Bhut pret ki kahani
मर्द पर भी भूत आते है ?
लगातार कई पोस्टों में भूत प्रेत की चर्चा सुनकर मुझे भी एक घटना याद आ गयी , जो मैं आपलोगों को सुना ही दूं। 1975 के आसपास की बात है , घर के बगल के सब्जी के खेत में मेरे पापाजी कई मजदूरों से काम करवा रहे थे। मुहल्ले के ही सारे मजदूर थे , इसलिए वे खाना खाने अपने अपने घर चले जाते थे। ठीक 1 बजे उनको खाने की छुट्टी देकर पापाजी भी खाना खाने घर आए। खेत की सब्जियां जानवर न खा लें, यह सोंचकर मेरे पापाजी को घर में देखकर थोडी ही देर में दादी जी उस खेत का दरवाजा बंद कर आ गयी।
अभी पापाजी खाना खा ही रहे थे कि घर के किसी बच्चे ने देखा कि एक मजदूर उसी बगीचे के पुआल के ढेर पर बंदर की तरह उपर चढता जा रहा है। उसके हल्ला मचाने के बावजूद वह उपर चढता गया और उपर चढकर डांस करने लगा। हमलोग सारे बच्चे जमा होकर तमाशा देखने लगे। हमलोगों का हल्ला सुनकर पापाजी खाना छोडकर आंगन मे आए। उससे डांटकर उतरने को कहा तो वह उतरकर आम के पेड पर बिल्कुल पतली टहनी पर चढ गया। आंय बांय क्या क्या बकने लगा। कभी इस पेड पर तो कभी उसपर , फिर पापाजी के डांटने पर उतरकर बगीचे के दीवार पर दौडने लगा।
उसकी शरारतें देखकर सबका डर से बुरा हाल था , पता नहीं , सांप बिच्छू ने काट लिया या भूत प्रेत का चक्कर है या फिर इसका दिमाग किसी और वजह से खराब हो गया है। अभी कुछ ही दिन पहले एक मजदूर हमारा काम करते हुए पेड से गिर पडा था , एक्सरे में उसकी हाथ की हड्डियां टूटी दिखी थी और हमारे यहां से उसका इलाज किया ही जा रहा था और ये दूसरी मुसीबत आ गयी थी। मेरी दादी जी परेशान ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि हमारे घर में ही सारे मजदूरों को क्या हो जाता है , उनकी रक्षा करें और वह बेहूदी हरकतें करता जा रहा था।
10 - 15 मिनट तक डांट का कोई असर न होते देख मेरे पापाजी ने उसे प्यार से बुलाया। थोडी देर में वह सामने आया। पापाजी प्यार से उससे पूछने लगे कि तुम्हें क्या हुआ , किसी कीडे मकोडे ने काटा या कुछ और बात हुई। उसने शांत होकर कहा ‘पता नहीं मुझे क्या हो गया है , चाची से पूछिए न , मैने बगीचे के कितने बैगन भी तोड डाले’ , पापाजी चौंके ‘चाची से पूछिए न , बगीचे के बैगन’ , हमलोगों को बगीचे में भेजा , सचमुच बहुत से बैगन टूटे पडे थे। पापाजी को राज समझ में आ गया , उसे बैठाकर पानी पिलाया , खाना खिलाया और उसे दिनभर की छुट्टी दे दी और उसकी पत्नी को बुलाकर उसके साथ आराम करने को घर भेज दिया। पापाजी ने दादी जी से बैगन के बारे में पूछा तो उन्होने बताया कि उन्हे कुछ भी नहीं मालूम।
दरअसल मजदूरों को जब छुट्टी दी गयी थी , तो सारे चले गए , पर इसकी नजर बगीचे के बैगन पर थी , इसलिए यह उसी बगीचे के कुएं पर पानी पीने के बहाने रूक गया। घर ले जाने के लिए वह बैगन तोडने लगा , उसी समय दादी जी दरवाजा बंद करने गयी । उन्हें मोतियाबिंद के कारण धुंधला दिखाई देता था , वो मजदूर को नहीं देख पायीं , पर मजदूर ने सोंचा कि दादी जी ने बैगन तोडते उसे देख लिया है , इसलिए उसने चोरी के इल्जाम से बचने के लिए नाटक करना शुरू किया। माजरा समझ में आने पर हमारा तो हंसते हंसते बुरा हाल था। सचमुच यही बात थी , क्यूंकि दूसरे दिन वह बिल्कुल सामान्य तौर पर मजदूरी करने आ गया था।