Saturday, 14 May 2011

अफसोस है .. नहीं रहा अब हमारे मुहल्‍ले का पीपल का पेड !!

28 अप्रैल को दिल्‍ली के लिए निकलने से पहले अखबार में एक खबर पढते हुए मैं चौंक ही गयी। हमारे मुहल्‍ले का पीपल का विशालकाय पेड हल्‍की सी आंधी पानी में ही जड से उखड चुका था , खैरियत यही थी कि जानमाल की कोई क्षति नहीं हुई थी , बस एक दो गुमटियां टूट गयी थी। इसकी उम्र के बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है , क्‍यूंकि गांव के सारे बडे बुजुर्ग कहते आ रहे हैं कि उन्‍होने बचपन से ही इस पीपल के पेड को उसी रूप में देखा है। हमारे घर से दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित मुहल्‍ले के छोटे से चौक  पर स्थित इस पीपल के पेड से हमारी कितनी यादें जुडी थी। किसी को पता बताना हो तो यही पीपल का पेड , बच्‍चों को कोई खेल खेलना हो , तो यही पीपल का पेड , मुहल्‍ले का कोई कार्यक्रम हो तो यहीं , बडे बुजुर्गों के बैठक से लेकर ताश पतते खेलने की जगह भी यही , मेले लगाने की भी जगह यही। कुछ खाना पीना हो तो बस पीपल के पेड के पास चले जाइए !


चित्र में जिस छोटे से चौक में मेन रोड पेटरवार कसमार लिखा है , वहीं तरह तरह की पंक्षियों का बसेरा वह विशालकाय पीपल का पेड हुआ करता था । चारो ओर के लोगों का यहां जुटना आसान था ,  दो दो मंदिर भी आसपास थे , उसके सामने की जमीन खाली पडी थी , जगह काफी हो जाती , इसलिए पर्व त्‍यौहार की भीड भी यहीं जुटती। हमारे गांव की एक नई बहू ने जब इस पीपल के पेड के प्रति पूरे मुहल्‍लेवालों की दीवानगी देखी तो पूछ ही बैठी , 'इस मुहल्‍ले वालों के जन्‍म के बाद उनके  गर्भनाल वहीं गाडे जाते हैं क्‍या ?'

कुछ दिन पहले तक गूगल मैप में इस पेड को साफ तौर पर देखा जा सकता था , मै दिल्‍ली जाने की हडबडी में इसे सेव भी न कर सकी। काफी दिनों तक यह पेड गिरा पडा रहा , अभी भी गूगल के चित्र में यह गिरा पडा है। मेरे चाचाजी के घर जानेवाला रास्‍ता बंद हो गया था , 11 मई को मेरी बहन का विवाह होना था , इसलिए सप्‍ताह भर के अंदर रास्‍ता साफ करना पडा। हमलोग विवाह के लिए 11 को वहां पहुंचे तो काफी सूनापन का अहसास हुआ। वहां पीपल के पेड की निर्जीव लकडियां पडी थी , हमने उसकी ही फोटो खींच ली।


अफसोस है ... नहीं रहा अब हमारे मुहल्‍ले का पीपल का पेड !!

10 comments:

Satish Saxena said...

यह नुकसान मामूली नहीं है ....वहां के निवासियों को हमेशा खलेगा !
शुभकामनायें आपको !

Udan Tashtari said...

ऐसे ही यादें जुड़ जाती हैं...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जीवन की यही नियति है।
बहुत ही मार्मिक संस्मरण!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बूढ़ा पीपल घाट का, बतियाये दिन रात
जो भी गुजरे पास से, सर पे धर दे हाथ


ab pipal ke ashirwad se vanchit hone kii bajaye naya pipal vahi par laga den.......aashish anant kal tak jari rahega.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

ऐसे पेड़ों से कई यादें जुडी होती हैं.....

Coral said...

सच है पुराणी बातो से लगाव जादा होता है ....

रजनीश तिवारी said...

न जाने कितने लोगों की तरह तरह ही यादें जुड़ी होंगी उस पेड़ से । बहुत मर्मस्पर्शी संस्मरण ...

rashmi ravija said...

किसी पेड़ के साथ हमेशा यादें जुड़ी होती हैं.....अपने नीम के पेड़ की याद में मैने भी एक कविता लिख डाली थी...

SANDEEP PANWAR said...

कई पीढी देखी होगी इस पेड ने

ZEAL said...

वहीँ एक नया पीपल का पौधा लगा दीजिये।