कैलेण्डर में 30 दिसंबर का दिन दिखाई देते ही मन मस्तिष्क 1988 की यादों में जा बसता है , जहां लगभग मई के बाद से पूरे ही वर्ष विभिन्न पत्रिकाओं के 'गर्भावस्था और मातृत्व विशेषांक' पढते और उसके अनुसार खुद की जीवनशैली को ढालते ही व्यतीत कर दिए थे। ऐसा करती भी क्यूं न ? इसी वर्ष के अंत अंत तक मातृत्व सुख प्राप्त करने की पूरी संभावना बनी हुई थी। पर 10 दिसंबर के आसपास ऐन मौके पर हमारे ही साथ रहनेवाली जिठानी जी के जीजाजी के असमय गुजर जाने की सूचना ने घर के माहौल को पूरा गमगीन कर डाला था। अधिक पान चबाने की आदत से मजबूरी का अपने छोटे छोटे पांच बच्चों को अनाथ छोडने का उन्हें बडा मूल्य चुकाना पडा था। भाभी जी रोती पीटती मुझे वैसी ही दशा में छोडकर वहां जाने को मजबूर थी और गर्भावस्था के अंतिम महीनों में मैं अकेली डरती रहती।
ससुर जी की तबियत खराब होने से सासू मां का आना भी संभव नहीं था, और मम्मी भी परिवार को छोडकर आने की स्थिति में नहीं थी, मैने साथ देने के लिए उसी वर्ष मैट्रिक पास किए अपनी छोटी बहन को जरूर बुलवा लिया था। दिसंबर के अंत में अंत में भाभीजी की वापसी के बाद मन कुछ निश्चिंत होने ही को था कि पतिदेव के अभिन्न मित्र की पत्नी भी दूसरे बच्चे के जन्म के दो दिन बाद काल कवलित हो गयी। सूचना मिलते ही 27 दिसंबर को मुझे वैसी हालत में छोडकर पतिदेव वहां रवाना हो गए।
लगभग एक महीने पूर्व ही 'लेबर पेन' की परिभाषा समझ में आयी थी , एक विशेषज्ञा डॉक्टर का लेख किसी पत्रिका में पढने को मिला था। अंतिम दिनों में अक्सर महिलाएं गैस या किसी अन्य प्रकार के दर्द को लेकर भ्रम में आ जाती हैं , हर प्रकार के दर्द से यह दर्द किस प्रकार होता है , इसे अच्छी प्रकार समझाया गया था। चूंकि 'लेबर पेन' गर्भ गृह के मांसपेशियों के संकुचन और फैलाव के कारण होता है , इसलिए इसकी तीव्रता खास अंतराल में अधिक या कम होती है। घडी की सूई के साथ इस दर्द का तालमेल देखा जा सकता है।बडे अंतराल का दर्द धीरे धीरे छोटे अंतराल में और तेज रूप में बदलता चला जाएगा।
30 दिसंबर 1988 , भाभी आ चुकी थी , बहन भी घर में थी , मेरा ध्यान मित्र की पत्नी के गुजर जाने की ओर था , इसलिए घरेलू काम के प्रति जिम्मेदारी कम थी।एक स्वेटर बुन रही थी , जिसे एक दो दिन में पूरा करने का लक्ष्य था, इसलिए डाइनिंगटेबल पर सुबह की चाय वाय पीते हुए सीधा स्वेटर हाथ में आ गया। पर यह क्या , आज पेट में मीठा मीठा दर्द , बांरबरता लेकर आ रही थी। मैने घडी पर ध्यान देना आरंभ किया , ठीक दस मिनट पर एक बार पेट में कुछ खिंचाव सा महसूस होता। मैने उम्मीद लगायी कि शायद यही लेबर पेन है। मेरा अनुमान सही निकलता गया , अंतराल कमने लगा और दर्द बढने , 1 बजे के बाद कुछ खास ही , पर इतना भी नहीं कि अस्पताल पहुंच ही जाया जाए।
पतिदेव पटना में अपने मित्र को दुख से उबारने में व्यस्त थे , प्लांट के ऑपरेशन में होने से ही जेठ जी की शिफ्ट डृयूटी होती थी , 3 बजे देवर जी को भी दुकान जाना होता था। अस्पताल में कागजी कार्यवाही भी कम नहीं होती है , आज की तरह फोन की सुविधा नहीं कि किसी को कहीं से तुरंत बुलवा लो , मैने निश्चय किया कि भाइयों के ड्यूटी जाने से पहले अस्पताल में एडमिट हो ही जाया जाए। इसलिए दो बजे भैया के ड्येटी में निकलने से पहले अस्पताल को फोन कर गाडी मंगवा ली , मुझे वहां छोडकर सब अपने अपने काम पर चले गए। अस्पताल पहंचने के बाद मुझे लेकर डॉक्टर को कुछ खास गंभीर नहीं देखा , तो मुझे लगा कि शायद मैं यहां बहुत पहले आ गयी। सबको अपने अपने काम पर भेज दिया।
पर यह क्या , दो तीन घंटे भी नहीं हुए कि सबको फटाफट खबर गयी , मुझे लेबररूम में ले जाने की जरूरत थी , इसलिए मेरे लिए उसके पहले का अल्पाहार मंगवाया गया। सबको जल्दी जल्दी अस्पताल में बुलवाया गया । पांच बजकर पैंतीस मिनट पर एक स्वस्थ बालक मेरी गोद में था , घर के सभी सदस्यों को नए नए रिश्तो से महकाता हुआ , और मेरी तबियत भी बिलकुल सामान्य थी यानि मैं भी अपनी खुशी को पूरी तरह महसूस कर रही थी। मैके और ससुराल के सारे सदस्य एक दूसरे को बधाई देने में व्यस्त थे , ऐसा खुशनुमा शाम भूला भी जा सकता है ?????
बेटे , तुम्हें जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई !!!!!!!!!!
आपकी शुभकामनाओं का भी इंतजार है !!!!!!
ससुर जी की तबियत खराब होने से सासू मां का आना भी संभव नहीं था, और मम्मी भी परिवार को छोडकर आने की स्थिति में नहीं थी, मैने साथ देने के लिए उसी वर्ष मैट्रिक पास किए अपनी छोटी बहन को जरूर बुलवा लिया था। दिसंबर के अंत में अंत में भाभीजी की वापसी के बाद मन कुछ निश्चिंत होने ही को था कि पतिदेव के अभिन्न मित्र की पत्नी भी दूसरे बच्चे के जन्म के दो दिन बाद काल कवलित हो गयी। सूचना मिलते ही 27 दिसंबर को मुझे वैसी हालत में छोडकर पतिदेव वहां रवाना हो गए।
लगभग एक महीने पूर्व ही 'लेबर पेन' की परिभाषा समझ में आयी थी , एक विशेषज्ञा डॉक्टर का लेख किसी पत्रिका में पढने को मिला था। अंतिम दिनों में अक्सर महिलाएं गैस या किसी अन्य प्रकार के दर्द को लेकर भ्रम में आ जाती हैं , हर प्रकार के दर्द से यह दर्द किस प्रकार होता है , इसे अच्छी प्रकार समझाया गया था। चूंकि 'लेबर पेन' गर्भ गृह के मांसपेशियों के संकुचन और फैलाव के कारण होता है , इसलिए इसकी तीव्रता खास अंतराल में अधिक या कम होती है। घडी की सूई के साथ इस दर्द का तालमेल देखा जा सकता है।बडे अंतराल का दर्द धीरे धीरे छोटे अंतराल में और तेज रूप में बदलता चला जाएगा।
30 दिसंबर 1988 , भाभी आ चुकी थी , बहन भी घर में थी , मेरा ध्यान मित्र की पत्नी के गुजर जाने की ओर था , इसलिए घरेलू काम के प्रति जिम्मेदारी कम थी।एक स्वेटर बुन रही थी , जिसे एक दो दिन में पूरा करने का लक्ष्य था, इसलिए डाइनिंगटेबल पर सुबह की चाय वाय पीते हुए सीधा स्वेटर हाथ में आ गया। पर यह क्या , आज पेट में मीठा मीठा दर्द , बांरबरता लेकर आ रही थी। मैने घडी पर ध्यान देना आरंभ किया , ठीक दस मिनट पर एक बार पेट में कुछ खिंचाव सा महसूस होता। मैने उम्मीद लगायी कि शायद यही लेबर पेन है। मेरा अनुमान सही निकलता गया , अंतराल कमने लगा और दर्द बढने , 1 बजे के बाद कुछ खास ही , पर इतना भी नहीं कि अस्पताल पहुंच ही जाया जाए।
पतिदेव पटना में अपने मित्र को दुख से उबारने में व्यस्त थे , प्लांट के ऑपरेशन में होने से ही जेठ जी की शिफ्ट डृयूटी होती थी , 3 बजे देवर जी को भी दुकान जाना होता था। अस्पताल में कागजी कार्यवाही भी कम नहीं होती है , आज की तरह फोन की सुविधा नहीं कि किसी को कहीं से तुरंत बुलवा लो , मैने निश्चय किया कि भाइयों के ड्यूटी जाने से पहले अस्पताल में एडमिट हो ही जाया जाए। इसलिए दो बजे भैया के ड्येटी में निकलने से पहले अस्पताल को फोन कर गाडी मंगवा ली , मुझे वहां छोडकर सब अपने अपने काम पर चले गए। अस्पताल पहंचने के बाद मुझे लेकर डॉक्टर को कुछ खास गंभीर नहीं देखा , तो मुझे लगा कि शायद मैं यहां बहुत पहले आ गयी। सबको अपने अपने काम पर भेज दिया।
पर यह क्या , दो तीन घंटे भी नहीं हुए कि सबको फटाफट खबर गयी , मुझे लेबररूम में ले जाने की जरूरत थी , इसलिए मेरे लिए उसके पहले का अल्पाहार मंगवाया गया। सबको जल्दी जल्दी अस्पताल में बुलवाया गया । पांच बजकर पैंतीस मिनट पर एक स्वस्थ बालक मेरी गोद में था , घर के सभी सदस्यों को नए नए रिश्तो से महकाता हुआ , और मेरी तबियत भी बिलकुल सामान्य थी यानि मैं भी अपनी खुशी को पूरी तरह महसूस कर रही थी। मैके और ससुराल के सारे सदस्य एक दूसरे को बधाई देने में व्यस्त थे , ऐसा खुशनुमा शाम भूला भी जा सकता है ?????
बेटे , तुम्हें जन्म दिन की बहुत बहुत बधाई !!!!!!!!!!
आपकी शुभकामनाओं का भी इंतजार है !!!!!!
8 comments:
बेटे के जन्मदिन के शुभ अवसर पर शुभकामनायें!
जातक का नाम बताएं :) उन्हे जन्मदिन की शुभकामनाएं
हम भी कहने आये हैं कि "हैप्पी बड्डे जी"
हम भी कहने आये हैं कि "हैप्पी बड्डे जी"
माँ बनना दुनिया में सबसे बड़ा सुख है हर स्त्री के लिए इस दिन को कैसे भुलाया जा सकता है भला...
आपके उस सुन्दर से प्यारे से बेटे को हमारा भी ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद... ईश्वर उसे दुनिया की हर ख़ुशी दे... हाँ आपको भी बधाई
आपको नववर्ष की शुभकामनायें...
एक माँ की अविस्मर्णीय यादें. सपरिवार आपको नववर्ष के लिए शुभकामनाएं.
बेटे के जन्मदिन पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं....
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