Tuesday, 15 June 2010

खुशदीप सहगल जी का मक्‍खन .. आज मेरे ब्‍लॉग पे

मक्‍खन पहली बार शहर जा रहा था , मक्‍खनी को भय था कि वहां मक्‍खन बेवकूफ न बन जाए, क्‍यूंकि उसने सुना था कि वहां के लोग गांववालों को बहुत बेवकूफ बनाते हैं'
'शहर से लौटकर मक्‍खन ने बताया कि वो खामख्‍वाह ही उसे बेवकूफ समझ रही थी , उसने तो शहर वालों को ही बेवकूफ बना दिया है।
'वो , कैसे'
'मैं स्‍टेशन से उतरकर थोडी दूर ही गया होगा कि मुझे ऊंचे ऊंचे मकान दिखे। वहां जो सबसे ऊंची मकान थी , वो कितने मंजिले की होगी , इसका अनुमान करने में मैं असमर्थ था , सोंचा गिन ही लिया जाए।'
'मैं उसकी मंजिलें गिन ही रहा था , कि एक शहरी वहां आ पहुंचा , पूछा 'क्‍या कर रहे हो ?'
मैने बताया कि गिन रहा हूं कि यह मकान कितने मंजिले की हैं।
शहरी ने कहा, ' यहां तो मकान की मजिले गिनने पर 100 रूपए के हिसाब से बिल चुकाने पडतें हैं , तुमने अभी तक कितनी मंजिले गिनी है'
'मैने तो बीस मंजिले गिन ली हैं'
'तो तुम्‍हें दो हजार रूपए देने होंगे।'
मैने उसे दो हजार रूपए दे दिए।
'ओह , मेरे समझाने के बावजूद तुम बेवकूफ बन ही गए, हमारे दो हजार रूपए गए पानी में' मक्‍खनी चिल्‍लायी।
'तुम गलत समझ रही हो , मैं बेवकूफ नहीं बना, मैने उसे बेवकूफ बनाया , घर के दो हजार रूपए बचा लिए , मै तो उस समय तक 40 मंजिले गिन चुका था' मक्खन ने बताया।

19 comments:

दिलीप said...

ha ha ha...lot pot kar diya makkhan bhaiya ne...

अविनाश वाचस्पति said...

ध्‍यान से मक्‍खन
जमीन पर मक्‍खन
संभल कर गिनना
मत फिसलना।

M VERMA said...

वाकई ये तो बचत ही है .. दिलीप जी के हँसने की आवाज़ क्यों आ रही है.
वैसे खुशदीप जी का मक्खन आपको मिला कहाँ मिल गया.

माधव( Madhav) said...

ha ha ha h ah aha ha

कडुवासच said...

....बहुत खूब !!!

Rakesh said...

बहुत ही थका हुआ और पिटा हुआ चुटकुला है. पता नहीं क्यों लोग पब्लिश होने के लिए कुछ भी बेकार सा लेख डाल देते है. हंसी पड़कर नहीं आई पर आपके इस विचार पर आई के कोई अभी भी ऐसी चीज़ पढ़कर हंस सकता है.

Rakesh said...

बहुत ही थका हुआ और पिटा हुआ चुटकुला है. पता नहीं क्यों लोग पब्लिश होने के लिए कुछ भी बेकार सा लेख डाल देते है. हंसी पड़कर नहीं आई पर आपके इस विचार पर आई के कोई अभी भी ऐसी चीज़ पढ़कर हंस सकता है.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

हा-हा, ये खुशदीप जी का मक्खन तो बहुत समझदार निकला !

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

मखन का चिंतन भी गत्यात्मक हो गया तभी तो वह 40 से फिसल कर 20 पर आ गया.
मक्खनी बिचारी करती भी तो क्या?

( वैसे राकेश जी की यह बात सही है कि है तो बहुत पुराना यह चुटकला, मगर मैं तो कहूंगा कि मक्खन / मक्खनी को डाल दिया ,फिर पुराना कहां रहा ? )

मनोज कुमार said...

शानदार!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जय हो मक्खन की...

Khushdeep Sehgal said...

तभी मैं कहूं ये मक्खन महाराज बिना बताए गायब कहां रहने लगे हैं...जनाब ने डेपुटेशन पर काम शुरु कर दिया है...वैसे दो हज़ार का नुकसान करवा आया...बीस मंज़िल और नहीं गिन सकता था चुपके-चुपके...

जय हिंद...

Khushdeep Sehgal said...

तभी मैं कहूं ये मक्खन महाराज बिना बताए गायब कहां रहने लगे हैं...जनाब ने डेपुटेशन पर काम शुरु कर दिया है...वैसे दो हज़ार का नुकसान करवा आया...बीस मंज़िल और नहीं गिन सकता था चुपके-चुपके...

जय हिंद...

अजित गुप्ता का कोना said...

चलो हम भी नया ही मान लेते हैं।

डा० अमर कुमार said...


हमने भी इसे नया मान कर
डेढ़ इँच मुस्कान बिखेर दी ।

Vinashaay sharma said...

रोचक ।

vandana gupta said...

हा हा हा।

rashmi ravija said...

हा हा ... खूब रही यह भी

देवेन्द्र पाण्डेय said...

हा हा हा..बेवकूफ तो बेवकूफ ही होता है.