Tuesday 5 May 2020

हमें अन्धविश्वास क्यों नहीं करना चाहिए ?

Andhvishwas story in hindi

हमें अन्धविश्वास क्यों नहीं करना चाहिए ?

मैं दस बारह वर्ष पूर्व की एक सच्‍ची और महत्‍वपूर्ण घटना का उल्‍लेख करने जा रही हूं। बोकारो रांची मुख्‍य सडक के लगभग मध्‍य में एक छोटा सा गांव है , जिसमें एक गरीब परिवार रहा करता था। उस परिवार में दो बेटे थे , बडे बेटे ने गांव के रोगियों के उपचार में प्रयोग आनेवाली कुछ जडी बूटियों की दुकान खोल ली थी। बचपन से ही छोटे बेटे के आंखों के दोनो पलक सटे होने के कारण वह दुनिया नहीं देख पा रहा था। गरीबी की वजह से इनलोगों ने उसे डाक्‍टर को भी नहीं दिखाया था और उसे अंधा ही मान लिया था। पर वह अंधा नहीं था , इसका प्रमाण उन्‍हें तब मिला , जब 16-17 वर्ष की उम्र में किशोरावस्‍था में शरीर में अचानक होनेवाले परिवर्तन से उसकी दोनो पलकें हट गयी और आंखे खुल जाने से एक दिन में ही वह कुछ कुछ देख पाने में समर्थ हुआ। 

उसके शरीर में अचानक हुए इस परिवर्तन को देखकर परिवार वालों ने इसका फायदा उठाने के लिए रात में एक तरकीब सोंचा। खासकर बडे बेटे ने अपनी जडीबूटियों की दुकान को जमकर चलाने के लिए यह नाटक किया। सुबह होते ही छोटा बेटा पूर्ववत् ही लाठी लिए टटोलते टटोलते गांव के पोखर में पहुंचा और थोडी देर बाद ही हल्‍ला मचाया कि उसकी आंखे वापस आ गयी है । पूरे गांव की भीड वहां जमा हो गया और पाया कि वह वास्‍तव में सबकुछ देख पा रहा है। जब लोगों ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि अभी अभी एक बाबा उधर से गुजर रहे थे , उन्‍होने ही उसपर कृपा की है । उन्‍होने कहा है कि न सिर्फ तुम्‍हारी आंख ठीक हो जाएगी, तुम अब जिनलोगों को आशीर्वाद दे दोगे , वे भी ठीक हो जाएं

पूरा गांव आश्‍चर्य चकित था , इस चमत्‍कार भरे देश में ऐसा चमत्‍कार होते उन्‍होने सुना तो जरूर ही होगा , पर देखने का मौका पहली बार मिला था। पूरे गांव के लंगडे , लूले , अंधे, काने , पागल बच्‍चों को ले लेकर अभिभावक आने लगें, बडे भाई की जडी बूटी जमकर बिकने लगी। परिवार वाले तो इतने में ही खुश थे , पर ईश्‍वर को तो इन्‍हें छप्‍पर फाडकर देना था। यह खबर आग की तरह फैली और दूर दूर से लोग अपने अपने परिवार के लाचारों को लेकर आने लगे। उसके दुकान की जडी बूटी कम पडने लगी , फिर नीम वगैरह की सूखी डालियों का उपयोग किया जाने लगा , पर भीड थी कि बढती जा रही थी । मौके की नजाकत को समझते हुए बडे बडे बरतनों में नीम की पत्तियों उबाली जाने लगी , उस जल को बोतल में भरकर बेचने के लिए गांव भर के बोतलों को जमा किया गया । 

समाचार पत्रों में इस बात की खबर लगातार प्रकाशित होने लगी , शीघ्र ही भीड को नियंत्रित करने के लिए पुलिस तक की व्‍यवस्‍था करनी पडी । एक डेढ महीने के अंदर उस बच्‍चे की महिमा इतनी फैल चुकी थी कि कि पुलिस की मार से बचने के लिए लोग दूर से ही गांव में रूपए पैसे फेक फेककर वापस चले जाते थे। जिस गांव में आजतक एक गाडी नहीं गुजरती थी , उस गांव में बडी बडी गाडियां आकर खडी हो गयी। इधर आसपास की बातों को तो छोड ही दिया जाए , कलकत्‍ता जैसे दूरस्‍थ स्‍थानों से भी बहुत बडे बडे व्‍यवसायी और सरकारी अधिकारी तक इस ‘महात्‍मा’ का दर्शन करने को आ पहुंचे। इतने दिनों तक उस परिवार के अतिरिक्‍त गांव के अन्‍य लोगों ने भी कुछ न कुछ व्‍यवसाय कर पैसे कमाए। लेकिन बाद में रोगियों की स्थिति में कोई सुधार न होने से उसकी पोल खुली और जनता ने उसके नाटक को समझा , तबतक उनलोग लाखों बना चुके थे।

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इसी प्रकार गया में चार हाथोंवाले बच्‍चे को जन्‍म देने के बाद उनके मातापिता दो ही दिनों में भक्‍तों के द्वारा मिलनेवाले चढावे से ही लखपति हो गए। 48 घंटे तक ही जीवित रहे इस बच्‍चे को लोगों ने भगवान विष्‍णु का अवतार माना। भारत में अंधविश्‍वास इस हद तक फैला है कि यहां असामान्‍य बच्‍चों को जन्‍म देनेवाले मांबाप उस बच्‍चे का इलाज भी नहीं करवाना चाहते । एक माता पिता के सामने डाक्‍टर मिन्‍नते करते रह गए और उन्‍होने बच्‍चे को सामान्‍य बनाने के लिए डाक्‍टरों को कोशिश ही नहीं करने दी। जनता के अंधविश्‍वासों का ये लोग पूरा फायदा उठाते हैं। जब आज के पढे लिखे युग में इस प्रकार की घटनाएं भारतवर्ष में आम हैं , तो पुराने युग के बारे में क्‍या कहा जा सकता है। समाज से इस तरह के अंधविश्‍वासों को दूर करने के लिए बहुत सारे लोग और संस्‍थाएं कार्यरत हैं , पर सवाल है कि जनता के अंधविश्‍वास को समाप्‍त किया जा सकता है

यह दुनिया विविधताओं से भरी है। यहां फूल हैं तो कांटे भी , प्रेम है तो घृणा भी , मीठास है तो कडुवाहट भी , गर्मी है तो सर्दी भी , आग है तो पानी भी और किसी का भी खात्‍मा कर पाना असंभव है। कभी कभी कोशिश का और उल्‍टा परिणाम निकलता है। हमने फूलों के सुगंध को भी महसूस की और कांटे को भी बाड लगाने में प्रयुक्‍त किया। फल के मीठास को भी महसूस किया और कडुवाहट को भी बीमारी ठीक करने मं उपयोग में लाने की कोशिश की। मैं हर वक्‍त अपने ऋषि मुनियों के दूरदर्शिता की दाद देती हूं , उन्‍हें ये मालूम था कि आम जनता से यह अंधविश्‍वास दूर नहीं कर सकते ।

 इसलिए जनता के इसी अंधविश्‍वास का सहारा लेकर उन्‍हें जीवन जीने का एक ढंग बनाया। स्‍वर्ग और नरक के बहाने बनाकर जनता को अच्‍छे कामों की ओर प्रवृत्‍त करने की कोशिश की। चेचक के होने पर रोगी के लिए जो आवश्‍यक सावधानी बरतनी थी , उसे धर्म का नाम देकर करवाया। भले ही हम इस कोण से न सोंच पाएं , पर किसी मरीज के मनोवैज्ञानिक चिकित्‍सा के लिए झाड फूंक कीवैज्ञानिक पद्धतिका ही उन्‍होने सहारा लिया था । बरसात के तुरंत बाद साफ सफाई के लिए कई त्‍यौहारकी परंपरा शुरू की गई। उनके द्वारा सभ्‍य जीवन जीने के लिए आवश्‍यक सभी जरूरतों की पूर्ति के लिए सामाजिक नियम बनाए गए। 'बट', 'पीपल' जैसे महत्‍वपूर्ण पेडों को भी सुरक्षित रखने के लिए इन्‍हें धर्म से जोड दिया गया। सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण जैसे सुंदर प्राकृतिक नजारे को दिखाने के लिए उन्‍हें गांव के किनारे नदियों या तालाबों में ले जाया जाता रहा । ग्रहण के तुरंत बाद उतनी एकत्रित भीडों तक के अंधविश्‍वास का उन्‍होने भरपूर उपयोग किया। उनके द्वारा नदियों , तालाबों की गहराइयों में जाकर एक एक मुट्ठी मिटृटी निकलवाकर नदियों तालाबों की गहराई को बढाया जाता रहा ।

 प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर जगहों में एक सुंदर मंदिर का निर्माण कर जनता को तीर्थ के बहाने उन सुंदर नजारों का अवलोकण कराया गया। प्राचीन ज्ञान में क्‍या सही है और क्‍या गलत , इसपर लाख विवाद हो जाए , मैं बहुत बातों को यदि अंधविश्‍वास मान भी लूं । फिर भी यदि धर्म के नाम पर स्‍वार्थ से दूर होकर सर्वजनहिताय जनता के अंधविश्‍वास का कोई उपयोग ही किया गया , तो उसमें मैं कोई बुराई नहीं समझती। पर आज चूंकि हर क्षेत्र स्‍वार्थमय है , लोगों के अंधविश्‍वास का उपयोग स्‍वार्थ के लिए किया जा रहा है , इसलिए यह चिंताजनक तो है ही।



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