली गलौज हिंदी ब्लॉग जगत का नुकसान कर रही है। मेरा अपना दृष्टिकोण है कि यदि हम संगठित नहीं हों तो हमारे ऊपर कभी भी आपत्ति आ सकती है और हमें विचारों की अभिव्यक्ति से संबंधित अपनी इस स्वतंत्रता को खोना पड सकता है। इसलिए संगठित बने रहने के प्रयास तो होने ही चाहिए !!
22 मई की शाम मैं भाई के साथ इस स्थल के निरीक्षण के लिए गयी , तो फोन कर राजीव तनेजा जी को बुलाया, थोडी ही देर में वहां एम वर्माजी भी पहुंचे। हम तीन ब्लॉगरों की मीटिंग 22 मई को ही हो गयी, पर हम तीन तिगाडा ने काम बिल्कुल भी नहीं बिगाडा। हमारे द्वारा तय किए गए ऊपर का हाल छोटा लगा , तो भाई ने नीचे के हाल में ब्लॉगर मीट की व्यवस्था कर दी। वैसे तो इस ब्लॉगर मीट में थोडी जिम्मेदारी लेने की मेरी भी इच्छा थी , पर अविनाश वाचस्पतिजी और राजीव तनेजा जी ने इस ब्लॉग मीट को सफल बनाने की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली और हमें हर प्रकार के इल्जाम से बचा लिया। दिल्ली में हिंदी ब्लोगरों की भारी संख्या और ब्लॉगर मीट पर पोस्ट लिखे जाने के बाद अधिक लोगों के उपस्थित होने की उम्मीद में थी मैं , लेकिन जितने उपस्थित हुए , वो कम भी नहीं थी , क्यूंकि उन्हें समय काफी कम मिला। पर जूनियर हों या सीनियर , महिला हों या पुरूष , हिंदी ब्लॉगिंग के प्रति प्रेम से सराबोर सभी लोगों ने ब्लॉगिंग के विभिन्न पहलुओं पर अपने कुछ न कुछ विचार अवश्य रखा।
मैने भी ब्लॉगिंग के मुद्दे पर अपना विचार रखा , चूंकि प्रत्येक व्यक्ति ऊपर से देखने में एक होते हुए भी अंदर से बिल्कुल अलग होते हैं , इसलिए इस दुनिया में घटने वाली सारी घटनाओं को विभिन्न कोणों से देखते हैं , जाहिर है , हम अलग कोण से लिखेंगे ही। भले ही कोई 'वाद' देश , काल और परिस्थिति के अनुसार सटीक होता हो , पर कालांतर में उसमें सिर्फ अच्छाइयां ही नहीं रह जाती है। इसलिए ही समय समय पर हमारे मध्य विचारों का बडा टकराव होता है , उससे दोनो ही पक्ष में शामिल पाठकों या आनेवाली पीढी के समक्ष एक नया रास्ता खुलता है। ऐसा भी होता ही आया है कि भीड में भी समान विचारों वाले लोग छोटे छोटे गुट बना लेते हैं , कक्षा में भी विद्यार्थियों के कई ग्रुप होते हैं , इसका अर्थ ये नहीं कि वे एक दूसरे पर पत्थर फेके। हमें समझना चाहिए कि जहां हमारे विचारों की विभिन्नता और वाद विवाद हिंदी ब्लॉगजगत को व्यापक बनाने में समर्थ है , वहीं एक दूसरे के प्रति मन की खिन्नता और आपस में गाली गलौज हिंदी ब्लॉग जगत का नुकसान कर रही है। मेरा अपना दृष्टिकोण है कि यदि हम संगठित नहीं हों तो हमारे ऊपर कभी भी आपत्ति आ सकती है और हमें विचारों की अभिव्यक्ति से संबंधित अपनी इस स्वतंत्रता को खोना पड सकता है। इसलिए संगठित बने रहने के प्रयास तो होने ही चाहिए !!
22 comments:
मैडम जी, रूक क्यों गईं ....आगे की पोस्टों का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
अच्छा लगा पो्स्ट पढ़ कर ---ऐसा लगा कि एक बार फिर से ब्लागर मिलन का अनुभव होगा। धन्यवाद।
संगठित तो होना ही होगा.
विकास की यह तो पहली शर्त है
post achchhi lgi. program me kis vishay pr kya charcha hui kisne kya vichar vyakt kie...
बढिया संस्मरण कहूंगा संगीता जी !
आपके विचार से सहमत हूँ...पर यहाँ तो संगठन के नाम पर ही लोग लड़ रहे हैं
बहुत दिनों बाद वापसी हुई आपकी...
संगठित तो होना ही होगा.
विकास की यह तो पहली शर्त है
बिलकुल सही बात इसके बिना आज किसी भी अच्छे उद्देश्य को अंजाम तक नहीं पहुँचाया जा सकता है | आप चिंता न करें हम लोग इस संगठन को जरूर बनायेंगे और इसमें बिना किसी भेद भाव के सभी को शामिल करने का पुरजोर प्रयास भी करेंगे | विचारणीय व सार्थक प्रस्तुती |
मैंने शायद इस मिलन के बारे में नहीं पढ़ा इसलिए क्या चर्चा हुई जानना चाहूँगी।
घुघूती बासूती
मनोमालिन्य न हो,यह आदर्श स्थिति होगी किंतु जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी ऐसा कहां हो पाता है? गाली-गलौज हमारी असभ्यता और असहिष्णुता के परिचायक हैं,फिर भी, वैचारिक मतभेद विषय विशेष की वृहत्तर विवेचना का अवसर प्रदान करते हैं और अक्सर उससे कोई मौलिक बात सामने आती है।
संगठित तो बन कर ही रहेगा...भले ही इसकी राह में कितने भी रोडे क्यों ना अटकाए जाएँ ...
Sanghe shakti...
Bhala kise inkaar hoga..
Saarthak prastuti ke liye dhanyavaad
हिंदी में एग्रग्रेटरों ने जिस तरह ब्लॉगरों को एक सूत्र में पिरोया था अब वही अखाड़ों के केंद्र हो गए हैं। दिल्ली जेसे विशाल शहर में जहाँ सैकड़ों हिंदी ब्लागर होंगे सामूहिक रूप से किसी एक कार्यक्रम में आज तक नहीं दिखे हैं और भविष्य में ऐसा हो पाएगा ये एक स्वप्न ही है। अब तो बस यही है कि दस पंद्रह उत्साही लोग कभी कहीं मिल लेते हैं। खैर, आपका अनुभव इस मिलन में सकरात्मक रहा जानकर खुशी हुई।
सादर वन्दे !
आज फिर आपका पोस्ट पढ़ कर लगा कि कोई बहुत ही अपना अभिभावक फिर से आ गया |
रत्नेश त्रिपाठी
ek achchaa sansmaran...aapkee meet saarthak huyee jaaan kar khushee huyee
आपने बिल्कुल सही कहा!
संगठन में ही शक्ति है!
बहुत अच्छा लगा संगीता जी यह सब पढ कर, ओर अब संगठन तो बहुत जरुरी है, धन्यवाद
संगठन की शाक्ति पर तो कोई प्रश्न चिन्ह है ही नहीं: उद्देश्य उचित हो तो शक्ति सृजक होती है.
विचारों की विभिन्नता और वाद विवाद हिंदी ब्लॉगजगत को व्यापक बनाने में समर्थ है
सहमत.
अच्छे लोग मिलेंगे तो अच्छा संगठन बनेगा...और सार्थक पहल होंगे.....बढ़िया पोस्ट..बधाई
संगठन में शक्ति तो है ही,अगर सदभावना का समबेश हो जाये तो संगठन की शक्ति कई गुना बड़ जाती है,दिल्ली में दो तीन बलोगगर मीट हुई,किसी ना किसी निजी कारण से नहीं जा पाया,पता नहीं यह इच्छा कब पूरी होती है ।
bilkul sahi kaha.........magar sangthan sabke fayade ke liye ho phir chahe wo naya blogger ho ya purana.......sangthan isliye na ho ki aapas mein vamanaysta faile.
sansmaran achha hai...aap sabhi ko badhai....
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