आज चंद्रशेखर हाडा जी ने अपने ब्लागमें मेरी कैरीकेचर बनायी। अजय कु झा जी ने बिल्कुल सही कहा , उनकी तूलिका का जवाब नहीं , बहुत अच्छी फोटो उतार लेते हें वे। अन्य लोगों को भी यह अच्छी लगी , बहुत बहुत धन्यवाद उनका । पर घूमते घामते श्यामल सुमन जी भी वहां पहुंचे , कैरीकेचर तो उन्हे अच्छी लगी ,पर वे शायद चेहरे पर वो भाव ढूंढ रहे थे , जो रांची ब्लागर मीट में उन्होने मेरे चेहरे पर देखा था। इसलिए थोडी निराशा तो स्वाभाविक ही थी। पर हाडा जी की क्या गलती ? उन्हें मेरे प्रोफाइल में जो फोटो मिली , उसी के भाव को तो वे उतार सकेंगे। अपने प्रोफाइल में ऐसी फोटो लगाने का इल्जाम आप मुझपर भी न लगाए तो अच्छा रहेगा , क्योंकि मैं तो हमेशा से परेशान हूं , कैमरे के इस सौतेले व्यवहार से।
जब मैट्रिक या इंटर के फार्म भरने के लिए पहली बार पासपोर्ट साइज का फोटो लेकर घर लौटी तो भाई ने उसे देखते ही मेरा मजाक बना दिया ‘ये तुम्हारी फोटो है या स्नेहलता दीदी की’ स्नेहलता दीदी हमारी टीचर थी , जिनका चेहरा काफी चौडा और भारी था। मेरा स्नेहलता दीदी जैसा फोटो निकालने का सारा इल्जाम गांव के स्टूडियो , उसके कैमरे और फोटोग्राफर पर ही लगा , मैं तो बच गयी। लेकिन बीए और एमए के समय शहर के स्टूडियो के द्वारा भी मेरा फोटो अच्छा नहीं आ सका तो इल्जाम मेरे खुद के चेहरे पर लगना ही था, यह बिल्कुल भी फोटोजनिक नहीं। जब रिश्ते के लिए फोटो भेजने की बारी आयी तो घरवाले परेशान, एक तो बेटी खूबसूरत नहीं , उपर से जितनी हो , उतना भी फोटो मे दिखाई न पडे , उनका परेशान होना स्वाभाविक था। रामगढ , रांची , हजारीबाग और धनबाद हर जगह के स्टूडियो में फोटो खिंचवायी गयी , पर कोई फायदा नहीं , कोई भी फोटो रिश्ते के लिए भेजने लायक नहीं था। तब घरवाले बिना फोटो के ही रिश्ते के लिए गए और सीधा मुझे देख लेने का ही निमंत्रण दे डाला। खैर, बिना फोटो के ही किसी तरह शादी हो गयी। इसलिए मेरे यहां कभी आए तो शादी का एलबम दिखाने की जिद न करें तो अच्छा रहेगा। वैसे फोटो अच्छी न आने का एक फायदा यह है कि बाजार में कितने भी अच्छे कैमरे क्यों न मिल रहे हों , लेने को जी नहीं ललचता और पैसे बच जाते हैं।
इसलिए अपने ब्लागर प्रोफाइल में फोटो डालने में भी मैं डेढ वर्षों से आनाकानी ही कर रही थी , पर बच्चों के जिद पर मैने डाल दिया। पर शायद मेरी फोटो मुझसे काफी अलग थी , तभी तो रांची ब्लाग मीट में मुझे देखकर सब चौंके । और किसी ने तो पहले कुछ नहीं कहा , पर शैलेश भारतवासी जी अपने को बिल्कुल नहीं रोक पाए। उन्होने तुरंत सवाल दाग ही दिया ‘आपने अपनी प्रोफाइल में वैसी फोटो क्यों लगा रखी है’ , अब मैं उन्हें क्या समझाती कि अभी तक के सारे कैमरे मेरे साथ सौतेला व्यवहार ही कर रहे हैं , मेरी चुप्पी पर उन्होने तो यही समझा होगा कि जानबूझकर लोगों द्वारा परेशान न किए जाने के भय से इन्होने अपनी उम्र से बडी लगनेवाली फोटो लगा रखी है। बाद में धीरे धीरे पारूल जी या अन्य लोगों ने भी बताया कि मेरी फोटो मुझसे बिल्कुल अलग है। फिर मेरी एक मित्र ने प्रोफाइल से मेरी फोटो हटवा ही दी थी , पर उस दिन रचना जी के कहने पर मैने पुन: उसे डाल दिया। एक मित्र का कहना है कि मैं जब तक ब्लागवाणी से अपनी फोटो न हटा लूं , वह मेरा ब्लाग नहीं पढेगी। पर मैने न तो ब्लागवाणी में अपनी फोटो डाली है और न हटाने के बारे में जानकारी है । अब वह मेरी पोस्ट न भी पढे तो मैं क्या कर सकती हूं। मुझे तो अभी भी सिर्फ इंतजार है , शायद भविष्य में कोई कैमरा आए , जो मेरे चेहरे की चमक और आत्मविश्वास को दिखाते हुए मेरी फोटो ले सके ।
16 comments:
meri photo to kabvhi bhi acchi nahi aayi...
aap khud hi dekh lein...
:)
फोटो में दिखना व्यक्ति का बाह्य रूप है,असल तो अंदर है, अफसोस कि वह लोगों को नहीं दिखता।
फोटो में क्या है वो तो एक छवि है, असली इन्सान तो हमेशा उससे अलग होता है .
फोटो से आप उसके बाहरी रंग-रूप का अनुमान लगा सकते है लेकिन असली इन्सान तो उस के भीतर रहता है जिसकी छवि केवल उससे मिल कर ही मिल सकती है .
जो आपसे मिल चुके हैं उन्हें आप की असली छवि दिख गयी है जो नहीं मिले उन्हें वही दिख रहा है जो कैमरेने बनाई है .
कैरीकेचर ठीकठाक तो बना है जी!
चश्मा उतार कर फोटो खिंचवायिये. हो सकता है कुछ फरक पड़े.
Cartoon to vakai badhiya bana hai. Badhai.
तस्वीरों में तो अंतर आता ही है .
कैरीकेचर तो अच्छा बन पड़ा है। आपके प्रभाव और ज्ञान के लिहाज से भी...
फोटो कई तरह के होते है,कैसे है यह तो देखने वाले पर निभ्रर करता है
अरे संगीताजी! आप भी कहां इस चक्कर में आ गईं। छोडिए भी। हमें तो आपके लिखे हुए से ही मतलब है। बाकी सब तो नजरों का फेर है।
मराठी मे एक कहावत है दिसते तस नसते…………… यानी जैसा दिखता है वैसा होता नही है,या फ़िर यूं कह लिजिये आल देट ग्लिटर्स्…………………… हमारी भी फ़ोटो अच्छी नही आती।लेकिन हाड़ा जी के हाथों जादू है ये तो मानना पड़ेगा।
शायद भविष्य में कोई कैमरा आए , जो मेरे चेहरे की चमक और आत्मविश्वास को दिखाते हुए मेरी फोटो ले सके ।
... ये कैमरा तो देखने वाले की आंख में होता है.. आपका फोटो किसी मशीनी कैमरे का मोहताज नहीं..
sangeetaji aap hamari najron ke camera se apni photo utarvaayen to aapko pata chalega ki aap dunia ki sab se sunder aurat hain post interesting lagi abhaar
कैमरे भी मेरे साथ सौतेला व्यवहार करते हैंइस भी का क्या मतलब है? संगीता जी :-)
वैसे आपका कैरीकैचर बहुत बढ़िया बना है।
मैं तो फ़ोटो लगाने में ही विश्वास नहीं करती। पाठकों को मेरे लेखन से ही मुझे जानना चाहिए न कि मेरे चेहरे से। वैसे प्रत्येक व्यक्ति के विचार अलग होते हैं।
घुघूती बासूती
कैमरे की दया तभी होगी जब बारमबार उसकी शरण में जाते रहिएगा। मेरा तो यही तजुर्बा है कि दस बारह तसवीरों में एक में कैमरा दया दिखा ही देता है अपन तो इसी नुस्खे पर फोटो खिंचवाते रहते हैं।
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