जब हमलोग पहली बार मकान बदल रहे थे , तो अखबार वाले को बुलाकर उसका हिसाब करना चाहा। पर उसने हिसाब करने से इंकार कर दिया , उसने सिर्फ हमसे वह पता मांगा , जहां हम जा रहे थे। हम जब वहां पहुंचे तो दूसरे ही दिन से वहां मेरा पसंदीदा अखबार आने लगा। लगभग छह किलोमीटर की दूरी तक यानि दूसरी बार भी मकान बदलने पर ऐसा ही देखने को मिला। यह भी मालूम हुआ कि यदि हम पुराने अखबार वाले को अपना नया पता नहीं देकर आते तो भी दूसरे किसी अखबारवाले से अखबार ले सकते थे और हमें अपना अखबार मिलने लगता और सारे बिल एक साथ मिलते। नए महीने के पहले सप्ताह में ही पिछले महीने के बिल आते रहे , चाहे कितनी भी दूरी में और किसी से भी हमने समाचार पत्र क्यूं न लिए हों। पता नहीं , ऐसी व्यवस्था वे कैसे कर पाते थे ??
पूरे बोकारो शहर में भले ही सभी समाचार पत्रों का यहां एक ही एजेंट हो , उसे महाएजेंट माना जा सकता हो और उसके अंदर पुन: कई एजेंट कमीशन पर काम करते हैं , उनसे लेकर अखबार वितरित करनेवाले भी अपना काम करते हैं , जो अलग अलग क्षेत्रों के होते हैं । भले ही एजेंट पूर्ण रूप से अखबार के व्यवसाय से ही जुडे हो , पर अखबार वितरित करनेवालों का यह अतिरिक्त पेशा होता है , ये किसी अन्य काम से भी जुडे होते हैं , क्यूंकि उनकी आमदनी कम होती है। लेकिन सब मिलकर हिसाब किताब एक साथ रखते हैं और आप बोकारो में जहां भी रहें और जिससे भी पेपर लें , बीच में हिसाब करने की कोई जरूरत नहीं ,उनका अपना हिसाब होता है। हो सकता है , सभी शहरों में ऐसी व्यवस्था हो , पर मैं नहीं जानती थी , इसलिए मुझे बडा आश्चर्य हुआ।
6 comments:
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
यह जानकारी तो बढ़िया दी है ...
मैनें देखा है कि ज्यादातर जगहों पर 10-12 किलोमीटर के क्षेत्र में एक ही एजेंट होता है और सभी हॉकरों को वो तन्खवाह और कुछ कमीशन भी देता है। सभी हॉकरों से जुडे ग्राहक की जानकारी और हिसाब-किताब उसी एक के पास होता है।
प्रणाम
जानकारी के लिये आभार।
... bahut sundar !!!
लगभग प्रत्येक नगर में अखबार वितरण की यही प्रणाली है ।
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