Friday 8 May 2020

बुरे कर्मों का फल कैसे मिलता है ?

Bure karmo ka fal kaise milta hai

बुरे कर्मों का फल कैसे मिलता है ?

ज्‍योतिष जैसे विषय से जुडे होने के कारण अपने को दुखी कहनेवाले और सुखी होने के लिए सलाह के लिए आनेवाले लोगों की मेरे पास कमी नहीं , पर मेरे विचार से ये सारे लोग दुखी नहीं होते। उनके पास जीवन के सारे सुख हैं , ये बडी बडी गाडियों में आते हैं , अच्‍छा जीवन जीते हैं , पर संतोष की कमी है , इसलिए अपने को दुखी मानते हैं। हर प्रकार के सुख , डिग्री और पद के साथ जीने की इन्‍हें बुरी आदत हो गयी है और उसमें से कोई भी कमजोरी उन्‍हें तनाव दे देती है। सिर्फ अपने कर्म पर भरोसा रखने वालों को भी आध्‍यात्मिक विश्‍वास वालों की तुलना में मैने अधिक दुखी पाया है , क्‍यूंकि हर वक्‍त कर्म से आप अपने जीवन को नहीं सुधार सकते , इस लंबे जीवन में बहुत कुछ अपने हाथ में नहीं होता , पर आध्‍यात्म पर विश्‍वास रखनेवालों को हर परिस्थिति को स्‍वीकारने और संतोष कर लेने की एक अच्‍छी आदत होती है। मैं तो बस यही मानती हूं कि अपने लक्ष्‍य के लिए जी जान से कोशिश करो , फिर भी वो नहीं मिले , तो उस वक्‍त समझौता कर लो और यह विश्‍वास रखो कि उससे बडी उपलब्धि आगे मिलनेवाली है।

कहा जाता है कि सबों का जीवन सुख और दुख का मिश्रण है। पर कभी कभी यह विचित्रता अवश्‍य देखने को मिलती है कि किसी के हिस्‍से में सिर्फ सुख ही सुख होता है और किसी के हिस्‍से में केवल कष्‍ट। यदि विज्ञान के कार्य कारण नियम के अनुसार इसका कारण ढूंढा जाए तो हमारे हिस्‍से कुछ भी नहीं लगेगा , पर आध्‍यात्‍म के अनुसार हमारा जीवन कई कई जन्‍मों के हमारे कर्म का फल है , भले ही इसका प्रमाण न हो , पर कार्य कारण नियम के अनुसार हमें मिलनेवाले हर सुख दुख का हिसाब तो इससे मिल ही जाता है। इतना ही नहीं , आध्‍यात्‍म पर विश्‍वास हमारे कर्म को नियंत्रित भी करता है और हमारे अंदर सद्गुणों का विकास कर हमें चरित्रवान भी बनाता है। आध्‍यात्‍म के इस विशंषता के आगे तर्क कहीं भी नहीं टिकता ।



अपने अभी तक के अनुभव में मैने अपने गांव की एक महिला को सबसे कष्‍टकर जीवन जीते पाया है , पर मैं ऐसा नहीं मान सकती कि उससे दुखी दुनिया में और कोई भी नहीं। पूरी दुनिया में न जाने कितनी महिलाएं और पुरूष किन किन जगहों पर घोर यातना का शिकार बने हुए हों, पर मेरी नजर में आयी तीन चार दुखियारी महिला के मध्‍य यह सबसे दुखियारी मानी जा सकती है। सामान्‍य तौर पर संपन्‍न घर में जन्‍म लेनेवाली इस महिला , जिसकी चर्चा कर रही हूं , का विवाह भी एक संपन्‍न घराने के सरकारी नौकरी कर रहे इकलौते युवक से हुआ। दो बेटियां और एक बेटे ने भी जन्‍म लेकर उनके परिवार को सुखी बनाने में कोई कसर नहीं रहने दिया, यहां तक कि दो चार वर्षों तक उनका पालन पोषण और विकास भी अच्‍छे ढंग से हुआ , पर आगे की कहानी पढकर बात समझ में आएगी कि उनके लिए यह खुशी बिल्‍कुल क्षणिक थी।

पीढियों से उनके परिवार के सारे नहीं , पर कुछ बच्‍चे एक खास प्रकार की बीमारी से ग्रस्‍त देखे जाते थे। इस बीमारी में तीन चार वर्ष की उम्र में पोलियो की तरह पहले शरीर का कोई एक अंग काम करना बंद कर देता है ,खासकर पैर , फिर धीरे धीरे पूरा शरीर ही इसके चपेट में आ जाता है। हालांकि इस दौरान भी शारिरीक विकास में कोई कमी नहीं देखी जाती है और 20 वर्ष की उम्र तक बच्‍चे बिस्‍तर में पडे पडे युवा भी हो जाते हैं, पर युवावस्‍था ही इनका अंतिम समय होता है , 20 से 22 वर्ष की उम्र के आसपास इनकी मौत हो जाती है। पर इस दौरान मानसिक विकास तो बाधित होता ही है , बोलने और समझने की शक्ति भी समाप्‍त हो जाती है। किसी भी डॉक्‍टर ने इसका कोई पुखता इलाज होने की बात नहीं कही। इस परिवार के अलावा हमारे पूरे गांव में इस प्रकार की बीमारी किसी भी परिवार में आजतक नहीं हुई , इसलिए इसे लोग जेनेटिक ही मानते हैं। हालांकि उनके परिवार में भी ये बीमारी बिल्‍कुल छिटपुट ढंग से कभी कभार ही किसी को हुई है, बाकी बच्‍चे बिल्‍कुल स्‍वस्‍थ हैं। यहां तक कि उनके परिवार की बेटियों को भी ऐसे बच्‍चे नहीं होते हैं।

पर उक्‍त महिला के दुर्भाग्‍य को हमने काफी निकट से देखा है, एक एक कर उसके तीनों बच्‍चे इस गंभीर बीमारी के शिकार हो गए। नौकरी करनेवाले अपने पति को शहर में छोडकर बच्‍चों की तीमारदारी के लिए उन्‍हें गांव में रहना पडा। जहां बच्‍चों को एक दो वर्ष संभालना ही हमें इतना भारी काम महसूस होता है , उसने निराशाजनक परिस्थितियों में 20 वर्ष की उम्र तक तीन तीन बच्‍चों को कैसे संभाला होगा , यह सोंचने वाली बात है। खैर बिस्‍तर पर पडे अपने बच्‍चों की इतने दिनों तक सेवा सुश्रुसा करने के बाद एक एक कर तीनों चल बसे , उनसे निश्चिंत हुई ही होगी कि पति की बीमारी ने फिर उसका जीना मुश्किल किया। तीन चार वर्षों तक गंभीर इलाज और कई प्रकार के ऑपरेशन के बाद उसके पति भी चल बसे। आज अपने जीवन के अंतिम दिनों में वो बिल्‍कुल अकेली है , उसके जीवन की खुशियों को जबरदस्‍ती ढूंढा जाए तो इतना अवश्‍य मिलेगा कि वो रोजी रोटी के लिए दर दर की ठोकरें खाने को मुहंताज नहीं है। उसके घर में अनाज है और हाथ में पेशन के रूपए भी , पर जीवन में उसने जो झेला और आज जो तनाव भरा जीवन काट रही है, उसे सोंचकर भी मेरे रोंगटे खडे हो जाते हैं !!

यदि हम आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो इस दुनिया में हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है।  सकारात्मक कार्यों का सकारात्मक और ऋणात्मक कार्यों का ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है।  इनमे से कुछ को आप साफ़ साफ़ देख पाते हैं,  कुछ रहस्यमय ढंग से उपस्थित होता है। आपने किसी समय किसी के लिए कुछ अच्छा किया, उस समय तो नहीं पर बाद में आपको अच्छा फल मिल जाता है।  कभी कभी अच्छे फल एक दो पीढ़ी बाद भी मिलते हैं, और कभी कभी अगले जन्म में भी, इसलिए हमें हमेशा अच्छे कर्म ही करने चाहिए। जिस कर्म से हमारे मन और आत्मा को ख़ुशी मिलने के साथ साथ सामनेवाले के मन को भी ख़ुशी मिलती है, वह हमारा अच्छा कर्म है। जिस कर्म को अपने मन की ख़ुशी के लिए किया जाये, पर दूसरों का मन दुखी हो जाये, वह हमारा बुरा कर्म होता है।  बुरा कर्म करते वक्त खुद हमारी आत्मा हमें धिक्कारती है, पर हम इन्द्रियों को नियंत्रित न करके बुरा कर्म कर लेते हैं। इसका फल प्रकृति किसी न किसी तरह प्रकृति द्वारा हमें मिलता है।