एक राजा को झूठी कहानियां सुनने का बहुत शौक था , मतलब कि ऐसी कहानी जो सच हो ही नहीं सकती। उन्होने पूरे राज्य में घोषणा कर दी थी कि उनको जो भी झूठी कहानी सुना दे , जो कभी सत्य हो ही नहीं सकती , तो राजा की ओर से इनाम के रूप में बडी राशि दी जाएगी। पूरे राज्य से राजा को ऐसी कहानियां सुनाने के लिए लोग आते , पर राजा को संतुष्टि नहीं होती। वे हर कहानी को सच्ची मान लेते , कहते 'ऐसा तो हो ही सकता है , कुछ ऐसी कहानी सुनाओं , जो हो ही नहीं सके'। लोग अपने सामर्थ्यभर पूरी कोशिश करते , पर इनाम किसी को नहीं मिल पाता था , क्यूंकि राजा स्वीकार ही नहीं करना चाहते थे कि ऐसी घटना नहीं हो सकती है। कई लोगों को निराश लौटते देख एक नागरिक ने राजा को सबक सिखाने का निश्चय किया। वह राजा के दरबार में पहुंचा और कहानी सुनाना आरंभ किया, साथ साथ राजा का जबाब भी सुनते जाइए .....
'एक व्यक्ति दो बैलों की सहायता से अपने खेत में हल चला रहा था, एक बैल ने अपनी पीठ पर ही गोबर कर दिया'
'इसमें कोई झूठ नहीं, गोबर पीठ मे जा सकता है'
'उस गोबर में पीपल का एक बीज गिरा , जिससे पीठ पर पीपल का एक पेड निकल आया , वह पेड बडा होकर आसमान को छूने लगा'
'इसमें भी कोई झूठी बात नहीं, ये भी हो सकता है'
'किसान पेड पर चढता हुआ बिल्कुल ऊपर की टहनी तक जा पहुंचा , उसका सर आसमान से टकरा रहा था'
'आगे कहो , यहां तक तो कोई झूठ बात नहीं लगती'
'किसान चढ तो आराम से गया , उस पीपल के पेड पर आम के फल लगे थे, उसे तोडकर उसने अपने झोले को पूरा भर लिया , पर उतरने वक्त उसे काफी दिक्कत हो रही थी , क्यूंकि जिन जिन टहनियों से वह गुजरता गया , उसके पैरों के भार से सारी टहनियां पेड से टूटकर जमीन पर गिरती चली गयी थी'
'ओह , ये तो बहुत दुख की बात है , फिर किसान उतरा कैसे ?'
'ऊपर की टहनी थी न , नीचे से किसी ने रस्सी फेकी , उसने उस रस्सी को ऊपरवाले टहनी पर बांधा , फिर रस्सी के सहारे नीचे उतरने लगा।'
'ईश्वर की कृपा है , उसे सहारा मिल गया , अब आगे कहो , कुछ झूठ सुनाओ।'
'आधी दूरी तक ही वह उतरा था कि रस्सी छोटी पड गयी , बडी मुश्किल से उसने ऊपर की रस्सी खोली , फिर उसी रस्सी को नीचे बची एक टहनी में बांधा , फिर उसके सहारे नीचे आने लगा। पर जमीन से 20 फीट ऊपर ही था कि रस्सी एक बार फिर कम गयी। वह वहां से कूद पडा'
'किसान नीचे तो सही सलामत आ गया न, अब आगे क्या हुआ , मजा ही नहीं आ रहा , क्यूंकि अभी तक तो तुमने कुछ झूठ कहा ही नहीं'
'सही सलामत तो नहीं कहा जा सकता , क्यूंकि एक तो वह कीचड में गिर कर उसमें फंस गया , दूसरी मुसीबत कि उसके दोनो पैरों की हड्डी टूट गयी'
'ओह , किसी किसी व्यक्ति पर तो बडी मुसीबत आ जाती है.. आगे क्या हुआ ?'
'सबसे पहले तो उसे पैरो का इलाज कराने की आवश्यकता थी , पर इलाज तो वह तब कराता , जब कीचड से बाहर निकलता , कीचड से निकलने का कोई उपाय नहीं था , वह थोडी दूर पर बने एक झोपडी में गया , वहां से एक कुदाल लाया , फिर कीचड साफ की , तब बाहर निकला , अब अपने पैर के इलाज के लिए उसे डॉक्टर के यहां जाना था'
'यहां तक तो तुम झूठी कहानी न सुना सके , इलाज के बाद तो कहानी समाप्त ही हो जाएगी, तुम भी हारे , ऐसा लग रहा है।'
राजा के कहीं भी 'हां' न कहने से वह व्यक्ति बिल्कुल परेशान हो चुका था , उसने राजा को मजा चखाना चाहा। उसने कहा ..
'नहीं , इलाज से पहले ही तो एक महत्वपूर्ण बात हो गयी, किसान कीचड से निकला ही था कि एक गधे को सामने से आते देखा , उसने गधे से कहा, 'ऐ गधे , मुझे डॉक्टर के पास ले चलोगे ? तो गधे ने कहा कि वह साधारण गधा नहीं , यहां के राजा का बाप है , किसान ने कहा , तुम झूठ बोल रहे हो , राजा गधा नहीं , तो उसका बाप गधा कैसे हो सकता है ? इसपर उसने कहा कि जाकर राजा से पूछ लो, उसका बाप गधा है या नहीं ? अब मैं तो नहीं जानता , आप ही बता सकते हैं सरकार , गधे ने सच कहा या झूठ'
'यह कैसे हो सकता है ? गधा मेरा बाप नहीं हो सकता'
'इसका अर्थ यह हुआ कि ये कहानी गलत है'
'हां हां , बिल्कुल गलत'
'तो फिर लाइए हमारा इनाम, हमने आपको झूठी कहानी सुना दी'
7 comments:
बड़ी अच्छी कहानी है पहले की कहानियां ऐसी ही होती थी , धन्यवाद
बढ़िया!!
इस गल्प-पिटारे पर तो इनाम पक्का हो गया!
बहुत सुंदर।
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।।
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कुछ खाने-खिलाने की भी तो बात हो जाए।
किसे मिला है 'संवाद' समूह का 'हास्य-व्यंग्य सम्मान?
Waah!
Holee kee anek shubhkamnayen!
acchee kahanee....... holi kee shubhkamnae.....
आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
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