सकारात्मक का मतलब क्या होता है, सकारात्मक और नकारात्मक सोच क्या है, सकारात्मक सोच कैसे बनाये, सकारात्मक सोच के फायदे क्या हैं, सकारात्मक सोच के उपाय क्या कर सकते हैं, खुद को, दिमाग को पॉजिटिव कैसे रखें - कुल मिलाकर इस ब्लॉग में पॉजिटिव थिंकिंग टिप्स यानि सकारात्मक सोच पर निबंध और सकारात्मक दृष्टिकोण मिलेगा आपको !
Thursday, 29 April 2010
व्यवसायी के इलाज के लिए रखे गए 65 लाख रूपए बचे ही थे .. उसका उपयोग क्यूं नहीं हुआ ??
चार वर्ष पूर्व एक व्यवसायी को कैंसर हो गया , उन्होने व्यवसाय में से एक करोड रूपए निकालकर अलग रखे। इस एक करोड रूपयों को निकाल देने से उनके व्यवसाय में रत्तीभर का भी फर्क न पडनेवाला था , इसलिए पूरी निश्चिंति से इलाज करवाते रहें । तीन वर्ष तक नवीनतम दवाइयों और ऑपरेशन के बल पर वे सामान्य जीवन जी सकने में समर्थ रहें , इन तीन वर्षों में अनुमानत: 35 लाख रूपए खर्च हो चुके थे , पर उसके बाद वे स्वर्ग सिधार गए। लोगों का मानना है कि दूसरा कोई होता तो कब उसके प्राण चले गए होते , इन्होने तो पैसों के बल पर तीन वर्ष काट लिए। पर मुझे ये बात पच नहीं रही , यदि वे पैसों के बल पर जीवित रहे , तो उनके पास तो इलाज के लिए रखे गए 65 लाख रूपए बचे ही थे , उसका उपयोग क्यूं नहीं हुआ ??
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14 comments:
अच्छी सार्थकता से भरी और जानकारी आधारित रचना के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद /
सवाल जायज है
65 लाख खतम होने तक तो जिन्दा रहना ही चाहिये था.
संगीता जी , जीना तो उसकी किस्मत में सिर्फ तीन वर्ष ही था मगर पैसे के बल पर वह कैंसर जैसी बीमारी में भी आराम से जी गया , वरना तो बड़ी दर्दनाक मौत देता है कैंसर !
विचारणीय प्रश्न है...
bahut hi achchha vichar rakha hai apane ki paise ki utani kimat nahin jitani ham samjhte hain. sabse bada iswar hai.
काश!! पैसे से जिन्दगी खरीदी जा सकती!
मौत और जिन्दगी का धन से क्या सरोकार?
जितनी चाबी भरी राम ने
उतना चले खिलौना।
धन से सांसे ही नहीं खरीदी जा सकती।
लेकिन भुखे को खाना खिलाया जा सकता है।
पैसों के बल पर नहीं, उन पैसों से ख़रीदे जा सकने वाले महंगे से महंगे इलाज के दम पर. पर अच्छे से अच्छे इलाज की भी एक सीमा है. कोई गरीब ग्रामीण होता तो एक साल भी नहीं जी पाता.
पैसों के बल पर नहीं, उन पैसों से ख़रीदे जा सकने वाले महंगे से महंगे इलाज के दम पर. पर अच्छे से अच्छे इलाज की भी एक सीमा है. वह कोई गरीब ग्रामीण होता तो एक साल भी नहीं जी पाता.
जब कैंसर का मरीज 35 लाख में तीन साल तक जिन्दा रह सकता है तो भला चंगा बूढा आदमी तो पांच लाख में एक साल काट ही देगा। यानी पचास लाख में दस साल और पांच करोड में सौ साल।
अभी से पैसे जोडना शुरू करता हूं, फिर देखता हूं कि कैसे दो सौ साल से पहले यमराज बुलाता है।
मौत का दिन तो निश्चित होता है...हाँ ये ज़रूर है कि उसने पैसों के दम पर इलाज कराने कि कोशिश की ....पैसों से साँसे नहीं खरीदी जा सकतीं...
मतलब इलाज का (पैसा का नहीं) जिंदगी पर कोई फर्क नहीं पडता...
उसने पैसे से इलाज करवाया.. जिंदगी नहीं खरीदी..और इलाज की जीतनी सीमा थी उतना जीया उसके बाद मर्जी रामजी की..
कई जटिल बीमारियों के ईलाज में पैसा लगता है.. जिसके पास होता है.. ठीक हो जाता है.. उम्र बढ़ा लेता है.. नहीं तो मर्जी रामजी की..
जैसे टीबी (सरल उदाहरण के लिए) के इलाज के लिए ५००० रूपए चाहिए.. जिसके पास है वो ठीक हो जाएगा (अमर नहीं) और जिसके पास नहीं वो धीरे धीरे कालग्रस्त हो जाएगा..
गणितीय तर्क से तो उसे करीबन 6 साल और जिन्दा रहना चाहिये था:-)
प्रणाम
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