Thursday 7 May 2020

हर दिमाग के बीज को एक विशाल वृक्ष बनाने में हर कोई मदद करे !!

Achi achi gyan ki baatein

हर दिमाग के बीज को एक विशाल वृक्ष बनाने में हर कोई मदद करे !!

बीज तो हर दिमाग में होते हैं , पर समय पर ही उनकी देखभाल हो पाती है , अंकुरण हो पाता है , विकास के क्रम में उन्‍हें हर प्रकार का वातावरण मिल पाता है और वह छोटा सा बीज एक विशाल वृक्ष बन पाता है। आज के सामाजिक राजनीतिक हालत में अनेको दिमाग के बीज दिमाग में ही सोए पडे रह जाते हैं और अनेको प्रकृति की मार से मौत के मुंह में भी चले जाते हैं। मैं आशा करती हूं कि हर दिमाग के बीज को एक विशाल वृक्ष बनाने में हर कोई मदद करे , ताकि हमारे चारो ओर विशाल ही विशाल वृक्ष नजर आए , सभी अपनी अपनी विशेषताओं की घनी पत्तियों से छांव , सुगंधित पुष्‍पों से वातावरण में सुगंध और मीठे फलों से लोगों को असीम तृप्ति प्रदान करे।

प्रकृति के सहयोग प्राप्‍त होने से बहुत लोग मेहनत और आवश्‍यकता से बहुत अधिक प्राप्‍त कर रहे होते हैं , इन्‍हें अपने सामर्थ्‍य का उपयोग दूसरों की असमर्थता को दूर करने में करना चाहिए , क्‍यूंकि प्रकृति पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता कि आज वो आपका साथ दे रही है और संयोग से आपके काम बनते जा रहे हैं , तो कल भी आपकी यही स्थिति होगी। कभी भी आपको किसी और की आवश्‍यकता पड सकती है। किसी की मदद करते समय इस बात का भी ध्‍यान रखें कि उसे बार बार मदद करने की आवश्‍यकता न पडे , उसे इस प्रकार की मदद करें  कि आनेवाले दिनों में वो इतना मजबूत हो सके कि वो पुन: दो चार लोगों की मद कर उन्‍हें भी इस लायक बना सके कि वो दूसरों की मदद कर सके।

achi achi gyan ki baatein

मेरे ख्‍याल से हमारी जीवनशैली ऐसी होनी चाहिए कि वह आनेवाली पीढी को शारीरिक , आर्थिक , मानसिक , नैतिक और आध्‍यात्मिक दृष्टि से अधिक से अधिक मजबूत बनाती चली जाए। इनमें किसी का भी महत्‍व आनेवाले समय में कम नहीं होता है। इनकी मजबूती हमें हर परिस्थिति में खुशी से जीना सीखा देती है, जो मस्तिष्‍क में किसी प्रकार का तनाव कम करने में सहायक है।



धर्म और ज्‍योतिष को यूं बदनाम न करो बाबा

Baba ki kahani 

धर्म और ज्‍योतिष को यूं बदनाम न करो बाबा

दुनिया भर के खासकर भारत में गली गली , मुहल्‍ले मुहल्‍ले विचरण करने वाले बाबाओं , तुम अपने शहर में न जाने कितने अपराध करते हो , पर काफी दिनों तक पुलिस की लापरवाही या उनसे मिलीभगत से तुम पकडे नहीं जाते , इस उत्‍साह से बडी बडी गलतियां करने लगते हो , फिर जब तुमपर शिकंजे कसे जाने लगते हैं , तो शहर से भागना और पुलिस से बचना ही तुम्‍हारा एक लक्ष्‍य हो जाता है , बचने का सबसे बडा रास्‍ता तुम्‍हें बाबाजी बनने में दिखाई देता है , बडी मूंछ और दाढी के कारण लोगों के लिए तुम्‍हारे चेहरे को पहचानना काफी मुश्किल हो जाता है , बाबा का रूप धारण कर लेने से जनता की आस्‍था का भी तुम नाजायज फायदा उठा लेते हो , यदि किसी की आस्‍था तुमपर नहीं बन रही होती , तो डराना और धमकाना तो तुम्‍हारा स्‍वभाव है, इसलिए इस राह में चलकर आराम से अपनी महत्‍वाकांक्षा के अनुरूप पैसे का इंतजाम तो तुम कर लेते हो !

बाबा बनने के बाद तो तुम्‍हारा जीवन और रंगीन बन जाता है , श्‍मशान सिद्ध कर चुके हो तुम , यह कहकर भक्‍तों के सम्‍मुख भी शराब पीने से तुम कोई परहेज नहीं करते , कमाख्‍या मंदिर में सिद्धि प्राप्‍त कर चुके हो , इसलिए मांस से भी कोई परहेज की आवश्‍यकता नहीं , महिलाओं को मां मानते हो , इसलिए उनसे घिरे होने में भी तुम्‍हें दिक्‍कत नहीं ,  कन्‍याओं से सेवा करवाकर तुम उनकी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद दे देते हो , हत्‍या और लूटपाट के पाप के साथ तुम लोगों के कल्‍याण का दावा कर लेते हो , महात्‍मा होने के बावजूद भविष्‍यवाणी करने का रिस्‍क नहीं लेते , उपाय की पूरी व्‍यवस्‍था कर देते हो , एक शहर में तुम्‍हें रहना नहीं , इसलिए साख बनाए रखने की कोई चिंता नहीं , लोगों से पैसों की बरसात करवा लेते हो तुम , इस तरह अपराधी के नाम से भी जो सुख सुविधा नहीं मिलती , वो बाबा बनकर तुम्‍हें मिल जाती है !

baba ki kahani

तुमसे नाम पूछा जाता है तो अपने को हिंदुस्‍तानी बताते हो , गांव , जिला या प्रदेश पूछा जाता है तो हिंदुस्‍तान कहते हो , मानो हम सब देशद्रोही हैं और तुम सच्‍चे देशभक्‍त , महान आत्‍माओं के जन्‍म से लेकर मृत्‍यु तक की हर घटना इतिहास में दर्ज होती है , अपना नाम , अपना गांव , अपना प्रदेश क्‍यूं छिपाते हो , वहीं से तो स्‍पष्‍ट हो जाता है कि तुम अपने जीवन का कोई भाग छुपा रहे हो , तुम इतिहास की किताबों में अपना नाम क्‍यूं नहीं दर्ज करवाना चाहते ,  अपने भयानक सच को सामने न लाकर अपने बाबा के स्‍वरूप को सामने रखकर तुम जनता के आस्‍था के साथ खिलवाड करते हो , उनके मनोवैज्ञानिक कमजोरी का नाजायज फायदा उठाते हो , अपने स्‍वार्थ में अंधे होकर कुछ भी करो तुम , पर धर्म और ज्‍योतिष को यूं बदनाम न करो बाबा , मेरी प्रार्थना है तुमसे !


हम सार्थक ढंग से बाबा अम्बेदकर जयंती मनाना सकते हैं !!!!!

Ambedkar ke vichar

हम सार्थक ढंग से बाबा अम्बेदकर जयंती मनाना सकते हैं !!!!!

हमारे देश में प्राचीन काल से जो दर्शन मौजूद है इसकी सबसे बडी शक्ति इसका लचीलापन है। कुछ भी विचार , जो ईश्वर, समाज या राजनीति से सम्बन्धित है, इसके दर्शन का अंग बन सकता है। सभी महापुरूषों के विचारों को सुनना , अमल करना यहां के लोगों का स्‍वभाव है। सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में तो हमारे देश ने सभी के अनुभवों से सीख ली ही है , धार्मिक क्षेत्र में भी देखा जाए तो हाल के सालों में न जाने कितने बाबाओं , कितनी माताओं को यहां के लोगों ने भगवान बना डाला है। सिर्फ आस्तिक ही नहीं , नास्तिक दर्शन भी आसानी से हिन्दू धर्म का अंग बन सकतें हैं यानि अपने अपने विचारों और भावनाओं के साथ हर प्रकार के लोगों का यहां स्‍वागत होता रहा है , उनके अनुसार समाज में परिवर्तन आता रहा है।

वैसे तो हमारे पास इतिहास का अवतारवाद का सिद्धांत हैं, जिसके अनुसार इतिहास एक दैवी योजना के तहत् चलता है। मानव जाति को हर प्रकार का कष्‍ट झेलते हुए उस समय तक निरंतर बने रहना होता है जब तक कोई अवतार न हो। पर अम्बेदकर का मानना था कि यदि समय की सही मांग को पहचानने वाले ज्ञान चक्षु हों, उसे सही मार्ग दिखाने का साहस एवं शौर्य हो तो एक महापुरूष द्वारा भी किसी भी युग का उद्धार हो सकता है। दैवी या सामाजिक शक्तियों को मानना और झेलना हमारी मजबूरी है , पर मनुष्य इतिहास के निर्माण का एक साधन है। डॉक्टर अम्बेदकर इस मामले में दूरदर्शी माने जा सकते हैं कि वे समझते थे कि समाज के लोगो के बीच जितनी सं‍तुलित आर्थिक स्थिति होगी, उतना ही देश में विकास हो सकता है। ऐसे में जल्‍द ही भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बन सकता है। पर उनकी सोच का मतलब परिवर्तित हो गया , उन्‍हें संपूर्ण राष्‍ट्र का ना मान कर सिर्फ दलितों और पिछडो का मसीहा बना दिया।

ambedkar ke vichar


ऐसा इसलिए क्‍योंकि अम्बेदकर ने भारत की जाति व्‍यवस्‍था को समझने के लिए अधिक श्रम और समय दिया । उनके हिसाब से आदिम समाज घुमन्तु कबीलों में बँटा समाज था, बाद में कुछ लोग गाँवों मे बस गए, किन्तु कुछ लोग घुमंतु बने रहे । कालांतर में एक समझौते के तहत किसी हमले की हालत में छितरे लोग, बसे लोगों के सुरक्षा कवच का काम और बसे हुए लोग उन्हे रहने को सीमा पर जगह और अपने मृत पशु देने लगें। भारत में यही छितरे लोग अछूत बन गए। प्राचीन वैदिक संस्कृति बलि की संस्कृति थी, नरमेध, अश्वमेध और गोमेध आदि यज्ञों में नर, अश्व, गो आदि की बलियां होती थीं और सब मिल कर सारा मांस आपस में बाँट लेते थे।

पर बुद्ध के मानवीय धर्म का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा.. बड़ी संख्या में राजाओं और आम जन ने ब्राह्मण धर्म को ठुकरा कर बुद्ध के सच्चे धर्म को अपना लिया.। ब्राह्मण संघर्षशील हो गए, देश में लगातार बौद्धो को हटाकर ब्राह्मण धर्म को पुनर्स्थापित किया जाने लगा। पर जनमामस में अहिंसा का भाव बैठ गया था जो कृषि आधारित समाज के लिये उपयोगी भी था। बौद्ध हिंसा के विरोधी होने के बावजूद ऐसे जानवर का मांस खा लेते थे जिसे उनके लिये मारा न गया हो। बौद्धो से भी दो कदम आगे निकलने के लिए ब्राह्मणों ने गोवध को सबसे बड़ा पाप घोषित कर दिया और गोमांस खाने वाले को अस्पृश्य , ऐसे में ब्राह्मण गोभक्षक से गोरक्षक बन गये। प्राचीन समझौते के तहत मृत जानवरों को ठिकाने लगाने का काम कर रहे छितरे लोगों के लिए मृत जानवरों का मांस खाना मजबूरी थी , इसलिए ये अस्पृश्य हो गये, इसकी शुरुआत अम्‍बेदकर ४०० ई. के आस पास का तय करते हैं।

अम्‍बेदकर आर्थिक सुधार का मॉडल नीचे से ऊपर की ओर रखना चाहते थे , वे सामाजिक ढांचे में दलितों को सम्मानजनक स्थान दिलाना चाहते थे। वे हिंदू समाज के आंतरिक सुधार को लेकर बहुत चिंतित थे। 1930 में गांधी जी द्वारा दलितों को हरिजन कहा जाना भी उन्‍हें अपमानजनक महसूस हुआ , न सिर्फ इसलिये कि दक्षिण भारत में मन्दिरों की देवदासियों के अवैध सन्तानो को हरिजन कहा जाता था, बल्कि इसलिये भी इस शब्द से दलित हिन्दू समाज की मुख्य धारा से अलग थलग दिखायी पडते थे। हिंदू या अन्‍य सम्प्रदायों से उनका कोई विद्वेष नहीं था। अम्बेदकर ने जब धर्म परिवर्तन का फैसला लिया तो उनको मनाने कई धर्माचार्य पहुंचे लेकिन अम्बेदकर ने सबको ठुकरा कर बौद्ध धर्म चुना था। शायद अम्बेदकर के मन में ये बात थी कि जिन दलितों ने अतीत में इस्लाम, इसाई और सिख धर्म अपनाया था समाजिक-आर्थिक रुप से उनमें कोई खास बदलाव नहीं आय़ा। जब एक हिंदू धर्माचार्य अम्बेदकर के पास हिंदू धर्म में ही बने रहने का आग्रह कर रहे थे तो अम्बेदकर ने उनसे पूछा कि क्या हिंदू समाज, शंकराचार्य के पद पर एक दलित को स्वीकार कर लेगा ?

इन दिनों महापुरूषों की जयंती भी जाति के आधार पर ही मनाई जाती है। बाबा अम्‍बेदकर भले ही संविधान के जरिये सबकी बराबरी की वकालत करते रहे मगर आज उनके नाम पर कोई भी राजनीति करने से नहीं चूक रहा। दलित अगर एकजुट हो किसी के पक्ष में मतदान कर दे तो सत्ता मिलनी तय है, पार्टियां दलितों का मसीहा क्‍यूं न बने ? सभी पार्टी अम्बेदकर के विचारों को ही पूरा करने का दंभ भरती है। इनके नाम पर सिर्फ जयंती मनाने , जुलूस निकालने या संस्‍थाओं , पुरस्‍कारों के नाम रखने और आरक्षण की राजनीति करने से कोई लाभ नहीं। दलितों के लिए हर प्रकार की सुविधाएं और उनकी आनेवाली पीढियों की प्रतिभाओं को विकास का सर्वोत्तम प्रबन्ध करके ही हम सार्थक ढंग से बाबा अम्बेदकर जयंती मना सकते हैं। तभी समाज में समता और समरसता बनी रह सकती है।



फिर वह बाबा मेरे पिताजी के पैरों पर गिर पडा .. मुझे बचा लो !!

Baba ki kahani

फिर वह बाबा मेरे पिताजी के पैरों पर गिर पडा .. मुझे बचा लो !!

'आपलोगों ने सुना या नहीं , कालीचरण लौट गया है' आंगन में आते ही 'खबर कागज' ने समाचार सुनाया। हमेशा की तरह हमलोगों के लिए यह एक सनसनीखेज खबर थी , इसी प्रकार की खबर सुनाने के लिए ही तो हमलोगों ने मुहल्‍ले के उस व्‍यक्ति को 'खबर कागज' की पदवी दी थी। हमलोग सब चौंक पडे 'कहां है अभी वो' 'अभी वह फलाने गांव में है , दो चार घंटे में यहां पहुंच जाएगा , 'बाबा' बना कालीचरण उस गांव में भिक्षा के लिए आया था , लोगों ने उसे पहचान लिया है , उसे लेने के लिए लोग चले गए हैं' हमलोगों को सूचित कर वे दूसरों के घर चल पडे , गांव में इस प्रकार के खबर के बाद उनकी व्‍यस्‍तता बढनी ही थी। कालीचरण के लौटने की खबर से पूरे गांव में खुशी की लहर थी।

हमलोगों के लिए यह खबर तो बिल्‍कुल खास थी , क्‍यूंकि हमारे बिल्‍कुल बगल में हमारे गोशाले से सटा हुआ कालीचरण के परिवार में उसके माता पिता , दो भाई और एक बहन रहते थे। गांव गांव में हर तरह की बिजली की चक्‍की के आने से उनलोगों की रोजी रोटी की समस्‍या खडी हो गयी थी , क्‍यूंकि उन्‍हीं की जाति के लोगों के यहां के कोल्‍हू में गांव भर के तेल की पेराई होती थी। कुछ दिनों तक तंगी झेलने से उसके पिताजी हताश और निराश थे , पर उसकी मां ने रोजी रोटी का एक साधन निकाल लिया था। गृहस्‍थों के घरों से धान खरीदकर उससे चावल बनवाकर बाजार में बेचने का कार्य शुरू किया। बहुत मेहनत करने के बावजूद महाजनों को ब्‍याज देने के बाद खाने पीने की व्‍यवस्‍था मात्र ही हल हो सकी थी , फिर भी उसने दोनो बेटो से मजदूरी न करवाकर स्‍कूल में नाम लिखवा दिया था। धीरे धीरे दोनो बेटे मैट्रिक पास कर गए थे और पढे लिखे और सभ्‍य शालीन अपने पुत्रों को देखकर मां की खुशी का ठिकाना न था।

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शादी भी हो गयी और बच्‍चे भी ,  पर किसी प्रकार की नौकरी पा लेने की उनकी आशा निराशा में ही बदल गयी। सरकार के द्वारा दिए जाने वाले रिजर्वेशन का फायदा भी ऐसे लोगों को नहीं मिलना उसके औचित्‍य पर एक बडा प्रश्‍न खडा करता है। मैट्रिक पास करने से कुछ नहीं होता , अंत में उन्‍हें मजदूरी करने को बाध्‍य होना पडा। दिमाग चला चुके उनके बेटों के लिए इतनी शारिरीक मेहनत बर्दाश्‍त के बाहर था , उन्‍हें अक्‍सर चिडचिडाहट होती और कभी कभार झगडे झंझट की आवाज हमारे कानों में भी पडती। एक दिन बात कुछ अधिक ही बढ गयी , गुस्‍से से कालीचरण घर से निकला , तो लौटकर वापस ही नहीं आया। बरसात का दिन था , सभी नदी नाले में तेज पानी का बहाव , कहीं कूदकर जान ही दे दी हो , पर ये बात परिवार वालों को संतोष देता रहा कि शायद 'कालीचरण' बाबा बन गया हो। इस बात के दस वर्ष पूरे हो गए थे। कालीचरण के जाने से दुखी बाल और दाढी न बनाने के प्रण से उसके पिताजी का रूप भी बाबाजी का ही हो गया था।

सचमुच दो बजे को उस बाबा को उसके घर लाया गया। उस गांव के लोगों को बाबा भले ही कालीचरण लग रहा हो , पर हमारे गांववालों को उसके चेहरे में फर्क दिखा। कारण पूछने पर उसने बताया कि दीक्षा के दौरान उसे कई योनियों में परिवर्तित किया गया है , इसलिए उसका रूप कुछ अलग है। इस बात से गांववालों की पूरी सहानुभूति उसे मिल गयी। उसके दर्शन के लिए गांववालों का तांता लग गया। क्‍या गांववाले , क्‍या परिवार वाले , क्‍या बहन , क्‍या पत्‍नी ... सबने मान लिया था कि वह कालीचरण ही है। पर योनि परिवर्तन की बात कुछ पढे लिखे लोगों को नहीं जंच रही थी , खासकर उसकी इसी बात को सुनकर मेरे‍ पिताजी मान चुके थे कि यह कालीचरण नहीं कोई ठग है। पर इतने लोगों के बीच में एक की सही बात को भी कौन सुनेगा , यही सोंचकर उसके पोल के खुद खुलने का इंतजार कर रहे थे।


बाबा जी की पूरी सेवा हो रही थी , बहन तेल मालिश कर रही थी , तो भाई नहला रहा था। मां और पत्‍नी उसे स्‍वादिष्‍ट खाने खिलाए जा रही थी। यहां तक तो ठीक था , उस घर में कोई बडी संपत्ति तो नहीं थी , कालीचरण का रूप धरे उस बाबाजी के द्वारा लूटे जाने का भय होता। पर एक अबला स्‍त्री कहीं उसके धोखे में आ जाए , पापाजी को यही चिंता सता रही थी। पर एकबारगी विरोध भी नहीं किया जा सकता था , सो कोई उपाय निकालने की दिशा में वे चिंतन कर रहे थे। उसी वक्‍त मुहल्‍ले के तीन व्‍यक्ति हमारे आंगन में आ गए , एक ने पापाजी से पूछा कि क्‍या उन्‍हे विश्‍वास है कि वह बाबा कालीचरन ही है।

मेरे पापाजी ने 'ना' में सर हिलाया , उनमें से एक व्‍यक्ति के लिए इतना ही काफी था , वे तेजी से कालीचरन के आंगन में पहुंचे और पूछा 'क्‍या तुम कालीचरण हो'
उसका 'हां' कहना था कि गाल में एक चांटा।
'सामने किसका घर है'
'फलाने का' गाल में दूसरा चांटा।
'ये कौन है'
'फलाने हैं' गाल में तीसरा चांटा।
'मुझे माफ कर दो , उनलोगो ने जबरदस्‍ती किया , मैने नहीं कहा कि मैं कालीचरण हूं' तुरंत उसने दया की भीख मांगनी शुरू की और वो चांटे पर चांटा लगाए जा रहे थे। हल्‍ला गुल्‍ला सुनकर पापाजी वहां पहुंचे और उस सज्‍जन को डांटना शुरू किया.. 'गांव में आए मेहमान के साथ ऐसा व्‍यवहार करते हैं क्‍या'
'मेहमान है तो मेहमान की तरह रहे , यहां सबको बेवकूफ क्‍यूं बना रहा है' वो गुस्‍से से तमतमाए था और पूरा गांव तमाशा देख रहा था। उसके रौद्र रूप को देखकर वो बाबा बहुत भयभीत था , मेरे पापाजी के हमदर्दी भरे शब्‍द को सुनकर वह उनके पैरों पर वह गिर पडा 'मुझे बचा लो' । फिर पापाजी ने सबको शांत किया और मौका देखते ही वह बाबा सिर पर पैर रखकर भागा।



विश्‍वास और श्रद्धा नहीं ... बौद्ध धर्म की नीव बुद्धि है !!

Gautam buddha ke vichar

विश्‍वास और श्रद्धा नहीं ... बौद्ध धर्म की नीव बुद्धि है !!

बौद्ध धर्म एक अनीश्‍वरवादी धर्म है, इसके अनुसार कर्म ही जीवन में सुख और दुख लाता है। भारत ही एक ऐसा अद्भूत देश है जहां ईश्वर के बिना भी धर्म चल जाता है। ईश्वर के बिना भी बौद्ध धर्म को सद्धर्म माना गया है। दुनिया के प्रत्येक धर्मों का आधार विश्वास और श्रद्धा है जबकि बौद्ध धर्म की नीव बुद्धि है, यह इस धर्म और गौतम बुद्ध के प्रति आकर्षित करता है। सभी धर्म अपना दर्शन सुख से आरम्भ करते हैं जो कि सर्वसाधारण की समझ से कोसों दूर होता है। महात्मा बुद्ध अपना दर्शन दुःख की खोज से आरम्भ तो करते हैं पर परिणति सुख पर ही होती है। बौद्ध धर्म का आधार वाक्य है ‘सोचो, विचारो, अनुभव करो जब परम श्रेयस् तुम्हारे अनुभव में आ जाये तो श्रद्धा या विश्वास करना नहीं होगा स्वतः हो जाएगा।’

बौद्ध धर्म के चार तीर्थ स्थल हैं- लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर। लुम्बिनी  नेपाल में , बोधगया बिहार में , सारनाथ काशी के पास और कुशीनगर गोरखपुर के पास है। बौद्ध धर्म एक धर्म ही नहीं पूरा दर्शन है। महात्मा बुद्ध ने इसकी स्‍थापना की, इन्‍हें गौतम बुद्ध, सिद्धार्थ, तथागत और बोधिसत्व भी कहा जाता है। उनके गुज़रने के अगले पाँच शताब्दियों में यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला और बाद में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया। बौद्ध धर्म दुनिया का चौथा बडा धर्म माना गया है , क्‍योंकि इसे पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं। "अज्ञानता की नींद"से जागने वाले ,  जिन्होने सालों के ध्यान के बाद यथार्थता का सत्य भाव पहचाना हो , वे "बुद्ध" कहलाते हैं ।

gautam buddha ke vichar

बौद्ध धर्म के हिसाब से पहला आर्य सत्य दुःख है। जन्म दुःख है, जरा दुःख है, व्याधि दुःख है, मृत्यु दुःख है, अप्रिय का मिलना दुःख है, प्रिय का बिछुड़ना दुःख है, इच्छित वस्तु का न मिलना दुःख है। दुःख समुदय नाम का दूसरा आर्य सत्य तृष्णा है, सांसारिक उपभोगों की तृष्णा, स्वर्गलोक में जाने की तृष्णा और आत्महत्या करके संसार से लुप्त हो जाने की तृष्णा, इन तीन तृष्णाओं से मनुष्य अनेक तरह का पापाचरण करता है और दुःख भोगता है। तीसरा आर्य सत्य दुःखनिरोध है। तृष्णा का निरोध करने से निर्वाण की प्राप्ति होती है, देहदंड या कामोपभोग से मोक्षलाभ होने का नहीं। चौथा आर्य सत्य दुःख निरोधगामिनी प्रतिपद् है। यह दुःख निरोधगामिनी प्रतिपद् नामक आर्य सत्य भावना करने योग्य है। इसी आर्य सत्य को अष्टांगिक मार्ग कहते हैं। वे अष्टांग ये हैं :- 1. सम्यक्‌ दृष्टि, 2. सम्यक्‌ संकल्प, 3. सम्यक्‌ वचन, 4. सम्यक्‌ कर्मांत, 5. सम्यक्‌ आजीव, 6. सम्यक्‌ व्यायाम, 7. सम्यक्‌ स्मृति, 8. सम्यक्‌ समाधि। दुःख का निरोध इसी अष्टांगिक मार्ग पर चलने से होता है। पहला अंत अत्यंतहीन, ग्राम्य, निकृष्टजनों के योग्य, अनार्य्य और अनर्थकारी है। दूसरा अंत है शरीर को दंड देकर दुःख उठाना। इन दोनों को त्याग कर मध्यमा प्रतिपदा का मार्ग ग्रहण करना चाहिए। यह मध्यमा प्रतिपदा चक्षुदायिनी और ज्ञानप्रदायिनी है।


कलिंग के युद्ध के बाद अशोक ने व्यक्ति गत रूप से बौद्ध धर्म अपना लिया था , अशोक के शासनकाल में ही बौद्ध भिक्षु विभिन्नी देशों में भेजे गये, जिनमें अशोक के पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा गया । अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धर्मयात्राओं का प्रारम्भ किया , राजकीय पदाधिकारियों और धर्म महापात्रों की नियुक्ति की, दिव्य रूपों का प्रदर्शन तथा धर्म श्रावण एवं धर्मोपदेश की व्यवस्था की लोकाचारिता के कार्य, धर्मलिपियों का खुदवाना तथा विदेशों में धर्म प्रचार को प्रचारक भेजने आदि काम किए। इस तरह विभिन्न् धार्मिक सम्प्रदायों के बीच द्वेषभाव को मिटाकर धर्म की एकता स्थापित करने में अशोक ने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभायी।