पिछले आलेख में मैने बताया कि इस बार की दिल्ली यात्रा मेरे लिए बहुत ही सुखद रही, पर पूरे महीने दिलो दिमाग में दुर्घटनाओं का खौफ छाया रहा। 5 मई को बोकारो से प्रस्थान की तैयारी में व्यस्त 4 मई को मिली एक भयावह दुर्घटना की खबर ने मन मे जो भय बनाया , वह पूरे महीने दूर न हो सका। 25 मई को बेटे के बंगलौर से दिल्ली प्रस्थान करने से पहले मंगलौर में हुई विमान दुर्घटना और बोकारो आने से पूर्व स्टेशन में हुई भगदड से हुई मौत और बोकारो पहुंचने से पहले ज्ञानेश्वरी ट्रेन हादसे की खबर यह अहसास दिलाने में समर्थ हो गयी कि यात्रा के दौरान हम भाग्य और भगवान के भरोसे ही सुरक्षित हैं।
यात्रा के दौरान खासकर लौटते वक्त कहीं कहीं परिस्थितियां गडबड बनीं , पर ईश्वर की कृपा है कि उसका कोई दुष्परिणाम देखने को नहीं मिला। 29 मई को पुरूषोत्तम एक्सप्रेस से बोकारो लौटना था , ट्रेन की टाइमिंग थी .. 10 :20 रात्रि , चूंकि हम तीन मां बेटे पूरे सामान के साथ थे , इसलिए दो ऑटो वाले को 8 बजे रात्रि को आने को कहा गया था। आठ की जगह साढे आठ बज गए , पर ऑटो नहीं आया। हमने तुरंत दो रिक्शे से नांगलोई के लिए प्रस्थान किया। रात के नौ बजे हम नांगलोई से चले , ऑटो वाले से बार बार पूछते हुए कि दस बजे तक हमलोग पहुंच पाएंगे या नहीं ? 'यदि कहीं पर जाम न हो तो पहुंच जाएंगे , पर इस वक्त जाम रहती है' , ऑटोवाले का जबाब सुनकर हमलोग परेशान हो जाते थे , पर रास्ते में जाम क्या , कहीं लाल बत्ती भी नहीं मिली और हम पौने दस बजे स्टेशन पहुच चुके थे।
बिल्कुल शांत दिमाग से पूछ ताछ कर हम उस प्लेटफार्म पर उस स्थान पर पहुंचे , जहां पुरूषोत्तम की वह बोगी आने वाली थी , जिससे हमें जाना था । पर ट्रेन तो देर से आयी ही , बोगियां भी सूचना के विपरीत लगी हुई थी । अब प्लेटफार्म पर अफरातफरी का माहौल बन गया , इधर के यात्री उधर और उधर के यात्री इधर जाते दिखाई दे रहे थे। ट्रेन यदि देर से न खुलती , तो यहां भी एक दुर्घटना के होने की संभावना थी , पर सबों के आराम से बैठने के बाद ही ट्रेन खुली , जिससे राहत मिली। पर सुबह उठते ही ज्ञानेश्वरी ट्रेन हादसे की खबर मिली , जिससे पुन: एक बार मन:स्थिति पर बुरा प्रभाव पडा।
शाम 5 बजे के बाद बोकारो से काफी निकट गोमो स्टेशन से ट्रेन के चलने के बाद घर पहुंचने की खुशी में बडा खलल उस वक्त पहुंचा , जब हमें यह मालूम हुआ कि ज्ञानेश्वरी हादसे के बाद सुरक्षा कारणों से ट्रेन बोकारो से नहीं , वरन् दूसरे रास्ते से बंगाल की दिशा में चल चुकी है। गोमो में हो रहे इस एनाउंसमेंट के वक्त हमारा ध्यान बेटे के ए आई ट्रिपल ई के रिजल्ट की ओर था , जिसकी सूचना हमें तुरंत मिली थी। एनाउंसमेंट न सुन पाने के कारण आयी इस विकट परिस्थिति से लगभग आधे घंटे हम सब हैरान परेशान रहे , पर खैरियत थी कि एक छोटे से स्टेशन 'मोहदा' में गाडी रूकी , दो मिनट के इस स्टॉपेज में गाडी रूकने का अंदाजा होने से हम अपने सामान के साथ गेट पर तैयार ही थे , इसलिए हमने सारा सामान जल्दी जल्दी उतार लिया। वहां से हम बाहर आए , एक टैक्सी ली और पौने सात बजे हम बोकारो में थे। इस तरह इस यात्रा के दौरान कुछ कुछ असमान्य घटनाएं होती रहीं , पर कुशल मंगल अपने घर पहुंच गयी।
12 comments:
रोचक यात्रा विवरण और मानवीय भावनाओं का वर्णन कर रही उम्दा पोस्ट
ईश्वर सहायता करता है उसकी,
जो उस पर विश्वास करता है ।
शुभकामनाएं
वैसे आशंकाएँ भी दुर्घटनाओं के कारक होते हैं
सकुशल वापसी तो होनी ही थी हम सब की सद्भावनाएँ जो साथ थी.
ऐसी विषम परिस्थितियों में धैर्य ही साथ देता है....रोमांचक संस्मरण
कुशल मंगल अपने घर पहुंच गयी।
thank god.............
इस प्रकार दुर्घटानाओं के क्रम से मन आशांकित तो रहता है,अच्छा हुआ आप सकुशल बोकारो पहुँच गयीं ।
चलिए कुशलता से आयीं -अंत भला तो सब भला !
बेटे को बधायी !
मुझे तो आपके पास बैठकर सकारात्मक ऊर्जा मिल रही थी।
आपकी यात्रा मंगलमय रही।
प्रणाम
सफ़र के दौरान हम भी ऐसे खौफ़ से गुज़रते हैं..पिछले दिनों हवाई यात्रा करते हुए बस मैंगलूर का हादसा याद आ रहा था...
संगीताजी, कष्टप्रद यात्राओं के कारण ही इसे सफर कहते हैं। चलिए अन्त भला तो सब भला।
सब कुशल मंगल रहा ....
शुभकामनायें ...!!
हम भाग्य और भगवान के भरोसे ही सुरक्षित हैं। यही है यथार्थ्। बहुत ही सुन्दर यात्रा विवरण।
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