Thursday, 11 August 2011

इतने दिनो बाद भी दिलों के मध्‍य फासला न बना ..यही क्‍या कम है ??

हमने तो बहुत दिनों तक अपने हाथो से भाइयों को राखी बांधी , आजकल की बहनें तो शुरू से ही पोस्‍ट से राखी भेजने या ग्रीटींग्स कार्ड के द्वारा राखी मनाने को मजबूर हैं, भाई साथ रहते ही कितने दिन हैं ??  बहनों के लिए वो दिन तो अब लौट नहीं सकते , जब संयुक्‍त परिवार हुआ करते थे और राखी बंधवाने के लिए भाई क्‍यू में खडे रहते थे। जहां एक ओर सुबह से स्‍नान कर पूजा कर भूखी  प्‍यासी बहने राखी की तैयारी में लगी होती , वहीं दूसरी ओर भाई भी स्‍नान कर बिना खाए पीए ही राखी के इंतजार में बैठे होते। एक एक कर सभी बहनें सभी भाइयों को , चाहे वो संख्‍या में कितने भी क्‍यूं न हों , टीके लगाती , राखी बांधती और मिठाईयां खिलाती। बदले में भाई बहनों को वो नोट थमाते , जो एक एक भाइयों के लिए उनकी माताओं ने उन्‍हें दिए होते। आज के दिन मिठाइयों की खपत की तो पूछिए मत , एक एक भाई के हिस्‍से दस , बारह , पंद्रह मिठाइयां तो होनी ही चाहिए।  यहां तक कि पडोसी के बच्‍चे भी राखी बंधवाने आ जाया करते , इसलिए आज घर में भरपूर मिठाई रखनी पडती थी। भाइयों को इतनी मिठाइयां खाते देख बहनें और बहनों को नोट गिनते देख भाई ललचते रहते।

गांव में तो बढे हुए ऑर्डर को पूरा करने के लिए खोए की कमी हो जाती और हलवाई इस खास त्‍यौहार पर मिठाइयों के साइज और क्‍वालिटी में काफी कटौती करते। इसलिए महिलाएं कई दिनों से ही घर मे खपत होनेवाले दूध के खोए बनाकर हल्‍की फुल्‍की मिठाइयां या पेडा बना लिया करती थी। चूंकि घर में पेडे का सांचा नहीं होता , गोल पेडे बनाकर उसे गुल के डब्‍बे के ढक्‍कन से दबा दिया जाता , जिससे उसके ऊपर  कलात्‍मक डिजाइन बन जाता। उस जमाने में मंजन के रूप में गुल का प्रयोग लगभग हर घर के मर्द करते थे ।  मिठाई की कमी के कारण ही बाजार का कम से कम सामान प्रयोग करनेवाले हमारे परिवार में गुलाबजामुन बनाने वाली गिट्स की पैकेट का उसी जमाने से उपयोग आरंभ कर दिया गया था। इसके साथ ही मिठाइयों के लिए हलवाई पर निर्भर रहने की बाध्‍यता कम हो गयी थी।

शादी के बाद शायद एकाध बार राखी में मायके में रहना हो सका हो , पर कई वर्षों तक ससुराल में कोई न कोई भाई आक‍र राखी बंधवा ही लेता था , दूरी भी तो अधिक नहीं थी , 30 कि मी होते ही कितने हैं ?? पर अब हमारे शहरों के मध्‍य का फासला जितना है , उससे अधिक दूरी रोजगार के क्षेत्र में चलने वाली प्रतिस्‍पर्धा ने बना रखी है। पिछले कई वर्षों से राखी का त्‍यौहार यूं ही आता और चला जाता है , डाक विभाग या कूरियर सर्विस के द्वारा राखी भाइयों तक पहुंचाकर जहां एक ओर मै , वहीं दूसरी ओर सभी भाई भी राखी वाले दिन एक फोन कर औपचारिकता पूरी कर लेते हैं। राखी के दस दिन पहले मैं खुद भाइयों के पास से चली आयी , उन्‍हें क्‍या कहूं ?? शादी विवाह और घर गृहस्‍थी के बाद अपनी अपनी जबाबदेही में व्‍यस्‍त रहना ही पडेगा । कोई जरूरत आ पडी तो हम एक दूसरे को समय दे देते हैं , यही बहुत है। इतने दिनो बाद भी दिलों के मध्‍य फासला न बना , यही क्‍या कम है ??

5 comments:

Udan Tashtari said...

बिल्कुल जी, दिल जुड़े रहें वही बहुत है!!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

भाई-भौजाईयों का प्यार कायम रहे यही बड़ी बात है। राखी तो दिलों से मनती है।
सत्यार्थ प्रकाश मे कहा है - लड़की दुहिता है, दुरे हिता, जिसका दुर रहना ही परिवार के लिए अच्छा है।

रक्षा बंधन की शुभकामनाएं

मनोज कुमार said...

आत्मीय पोस्ट।

वाणी गीत said...

मन जुड़ा हो तो दूरियों से विशेष फर्क नहीं पड़ता !

Maheshwari kaneri said...

सार्थक पोस्ट ...