अभी हाल में एक भाई ने बहुत खुश होकर बताया कि उसने कई प्रोडक्टों की एजेंसी ले रखी है , बाजार में उन वस्तुओं की अच्छी खपत है और अब भविष्य के लिए उसे सोंचने की आवश्यकता नहीं। उत्सुकता वश मैने उसे पूछा कि वे कौन कौन से प्रोडक्ट हैं ?? शायद उसे सबसे अधिक फायदा शायद कोल्ड ड्रिंक्स और पानी की बोतलों से आ रहा था , उसके मुहं से इन्हीं दोनो का नाम पहले निकला । सुनते ही मैं ऐसे सोंच में पड गयी कि बाद में उसने और कई प्रोडक्टों का क्या नाम बताया , वो भी सुन न पायी और उसके चुप्प होते ही उसे जीवन में नैतिक मूल्यों को धारण करने का लेक्चर देने लगी।
वो तर्क करने में मुझसे बीस ही निकला। उसने बताया कि पानी और कोल्ड ड्रिंक्स की बोतल को बेचना तो वह एक मिनट में छोड सकता है , जब मैं उसे बताऊं कि बाजार में कौन सा प्रोडक्ट सही है। दूध में केमिकल की क्या बात की जाए , पेण्ट का घोल तक मिलाया जाता है। मधु , च्यवणप्राश तक में एंटीबायोटिक और पेस्टिसाइड की बात सुनने में आ ही गयी है। जितनी सब्जियों है , उसमें आक्सीटोसीन के इंजेक्शन दिए जाते हैं , जिससे सब्जियां जहरीली हो जाती हैं। गाय तक को तेज इंजेक्शन देकर उसके सारे शरीर का दूध निचोड लिया जाता है , नकली मावा , नकली मिठाई , नकली घी। पैकिंग के चाकलेटों और अन्य सामानों में कीडे मकोडे , किस चीज का व्यवसाय किया जाए ??
सुनकर उसकी मां यानि चाची खेतों के ऊपज तक के शुद्ध नहीं रहने की चर्चा करने लगी। गांव के परंपरागत सारे बीज समाप्त हो गए हैं और हर वर्ष किसान को सरकारी बीज खरीदने को बाध्य होना पडता है। विशेष ढंग से विकसित किए गए उस बीज में प्राकृतिक कुछ भी नहीं , उसमें गोबर की खाद नहीं चल सकती , रसायनिक खाद का ही इस्तेमाल करना पउता है , सिंचाई की सुविधा हो तो ठीक है , नहीं तो पौधों में प्रतिरोधक क्षमता बिल्कुल भी नहीं होती , देखभाल में थोडी कमी हो तो मर जाते हैं। हां, सबकुछ ठीक रहा तो ऊपज अवश्य होती है , पर न तो पुराना स्वाद है और न ही पौष्टिकता।
इस तरह के बातचीत से लोगों को कितनी निराशा होती होगी , इसका अनुमान आप लगा सकते हैं। शरीर को कमजोर कर , प्रकृति को कमजोर कर हम यदि विकसित होने का दावा करते हैं , तो वह हमारा भ्रम ही तो है। पाश्चात्य की नकल करते हुए इस अंधे विकास की दौड में किसी को कुछ भी हासिल नहीं हो सकता। एलोपैथी दवाओं का तो और बुरा हाल है , एक बार किसी बीमारी की दवा लेना शुरू करो , भाग्य अच्छा होगा , तभी उस दवा के कुप्रभाव से आप बच सकते हैं। इन दवाओं और जीवनशैली की इन्हीं खामियों के कारण 40 वर्ष की उम्र का प्रत्येक व्यक्ति दवाइयों पर निर्भर हो जाता है। हमारी सभ्यता और संस्कृति तथा ज्ञान ने अपने स्वास्थ्य के साथ साथ प्रकृति के कण कण के बारे में सोंचने को बाध्य करती है। इसलिए जितनी जल्द हमलोग परंपरागत जीवनशैली की ओर लौट जाएं , उतना ही अच्छा है।
2 comments:
सही में लौटना होगा परंपरागत जीवनशैली की ओर। इस अंधेरे में यही एक प्रकाश की किरण है।
ज्योति-पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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