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क्या लालू , बालू और कालू की मजेदार कहानी आपको याद है ??
अचानक बचपन में किसी पत्रिका में पढी एक मजेदार कहानी की आज मुझे याद आ गयी। किसी गांव में तीन भाई रहा करते थे .. लालू , बालू और कालू । लालू और बालू खेतों में काम करते , जबकि कालू का काम उस गांव के दारोगा जी के लिए खाना बनाना होता था। खेतों की फसल और कालू की तनख्वाह से तीनो भाइयों का जीवनयापन खुशी खुशी हो रहा था। पर कुछ ही दिनों बाद लालू और बालू को अहसास हुआ कि उन्हें खेत में बहुत अधिक मेहनत करनी पडती है और लालू सिर्फ दो समय का खाना बनाकर अच्छा अच्छा खाना खाकर आराम का जीवन जी रहा है। इस बात का अहसास होते ही दोनो भाई कालू से झगडा करने लगे।
कालू ने बहुत देर तक उन्हे समझाने की कोशिश की कि दारोगा जी का खाना बनाना बहुत आसान काम नहीं है , वे दोनो नहीं कर सकते। पर दोनो भाई इसे समझने को तैयार ही नहीं थे। दोनो भाइयों के विरोध को देखते हुए कालू ने उन्हें शांत करने के लिए दो चार दिनों तक उन्हें दारोगा जी के यहां खाना बनाने के लिए भेजने का निश्चय किया। दूसरे ही दिन लालू को इस कार्य के लिए भेजा गया , लालू थाने के अहाते में बने दारोगा जी के निवास पर पहुंचा। दारोगा जी ने उसका परिचय पूछा। उसने बताया कि वह कालू का भाई लालू है और उनका खाना बनाने के लिए यहां आया है।
दो दिन पहले गांव से लौटे दारोगा जी अपने चाचाजी की मृत्यु के क्रियाकर्म में अपना सर मुंडवा चुके थे और लॉन में बैठे पेपर पढ रहे थे। लालू की निगाह जब उनके सर पर पडी , तो वह जोर जोर से हंसने लगा। दारोगा जी ने उससे हंसने का कारण पूछा तो उसने बताया कि आपका सर तकला है , उसमें बिल्कुल भी बाल नहीं है , यदि किन्ही कारणों से आपका सर कट जाए तो उसे ढोया कैसे जाएगा ?
'तुम्हें बात करने की बिल्कुल भी तमीज नहीं , तुम्हें यहां किसने भेजा ?' अपने चाचाजी की मृत्यु से दुखी दारोगा जी को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं आयी और नाराज होकर उन्होने लालू को थाने में बंद कर दिया। शाम को खेत से लौटने के बाद बालू और कालू काफी देर तक लालू का इंतजार करते रहें । जब वह नहीं आया तो शाम के अंधेरे में ही कालू उसे ढंढने थाने की ओर चला। वहां जाकर गुस्से से भरे दारोगा जी से सारी बातें मालूम हुई। उसने दारोगा जी से कहा ' क्या बताऊं दारोगा जी , इसको थोडी भी अकल नहीं , इसे माफ कर दीजिए , अरे इतना तो दिमाग लगाना ही चाहिए था कि यदि आपका सर कट भी जाए , तो मुंह तो खुला होगा न , उसमें डंडा डालकर उससे आपके सर को उठाते हुए आराम से कहीं भी ले जाया जा सकता है।
दारोगा जी का गुस्सा और बढना ही था। उन्होने नाराज होकर बालू को भी थाने में बंद कर दिया। दोनो भाइयों का इंतजार करते हुए जब कालू थक गया , तो देर रात वह भी दारोगा जी के यहां पहुंचा। दारोगा जी ने उसका स्वागत किया और कहा कि तुमने किन बेवकूफ भाइयों को मेरे यहां भेज दिया था। उसके बाद उसे पूरी कहानी सुनायी। 'क्या कहूं सर, मैं तो इतने दिनों से इन्हें झेल रहा था, यह सोंचकर उन्हें यहां भेजा कि आप इनकी दो दिनों में अवश्य छुट्टी कर देंगे , तब मैं काम पर लग ही जाऊंगा, पर ये तो एक घंटे भी नहीं टिक सकें।'
'सर ये इतने बेवकूफ हैं , इन्हें इतना भी नहीं पता कि यदि किसी तरह आपका सर कट ही जाए , तो एक कान से धागा डालकर दूसरे कान से निकालकर आराम से आपके सर को ढुलकाते हुए ले जाया जा सकता है।'
उसके बाद कालू का भी क्या हाल हुआ होगा , इसका अनुमान आप लगा ही सकते हैं !!
8 comments:
बहुत रोचक!
bachpan mein padhi kahaniyon ki yaad dila di apne. badhiyaan!
:):) बहुत बढ़िया...बचपन कि कहानियों कि याद ताज़ा हो गयी
मज़ेदार! बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
रोचक !
दिलचस्प रचना
bahut majedar hai..shandar lekhan
हा-हा-हा
मजेदार किस्सा (कहानी) है
प्रणाम
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