Tuesday 2 February 2021

सरस्‍वती पूजा पर आज तो बस पुरानी यादें ही साथ हैं !!

How to do saraswati puja ?

How to do saraswati puja ?


सरस्‍वती पूजा को लेकर सबसे पहली याद मेरी तब की है , जब मैं मुश्किल से पांच या छह वर्ष की रही होऊंगी और सरस्‍वती पूजा के उपलक्ष्‍य में शाम को स्‍टेज में हो रहे कार्यक्रम में बोलने के लिए मुझे यह कविता रटायी गयी थी ...

शाला से जब शीला आयी ,
पूछा मां से कहां मिठाई ।
मां धोती थी कपडे मैले ,
बोली आले में है ले ले।
मन की आशा मीठी थी ,
पर आले में केवल चींटी थी।
खूब मचाया उसने हल्‍ला ,
चींटी ने खाया रसगुल्‍ला।


थोडी बडी होने पर स्‍कूल में भी हमारा उपस्थित र‍हना आवश्‍यक होता , चूंकि स्‍कूलों के कार्यक्रम में थोडी देरी हो जाया करती थी , इसलिए हमारे घर की पूजा सुबह सवेरे ही हो जाती और माता सरस्‍वती को पुष्‍पांजलि देने के बाद ही हमलोग तब स्‍कूल पहुंचते , जब वहां का कार्यक्रम शुरू हो जाता था। सभी शिक्षकों को मालूम था कि हमारे घर में भी पूजा होती है , इसलिए हमें कभी भी देर से पहुंचने को लेकर डांट नहीं पडी। बचपन से ही हम भूखे प्‍यासे स्‍कूल जाते और स्‍कूल की पूजा के बाद ही प्रसाद खाते हुए सारा गांव घूमते , प्रत्‍येक गली में एक सरस्‍वती जी की स्‍थापना होती थी , हमलोग किसी भी मूर्ति के दर्शन किए बिना नहीं रह सकते थे।

ऊंची कक्षाओं के बच्‍चों को स्‍कूल के सरस्‍वती पूजा की सारी व्‍यवस्‍था खुद करनी होती थी , इस तरह वे एक कार्यक्रम का संचालन भी सीख लेते थे। चंदा एकत्रित करने से लेकर सारा बाजार और अन्‍य कार्यक्रम उन्‍हीं के जिम्‍मे होता। सहशिक्षा वाले स्‍कूल में पढ रही हम छात्राओं को सरस्‍वती पूजा के कार्यक्रम में चंदा इकट्ठा करने और पंडाल की सजावट के लिए घर से साडियां लाने से अधिक काम नहीं मिलता था , इसलिए सबका खाली दिमाग अपने पहनावे की तैयारी करता मिलता।

तब लहंगे का फैशन तो था नहीं , बहुत कम उम्र से ही सरस्‍वती पूजा में हम सभी छात्राएं साडी पहनने के लिए परेशान रहते। आज की  तरह तब महिलाओं के पास भी साडियों के ढेर नहीं हुआ करते थे , इसलिए अच्‍छी साडियां देने को किसी की मम्‍मी या चाची तैयार नहीं होती और पूजा के मौके पर साधारण साडियां पहनना हम पसंद नहीं करते थे। साडियों के लिए तो हमें जो मशक्‍कत करनी पडती , उससे कम ब्‍लाउज के लिए नहीं करनी पडती। किसी भी छात्रा को अपनी मम्‍मी और चाचियों का ब्‍लाउज नहीं आ सकता था, ब्‍लाउज के लिए हम पूरे गांव में दुबली पतली नई ब्‍याहता भाभियों को ढूंढते। तब रंगो के इतने शेड तो होते नहीं थे , हमारी साडी के रंग का ब्‍लाउज कहीं न कहीं मिल ही जाता , तो हमें चैन आता।

हमारे गांव में वसंतपंचमी के दूसरे दिन से ही मेला भी लगता है , हमारे घर में तो सबका संबंध शुरू से शहरों से रा है , इसलिए मेले को लेकर बडों को कभी उत्‍साह नहीं रहा , पर दूर दराज से पूरे गांव में सबके घर मेहमान मेला देखने के लिए पहुंच जाते हैं। अनजान लोगों से भरे भीड वाले वातावरण में हमलोगों को लेकर अभिभावक कुछ सशंकित भी रहते , पर एक सप्‍ताह तक हमलोगों का उत्‍साह बना रहता। ग्रुप बनाकर ही सही , पर मेले में आए सर्कस से लेकर झूलों तक और मिठाइयों से लेकर चाट पकौडों तक का आनंद हमलोग अवश्‍य लेते।

वर्ष 1982 में के बी वूमेन्‍स कॉलेज , हजारीबाग में ग्रेज्‍युएशन करते हुए चतुर्थ वर्ष में पहली बार सरस्‍वती पूजा के आयोजन का भार हमारे कंधे पर पडा था। इस जिम्‍मेदारी को पाकर हम दस बीस लडकियां अचानक बडे हो गए थे और पंद्रह दिनों तक काफी तैयारी के बाद हमलोगों ने सरस्‍वती पूजा के कार्यक्रम को बहुत अच्‍छे ढंग से संपन्‍न किया था। वो उत्‍साह भी आजतक नहीं भूला जाता। आज तो बस पुरानी यादें ही साथ हैं , सबों को सरस्‍वती पूजा की शुभकामनाएं !!

16 comments:

rashmi ravija said...

घर..स्कूल..कॉलेज की कितनी ही यादें जुड़ी हुई हैं, सरस्वती पूजा से.हमेशा...उसके आयोजन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया..शुरू-शुरू में तो बहुत ही खालीपन सा महसूस होता इस दिन. पर धीरे-धीरे आदत पड़ गयी

ना जाने कितनी चीज़ों की आदत पड़ती जायेगी.

Chaitanyaa Sharma said...

माँ सरस्वती को नमन........बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें आपको भी......

डॉ. मोनिका शर्मा said...

जीवन भर की पूँजी लगती हैं ऐसी यादें ... और कभी साथ भी नहीं छोड़तीं ......बसंतोत्सव की शुभकामनाये

रवि धवन said...

कितने सुहाने थे वो दिन।
यादें याद रहती है...।

Smart Indian said...

पुरानी यादों की बात ही निराली है।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

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ब्‍लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।

naresh singh said...

अपनी यादे बांटने का धन्यवाद |

Dr (Miss) Sharad Singh said...

अपनी अमूल्य यादों को साझा कराने के लिए आभार।

VIVEK SRIVASTAVA said...

first of all thanks for your valuable comment on my blog...and thanks for sharing ur memories also..

Rakesh Kumar said...

आपकी सरस्वती पूजा की रोचक चर्चा और पुरानी यादों से जुडकर बहुत अच्छा लगा.आपका मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' पर आने से भी मुझे खुशी मिली है.कृपया समय समय पर आकर अपने अमूल्य विचारों से मेरा मार्गदर्शन कीजिये.

Satish Saxena said...

अरे आपने इस ब्लॉग पर काफी दिन से कुछ नहीं लिखा है ! जिन्हें ज्योतिष की समझ नहीं है उनका भी ध्यान रखें :-)
शुभकामनायें !

Rakesh Kumar said...

होली पर आपको,समस्त परिवार को और सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुब कामनाएँ .

संतोष त्रिवेदी said...

ज्योतिष के अलावा अन्य सामाजिक पहलुओं पर आपकी चिंताओं की ज़रूरत है....इस पोस्ट के लिए शुक्रिया !

कुमार राधारमण said...

बिहार और झारखंड के लोगों के कारण यह पूजा अब महानगरों में भी खूब धूमधाम से होती है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-04-2021) को   "आदमी के डसे का नही मन्त्र है"  (चर्चा अंक-4033)    पर भी होगी। 
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सत्य कहूँ तो हम चर्चाकार भी बहुत उदार होते हैं। उनकी पोस्ट का लिंक भी चर्चा में ले लेते हैं, जो कभी चर्चामंच पर झाँकने भी नहीं आते हैं। कमेंट करना तो बहुत दूर की बात है उनके लिए। लेकिन फिर भी उनके लिए तो धन्यवाद बनता ही है निस्वार्थभाव से चर्चा मंच पर टिप्पी करते हैं।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।    
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
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सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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Shakuntla said...

अपनी यादों को सांझा करने के लिए शुक्रिया