जब मेरा बडा पुत्र आठवीं पास करने के बाद नवीं कक्षा में गया , उसने हमारे सामने हिन्दी छोडकर संस्कृत पढने की अपनी इच्छा जाहिर की। हमारे कारण पूछने पर उसने बताया कि बोर्ड की परीक्षा में हिन्दी में उतने नंबर नहीं आ सकते , जितने कि संस्कृत में आएंगे। जहां सभी बच्चे संस्कृत के कारण परीक्षाफल में अधिक प्रतिशत ला रहे हों और सभी विद्यालयों में ग्यारहवी में प्रवेश के लिए बोर्ड के नंबर ही देखे जाते हों , इसलिए उसकी बात को न मानना उसकी पढाई के साथ खिलवाड करना होता। हमलोगों ने उसे हिन्दी छोडकर संस्कृत पढने की सलाह दी । दसवीं के बोर्ड में अन्य विषयों के साथ उसे अंग्रेजी और संस्कृत पढनी पडी। पुन: छोटे बेटे के लिए हमें हिन्दी को छोडने का ही निर्णय लेना पडा।
ऐसा इसलिए नहीं कि हिन्दी रोचक विषय नहीं है , वरन् इसलिए कि हिन्दी में नंबर नहीं लाए जा सकते । अब भाषा तो भाषा होती है , हिन्दी हो या अंग्रेजी , गुजराती हो या बंगाली। सबमें कोर्स तो एक जैसे होने चाहिए , नंबर एक जैसे आने चाहिए। इस बात की ओर मेरा ध्यान काफी दिनों से था कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को हिन्दी के पाठ्यक्रम में सुधार लाना चाहिए , जब बोर्ड की परीक्षाओं में संस्कृत में 100 में 100 लाया जा सकता है , अंग्रेजी में 100 में 100 लाया जा सकता है , तो फिर हिन्दी में 100 में 100 क्यूं नहीं लाया जा सकता ? लाया जा सकता है तो फिर अंग्रेजी या संस्कृत की तुलना में हिन्दी का परिणाम खराब क्यूं होता है ? पर जब यह आलेख लिख रही हूं ,दसवीं बोर्ड की परीक्षाएं ही समाप्त कर दी गयी हैं , इसलिए इस बात का अब कोई औचित्य नहीं।
वैसे अंग्रेजी से मेरी कोई दुश्मनी नहीं , वर्तमान समय के वैश्वीकरण को देखते हुए यह अवश्य कहा जा सकता है कि अंग्रेजी की पढाई करना या करवाना कोई अपराध नहीं , अंग्रेजी की जानकारी से हमारे सामने ज्ञान का भंडार खुला होता है , हर क्षेत्र में कैरियर में आगे बढने में सुविधा होती है । मैं मानती हूं कि हर व्यक्ति को समय के अनुसार ही काम करना चाहिए , सिर्फ आदर्शो पर चलकर अपना नुकसान करने से कोई फायदा नहीं । पर जब हम खुद इतने मजबूत हो चुके हों कि दूसरी भाषा पर आश्रिति समाप्त हो जाए तो हमें अपनी भाषा की उन्नति के लिए काम करना ही चाहिए , सिर्फ हिन्दी दिवस मना लेने से कुछ भी नहीं होनेवाला।
पर इस दिशा में आनेवाली पीढी को सही ढंग से तैयार न कर पाने में मुझे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई)का भी कम दोष दिखाई नहीं देता। हिन्दुस्तान की अपनी भाषा हिन्दी को भी 12वीं कक्षा तक अनिवार्य विषय के रूप में न पढाया जाना मुझे तो सही नहीं लगता है। आज के सभी बच्चे 12वीं कक्षा तक विज्ञान , कला या कामर्स विषय के साथ अंग्रेजी की पढाई तो करते हैं , पर यदि अधिक रूचि न हो तो अपनी मातृभाषा को वह सिर्फ आठवीं तक या अधिकतम दसवीं तक ही पढ पाते हैं । आज हिन्दी दिवस के मौके पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से मेरा प्रश्न यही है कि क्या हिन्दी उनकी उपेक्षा का शिकार नहीं हो रही ? क्या हिन्दीभाषी प्रदेशों के बच्चों को 12वीं तक हिन्दी के एक अनिवार्य पेपर नहीं होने चाहिए ? क्या अन्य भाषाओं के विद्यार्थियों को भी अपनी मातृभाषा के अलावे हिन्दी नहीं पढाया जाना चाहिए ?
16 comments:
यह तो और भी अच्छी बात हुयी -संस्कृत का ज्ञान हो फिर हिन्दी अपने आप आ जायेगी -मान बेटी का रिश्ता है जो ! मगर हाँ केवल मार्क्स पाने की ही नीयत न हो नहीं तो नियति नहीं बदलेगी !
अरविंद मिश्रा जी , केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के द्वारा 12वीं तक हिन्दी को अनिवार्य रूप से न पढाया जाना मेरा मूल प्रश्न है !!
आज हिन्दी दिवस के मौके पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) से मेरा प्रश्न यही है कि क्या हिन्दी उनकी उपेक्षा का शिकार नहीं हो रही ? क्या हिन्दीभाषी प्रदेशों के बच्चों को 12वीं तक हिन्दी के एक अनिवार्य पेपर नहीं होने चाहिए ? क्या अन्य भाषाओं के विद्यार्थियों को भी अपनी मातृभाषा के अलावे हिन्दी नहीं पढाया जाना चाहिए ?
इन प्रश्नों के उत्तर
ये अंग्रेजीभक्त काले अंग्रेज क्या देंगे?
हिन्दी-दिवस की शुभकामनाएँ!
बहुत बढ़िया
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामना . हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार का संकल्प लें .
हिन्दी की उपेक्षा असहनीय है, हम हिंदुस्तानियों को हिन्दी के विकास में खुल कर आगे आना होगा..
हिन्दी दिवस की बधाई..
हैलो, लेडीज़ एंड जैंटलमैन, टूडे हमको हिंडी डे मनाना मांगटा...
अंग्रेज़ चले गए लेकिन अपनी....छोड़ गए...
आप सभी को हिंदी दिवस कि डेढ़ सारी शुभकामनायें...मै लाख अंग्रेजी सिख लूं.. अपने भविष्य के लिए लेकिन खुद कि अभिवयक्ति तो हिंदी में ही कर पाउँगा जीवन -भर.. क्यूं कि आत्मिक रिश्ता है इस भाषा के साथ ...हाँ आप बिलकुल सही कह रही हैं| १२वीं तक तो हिंदी सभी के लिए होनी चाहिए अनिवार्य रूप से ...
यह सही है कि अधिक नम्बर की लालच में बच्चे हिंदी के स्थान पर संस्कृत या फ़्रेंच या जर्मन ले लेते हैं ताकि कम पढ़कर अधिक नम्बर ला सकें।
संगीता जी "अंग्रेजी की जानकारी से हमारे सामने ज्ञान का भंडार खुला होता है"
सिर्फ़ हमारे लिये ही, क्योकि हम आलसी है, बाकी देशो मै सारी जानकारी उन की अपनी भाषा मै मिल जाती हैम जर्मन, इटली, फ़्रांस , रुस, चीन जेसे देशो मै सारी जान्कारी उन की अपनी भाषा मै मिलती है, हम दिवस को मानने के स्थान पर काम करे हिन्दी को आगे बढाये...
धन्यवाद
बहुत ही अच्छे विचारों के साथ सत्यता के बेहद निकट लगा यह आलेख, हिन्दी के विकास के लिये हमें आगे आना ही चाहिए बहुत-बहुत बधाई ।
यह तो हिन्दी की,उपेक्षा कि,यह बारहवी तक अनिवार्य विषय,नही है,और बहुत बार यह भी शोर होता है,राजकिय कार्य काज हिन्दी भाषा मे हो,प्रन्तु होता कितना है,यह हम सब जानते है,यह हिन्दी,भाषा कि दुर्दशा नही,तो और क्या है?
यह तो हिन्दी की,उपेक्षा नही,तो और क्या है,कि हमारी,मात्रभाषा बारहवी तक अनिवार्य विषय,नही,है?
बहुत बार हिन्दी मे राजकिय कार्य होने का शोर होता,परन्तु होता कितना है,यह सर्वविदित है,यह हिन्दी की,दुर्दशा नही तो और क्या है?
main bilkul sahamat hoon ki aapne jo kaha wah sach hai.(oh main devnagari me kyon nahi likh paa raha hoon??)
yeh jo paristhiti hai jisme vivash ho kar bachchon ko hindi 8vin ya 10 vin ke baad chadni par rahi hai usse hindi ka bahut nukshaan hua hai kyonki jab tak aap unchi kaxa me gambheer hindi nahi padhengeuske sahitya se aapka rishta nahin ban payega.
hum log kya kar sakte hain ki kam se kam hindi bhashi ksetra me yeh anivaarya bhasha ho.
main bilkul sahamat hoon ki aapne jo kaha wah sach hai.(oh main devnagari me kyon nahi likh paa raha hoon??)
yeh jo paristhiti hai jisme vivash ho kar bachchon ko hindi 8vin ya 10 vin ke baad chadni par rahi hai usse hindi ka bahut nukshaan hua hai kyonki jab tak aap unchi kaxa me gambheer hindi nahi padhengeuske sahitya se aapka rishta nahin ban payega.
hum log kya kar sakte hain ki kam se kam hindi bhashi ksetra me yeh anivaarya bhasha ho.
बिलकुल सही प्रश्न उठाया है आपने , खुद मुझे भी लगता है की १२ वी ही नहीं , बल्कि स्नातक स्तर तक हिंदी को अनिवार्य विषय घोषित कर देना चाहिए , और नोकरी के लिए हिंदी - अंग्रेजी दोनों भाषाओ का ज्ञान अनिवार्य घोषित कर देना चाहिए .
जहाँ एक तरफ तो सरकार हिंदी में काम करने के लिए विभिन्न प्रकार के निर्देश जारी करती रहती है ,
पर सरकार खुद राजभाषा हिंदी को गंभीरता से नहीं लेती , क्यों सभी मंत्रियों के लिए यह अनिवार्य नहीं किया जाता की वे अपनी शपथ हिंदी में ही ग्रहण करे , क्यों सभी सरकारी पत्र सिर्फ अंग्रेजी में ही होते है ,पदों के लिए अनिवार्य योग्यता में ही क्यों नहीं हिंदी ज्ञान , हिंदी टाइपिंग ,इत्यादी को महत्व दिया जाता ? यदि ये सब सरकार द्वारा अनिवार्य स्तर पर लागू किया जाये , तो किसी से कहने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी , की हिंदी में काम करों .
(चूकि मैं राजभाषा हिंदी से सम्बंधित पद पर हु , तो हमें यह सब बहुत भोगना पड़ता है , हम लोग इमानदारी से तिमाही रिपोर्ट बना कर भेजते है , तुंरत ही मंत्रालय से पत्र आ जाता है , की आपकी रिपोर्ट में ये -ये कमिया है , और तो और हमारा संसथान जो की एक तकनिकी संसथान है , और ४ साल पहले ही केंद्रीय संसथान में रूपांतरित हुआ है , और एकमात्र हिंदी कर्मचारी मैं ही हु , बावजूद इसके राजभाषा विभाग द्वारा हमारी ३ बार आकस्मिक जाँच हो चुकी है , और हमारी कमिया गिनाई गयी है , जबकि कई कार्यालयों से वह रिपोर्ट ही नहीं भेजी जाती , जहाँ एक नहीं ,कई कई हिंदी कर्मचारी है , और जो शुरू से ही केंद्रीय कार्यालय है ,तो उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती, क्यों ? हमसे कहाँ जाता है , की हर ३ महीने में एक हिंदी कार्यशाला आयोजित करके सबसे हिंदी में काम करने के लिए कहो , मैं पूछती हु की जब कोई कर्मचारी नियुक्त होता है , तभी उसे हिंदी में काम करने के अनिवार्य निर्देश क्यों नहीं जारी किये जाते ?)
हमारे अधिकारी गन कहते है , की मैडम एक तरफ तो सरकार का यह कहती है प्रत्येक पत्र अनिवार्य रूप से हिंदी में ही होना चाहिए , लेकिन खुद हमें जो सरकारी पत्र प्राप्त होते है ,वे अंग्रेजी में ही होते है , और यह बात बिलकुल सहीं भी है , सरकार को खुद इनसब पर अमल करना चाहिए , नहीं तो थोता राग आलपना बंद कर देना चाहिए
संगीता जी ,आपकी, समीर ,तथा वाणी जी की हौसला अफजाई ने ,कुछ लिखने का मौका दिया ,मई आभारी हूँ ,धन्यवाद
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