मेहंदी लिथेसिई कुल का काँटेदार आठ दस फुट तक ऊंचा झाडीनुमा पौधा होता है , जिसका वैज्ञानिक नाम लॉसोनिया इनर्मिस है। इसे त्वचा, बाल, नाखून, चमड़ा और ऊन रंगने के काम में प्रयोग किया जाता है। जंगली रूप से यह ताल तलैयों के किनारे उगता है , पर इसकी टहनियों को काटकर भूमि में गाड़ देने से भी बाग बगीचे में नए पौधे लगाए जाते हैं। हमारे यहां मेहंदी के बिना श्रृंगार अधूरा माना जाता है, विवाह के अवसर पर भी मेहंदी की रस्म होती है। इसे प्रेम व सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. मेहंदी के महत्व को ध्यान में रखते हुए हल्के हरे रंग का नाम ही मेहंदी रंग दिया गया है। यहां तक कि एक जलप्रपात को इसलिए मेहंदी कुंड के नाम से बुलाया जाता है , क्यूंकि जल प्रपात (झरने) के आसपास की पहाडियां हरी-भरी होने से उनकी परछाई के कारण कुंड का रंग हरा दिखाई देता है।
मेहंदी को शरीर को सजाने का एक साधन के रूप में दक्षिण एशिया में उपयोग किया जाता रहा है। यह परंपरा ग्यारहवीं सदी से पहले से भारतीय समाज में चली आ रही है. १९९० के दशक से ये पश्चिमी देशों में भी चलन में आया है। इसकी छोटी चिकनी पत्तियों को पीसकर एक प्रकार का लेप बनाते हैं, जिसे स्त्रियाँ नाखून, हाथ, पैर तथा उँगलियों पर लगा लेती हैं। कुछ घंटों के बाद धो देने पर लगाया हुआ स्थान मैरून लाल रंग में रंग जाता है जो तीन चार सप्ताह तक नहीं छूटता। पत्तियों को पीसकर रखने से भी रंग देने वाला लेप तैयार किया जा सकता है। 16 श्रंगार में मेहंदी का विशेष महत्व है.
सावन का महीना तो मेहंदी के लिए खास है , चूंकि श्रावण माह को मधुमास भी कहा जाता है, इसलिए इस माह में महिलाएं विशेषकर मेहंदी लगाती हैं. इसका धार्मिक, सामाजिक महत्व के साथ-साथ आयुर्वेद से भी संबंध है. आध्यात्मिक आख्यान के अनुसार पार्वती ने इसी माह में शंकर को प्रसन्न कर उन्हें पति रूप में प्राप्त किया था. करीब एक दशक पूर्व गांवों में मेहंदी की पत्तियां तोड़ कर जमा कर इसे सिलौटी-लोढ़ी से पीसा जाता था , अधिक रंग आने के लिए इसमें कत्था, चाय का पानी , नींबू का रस आदि मिलाया जाता था, मेहंदी लगाने के दौरान मेहंदी के गीत गाये जाते थे. सावन में बरसात के कारण उत्पन्न होने वाली कई प्रकार की बीमारियों में मेहंदी का उपयोग काफी लाभदायक होता है. बरसात के दिनों में पैर-हाथ में पानी लग जाने पर अभी भी गांव में जानकार किसान व मजदूर मेहंदी लगाते हैं.
मेहंदी लगाना एक कला है। इस कला ने राजस्थान और उत्तर भारत में काफी उन्नति की है। लगभग हर शहर में मेहंदी लगाने की प्रतियोगिता होती है। आजकल इस क्षेत्र में भी रोजगार उपलब्ध हो गए हैं। पहले यह सिर्फ महिलाओं का काम हुआ करता था , अब पुरूष भी इस क्षेत्र में आ गए हैं। आजकल मेहंदी पार्लरों में विशेषज्ञों की फी बहुत अधिक होती है। पहले बारीक पिसी हुई गीली मेहंदी में सीक डुबोकर हाथों में सुंदर डिजाइन बनाए जाते थे , कुछ दिन बाजार में प्लास्टिक के सॉचे मिलने लगे , जिसमें मेहंदी को लगाने से डिजाइन अपने आप उग आती थी। उसके बाद कुप्पियां बनाकर मेहंदी लगाने की परंपरा चली। अब बाजार में बनी बनायी कुप्पियां मिलती हैं , जिससे मेहंदी लगाना काफी आसान हो गया है। बाजार में डिजाइन की पुस्तकों के भी भंडार हैं।
आयुर्वेद के हिसाब से मेहंदी कफ-पित्त शामक होती है. मसूड़े के ऐसे असाध्य रोग, जो दूसरी औषधियों से न मिटते हों, मेहंदी के पत्तों के उबले हुए पानी से कुल्ला करने से मिट जाते हैं। मेहंदी को उबालकर उसके पानी से कुल्ले करने से जहां मुंह के छाले मिटते हैं , वहीं धोने से फोड़े-फुन्सी में लाभ होता है। गर्मी और बरसात के उमस भरे मौसम में पीठ और गले पर व शरीर की नरम त्वचा पर घुमौरियां होने लगती हैं। मेहंदी के लेप से एकदम उनकी जलन मिटकर लाभ हो जाता है। मेहंदी के पत्ते, आंवला, जरा-सी नील दूध में पीसकर बालों पर लगाने से लाभ होता है। इसके फूलों को सुखाकर सुगंधित तेल भी निकाला जाता है। इसपौधे की छाल तथा पत्तियाँ दवा में प्रयुक्त होती हैं।
पिछले कुछ वर्षो में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा तैयार रेडीमेड मेहंदी ने बाजार पर कब्जा कर लिया है। दुकानों में उपलब्ध मेहंदी केमिकल का बना होता है. इसका शरीर को कोई लाभ नहीं मिलता. रंग भी बनावटी होता है. अर्थात गाढ़ा लाल, जो काले रंग के करीब होता है.पीसी हुई मेहंदी लगाने का जो शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता था, वह आज की मेहंदी में नहीं है।.प्राकृतिक मेहंदी की ललाई में जो नजर को खींचने की ताकत थी, वह रेडीमेड मेहंदी की कालिमायुक्त लाली में कहां से होगी , पर आसान उपलब्धता तथा लगाने में सुगमता रेडीमेड मेहंदी को सर्वप्रिय बना रहा है.
आजकल रेग्युलर मेहंदी की जगह ज्वेलरी मेहंदी भी प्रचलन में हैं , जिसे ज्वेलरी और मेहंदी से मिलाकर बनाया गया है। इसमें आर्टिस्ट आपकी ड्रेस के डिजाइन का खास हिस्सा कॉपी करके हूबहू आपके हाथों पर बना सकता है। इसके लिए मेहंदी, स्पार्कल, कलर्स, सितारे, मोती, चांदी व सोना वगैरह यूज किया जाता है। अगर आपकी ड्रेस पर सितारे व मोती हैं, तो इन्हें भी मेहंदी में लगवा सकती हैं। इसे किसी विशेष पार्टी या शादी के मौके पर बनवाया जा सकता है। इसे लगाने के लिए हाथों पर स्किन से मैच करता हुआ बेस कोट लगाया जाता है। फिर इसे सीलर से सील कर दिया जाता है, ताकि आपका डिजाइन देर तक टिका रहे। तभी तो धूम होती है ... मेहंदी लगाके रखना !!
मेहंदी को शरीर को सजाने का एक साधन के रूप में दक्षिण एशिया में उपयोग किया जाता रहा है। यह परंपरा ग्यारहवीं सदी से पहले से भारतीय समाज में चली आ रही है. १९९० के दशक से ये पश्चिमी देशों में भी चलन में आया है। इसकी छोटी चिकनी पत्तियों को पीसकर एक प्रकार का लेप बनाते हैं, जिसे स्त्रियाँ नाखून, हाथ, पैर तथा उँगलियों पर लगा लेती हैं। कुछ घंटों के बाद धो देने पर लगाया हुआ स्थान मैरून लाल रंग में रंग जाता है जो तीन चार सप्ताह तक नहीं छूटता। पत्तियों को पीसकर रखने से भी रंग देने वाला लेप तैयार किया जा सकता है। 16 श्रंगार में मेहंदी का विशेष महत्व है.
सावन का महीना तो मेहंदी के लिए खास है , चूंकि श्रावण माह को मधुमास भी कहा जाता है, इसलिए इस माह में महिलाएं विशेषकर मेहंदी लगाती हैं. इसका धार्मिक, सामाजिक महत्व के साथ-साथ आयुर्वेद से भी संबंध है. आध्यात्मिक आख्यान के अनुसार पार्वती ने इसी माह में शंकर को प्रसन्न कर उन्हें पति रूप में प्राप्त किया था. करीब एक दशक पूर्व गांवों में मेहंदी की पत्तियां तोड़ कर जमा कर इसे सिलौटी-लोढ़ी से पीसा जाता था , अधिक रंग आने के लिए इसमें कत्था, चाय का पानी , नींबू का रस आदि मिलाया जाता था, मेहंदी लगाने के दौरान मेहंदी के गीत गाये जाते थे. सावन में बरसात के कारण उत्पन्न होने वाली कई प्रकार की बीमारियों में मेहंदी का उपयोग काफी लाभदायक होता है. बरसात के दिनों में पैर-हाथ में पानी लग जाने पर अभी भी गांव में जानकार किसान व मजदूर मेहंदी लगाते हैं.
मेहंदी लगाना एक कला है। इस कला ने राजस्थान और उत्तर भारत में काफी उन्नति की है। लगभग हर शहर में मेहंदी लगाने की प्रतियोगिता होती है। आजकल इस क्षेत्र में भी रोजगार उपलब्ध हो गए हैं। पहले यह सिर्फ महिलाओं का काम हुआ करता था , अब पुरूष भी इस क्षेत्र में आ गए हैं। आजकल मेहंदी पार्लरों में विशेषज्ञों की फी बहुत अधिक होती है। पहले बारीक पिसी हुई गीली मेहंदी में सीक डुबोकर हाथों में सुंदर डिजाइन बनाए जाते थे , कुछ दिन बाजार में प्लास्टिक के सॉचे मिलने लगे , जिसमें मेहंदी को लगाने से डिजाइन अपने आप उग आती थी। उसके बाद कुप्पियां बनाकर मेहंदी लगाने की परंपरा चली। अब बाजार में बनी बनायी कुप्पियां मिलती हैं , जिससे मेहंदी लगाना काफी आसान हो गया है। बाजार में डिजाइन की पुस्तकों के भी भंडार हैं।
आयुर्वेद के हिसाब से मेहंदी कफ-पित्त शामक होती है. मसूड़े के ऐसे असाध्य रोग, जो दूसरी औषधियों से न मिटते हों, मेहंदी के पत्तों के उबले हुए पानी से कुल्ला करने से मिट जाते हैं। मेहंदी को उबालकर उसके पानी से कुल्ले करने से जहां मुंह के छाले मिटते हैं , वहीं धोने से फोड़े-फुन्सी में लाभ होता है। गर्मी और बरसात के उमस भरे मौसम में पीठ और गले पर व शरीर की नरम त्वचा पर घुमौरियां होने लगती हैं। मेहंदी के लेप से एकदम उनकी जलन मिटकर लाभ हो जाता है। मेहंदी के पत्ते, आंवला, जरा-सी नील दूध में पीसकर बालों पर लगाने से लाभ होता है। इसके फूलों को सुखाकर सुगंधित तेल भी निकाला जाता है। इसपौधे की छाल तथा पत्तियाँ दवा में प्रयुक्त होती हैं।
पिछले कुछ वर्षो में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा तैयार रेडीमेड मेहंदी ने बाजार पर कब्जा कर लिया है। दुकानों में उपलब्ध मेहंदी केमिकल का बना होता है. इसका शरीर को कोई लाभ नहीं मिलता. रंग भी बनावटी होता है. अर्थात गाढ़ा लाल, जो काले रंग के करीब होता है.पीसी हुई मेहंदी लगाने का जो शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता था, वह आज की मेहंदी में नहीं है।.प्राकृतिक मेहंदी की ललाई में जो नजर को खींचने की ताकत थी, वह रेडीमेड मेहंदी की कालिमायुक्त लाली में कहां से होगी , पर आसान उपलब्धता तथा लगाने में सुगमता रेडीमेड मेहंदी को सर्वप्रिय बना रहा है.
आजकल रेग्युलर मेहंदी की जगह ज्वेलरी मेहंदी भी प्रचलन में हैं , जिसे ज्वेलरी और मेहंदी से मिलाकर बनाया गया है। इसमें आर्टिस्ट आपकी ड्रेस के डिजाइन का खास हिस्सा कॉपी करके हूबहू आपके हाथों पर बना सकता है। इसके लिए मेहंदी, स्पार्कल, कलर्स, सितारे, मोती, चांदी व सोना वगैरह यूज किया जाता है। अगर आपकी ड्रेस पर सितारे व मोती हैं, तो इन्हें भी मेहंदी में लगवा सकती हैं। इसे किसी विशेष पार्टी या शादी के मौके पर बनवाया जा सकता है। इसे लगाने के लिए हाथों पर स्किन से मैच करता हुआ बेस कोट लगाया जाता है। फिर इसे सीलर से सील कर दिया जाता है, ताकि आपका डिजाइन देर तक टिका रहे। तभी तो धूम होती है ... मेहंदी लगाके रखना !!
9 comments:
बहुत अच्छी जानकारी देता लेख ...आज के समय केवल रंग की महत्ता समझ आती है पर असली महत्ता तो मेंहदी की तासीर में होती है
बढ़िया प्रस्तुति... रक्षाबंधन के पुनीत पर्व पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं...
बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
रक्षाबन्धन के पुनीत पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
मेहंदी लिथेसिई कुल का काँटेदार आठ दस फुट तक ऊंचा झाडीनुमा पौधा होता है , जिसका वैज्ञानिक नाम लॉसोनिया इनर्मिस है।
अरे! आप तो वनस्पति शास्त्रज्ञ भी हैं!!
वाह! बहुत काम का आलेख!
मेहंदी के बारे में अच्छी जानकारी,आभार.
रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाएं...
रोचक जानकारी पूर्ण प्रस्तुति....
sarthak post...
रोचक प्रस्तुति, धन्यवाद!
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