अभी तक आपने पढा .... 20 वीं सदी का अंत संचार के मामलों में बहुत ही प्रगति पर था और भारतवर्ष के शहरों की बात क्या ग्रामीण अंचल भी इससे अछूते नहीं थे। भले ही हम शहरी क्षेत्र में थे , पर पूरे परिवार में सबसे पहले 1990 में हमारे गांव में ही मेरे श्वसुर जी ने ही फोन का कनेक्शन लिया था। तब वे DVC के सुरक्षा पदाधिकारी के पद से सेवानिवृत्त होकर बिहार के दरभंगा जिले के एक गांव जाले में निवास कर रहे थे। इससे पहले वे बिहार मिलिटरी पुलिस में पुलिस अफसर भी रह चुके थे , जिसके कारण गांव में होनेवाले महत्वपूर्ण आयोजनों में उन्हें निमंत्रित किया जाता था। इसी कारण फोन की सुविधा दिए जाने से पूर्व बी एस एन एल द्वारा हुए उद्घाटन समारोह में उन्हें भी निमंत्रित किया गया था। उसी मीटिंग में उन्होने बात रखी कि जिस परिवार के अधिकांश सदस्य दूर रहते हों , उन्हें फोन की सुविधा सबसे पहले मिलनी चाहिए। रिटायर होने के बाद 20 वर्षों से वे अपने तीनों बेटों से दूर रहते हुए 80 वर्ष की उम्र में पहुंच चुके थे , इसलिए दूसरे ही दिन उन्हें फोन की सुविधा मिल गयी थी , शहरी क्षेत्र में होते हुए भी तबतक हमलोगों को भी कनेक्शन नहीं मिल सका था , पर टेलीफोन बूथ से हमलोग समय पर हाल चाल लेने में अवश्य समर्थ हो गए थे। दो चार वर्ष के अंदर ही बिहार के छोटे बडे हर गांव में टेलीफोन के जाल ही बिछ गए थे और कोई भी क्षेत्र इससे अछूता नहीं रह गया था। उसी फोन ने इन्हे अंतिम समय में उनके बडे बेटे से मिला भी दिया था। भले ही 1993 में ही वे हमें छोडकर इस दुनिया से चल दिए हों , पर उससे पहले 1992 से ही रिश्तेदारों का हाल चाल लेने के लिए हमलोगों को पूर्ण तौर पर टेलीफोन पर निर्भर कर दिया था।
यही कारण था कि बोकारो में स्थायित्व की समस्या हल होने पर एक टेलीफोन का कनेक्शन लेना हमारे लिए जरूरत बन चुका था , पर इसमें बहुत सारी समस्याएं थी। क्वार्टर किसी और का हो , उसे किराए में लगाने की छूट भी न हो । एक मित्र के तौर पर हम वहां रह सकते थे और इसी आधार पर कनेक्शन ले सकते थे। इसके लिए अदालत में भी कुछ फार्मलिटिज की जरूरत थी। छोटे शहरों में लैंडलाइन लेने के लिए अभी तक सिर्फ सरकारी कंपनियां ही हैं , जिनके पास उस समय कनेक्शन देने की सुविधाएं सीमित थी और फोन कनेक्शन लेने के मामलों में मध्यमवर्गीय परिवारों में एक होड सी लगी थी। ऐसे में आपका नंबर आने में दो तीन वर्षों तक का इंतजार करना पडता था , अन्य लोगों की तरह ही इतना इंतजार करने को हमलोग भी तैयार नहीं थे। इस कारण विभाग में भ्रष्टाचार का भी बोलबाला था , नंबर में देर होने के बावजूद पैसे लेकर फोन कनेक्शन दिए जा रहे थे। पर हमारे द्वारा फोन के लिए एप्लाई किए जाने के दो तीन महीने बाद ही बी एस एन एल में आधिकारिक तौर पर घोषणा की गयी कि इंतजार कर रहे सभी लोगों को अक्तूबर तक फोन लगा दिए जाएंगे। भले ही एक वर्ष तक हमने बिना फोन के व्यतीत किए हों , पर इस घोषणा के होते ही हमारी यह समस्या भी हल हो गयी। तबतक हमलोगों ने सामने वाले पडोसी को बहुत कष्ट दिए।
पर फोन का कनेक्शन मिलने के बाद भी यहां समस्याएं कम न थी। उस समय खुले केबल के माध्यम से फोन का कनेक्शन किया जाता था , इस कारण हमेशा फोन को लॉक करने का झंझट था। बरसात में अक्सर फोन कट जाता , दस बारह दिन बाद ही उसके ठीक होने की उम्मीद रहती। हालांकि कुछ ही वर्षों में पूरी कॉलोनी में अंडरग्राउंड केबिल लग गए और असुविधाएं कम हो गयी थी। पर बिल की मनमानी की तो पूछिए ही मत , अपने एकाधिकार का पूरा फायदा उठाती थी उस वक्त बी एस एन एल । बिल के डिटेल्स निकालने की कोई सुविधा नहीं थी , सिर्फ एस टी डी के बिल निकलते थे , हमने एक दो बार निकलवाया , पर क्या फायदा ?? एस टी डी का बिल 160 रूपए , पर कुल बिल 1600। अब हम उन्हें कैसे समझाएं कि लोकल में हमारे इतने परिचित भी नहीं कि इतना बिल आ जाए , चुपचाप बिल भरने को बाध्य थे। कितने तो अपनी पत्नियों और बच्चों पर शक की निगाह रखते , मजबूरी में फोन कटवा देते। एक बार तो गरमी की छुट्टियों के दो महीने दिल्ली में व्यतीत करने के बाद भी हमें टेलीफोन बिल के रूप में 1800 रूपए भरने पडे थे।पर धीरे धीरे कई कंपनियों के इस क्षेत्र में आने से उनका एकाधिकार समाप्त हुआ और सुविधाओं में बढोत्तरी होती गयी। पर आज हर प्रकार के प्लान और सुविधाओं के कारण इसी बी एस एन एल से हमें कोई शिकायत नहीं।
8 comments:
जी ....अब तो बी.एस.एन.एल. की मोनोपोली ख़त्म हो चुकी है...
अब तो सिर्फ 500 रु. दीजिए पीछे-पीछे कनक्शन लगाने वाला होता है!
बीएसएनएल के बिल में तो अब भी बहुत गड़बड़ी होती है।
इसलिए मोबाईल आने के बाद लोगों ने लैंडलाईन कनेक्शन कटवा दिए।
बदले हालातों में अब बीएसएनएल लैंडलाईन, सरकार द्वारा व्यक्ति व उस पते को प्रमाणित किए जाने का, मानक बन गया है।
आप सही कह रहीं हैं।
आज हर प्रकार के प्लान और सुविधाओं के कारण इसी बी एस एन एल से हमें कोई शिकायत नहीं।
मुझे भी कोई शिकायत नहीं है।
उन दिनों की बहुत सारी बातें पता चलीं...किस तरह छोटी छोटी सुविधाएं पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था.
आपसे सहमत।
इस प्रकार की असुबिधाओं का हमें भी सामना करना पड़ा,जब सरकार की किसी चीज़ की मोनोपोली होती है,एसा ही होता है ।
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