Maafi mangna mushkil hota hai ya maaf karna
माफी मांगना मुश्किल होता है या माफ़ करना ?
गल्ती करना मानव का स्वभाव है कभी न कभी हर किसी से गल्ती हो ही जाती है। यदि गल्ती का फल स्वयं को भुगतना पडे , तो कोई बात नहीं होती , पर आपकी गल्ती से किसी और को धन या मान की हानि हो रही हो, तो ऐसे समय नि:संकोच हमें माफ़ी मांग लेना चाहिए। कुछ लोगों को अपनी गल्ती मानते हुए दूसरों से माफ़ी मांग लेने में कोई दिक्कत नहीं होती , पर 'अहं' वाले लोग आसानी से ऐसा नहीं कर पाते। यह स्वभाव व्यक्तिगत होता है और इसके गुण बचपन से ही दिखाई देते हैं। अपनी गल्ती को न स्वीकारने के कारण कई बार सामनेवालों से उनका संबंध बिगड जाता है , पर बिना माफ़ी मांगे ही अपना संबंध सुधारने की भी कोशिश करते हैं।
ऐसी स्थिति आने पर मेरे छोटे भाई ने मात्र छह वर्ष की उम्र में कितना दिमाग लगाया था, इसे इस कहानी को पढकर समझा जा सकता है। उसने दादी जी को एक ऐसा जबाब दे दिया था , जो अक्सर दादा जी से सुना करता था और उसका मतलब तक नहीं जानता था। इसलिए हम सभी लोगों को उसकी बात पर हंसी आ रही थी , पर घर के बडे लोगों ने उसकी हिम्मत न बढते देने के लिए उसे दादी जी से माफी मांगने को कहा। काफी देर तक उसने टाल मटोल की , पर बात खाना नहीं मिलने तक आ गयी तो उसे बडी दिक्कत हो गयी , क्यूंकि वह जानता था कि इतने बडे बडे लोगों के बीच उसकी तो नहीं ही चलेगी , मम्मी , चाची , दीदी या भैया की भी नहीं चलनेवाली , जो लोग उसे किसी मुसीबत से बचाते आ रहे हैं। हंसकर या रोकर जैसे भी हो माफी मांगने में ही उसकी भलाई है , फिर उसने अपना दिमाग लगाते हुए एक कहानी सुनाने लगा।
एक गांव में एक छोटा सा बच्चा रहा करता था। एक दिन उससे गल्ती हो गयी , उसने अपनी दादी जी को भला बुरा कह दिया। फिर क्या था , सभी ने उससे अपनी दादी जी से माफी मांगने को कहा। वह दादी जी से कुछ दूरी पर बैठा था , जमीन को बित्ते (हाथ के अंगूठे से छोटी अंगुली तक को फैलाने से बनीं दूरी) से नापते हुए दादी जी की ओर आगे बढता जा रहा था । मुश्किल से दो तीन बित्ते बचे रह गए होंगे कि दादी जी ने उसे अपनी ओर खींच लिया और गले लगाते हुए कहा कि बेटे तुझे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं , बच्चे तो गल्ती करते ही हैं। इसके साथ ही वह खुद भी जमीन को अपने बित्ते से नापते हुए आगे बढने लगा । इस तरह वह माफी मांगने से बच गया , इस कहानी को सुनने के बाद दो तीन बित्ते दूरी से ही भला मेरी दादी जी उसे गले से कैसे न लगाती ?
21 comments:
बिलकुल सही सहमत हूँ आपसे और अच्छा लग रहा है,आजकल आप मानविय समवन्धित विषयों पर लिखने लगीं हैं ।
वाह!
लेकिन सच है, क्षमा मांग पाना हर किसी के लिए आसान नहीं।
बी एस पाबला
क्षमा मांग पाना कठिन है और क्षमा कर पाना भी। बहुत जबरदस्त लीडरशिप क्वालिटीज़ चाहियें इनके लिये।
kshama maangna aasaan kaam nahi hain fir bhi kshama maangni awashya chahiye
क्षमा देना और क्षमा कर पाना दोनो कठिन होता है. बहुत सुन्दर और विचारणीय आलेख
haan! yeh sach hai ki kshama maang paana aaaasaan nahin hota....
bahut achchi lagi aapki yeh post......
chhoo gayi....
haan! yeh sach hai ki ksham maang paana aaaasaan nahin hota....
baht achchi lagi aapki yeh post......
chhoo gayi....
ज्यादातर लोगों के लिए क्षमा माँगना सही में मुश्किल होता है।अच्छा लेख लिखा है।
लोग भावना फिर भी नहीं समझ पाते हैं जी.
आपने ठीक कहा वाकई में क्षमा मांगना मुस्किल है लेकिन मेने इस की शुरआत की है मेने कल ही अपने माता पिता से अपनी पुरानी गलतियों के लिए माफ़ी मांगी है , लेख मेने आपका आज पढ़ा पर आशा करता हु जो भी पढेगा इस पर गौर जरुर करेगा
लेकिन जो माग ले उसका भला भी हो जातअ है
बहुत ही मुश्किल होता है ऐसा क्योंकि आज कल लोगों के अंदर एक झूठी आत्मसम्मान की बात आ जाती है...पर होना चाहिए..बहुत बढ़िया बात कही आपने..धन्यवाद!!!
ज्ञानदत्त जी से सहमत हूँ !
ज्ञानदत्त पाण्डेय जी से सहमत है.
धन्यवाद
सत्य वचन...........
बहुत उम्दा आलेख
__________अभिनन्दन आपका !
क्षमा करना चाहे आसान न हो एक बार कर देने पर जिंदगी सुकून से भर जाती है । .
यही क्षमा मांग लेने पर भी होता है ।
मै तो आपको बधाई देने आई थी भारतीय टीम के जीत की ।
उपर दिए गए प्रसंग में क्षमा मांगने और करने का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। अच्छा लगता है गलती करना और करने के बाद भागना नहीं बल्कि माफी मांगना। पर माफी वही जो मन से मांगी जाए न कि औपचारिकता निभाई जाए। गलती दोहराई भी न जाए नहीं तो गलता बन जाता है।
vuq
अनुकरणीय दृष्टान्त.... साधुवाद..
क्षमा न मागने की आप के छ साल के भाई की कहानी भी अच्छी रही , सच भी है क्षमा मागना हर किसी के लिए आसान नही होता ।.
क्षमा मांगने के लिए बडा कलेजा चाहिए तो बडे़ लोगों के पास भी कम ही दिखता है:)
क्षमा मांगना और क्षमा करना दोनो ही महान कृत्य है इसके लिए एक वृहद चिंतन एवं अपनी गलती को पह्चान कर मानने की क्षमता की आवश्यक्ता पड़ती है। तभी यह कार्य होता है।
अच्छी पोस्ट-आभार
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